Buzkashi game
jp Singh
2025-06-02 14:32:01
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बुजकशी/Buzkashi
बुजकशी खेल/Buzkashi game
इतिहास
बुजकशी (दरी फ़ारसी: بزکشی, अर्थ: "बकरी खींचना") मध्य एशिया का एक पारंपरिक घुड़सवारी खेल है, जिसकी उत्पत्ति 10वीं शताब्दी में खानाबदोश जनजातियों, विशेष रूप से स्किथियन और मंगोल समुदायों, के बीच हुई। यह अफ़ग़ानिस्तान, उज़बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिज़स्तान, तुर्कमेनिस्तान, कज़ाकिस्तान, और उत्तरी पाकिस्तान (पश्तून और वाखी समुदायों) में लोकप्रिय है। यह खेल 10वीं से 15वीं शताब्दी तक मंगोलिया और चीन से पश्चिम की ओर प्रवास के दौरान फैला। अफ़ग़ानिस्तान में यह राष्ट्रीय खेल है, जिसे "जुनून" माना जाता है। भारत में, यह खेल उत्तरी क्षेत्रों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के कुछ हिस्सों में सीमित रूप से खेला जाता है। बुजकशी को 1930 के दशक तक अनौपचारिक रूप से खेला जाता था, जब अफ़ग़ान ओलंपिक फेडरेशन ने नियम बनाए। 2021 में तालिबान शासन के दौरान इसे अनैतिक मानकर प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन तालिबान के पुनर्जनन के बाद इसे फिर से अनुमति दी गई।
स्वरूप
बुजकशी एक तीव्र, पूर्ण-संपर्क घुड़सवारी खेल है, जिसमें घुड़सवार (चपंदाज़) एक बकरी या बछड़े के शव को लक्ष्य (गोल) में डालने का प्रयास करते हैं। यह शारीरिक ताकत, घुड़सवारी कौशल, और रणनीति का मिश्रण है। खेल दो स्वरूपों में खेला जाता है:
टुडबाराई: व्यक्तिगत, जिसमें खिलाड़ी शव को गोल में डालने की कोशिश करते हैं।
कुज्जराई: सामूहिक, जहां टीमें गोल के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं।
भारत में, यह मुख्य रूप से शौकिया स्तर पर लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में खेला जाता है, जहां इसे स्थानीय उत्सवों में शामिल किया जाता है।
प्रारूप
पारंपरिक: कई दिनों तक चल सकता है, कोई समय सीमा नहीं।
टूर्नामेंट: 45 मिनट से 2 घंटे, तीन चक्कर (चुक्कर), प्रत्येक 15-20 मिनट।
गोल: एक गोलाकार क्षेत्र (2-3 मीटर व्यास) या डंडे पर लटकता फ्रेम।
भारत में: छोटे मैदानों (100x50 मीटर) पर, 30-60 मिनट के मैच।
यूथ: छोटे मैदान, हल्के शव (20-30 किग्रा), कम समय (20-30 मिनट)।
नियम
उद्देश्य: बकरी/बछड़े के शव को मैदान से उठाकर गोल में डालना। प्रत्येक गोल = 1 अंक।
फाउल: जानबूझकर चाबुक मारना, घोड़े से गिराना, या खतरनाक टकराव।
सुरक्षा: कोई जानबूझकर चोट नहीं; घोड़े को नुकसान निषिद्ध।
खेल शुरू: शव को मैदान के केंद्र में रखा जाता है, रेफरी संकेत देता है।
विजेता: टूर्नामेंट में अधिक गोल; पारंपरिक में अंतिम गोल।
अफ़ग़ान नियम: भारी कपड़े, हेलमेट (अक्सर सोवियत टैंक हेलमेट), और ऊँची एड़ी के जूते।
ग्राउंड
मैदान: खुला, आयताकार, 200x100 मीटर (पारंपरिक), 100x50 मीटर (टूर्नामेंट), मिट्टी/घास सतह।
गोल: मैदान के एक छोर पर गोलाकार चिह्न या 2 फीट चौकोर फ्रेम डंडे पर।
भारत में: लद्दाख के लेह और कारगिल में अस्थायी मैदान, जैसे पोलो ग्राउंड।
सुरक्षा: मैदान के आसपास दर्शक क्षेत्र, कोई रुकावट नहीं।
खिलाड़ियों की संख्या
टुडबाराई: 10-50 व्यक्तिगत घुड़सवार, कोई निश्चित संख्या।
कुज्जराई: 5-10 खिलाड़ियों की टीमें, आमतौर पर 5 प्रति टीम।
भारत में: 4-6 खिलाड़ी प्रति टीम, छोटे मैदानों के लिए।
चपंदाज़: कुशल घुड़सवार, अक्सर 40 वर्ष से अधिक आयु के।
रणनीतियां
शव छीनना: तेज गति से शव को जमीन से उठाना।
धक्का: प्रतिद्वंद्वी को घोड़े से धकेलना।
रक्षात्मक
ब्लॉक: प्रतिद्वंद्वी को गोल तक पहुंचने से रोकना।
समन्वय: टीम में पासिंग और स्थिति बनाए रखना।
घुड़सवारी: घोड़े को नियंत्रित करना, तेज मोड़, और संतुलन।
भारत में: चपलता और गति पर जोर, क्योंकि छोटे मैदान।
तकनीकी पहलू और तकनीक का उपयोग
गति: घुड़सवार 30-40 किमी/घंटा तक।
सेंसर: कुछ टूर्नामेंट में गति और स्थिति ट्रैकिंग।
सुरक्षा उपकरण: हेलमेट, भारी जैकेट, ऊँची एड़ी के जूते।
प्रकाश: रात के आयोजनों में LED (सीमित)।
सतह: मिट्टी/घास, घर्षण के लिए उपयुक्त।
शब्दावली
चपंदाज़: बुजकशी खिलाड़ी (घुड़सवार)।
बुज: बकरी/बछड़ा शव।
दोह्यो: गोल क्षेत्र या लक्ष्य।
चुक्कर: खेल का एक चरण, जैसे पोलो।
कोक-बोरू: उज़बेक/कज़ाख संस्करण।
वुज़लोबा: पश्तो में बुजकशी।
उपकरण
घोड़ा: मजबूत, प्रशिक्षित, 400-600 किग्रा।
शव: बकरी/बछड़ा, 40-50 किग्रा (पारंपरिक), 20-30 किग्रा (यूथ)।
वर्दी: भारी जैकेट, हेलमेट (सोवियत टैंक हेलमेट आम), ऊँची एड़ी के जूते (100-200 ग्राम)।
चाबुक: नियंत्रण के लिए, जानबूझकर मारना निषिद्ध।
सुरक्षा: कोई पैडिंग नहीं, भारी कपड़े चोट से बचाते हैं।
प्रशिक्षण और फिटनेस
शारीरिक फिटनेस
ताकत: शव उठाने और धक्का देने के लिए (500-1000 न्यूटन बल)।
गति: 30-40 किमी/घंटा घुड़सवारी।
सहनशक्ति: 2-3 घंटे लगातार खेल।
चपलता: घोड़े पर संतुलन, तेज मोड़।
तकनीकी प्रशिक्षण
घुड़सवारी: गति, नियंत्रण, और शव उठाना। रणनीति: ब्लॉकिंग, पासिंग, और गोल टारगेटिंग। पोषण: उच्च प्रोटीन (मांस, दाल), 4000-5000 कैलोरी/दिन। मानसिक प्रशिक्षण: दबाव प्रबंधन, त्वरित निर्णय।
खिलाड़ियों की भूमिका
चपंदाज़: मुख्य घुड़सवार, शव उठाता और गोल करता है। रक्षक: प्रतिद्वंद्वी को ब्लॉक करता है। नेता: टीम रणनीति बनाता है (कुज्जराई में)। भारत में: लद्दाख में स्थानीय घुड़सवार नेतृत्व करते हैं।
प्रमुख टूर्नामेंट
अंतरराष्ट्रीय: विश्व कोक-बोरू चैंपियनशिप (कज़ाकिस्तान, 2001 से), अफ़ग़ान राष्ट्रीय टूर्नामेंट (मज़ार-ए-शरीफ)।
भारत: लद्दाख विंटर स्पोर्ट्स फेस्टिवल, लेह सूमो और बुजकशी चैंपियनशिप।
पाकिस्तान: गिलगित-बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान में स्थानीय आयोजन।
आंकड़े और रिकॉर्ड
अफ़ग़ानिस्तान: अज़ीज़ अहमद, प्रसिद्ध चपंदाज़, कई टूर्नामेंट जीते।
भारत: लद्दाख के स्थानीय चपंदाज़, जैसे त्सेरिंग स्टोबडन (2023 लेह चैंपियन)।
सबसे लंबा खेल: पारंपरिक रूप से 3 दिन तक चला (मज़ार-ए-शरीफ, 1980)।
गति: शीर्ष चपंदाज़ 40 किमी/घंटा तक।
रोचक तथ्य
बुजकशी को अफ़ग़ानिस्तान में "नेतृत्व का खेल" माना जाता है, जहां चपंदाज़ शक्ति और रणनीति दिखाते हैं।
भारत में लद्दाख के पोलो ग्राउंड में इसे सर्दियों में खेला जाता है।
1992 के बॉलीवुड फिल्म "खुदा गवाह" में बुजकशी का दृश्य लोकप्रिय हुआ।
तालिबान ने 1996-2001 में इसे अनैतिक माना, लेकिन 2021 में फिर अनुमति दी।
लोकप्रियता
बुजकशी अफ़ग़ानिस्तान का सबसे लोकप्रिय खेल है, जहां शुक्रवार को हजारों दर्शक जुटते हैं। यह उज़बेकिस्तान (कोक-बोरू), कज़ाकिस्तान, और किर्गिज़स्तान में भी लोकप्रिय है। भारत में यह लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित है, लेकिन सांस्कृतिक उत्सवों में आकर्षण बढ़ा रहा है।
सामाजिक प्रभाव
एकता: स्थानीय समुदायों को उत्सवों और टूर्नामेंट्स में जोड़ता है।
प्रेरणा: युवाओं में घुड़सवारी और शारीरिक ताकत को प्रोत्साहन।
आर्थिक प्रभाव: घोड़ों, प्रशिक्षण, और टूर्नामेंट्स से स्थानीय आय।
सांस्कृतिक प्रभाव
अफ़ग़ानिस्तान: बुजकशी साहस और नेतृत्व का प्रतीक, शादियों में विशेष।
भारत: लद्दाख में सांस्कृतिक उत्सवों का हिस्सा, जैसे लोसर।
मीडिया: नासिरा शर्मा की पुस्तक "बुज़कशी का मैदान" (1980) और "खुदा गवाह" (1992)।
खेल का भविष्य
प्रौद्योगिकी: गति ट्रैकिंग, ड्रोन कवरेज।
वैश्विक विस्तार: भारत, पाकिस्तान, और तुर्की में बढ़ता प्रचार।
महिला बुजकशी: सीमित, लेकिन किर्गिज़स्तान में शुरुआत।
चुनौतियां: सुरक्षा, पशु कल्याण चिंताएं, मानकीकरण।
भारत का योगदान
ऐतिहासिक: लद्दाख में पारंपरिक घुड़सवारी से प्रेरणा।
आधुनिक: लेह और कारगिल में वार्षिक आयोजन, खेलो इंडिया में शामिल।
खिलाड़ी: त्सेरिंग स्टोबडन, मोहम्मद हुसैन (लद्दाख)।
विकास: जम्मू-कश्मीर खेल परिषद द्वारा प्रशिक्षण।
महिलाओं का खेल में योगदान
वैश्विक: किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान में सीमित महिला भागीदारी शुरू।
भारत में: अभी तक कोई उल्लेखनीय महिला चपंदाज़ नहीं, लेकिन लद्दाख में रुचि बढ़ रही है।
चुनौतियां: सांस्कृतिक बाधाएं, सुविधाओं की कमी।
विकास: खेलो इंडिया और स्थानीय समुदायों द्वारा प्रोत्साहन।
Conclusion
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