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Accumulated Fund
jp Singh 2025-06-03 13:09:54
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संचित निधि/Accumulated Fund

संचित निधि/Accumulated Fund
संचित निधि (Accumulated Fund) एक वित्तीय अवधारणा है, जो मुख्य रूप से गैर-लाभकारी संगठनों (Non-Profit Organizations), जैसे ट्रस्ट, सोसाइटी, क्लब, या सहकारी समितियों, के संदर्भ में उपयोग की जाती है। यह वह धनराशि है जो संगठन की आय और व्यय के बीच अंतर के रूप में संचित होती है और इसका उपयोग संगठन के उद्देश्यों को पूरा करने, भविष्य की परियोजनाओं, या आपातकालीन जरूरतों के लिए किया जाता है। इसे रिज़र्व फंड या संचय निधि भी कहा जा सकता है।
संचित निधि की मुख्य विशेषताएं
परिभाषा: संचित निधि संगठन की कुल आय (जैसे दान, सदस्यता शुल्क, अनुदान) और कुल व्यय (जैसे परिचालन लागत, परियोजना खर्च) के बीच बची हुई अधिशेष राशि है। यह संगठन की
उपयोग
भविष्य की परियोजनाओं, जैसे स्कूल, अस्पताल, या सामुदायिक कार्य, के लिए। आपातकालीन खर्चों, जैसे मरम्मत या कानूनी लागत, के लिए। संगठन की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए।
गैर-लाभकारी प्रकृति
लाभकारी संगठनों में इसे
निवेश
संचित निधि को सुरक्षित निवेशों (जैसे फिक्स्ड डिपॉजिट, सरकारी प्रतिभूतियां) में रखा जा सकता है ताकि ब्याज के माध्यम से अतिरिक्त आय हो।
संचित निधि की गणना
संचित निधि = कुल आय - कुल व्यय + पिछली संचित निधि
आय: सदस्यता शुल्क, दान, अनुदान, ब्याज आय, या आयोजनों से प्राप्त राशि।
व्यय: परिचालन लागत, कर्मचारी वेतन, परियोजना खर्च, या रखरखाव।
पिछली संचित निधि: पिछले वर्षों से बची राशि। उदाहरण:
एक NGO को एक वर्ष में ₹10 लाख का दान और ₹2 लाख की ब्याज आय प्राप्त होती है (कुल आय = ₹12 लाख)। उसी वर्ष, NGO का व्यय (जैसे स्कूल संचालन, कर्मचारी वेतन) ₹9 लाख है। संचित निधि = ₹12 लाख - ₹9 लाख = ₹3 लाख (इस वर्ष की अधिशेष राशि)। यदि पिछले वर्ष की संचित निधि ₹5 लाख थी, तो कुल संचित निधि = ₹3 लाख + ₹5 लाख = ₹8 लाख।
भारत में संचित निधि का महत्व
गैर-लाभकारी संगठन
भारत में NGO, ट्रस्ट, और सहकारी समितियां (जैसे हाउसिंग सोसाइटी) संचित निधि का उपयोग सामाजिक कार्यों, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य (टेलीमेडिसिन, जैसा आपने पहले पूछा), और ग्रामीण विकास, के लिए करती हैं।
कानूनी ढांचा
सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 और इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के तहत संचित निधि का उपयोग और लेखांकन नियंत्रित होता है। गैर-लाभकारी संगठनों को अपनी संचित निधि का 85% हिस्सा अपने उद्देश्यों के लिए खर्च करना होता है, अन्यथा कर छूट प्रभावित हो सकती है। डिजिटल इंडिया और वित्तीय प्रबंधन: संचित निधि का प्रबंधन नेट बैंकिंग (जैसा आपने पहले पूछा) और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से आसान हो गया है।
learing Corporation of India Limited (CCIL) (जैसा आपने पहले पूछा) सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के लिए क्लियरिंग और सेटलमेंट सेवाएं प्रदान कर सकता है, जहां संचित निधि निवेश की जाती है। आत्मनिर्भर भारत: संचित निधि का उपयोग स्थानीय परियोजनाओं, जैसे ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र या शिक्षा कार्यक्रम, में किया जा सकता है, जो आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। संचित निधि और जोखिम पूंजी से तुलना (जैसा आपने पहले पूछा):
जोखिम पूंजी (Venture Capital)
लाभकारी स्टार्टअप्स में निवेश के लिए, जोखिम और रिटर्न पर केंद्रित। इसका उद्देश्य व्यवसाय वृद्धि और लाभ कमाना है। संचित निधि: गैर-लाभकारी संगठनों के लिए, सामाजिक उद्देश्यों पर केंद्रित। इसका उद्देश्य लाभ नहीं, बल्कि संगठन की स्थिरता और सामाजिक कल्याण है। समानता: दोनों ही दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता के लिए उपयोगी हैं और डिजिटल बैंकिंग (जैसे नेट बैंकिंग) के माध्यम से प्रबंधित हो सकते हैं।
लाभ
वित्तीय स्थिरता: संगठन को आर्थिक संकटों से निपटने में मदद। परियोजना वित्तपोषण: नई पहल या आपातकालीन जरूरतों के लिए धन। कर लाभ: उचित उपयोग पर आयकर छूट (सेक्शन 11, इनकम टैक्स एक्ट)। पारदर्शिता: डिजिटल लेखांकन और नेट बैंकिंग के माध्यम से बेहतर प्रबंधन।
चुनौतियां
कानूनी अनुपालन: संचित निधि के उपयोग पर सख्त नियम, जैसे 85% खर्च की आवश्यकता। प्रबंधन: अनुचित प्रबंधन से धन का दुरुपयोग हो सकता है। निवेश जोखिम: यदि संचित निधि को जोखिम भरे निवेशों में लगाया जाए, तो नुकसान हो सकता है। पारदर्शिता की कमी: कुछ संगठनों में लेखांकन में पारदर्शिता की कमी।
Conclusion
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