Ganga Action Plan
jp Singh
2025-06-03 16:35:52
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गंगा कार्ययोजना/Ganga Action Plan
गंगा कार्ययोजना/Ganga Action Plan
गंगा कार्ययोजना (Ganga Action Plan - GAP) भारत सरकार द्वारा गंगा नदी के प्रदूषण को कम करने और इसकी जल गुणवत्ता में सुधार करने के लिए शुरू की गई एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय पहल थी। यह योजना 1985 में शुरू की गई और इसे 14 जनवरी, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी द्वारा औपचारिक रूप से लॉन्च किया गया। यह 100% केंद्र प्रायोजित योजना थी, जिसका उद्देश्य गंगा नदी को प्रदूषण से बचाना और इसके पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जनन करना था। बाद में, इसे नमामि गंगे कार्यक्रम (2014) में समाहित किया गया, जो अधिक व्यापक और बेहतर वित्त पोषित पहल है। यह आपके पिछले प्रश्नों, जैसे हरित लेखांकन, राष्ट्रीय हरित न्यायधिकरण (NGT), और उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित है, क्योंकि यह पर्यावरण संरक्षण और सार्वजनिक कल्याण से जुड़ा है।
गंगा कार्ययोजना का अवलोकन
प्रारंभ: 1979 में गंगा की सफाई की अवधारणा प्रस्तावित की गई, लेकिन 1984 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा गंगा बेसिन के सर्वेक्षण के बाद 1985 में GAP शुरू हुआ।
प्राथमिक उद्देश्य: गंगा नदी की जल गुणवत्ता को स्वीकार्य स्तर (जैसे स्नान योग्य) तक सुधारना, घरेलू सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट को रोकना।
वित्तपोषण: GAP पूरी तरह केंद्र द्वारा वित्त पोषित था। चरण-I में ₹452 करोड़ और चरण-II में अतिरिक्त धनराशि खर्च की गई।
संस्थागत ढांचा: 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) की स्थापना की गई, जिसकी अध्यक्षता भारत के प्रधानमंत्री करते हैं और इसमें गंगा बेसिन राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हैं। गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया।
गंगा कार्ययोजना के उद्देश्य
प्रदूषण नियंत्रण: घरेलू सीवेज का अवरोधन, मोड़ना, और उपचार। औद्योगिक रासायनिक और विषाक्त अपशिष्ट को नदी में प्रवेश से रोकना। गैर-बिंदु स्रोत प्रदूषण (Non-point Source Pollution) पर नियंत्रण: मानव मलत्याग, मवेशी नहलाना, और आधे जले/अजले शवों को नदी में प्रवाहित करने जैसे स्रोतों को नियंत्रित करना। जैव विविधता संरक्षण: गंगा के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र, जैसे गंगा नदी डॉल्फिन और सॉफ्टशेल कछुए, को संरक्षित करना। नवाचार और अनुसंधान: सीवेज उपचार के लिए नई तकनीकों का विकास, जैसे Up-flow Anaerobic Sludge Blanket (UASB)। वृक्षारोपण और जैव-उपचार (Bio-remediation) के माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण।
अन्य नदियों के लिए मॉडल: गंगा कार्ययोजना को अन्य प्रदूषित नदियों (जैसे यमुना, गोमती, दामोदर) के लिए मॉडल के रूप में उपयोग करना। सार्वजनिक जागरूकता: समुदायों को स्वच्छता और नदी संरक्षण के प्रति जागरूक करना।
गंगा कार्ययोजना के चरण: चरण-I (1985-2000): कवरेज: उत्तर प्रदेश (6 शहर), बिहार (4 शहर), और पश्चिम बंगाल (15 शहर) के 25 कक्षा-I शहर। लागत: ₹452 करोड़। उपलब्धियाँ: 1984 के CPCB सर्वेक्षण के अनुसार, 25 शहरों से 1,340 MLD (मिलियन लीटर प्रतिदिन) सीवेज उत्पन्न होता था, जिसमें से 882 MLD (65%) के लिए उपचार सुविधाएँ स्थापित की गईं। सीवेज उपचार संयंत्र (STP) स्थापित किए गए। कछुओं के पुनर्वास और वृक्षारोपण जैसे उपाय शुरू किए गए।
कमियाँ: अपर्याप्त निगरानी, बिजली की कमी, और स्थानीय सहयोग की कमी के कारण सीमित सफलता। चरण-II (1993-जारी): कवरेज: 7 राज्यों (उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हरियाणा) और गंगा की सहायक नदियों (यमुना, गोमती, दामोदर, महानंदा) को शामिल किया गया। विस्तार: 1995 में राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP) के तहत GAP को अन्य 33 नदियों तक विस्तारित किया गया। उपलब्धियाँ: अतिरिक्त STP और बुनियादी ढांचे का निर्माण, लेकिन केवल 780 MLD सीवेज का उपचार हुआ (लक्ष्य 1,912 MLD था)।
जापान सहयोग: जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) ने कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, और वाराणसी के लिए मास्टर प्लान और व्यवहार्यता अध्ययन (2003-2005) में तकनीकी सहायता प्रदान की।
उपलब्धियाँ: बुनियादी ढांचा: चरण-I में 882 MLD सीवेज उपचार क्षमता स्थापित की गई, और चरण-II में इसका विस्तार हुआ। जागरूकता: नदी प्रदूषण के प्रति सार्वजनिक और सरकारी जागरूकता बढ़ी। राष्ट्रीय नदी का दर्जा: 2009 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया, और NGRBA की स्थापना हुई। अंतरराष्ट्रीय सहयोग: विश्व बैंक ने 2011 में $1 बिलियन और जापान ने वाराणसी में ₹540 करोड़ की परियोजनाओं के लिए वित्त पोषण प्रदान किया। नमामि गंगे में एकीकरण: 2014 में GAP को नमामि गंगे कार्यक्रम में समाहित किया गया, जिसके लिए 2014-2023 तक ₹14,084.72 करोड़ और 2026 तक ₹22,500 करोड़ आवंटित किए गए।
असफलताएँ और चुनौतियाँ
सीमित प्रभाव: गंगा की जल गुणवत्ता में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ। CPCB के अनुसार, गंगा के सभी खंडों (हिमालय को छोड़कर) में फीकल कोलिफॉर्म स्तर स्वीकार्य सीमा से अधिक हैं। 2012 में, गंगा बेसिन में 2,723 MLD सीवेज उत्पन्न होता था, लेकिन उपचार क्षमता केवल 1,208 MLD (44%) थी। अपर्याप्त बुनियादी ढांचा: उदाहरण: कानपुर में 400 MLD सीवेज उत्पन्न होता है, लेकिन उपचार क्षमता केवल 150 MLD है, और वास्तविक उपचार 90-100 MLD ही होता है। सीवर लाइनों की कमी के कारण अपशिष्ट सीधे नदी में जाता है।
औद्योगिक प्रदूषण
कानपुर में 400 टैनरियों से 40 MLD अपशिष्ट (क्रोमियम जैसे भारी धातुओं सहित) उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 9 MLD का उपचार होता है। निगरानी और सहयोग की कमी: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी, अपर्याप्त निगरानी, और सार्वजनिक भागीदारी का अभाव। प्राकृतिक प्रवाह में कमी: सिंचाई और अन्य उपयोगों के लिए जल का अत्यधिक विचलन गंगा के प्राकृतिक प्रवाह को कम करता है, जिससे प्रदूषण का पतलापन (dilution) नहीं हो पाता। वित्तीय बाधाएँ: नमामि गंगे के तहत केंद्र अब केवल पहले 5 वर्षों के लिए STP को वित्त पोषित करता है, जिसके बाद राज्य सरकारों को जिम्मेदारी लेनी होती है, जो अक्सर नकदी की कमी से जूझती हैं।
नमामि गंगे कार्यक्रम (2014-जारी)
GAP की सीमित सफलता के कारण, 2014 में नमामि गंगे शुरू किया गया, जो अधिक व्यापक और बेहतर वित्त पोषित है। बजट: 2014-2021 के लिए ₹20,000 करोड़, और 2021-2026 के लिए ₹22,500 करोड़। उपलब्धियाँ: मौजूदा STP का पुनर्वास और नए संयंत्रों का निर्माण। जैव-उपचार और इन-सीटू उपचार जैसे नवीन तकनीकों का उपयोग। सामाजिक-आर्थिक लाभ, जैसे रोजगार सृजन और जीवन की गुणवत्ता में सुधार। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2025 में दावा किया कि कानपुर में गंगा “अविरल और निर्मल” है। आलोचना: X पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया कि गंगा की स्थिति में सुधार नहीं हुआ, और NGT ने कहा कि गंगा का पानी आचमन या पीने योग्य नहीं है।
आपके पिछले प्रश्नों से संबंध
हरित लेखांकन: GAP और नमामि गंगे पर्यावरणीय लागतों (जैसे प्रदूषण, जैव विविधता हानि) को कम करने का प्रयास करते हैं, जो हरित लेखांकन के सिद्धांतों से मेल खाता है। उदाहरण: STP और जैव-उपचार से पर्यावरणीय प्रभाव को मापा और कम किया जा सकता है। राष्ट्रीय हरित न्यायधिकरण (NGT): NGT गंगा में औद्योगिक प्रदूषण (जैसे टैनरियों से क्रोमियम) और सीवेज डंपिंग पर कार्रवाई करता है। GAP के उद्देश्य NGT के पर्यावरण संरक्षण लक्ष्यों से संरेखित हैं। उदाहरण: NGT ने 2024 में गंगा के पानी को अशुद्ध घोषित किया, जो GAP की असफलताओं को उजागर करता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
गंगा के प्रदूषण से जलजनित रोग (जैसे टाइफाइड, हैजा) और भारी धातुओं (जैसे आर्सेनिक, मरकरी) का खतरा बढ़ता है, जो उपभोक्ता स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। GAP उपभोक्ता संरक्षण के साथ अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है, क्योंकि स्वच्छ जल उपभोक्ता अधिकारों का हिस्सा है। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS): TPDS का GAP से सीधा संबंध नहीं है, लेकिन दोनों ही सार्वजनिक कल्याण और राजकोषीय कर्षण से जुड़े हैं। GAP में रिसाव (जैसे अपर्याप्त STP) TPDS में रिसाव (28% अनाज) के समान राजकोषीय चुनौतियाँ दर्शाता है। भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) और हॉलमार्किंग: BIS पेयजल के लिए मानक (IS 10500) निर्धारित करता है, जो GAP के जल गुणवत्ता लक्ष्यों से मेल खाता है। स्वच्छ गंगा जल BIS मानकों को पूरा करने में मदद करता है।
इकोमार्क
इकोमार्क पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों को बढ़ावा देता है, और GAP का जैव-उपचार और वृक्षारोपण जैसे उपाय इकोमार्क के सतत विकास लक्ष्यों से संरेखित हैं। सत्यम कम्प्यूटर्स और हवाला काण्ड: GAP की असफलताएँ (जैसे निगरानी की कमी) सत्यम और हवाला घोटालों में देखी गई पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी से सबक लेती हैं। नमामि गंगे में डिजिटलीकरण (जैसे ऑनलाइन मॉनिटरिंग) इस कमी को दूर करने का प्रयास है।
राजकोषीय कर्षण
GAP और नमामि गंगे राजकोषीय कर्षण के उदाहरण हैं, क्योंकि इनमें बड़े पैमाने पर सरकारी व्यय शामिल है। हालांकि, सीमित सफलता (जैसे 44% सीवेज उपचार) राजकोषीय संसाधनों के अपर्याप्त उपयोग को दर्शाती है।
Conclusion
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