Shin Kicking Game
jp Singh
2025-06-02 15:00:22
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शिन किकिंग/Shin Kicking
शिन किकिंग खेल/Shin Kicking Game
इतिहास
शिन किकिंग, जिसे "हैकिंग" या "प्यूरिंग" भी कहा जाता है, एक प्राचीन अंग्रेजी युद्धक खेल है, जिसकी उत्पत्ति 17वीं शताब्दी की शुरुआत में इंग्लैंड में हुई। इसे अंग्रेजी मार्शल आर्ट के रूप में वर्णित किया गया है। यह खेल 1612 से कॉट्सवोल्ड ओलंपिक गेम्स (Cotswold Olimpick Games) का हिस्सा रहा, जो रॉबर्ट डोवर द्वारा शुरू किया गया था। यह खेल 1850 के दशक में गेम्स के बंद होने तक लोकप्रिय रहा। 1951 में इन खेलों के पुनरुद्धार के साथ, शिन किकिंग को विश्व शिन किकिंग चैंपियनशिप के रूप में शामिल किया गया, जो आज भी हजारों दर्शकों को आकर्षित करता है। यह कॉर्निश पहलवानों और लंकाशायर के मिल टाउन में "क्लॉग फाइटिंग" के रूप में भी प्रचलित था। भारत में यह खेल अपेक्षाकृत कम जाना जाता है, लेकिन कुछ मार्शल आर्ट और फिटनेस समुदायों में इसकी तकनीकों का उपयोग प्रशिक्षण के लिए होता है।
स्वरूप
शिन किकिंग एक पूर्ण-संपर्क युद्धक खेल है, जिसमें दो प्रतियोगी एक-दूसरे की पिंडलियों (shins) पर लात मारकर प्रतिद्वंद्वी को जमीन पर गिराने की कोशिश करते हैं। यह ताकत, संतुलन, और दर्द सहनशक्ति पर आधारित है। खेल का स्वरूप: प्रतिस्पर्धी: कॉट्सवोल्ड ओलंपिक गेम्स में विश्व चैंपियनशिप, तीन राउंड में सर्वश्रेष्ठ दो की जीत। मनोरंजक: स्थानीय उत्सवों और मार्शल आर्ट प्रशिक्षण में। भारत में: मार्शल आर्ट और किकबॉक्सिंग प्रशिक्षण में निम्न-स्तर की किकिंग तकनीक के रूप में सीमित उपयोग।
प्रारूप
मैच संरचना: दो प्रतियोगी, तीन राउंड, प्रत्येक राउंड में प्रतिद्वंद्वी को गिराने पर 1 अंक। सर्वश्रेष्ठ दो राउंड जीतने वाला विजेता। समय: एक राउंड 10 सेकंड से 2 मिनट तक, औसत 30-45 सेकंड। लंबे मुकाबले दुर्लभ। प्रतियोगी: अधिकतम 12-16 प्रतियोगी, रैंडम बाउट्स, फाइनल तक प्रगति। भारत में: अनौपचारिक, मार्शल आर्ट प्रशिक्षण में 5-10 मिनट के अभ्यास सत्र।
नियम
उद्देश्य: प्रतिद्वंद्वी को पिंडलियों पर लात मारकर जमीन पर गिराना। प्रत्येक गिरावट = 1 अंक। प्रक्रिया: प्रतियोगी एक-दूसरे के कॉलर (या कंधों) को पकड़ते हैं, बाहें सीधी, और पिंडलियों पर लात मारते हैं। वैध लात: केवल पिंडलियों पर, घुटने के ऊपर या नीचे लात निषिद्ध। थ्रो: लात मारते समय प्रतिद्वंद्वी को असंतुलित कर गिराना। बिना लात के थ्रो अवैध। थ्रो के दौरान एक पैर हवा में होना चाहिए। फाउल: जानबूझकर ट्रिप करना, पिंडली के अलावा कहीं लात मारना, धक्का देना। सुरक्षा: सॉफ्ट-टो जूते अनिवार्य, स्टील-टो जूते प्रतिबंधित। प्रतियोगी पैंट में भूसा (straw) भर सकते हैं।
रेफरी: "स्टिक्लर" रेफरी, जो लकड़ी के डंडे से नियंत्रण और निर्णय लेता है। निर्णय अंतिम। रोकना: प्रतियोगी "सफिशिएंट" चिल्लाकर हार मान सकता है।
ग्राउंड
मैदान: खुला क्षेत्र, आमतौर पर घास, 5x5 मीटर। कॉट्सवोल्ड में डोवर्स हिल पर आयोजन। भारत में: मार्शल आर्ट जिम, पार्क, या प्रशिक्षण मैट (5x5 मीटर)। सतह: नरम घास या मैट, चोट कम करने के लिए।
खिलाड़ियों की संख्या
प्रतियोगी: 2 प्रति बाउट, टूर्नामेंट में 12-16। भारत में: प्रशिक्षण सत्रों में 2-4, कोई औपचारिक टूर्नामेंट नहीं।
रणनीतियां
आक्रामक
किकिंग: पिंडली पर तेज और सटीक लातें (10-20 न्यूटन बल)। थ्रो: लात के दौरान असंतुलन का लाभ उठाकर प्रतिद्वंद्वी को गिराना।
रक्षात्मक
ब्लॉकिंग: पिंडली के सामने वाले हिस्से की रक्षा, साइड पर लातें लेना। संतुलन: मजबूत आधार बनाए रखना, साइड-टू-साइड मूवमेंट। भारत में: किकबॉक्सिंग में निम्न-स्तर की किकिंग तकनीक, जैसे "कूप डे पिए बास" (सवाते मार्शल आर्ट से), का उपयोग।
तकनीकी पहलू और तकनीक का उपयोग
किकिंग तकनीक: पैर के अंदरूनी हिस्से (instep) या पिंडली से प्रहार। सुरक्षा: भूसा पैडिंग, सॉफ्ट जूते, शिन गार्ड (प्रशिक्षण में)। डेटा: गति (5-10 किमी/घंटा), बल (10-20 न्यूटन)। भारत में: किकबॉक्सिंग जिम में शिन गार्ड और मैट का उपयोग।
शब्दावली
शिन किकिंग: पिंडलियों पर लात मारने का खेल।
प्यूरिंग: लंकाशायर में पुराना नाम।
क्लॉग फाइटिंग: कॉर्निश/लंकाशायर संस्करण।
स्टिक्लर: रेफरी, डंडा (stick) धारक।
सफिशिएंट: हार मानने का संकेत।
व्हाइट कोट: पारंपरिक चरवाहा स्मॉक।
उपकरण
वर्दी: लंबी पैंट/ट्रैकसूट, व्हाइट कोट (चरवाहा स्मॉक, 25 पाउंड में खरीद योग्य)।
जूते: सॉफ्ट-टो (ट्रेनर, जूते), स्टील-टो प्रतिबंधित। पैडिंग: भूसा (प्रदान किया जाता है), 100-200 ग्राम। भारत में: शिन गार्ड, किकबॉक्सिंग ग्लव्स, मैट।
प्रशिक्षण और फिटनेस
शारीरिक फिटनेस
ताकत: निचले शरीर की ताकत (स्क्वाट, लंजेस)। सहनशक्ति: 5-10 मिनट उच्च तीव्रता। संतुलन: एक पैर पर खड़े होकर ड्रिल्स। दर्द सहनशक्ति: पुराने समय में हथौड़े से पिंडलियों को कठोर करना।
तकनीकी प्रशिक्षण
किकिंग: सटीकता और बल के लिए इंस्टेप/पिंडली प्रशिक्षण।
थ्रो: असंतुलन तकनीक, जैसे जूडो-प्रेरित मूव्स (निषिद्ध लेकिन प्रेरणा)।
पोषण: 2500-3000 कैलोरी, उच्च प्रोटीन, हाइड्रेशन (2-3 लीटर)।
मानसिक प्रशिक्षण: दर्द प्रबंधन, त्वरित प्रतिक्रिया।
खिलाड़ियों की भूमिका
प्रतियोगी: पिंडलियों पर लात मारता और थ्रो करता है। स्टिक्लर: रेफरी, नियम लागू करता और निर्णय लेता है। भारत में: किकबॉक्सिंग कोच और प्रशिक्षु।
प्रतियोगी: पिंडलियों पर लात मारता और थ्रो करता है। स्टिक्लर: रेफरी, नियम लागू करता और निर्णय लेता है। भारत में: किकबॉक्सिंग कोच और प्रशिक्षु।
प्रमुख टूर्नामेंट
अंतरराष्ट्रीय: कॉट्सवोल्ड ओलंपिक गेम्स (चिपिंग कैंपडेन, इंग्लैंड), विश्व शिन किकिंग चैंपियनशिप (जून)। भारत में: कोई औपचारिक टूर्नामेंट नहीं, किकबॉक्सिंग इवेंट्स में शामिल।
आंकड़े और रिकॉर्ड
विश्व चैंपियन: ज़क वॉरेन (2012-13), एडम मिलर (2018)। प्रतियोगी: प्रति वर्ष 12-16, अधिकांश नए खिलाड़ी। चोटें: पिंडलियों पर रक्तस्राव, कपड़े फटना, कुछ मामलों में चलने में असमर्थता।
रोचक तथ्य
पुराने समय में प्रतियोगी स्टील-टो जूते पहनते थे और हथौड़ों से पिंडलियों को कठोर करते थे। "सफिशिएंट" चिल्लाने से हार स्वीकार की जाती है। कॉट्सवोल्ड गेम्स को 17वीं शताब्दी में प्यूरिटन विरोध के रूप में शुरू किया गया। भारत में किकबॉक्सिंग में शिन किकिंग तकनीक का उपयोग, जैसे MMA में कैल्फ किक।
लोकप्रियता
शिन किकिंग इंग्लैंड में कॉट्सवोल्ड ओलंपिक गेम्स का मुख्य आकर्षण है, जो हजारों दर्शकों को खींचता है। यह अमेरिका में 19वीं शताब्दी में अंग्रेजी प्रवासियों द्वारा खेला गया, लेकिन अब वहां विलुप्त है। भारत में यह औपचारिक रूप से नहीं खेला जाता, लेकिन मार्शल आर्ट्स (किकबॉक्सिंग, MMA) में इसकी तकनीकें प्रचलित हैं।
सामाजिक प्रभाव
इंग्लैंड: स्थानीय परंपरा, समुदायों को जोड़ता है। भारत: मार्शल आर्ट समुदायों में आत्मरक्षा और फिटनेस को बढ़ावा। खतरे: चोटें (रक्तस्राव, हड्डी टूटना), जिसके कारण अधिकांश प्रतियोगी दोबारा नहीं लौटते।
सांस्कृतिक प्रभाव
इंग्लैंड: 17वीं शताब्दी के प्यूरिटन विरोध का प्रतीक, "अनियंत्रित मज़ा"। भारत: किकबॉक्सिंग और MMA में तकनीक के रूप में सीमित प्रभाव। मीडिया: डेली मेल ने इसे "ब्रिटेन का सबसे मूर्खतापूर्ण खेल" कहा।
खेल का भविष्य
प्रौद्योगिकी: वीडियो रिव्यू, शिन गार्ड में सुधार। वैश्विक विस्तार: भारत में किकबॉक्सिंग के साथ एकीकरण, लेकिन औपचारिक खेल के रूप में सीमित। सुरक्षा: सॉफ्ट जूते, भूसा पैडिंग, और बेहतर नियम। चुनौतियां: चोटों के कारण प्रतियोगियों की कमी।
भारत का योगदान
ऐतिहासिक: कोई प्रत्यक्ष योगदान, लेकिन मार्शल आर्ट्स में तकनीक का उपयोग। आधुनिक: किकबॉक्सिंग और MMA जिम में प्रशिक्षण (दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर)। विकास: खेलो इंडिया और मार्शल आर्ट अकादमियों द्वारा निम्न-स्तर की किकिंग तकनीक को बढ़ावा।
महिलाओं का खेल में योगदान
वैश्विक: कॉट्सवोल्ड गेम्स में महिलाओं की भागीदारी सीमित, लेकिन बढ़ रही है।
भारत में: किकबॉक्सिंग में महिला प्रशिक्षु शिन किकिंग तकनीक सीखती हैं, जैसे दिल्ली और बैंगलोर की अकादमियां।
प्रभाव: आत्मरक्षा और फिटनेस में रुचि।
चुनौतियां: औपचारिक खेल के रूप में मान्यता की कमी।
विकास: खेलो इंडिया और SAI द्वारा महिला मार्शल आर्ट प्रशिक्षण।
Conclusion
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