Green Accounting
jp Singh
2025-06-03 15:42:08
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हरित लेखांकन/Green Accounting
हरित लेखांकन/Green Accounting
हरित लेखांकन (Green Accounting) एक लेखांकन प्रणाली है जो आर्थिक गतिविधियों के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को मापने और शामिल करने पर केंद्रित है। यह पारंपरिक लेखांकन से अलग है, जो केवल वित्तीय लेनदेन पर ध्यान देता है। हरित लेखांकन का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग, पर्यावरणीय क्षति, और सामाजिक लागतों को आर्थिक विकास के मूल्यांकन में शामिल करना है ताकि सतत विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
हरित लेखांकन के प्रमुख पहलू
पर्यावरणीय लागत: प्राकृतिक संसाधनों (जैसे पानी, खनिज, वन) के दोहन और प्रदूषण की लागत को मापना। संसाधन मूल्यांकन: प्राकृतिक संसाधनों का मौद्रिक मूल्य निर्धारित करना, जैसे वनों का कार्बन अवशोषण मूल्य। सतत विकास: आर्थिक विकास को पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के साथ संतुलित करना। राष्ट्रीय लेखांकन में एकीकरण: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) जैसे पारंपरिक संकेतकों को समायोजित कर पर्यावरणीय प्रभावों को शामिल करना, जिसे हरित जीडीपी कहा जाता है। हरित लेखांकन के प्रकार: पर्यावरणीय प्राकृतिक संसाधन लेखांकन (ENRA): प्राकृतिक संसाधनों की मात्रा और मूल्य का हिसाब। पर्यावरणीय लागत लेखांकन: व्यवसायों द्वारा पर्यावरणीय प्रभावों की लागत का मूल्यांकन। सामाजिक और पर्यावरणीय लेखांकन (SEA): सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों का व्यापक विश्लेषण।
भारत में हरित लेखांकन
भारत ने हरित लेखांकन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं, विशेष रूप से सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के तहत। पर्यावरणीय-आर्थिक लेखा प्रणाली (SEEA): भारत ने संयुक्त राष्ट्र के SEEA ढांचे को अपनाने की दिशा में काम शुरू किया है, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरणीय प्रभावों का लेखांकन किया जाता है। उदाहरण: भारत में वन संसाधनों, जल संसाधनों, और वायु प्रदूषण के प्रभावों का मूल्यांकन कुछ राज्यों में पायलट परियोजनाओं के माध्यम से किया गया है। नीतिगत प्रयास: पर्यावरण मंत्रालय और सांख्यिकी मंत्रालय ने हरित लेखांकन को राष्ट्रीय लेखा प्रणाली में शामिल करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं।
लाभ
सतत नीति निर्माण: पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिए बेहतर नीतियां बनाना। संसाधन प्रबंधन: प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उपयोग। जवाबदेही: उद्योगों और सरकारों को पर्यावरणीय प्रभावों के लिए जवाबदेह बनाना। निवेश आकर्षण: हरित प्रथाओं को अपनाने से निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।
चुनौतियाँ
डेटा की कमी: भारत जैसे विकासशील देशों में पर्यावरणीय डेटा का अभाव। जटिलता: पर्यावरणीय प्रभावों का मौद्रिक मूल्यांकन करना जटिल और विवादास्पद हो सकता है। जागरूकता: व्यवसायों और नीति निर्माताओं में हरित लेखांकन की समझ और स्वीकार्यता की कमी। लागत: हरित लेखांकन प्रणाली को लागू करने में उच्च प्रारंभिक लागत। उदाहरण: भारत में वन लेखांकन: वनों के आर्थिक योगदान (जैसे लकड़ी, कार्बन अवशोषण, जैव विविधता) को मापने की कोशिश। प्रदूषण लागत: दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभावों का मूल्यांकन।
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