What is Reverse Repo Rate
jp Singh
2025-06-03 10:13:15
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रिवर्स रेपो दर क्या है/ Reverse Repo Rate
रिवर्स रेपो दर क्या है/ Reverse Repo Rate
रिवर्स रेपो दर वह दर है, जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों से सरकारी प्रतिभूतियों (जैसे ट्रेजरी बिल्स या सरकारी बांड) के बदले नकदी उधार लेता है, और एक निश्चित अवधि के बाद इन्हें वापस बेचने का वादा करता है। यह रेपो दर (Repo Rate) का उल्टा होता है, जहां बैंक RBI से उधार लेते हैं। रिवर्स रेपो दर में, बैंक RBI को
उदाहरण: यदि रिवर्स रेपो दर 5.75% है, तो इसका मतलब है कि बैंक अपनी अतिरिक्त नकदी को RBI के पास जमा करने पर 5.75% वार्षिक ब्याज प्राप्त करेंगे।
रिवर्स रेपो दर का महत्व
नकदी नियंत्रण (Liquidity Management): रिवर्स रेपो दर का उपयोग अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त नकदी को अवशोषित करने के लिए किया जाता है। जब बैंकों के पास अतिरिक्त धन होता है, तो वे इसे RBI के पास जमा कर सकते हैं, जिससे बाजार में नकदी की मात्रा कम हो जाती है।
मुद्रास्फीति नियंत्रण (Inflation Control): उच्च रिवर्स रेपो दर बैंकों को RBI के पास अधिक नकदी जमा करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे बाजार में नकदी कम होती है और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण होता है।
मौद्रिक नीति का हिस्सा: यह रेपो दर के साथ मिलकर RBI की मौद्रिक नीति को लागू करने में मदद करता है। रिवर्स रेपो दर आमतौर पर रेपो दर से कम होती है, और इन दोनों दरों के बीच का अंतर (कॉरिडोर) मौद्रिक नीति की दिशा को दर्शाता है।
बैंकों के लिए सुरक्षित निवेश: रिवर्स रेपो दर बैंकों को उनकी अतिरिक्त नकदी पर सुरक्षित और निश्चित रिटर्न प्रदान करती है, क्योंकि यह RBI के साथ लेनदेन होता है, जिसमें जोखिम न के बराबर होता है।
रिवर्स रेपो दर कैसे काम करती है?
जब वाणिज्यिक बैंकों के पास अतिरिक्त नकदी होती है, जो वे तुरंत उपयोग नहीं करना चाहते, तो वे इस नकदी को RBI के पास जमा करते हैं।
इसके बदले, बैंक RBI को सरकारी प्रतिभूतियां
इस लेनदेन में, RBI बैंकों को रिवर्स रेपो दर के आधार पर ब्याज का भुगतान करता है।
यह प्रक्रिया अर्थव्यवस्था से अतिरिक्त नकदी को हटाने में मदद करती है, जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है।
रिवर्स रेपो दर और रेपो दर का संबंध
रेपो दर (Repo Rate): वह दर जिस पर बैंक RBI से उधार लेते हैं। यह अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के लिए उपयोग होती है।
रिवर्स रेपो दर: वह दर जिस पर बैंक RBI को उधार देते हैं। यह अर्थव्यवस्था से नकदी निकालने के लिए उपयोग होती है।
सामान्यतः, रिवर्स रेपो दर रेपो दर से कम होती है। उदाहरण के लिए, यदि रेपो दर 6% है, तो रिवर्स रेपो दर 5.75% या उससे कम हो सकती है। इस अंतर को पॉलिसी कॉरिडोर कहा जाता है।
भारतीय संदर्भ में रिवर्स रेपो दर
भारत में, रिवर्स रेपो दर को RBI की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee - MPC) द्वारा तय किया जाता है, जो हर दो महीने में बैठक करती है।
उदाहरण के लिए, यदि RBI रिवर्स रेपो दर को बढ़ाकर 6% करता है, तो यह संकेत देता है कि RBI अर्थव्यवस्था से नकदी अवशोषित करना चाहता है, ताकि मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सके।
कोविड-19 महामारी के दौरान, RBI ने रिवर्स रेपो दर को कम करके बैंकों को बाजार में नकदी का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया था, ताकि अर्थव्यवस्था को समर्थन मिले।
रिवर्स रेपो दर का प्रभाव
बैंकों पर: उच्च रिवर्स रेपो दर बैंकों को RBI के पास अधिक नकदी जमा करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे उनकी उधार देने की क्षमता कम हो सकती है। इससे ऋण की ब्याज दरें बढ़ सकती हैं।
उपभोक्ताओं पर: यदि बैंक RBI के पास अधिक नकदी जमा करते हैं, तो बाजार में ऋण की उपलब्धता कम हो सकती है, जिससे होम लोन, कार लोन आदि की ब्याज दरें प्रभावित हो सकती हैं।
मुद्रास्फीति पर: उच्च रिवर्स रेपो दर मुद्रास्फीति को कम करने में मदद करती है, क्योंकि यह बाजार से अतिरिक्त नकदी को हटाती है।
आर्थिक विकास पर: बहुत अधिक रिवर्स रेपो दर आर्थिक विकास को धीमा कर सकती है, क्योंकि यह बैंकों की उधार देने की क्षमता को सीमित करती है।
उदाहरण (भारत में हाल की स्थिति)
3 जून 2025 तक, RBI की मौद्रिक नीति के आधार पर रिवर्स रेपो दर सामान्य रूप से रेपो दर से 25-50 आधार अंक (0.25%-0.50%) कम होती है। हालाँकि, सटीक दर जानने के लिए RBI की नवीनतम मौद्रिक नीति समीक्षा की जाँच करनी होगी।
यदि रेपो दर 6.5% है, तो रिवर्स रेपो दर संभवतः 6% या 6.25% के आसपास हो सकती है।
RBI रेपो दर को बढ़ाने का निर्णय निम्नलिखित कारणों से ले सकता है
मुद्रास्फीति नियंत्रण (Controlling Inflation): जब अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति (कीमतों में वृद्धि) बहुत अधिक होती है, तो RBI उच्च रेपो दर लागू करके बाजार में नकदी की मात्रा को कम करता है। इससे मांग कम होती है, जिससे कीमतें स्थिर हो सकती हैं।
अधिक नकदी (Excess Liquidity): यदि अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक नकदी उपलब्ध है, तो यह अनियंत्रित खर्च और मुद्रास्फीति को बढ़ावा दे सकता है। उच्च रेपो दर नकदी को अवशोषित करने में मदद करती है।
मुद्रा स्थिरीकरण (Currency Stabilization): यदि भारतीय रुपये का मूल्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिर रहा है, तो उच्च रेपो दर विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकती है, क्योंकि उच्च ब्याज दरें निवेशकों के लिए आकर्षक होती हैं।
आर्थिक अति-तापन (Overheating Economy): जब अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से बढ़ रही हो और संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा हो, तो उच्च रेपो दर विकास की गति को नियंत्रित करती है।
उच्च रेपो दर के प्रभाव
उच्च रेपो दर का अर्थव्यवस्था, बैंकों, उद्योगों, और उपभोक्ताओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है:
बैंकों पर प्रभाव
बैंकों के लिए RBI से उधार लेना महंगा हो जाता है, जिससे उनकी उधार देने की लागत बढ़ती है।
बैंक अपनी ब्याज दरें (लेंडिंग रेट्स) बढ़ा सकते हैं, जिससे होम लोन, कार लोन, और अन्य ऋण महंगे हो जाते हैं।
बैंक अधिक नकदी RBI के पास रिवर्स रेपो दर पर जमा करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं, जिससे बाजार में नकदी कम होती है।
उपभोक्ताओं पर प्रभाव
उच्च ब्याज दरों के कारण होम लोन, कार लोन, और व्यक्तिगत ऋण की EMI बढ़ सकती है, जिससे उधार लेना कम आकर्षक होता है।
उपभोक्ता खर्च में कमी आ सकती है, क्योंकि लोग बचत की ओर अधिक ध्यान दे सकते हैं।
उच्च ब्याज दरें बचत पर बेहतर रिटर्न प्रदान कर सकती हैं, जैसे सावधि जमा (Fixed Deposits) पर।
उद्योगों और व्यवसायों पर प्रभाव
व्यवसायों के लिए ऋण लेना महंगा हो जाता है, जिससे निवेश और विस्तार की योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं।
उत्पादन लागत बढ़ सकती है, जिसका असर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों पर पड़ सकता है।
छोटे और मध्यम उद्यम (SMEs) विशेष रूप से प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि उनके पास पूंजी तक पहुंच सीमित हो जाती है।
मुद्रास्फीति पर प्रभाव
उच्च रेपो दर बाजार में नकदी को कम करती है, जिससे मांग में कमी आती है और मुद्रास्फीति नियंत्रित होती है।
यह कीमतों को स्थिर करने में मदद करता है, लेकिन बहुत अधिक दरें आर्थिक विकास को धीमा कर सकती हैं।
उच्च रेपो दर आर्थिक विकास को धीमा कर सकती है, क्योंकि निवेश और खपत में कमी आती है।
यह बेरोजगारी को बढ़ा सकता है, क्योंकि व्यवसाय कम कर्मचारियों की भर्ती कर सकते हैं।
मुद्रा और विदेशी निवेश पर प्रभाव
उच्च रेपो दर विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकती है, क्योंकि उच्च ब्याज दरें बेहतर रिटर्न प्रदान करती हैं।
यह रुपये के मूल्य को स्थिर करने में मदद कर सकता है।
भारतीय संदर्भ में उच्च रेपो दर
भारत में, RBI की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee - MPC) रेपो दर को तय करती है। उदाहरण के लिए, यदि मुद्रास्फीति लक्ष्य (4% ± 2%) से अधिक हो रही है, तो RBI रेपो दर बढ़ा सकता है।
हाल के वर्षों में, जब मुद्रास्फीति (उदाहरण के लिए, ईंधन या खाद्य कीमतों में वृद्धि के कारण) बढ़ी है, RBI ने रेपो दर को बढ़ाकर नकदी को नियंत्रित करने की कोशिश की है।
3 जून 2025 तक, सटीक रेपो दर जानने के लिए RBI की नवीनतम मौद्रिक नीति समीक्षा की जांच आवश्यक है। हालाँकि, सामान्य रूप से, उच्च रेपो दर (उदाहरण के लिए, 6.5% या अधिक) तब लागू की जाती है जब मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना प्राथमिकता होती है।
उदाहरण:- मान लें कि रेपो दर को RBI ने 6% से बढ़ाकर 7% कर दिया। इसका प्रभाव होगा
बैंकों के लिए RBI से उधार लेना महंगा होगा, जिससे होम लोन की ब्याज दर 8% से बढ़कर 9% हो सकती है। उपभोक्ता कम खर्च करेंगे, जिससे मांग कम होगी और मुद्रास्फीति नियंत्रित होगी। लेकिन, यह व्यवसायों के लिए निवेश को कठिन बना सकता है, जिससे आर्थिक विकास धीमा हो सकता है।
उच्च रेपो दर के लाभ और नुकसान/लाभ
लाभ
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में प्रभावी। रुपये के मूल्य को स्थिर करने में मदद। अतिरिक्त नकदी को अवशोषित करके अर्थव्यवस्था को संतुलित करता है। बचत को प्रोत्साहित करता है।
नुकसान
आर्थिक विकास को धीमा कर सकता है। बेरोजगारी बढ़ने का जोखिम। ऋण लेना महंगा होने से उपभोक्ता और व्यवसाय प्रभावित होते हैं। निवेश में कमी आ सकती है।
निम्न रेपो दर के कारण
RBI रेपो दर को कम करने का निर्णय निम्नलिखित कारणों से ले सकता है:
आर्थिक विकास को बढ़ावा (Stimulating Economic Growth): जब अर्थव्यवस्था में मंदी (Slowdown) या कम वृद्धि होती है, तो RBI निम्न रेपो दर लागू करके बैंकों को सस्ता ऋण प्रदान करता है, जिससे निवेश और खपत बढ़ती है।
नकदी बढ़ाना (Increasing Liquidity): निम्न रेपो दर अर्थव्यवस्था में नकदी की उपलब्धता बढ़ाती है, जिससे व्यवसाय और उपभोक्ता अधिक उधार ले सकते हैं। मुद्रास्फीति कम होना (Low Inflation): यदि मुद्रास्फीति नियंत्रण में है या लक्ष्य (भारत में 4% ± 2%) से कम है, तो RBI रेपो दर को कम करके आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकता है। रोजगार सृजन (Employment Generation): सस्ता ऋण व्यवसायों को विस्तार करने और नए रोजगार सृजित करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
आर्थिक संकट (Economic Crisis): जैसे कि कोविड-19 महामारी जैसे संकटों में, RBI ने रेपो दर को कम करके अर्थव्यवस्था को सहारा देने की कोशिश की थी।
निम्न रेपो दर के प्रभाव
निम्न रेपो दर का अर्थव्यवस्था, बैंकों, उद्योगों और उपभोक्ताओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है:
बैंकों पर प्रभाव
बैंकों के लिए RBI से उधार लेना सस्ता हो जाता है, जिससे वे कम ब्याज दरों पर ग्राहकों को ऋण दे सकते हैं।
बैंक अधिक ऋण देने के लिए प्रोत्साहित होते हैं, जिससे बाजार में नकदी बढ़ती है।
रिवर्स रेपो दर भी आमतौर पर कम होती है, जिससे बैंक RBI के पास नकदी जमा करने के बजाय बाजार में उधार देने को प्राथमिकता देते हैं।
उपभोक्ताओं पर प्रभाव
होम लोन, कार लोन, और व्यक्तिगत ऋण की ब्याज दरें कम हो सकती हैं, जिससे उधार लेना और EMI भुगतान आसान हो जाता है।
निम्न रेपो दर के प्रभाव
उपभोक्ता खर्च बढ़ता है, क्योंकि सस्ते ऋण से लोग वाहन, घर, और अन्य सामान खरीदने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
हालांकि, बचत पर रिटर्न (जैसे सावधि जमा पर ब्याज) कम हो सकता है।
उद्योगों और व्यवसायों पर प्रभाव
सस्ता ऋण व्यवसायों को निवेश और विस्तार के लिए प्रोत्साहित करता है, जैसे नई परियोजनाएं शुरू करना या उत्पादन बढ़ाना।
छोटे और मध्यम उद्यम (SMEs) को पूंजी तक आसान पहुंच मिलती है, जिससे उनकी वृद्धि को समर्थन मिलता है।
रोजगार सृजन में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि व्यवसाय अधिक कर्मचारियों को नियुक्त कर सकते हैं।
मुद्रास्फीति पर प्रभाव
निम्न रेपो दर से बाजार में नकदी बढ़ती है, जिससे मांग बढ़ सकती है और मुद्रास्फीति में वृद्धि हो सकती है। यदि मुद्रास्फीति बहुत अधिक बढ़ने लगे, तो RBI को रेपो दर बढ़ाने की आवश्यकता पड़ सकती है।
आर्थिक विकास पर प्रभाव
निम्न रेपो दर आर्थिक विकास को गति देती है, क्योंकि निवेश और खपत में वृद्धि होती है। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर में सुधार हो सकता है। बेरोजगारी दर कम हो सकती है, क्योंकि व्यवसाय अधिक सक्रिय होते हैं।
मुद्रा और विदेशी निवेश पर प्रभाव
निम्न रेपो दर विदेशी निवेशकों के लिए कम आकर्षक हो सकती है, क्योंकि ब्याज दरों पर रिटर्न कम होता है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ सकता है। हालांकि, यह निर्यात को बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि कमजोर मुद्रा निर्यात को सस्ता बनाती है।
भारतीय संदर्भ में निम्न रेपो दर
भारत में, RBI की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee - MPC) रेपो दर को तय करती है। निम्न रेपो दर आमतौर पर तब लागू की जाती है जब अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी (2020-2021) के दौरान, RBI ने रेपो दर को 4% तक कम कर दिया था ताकि अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़े और व्यवसायों व उपभोक्ताओं को सहारा मिले। 3 जून 2025 तक, सटीक रेपो दर जानने के लिए RBI की नवीनतम मौद्रिक नीति समीक्षा की जांच आवश्यक है। सामान्यतः, निम्न रेपो दर (उदाहरण के लिए, 4%-5%) तब लागू की जाती है जब आर्थिक विकास प्राथमिकता हो।
उदाहरण मान लें कि RBI रेपो दर को 6% से घटाकर 5% कर देता है। इसका प्रभाव होगा
बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता होगा, जिससे होम लोन की ब्याज दर 8% से घटकर 7% हो सकती है। उपभोक्ता अधिक खर्च करेंगे, जिससे मांग बढ़ेगी और आर्थिक गतिविधियां तेज होंगी। व्यवसायों को सस्ता ऋण मिलेगा, जिससे निवेश और रोजगार सृजन बढ़ेगा। लेकिन, यदि मांग बहुत अधिक बढ़े, तो मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम हो सकता है।
निम्न रेपो दर के लाभ और नुकसान लाभ
आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। रोजगार सृजन में मदद करता है। उपभोक्ताओं के लिए सस्ते ऋण उपलब्ध कराता है। निवेश और व्यवसाय विस्तार को प्रोत्साहित करता है।
नुकसान
अत्यधिक नकदी से मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम।
बचत पर कम रिटर्न, जिससे बचत करने की प्रेरणा कम हो सकती है।
रुपये का मूल्य कमजोर हो सकता है, जिससे आयात महंगा हो सकता है।
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