Critical Minimum Effort
jp Singh
2025-06-03 13:20:04
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क्रांतिक न्यूनतम प्रयत्न/Critical Minimum Effort
क्रांतिक न्यूनतम प्रयत्न/Critical Minimum Effort
क्रांतिक न्यूनतम प्रयत्न (Critical Minimum Effort) एक आर्थिक विकास सिद्धांत है, जिसे अर्थशास्त्री हार्वे लेइबेंस्टीन (Harvey Leibenstein) ने 1957 में अपनी पुस्तक
क्रांतिक न्यूनतम प्रयत्न की मुख्य विशेषताएं
आर्थिक पिछड़ापन और जड़ता: विकासशील देशों में अर्थव्यवस्था अक्सर
प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
सिद्धांत के अनुसार, प्रति व्यक्ति आय को उस स्तर तक बढ़ाना आवश्यक है, जहां जनसंख्या वृद्धि के बावजूद आय का स्तर स्थिर रहे और निवेश बढ़ता रहे। यदि निवेश इस न्यूनतम स्तर से कम है, तो जनसंख्या वृद्धि आय के लाभ को नष्ट कर देती है। मल्टी-सेक्टर निवेश: केवल एक क्षेत्र (जैसे कृषि) में निवेश पर्याप्त नहीं है। कृषि, उद्योग, बुनियादी ढांचा, और शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में समन्वित निवेश की आवश्यकता होती है। आर्थिक प्रोत्साहन: लेइबेंस्टीन ने
सिद्धांत का कार्य सिद्धांत
निम्न-स्तरीय संतुलन जाल: विकासशील देशों में, प्रति व्यक्ति आय निम्न होती है, जिससे बचत और निवेश कम होता है। जनसंख्या वृद्धि आय में वृद्धि को खा जाती है, जिससे अर्थव्यवस्था स्थिर (Stagnant) रहती है। क्रांतिक न्यूनतम प्रयास: अर्थव्यवस्था को इस जाल से बाहर निकालने के लिए एक बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता होती है, जो प्रति व्यक्ति आय को एक
भारत में क्रांतिक न्यूनतम प्रयत्न का संदर्भ
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: भारत की पंचवर्षीय योजनाओं (1950-60 के दशक) में क्रांतिक न्यूनतम प्रयास की अवधारणा का प्रभाव देखा जा सकता है। दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61) में महलनोबिस मॉडल ने भारी उद्योगों और बुनियादी ढांचे में बड़े निवेश पर जोर दिया, जो इस सिद्धांत से प्रेरित था।
आत्मनिर्भर भारत
वर्तमान में, आत्मनिर्भर भारत और डिजिटल इंडिया पहल क्रांतिक न्यूनतम प्रयास के सिद्धांत को लागू करती हैं। उदाहरण के लिए: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI): इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश। डिजिटल इंडिया: नेट बैंकिंग, टेलीमेडिसिन (जैसा आपने पहले पूछा), और डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश। जोखिम पूंजी (Venture Capital) (जैसा आपने पहले पूछा): स्टार्टअप्स में जोखिम पूंजी का निवेश क्रांतिक न्यूनतम प्रयास का एक हिस्सा हो सकता है, क्योंकि यह तकनीकी नवाचार और रोजगार सृजन को बढ़ावा देता है। संचित निधि (जैसा आपने पहले पूछा): गैर-लाभकारी संगठनों की संचित निधि सामाजिक क्षेत्रों (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य) में निवेश के लिए उपयोग की जा सकती है, जो क्रांतिक न्यूनतम प्रयास का समर्थन करता है।
प्रतिकारी शुल्क (Reciprocal Tariff) (जैसा आपने पहले पूछा): घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए प्रतिकारी शुल्क लगाना क्रांतिक न्यूनतम प्रयास का हिस्सा हो सकता है, क्योंकि यह स्थानीय निवेश को प्रोत्साहित करता है। लाभ: स्थायी विकास: अर्थव्यवस्था को निम्न-स्तरीय संतुलन जाल से बाहर निकालता है। रोजगार सृजन: बहु-क्षेत्रीय निवेश से रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। उत्पादकता में वृद्धि: नवाचार और बुनियादी ढांचे में सुधार से उत्पादकता बढ़ती है। आर्थिक स्थिरता: प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से सामाजिक और आर्थिक स्थिरता। चुनौतियां: विशाल पूंजी की आवश्यकता: बड़े पैमाने पर निवेश के लिए संसाधनों की कमी, विशेष रूप से विकासशील देशों में।
समन्वय की कमी: कई क्षेत्रों में एक साथ निवेश के लिए समन्वय और योजना की आवश्यकता। जोखिम: यदि निवेश असफल होता है, तो आर्थिक नुकसान हो सकता है। भारत में चुनौतियां: जनसंख्या दबाव और बेरोजगारी। भ्रष्टाचार और नीतिगत देरी निवेश के प्रभाव को कम कर सकती हैं। क्रांतिक न्यूनतम प्रयत्न बनाम टपकन सिद्धांत (जैसा आपने पहले पूछा)
टपकन सिद्धांत
अमीरों और कॉर्पोरेट्स को लाभ देकर अप्रत्यक्ष रूप से निम्न वर्गों तक लाभ पहुंचाने पर केंद्रित। यह आपूर्ति-पक्ष (Supply-Side) पर जोर देता है। क्रांतिक न्यूनतम प्रयास: कई क्षेत्रों में एक साथ बड़े निवेश पर केंद्रित, जो अर्थव्यवस्था को जड़ता से बाहर निकालता है। यह समग्र आर्थिक ढांचे पर जोर देता है, न कि केवल अमीर वर्ग पर।
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jp Singh
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