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Sumo Wrestling
jp Singh 2025-06-02 13:48:28
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सूमो कुश्ती / Sumo Wrestling

सूमो कुश्ती / Sumo Wrestling
सूमो कुश्ती / Sumo Wrestling
इतिहास :
सूमो कुश्ती, जिसे जापानी में "सूमो" (相撲, 'हड़ताली एक-दूसरे') कहा जाता है, जापान का राष्ट्रीय खेल और एक प्राचीन पूर्ण-संपर्क कुश्ती है। इसकी उत्पत्ति 1500 साल से अधिक पुरानी है, और इसका संबंध शिंतो धर्म से है, जहां इसे धार्मिक अनुष्ठान के रूप में शुरू किया गया था। 8वीं शताब्दी में सम्राट शोमु ने फसल कटाई के अवसर पर सूमो उत्सव मनाया, जिससे यह राष्ट्रीय पर्व बन गया। पहली दर्ज सूमो कुश्ती 23 ईसा पूर्व हुई, जिसमें विजेता सुकुने था। 1600 ई. के आसपास इसका पुनरुत्थान हुआ, और यह सैनिक प्रशिक्षण का हिस्सा बना। भारत में सूमो 2008 में मान्यता प्राप्त हुआ, और हेतल दवे ने 2009 ताइवान विश्व सूमो चैंपियनशिप में पांचवां स्थान हासिल किया। 2025 में भारत ने पहली बार सूमो विश्व कप की मेजबानी की, जिसमें पुरुष और महिला वर्ग में पदक जीते।
स्वरूप :
सूमो एक पूर्ण-संपर्क कुश्ती है, जहां दो पहलवान (रिकिशी) एक गोलाकार रिंग (दोह्यो) में आमने-सामने होते हैं। इसका उद्देश्य प्रतिद्वंद्वी को रिंग से बाहर धकेलना या उसे पैरों के तलवों के अलावा शरीर के किसी अन्य हिस्से से जमीन छूने के लिए मजबूर करना है। यह शारीरिक ताकत, तकनीक, और रणनीति का मिश्रण है। भारत में यह मुख्य रूप से शौकिया स्तर पर खेला जाता है, लेकिन पेशेवर स्तर पर भी बढ़ रहा है। स्वरूप:
पेशेवर: जापान में जापान सूमो एसोसिएशन (JSA) द्वारा नियंत्रित, हर दो महीने में 15-दिवसीय टूर्नामेंट (बाशो)।
शौकिया: स्कूल, कॉलेज, और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं, जैसे विश्व सूमो चैंपियनशिप।
महिला सूमो: भारत और विश्व स्तर पर बढ़ती लोकप्रियता।
प्रारूप :
पेशेवर बाशो: 15 दिन, प्रत्येक रिकिशी 15 मुकाबले। अधिक जीत वाला विजेता (योकोज़ुना रैंक उच्चतम)।
शौकिया: एकल-दिन टूर्नामेंट, वर्ग द्वारा (खुला, हल्का, मध्यम, भारी)।
मैच समय: कुछ सेकंड से 1-2 मिनट, औसत 10-20 सेकंड।
मैच समय: कुछ सेकंड से 1-2 मिनट, औसत 10-20 सेकंड।
महिला सूमो: समान नियम, छोटा दोह्यो (4.55 मीटर व्यास)।
भारत में: राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैंपियनशिप, जैसे खेलो इंडिया।
नियम :
उद्देश्य: प्रतिद्वंद्वी को दोह्यो से बाहर धकेलना या जमीन पर गिराना (पैरों के तलवों को छोड़कर)।
फाउल: बाल खींचना, चेहरा मारना, गला दबाना, किक करना।
सर्विस: दोनों रिकिशी एक साथ दोह्यो में शुरुआत करते हैं, रेफरी (ग्योजी) संकेत देता है।
जीत: रिंग से बाहर या जमीन पर गिरने पर हार।
शिंतो अनुष्ठान: नमक छिड़कना (शुद्धिकरण), स्टॉम्पिंग (बुरी आत्माओं को भगाना)।
अयोग्यता: अनुचित व्यवहार, जैसे जानबूझकर चोट पहुंचाना।
ग्राउंड :
दोह्यो: गोलाकार, 4.55 मीटर व्यास (पुरुष), 3.6-4 मीटर (महिला), मिट्टी और रेत की सतह, 60 सेमी ऊंचा।
नमक: शुद्धिकरण के लिए दोह्यो पर छिड़का जाता है।
भारत में: मुंबई, दिल्ली, और हरियाणा में अस्थायी दोह्यो; पुणे में सूमो प्रशिक्षण केंद्र।
खिलाड़ियों की संख्या :
पेशेवर: 2 रिकिशी प्रति मुकाबला, 600-700 सक्रिय रिकिशी (JSA)।
शौकिया: व्यक्तिगत या टीम (4-5 खिलाड़ी), वजन वर्ग द्वारा।
भारत में: 50-100 सक्रिय शौकिया रिकिशी, जैसे हेतल दवे।
रणनीतियां :
आक्रामक:
धक्का: प्रतिद्वंद्वी को रिंग से बाहर धकेलना (ओशी-ज़ूमो)।
पटकना: थ्रो या लिफ्ट (योरी-ज़ूमो)।
रक्षात्मक:
पकड़: मावाशी (कमरबंद) पकड़कर नियंत्रण।
साइड-स्टेप: टकराव से बचना (हेंका)।, भारत में: हल्के वजन वाले रिकिशी चपलता पर ध्यान देते हैं।
तकनीकी पहलू और तकनीक का उपयोग :
वीडियो रिव्यू: पेशेवर बाशो में विवादास्पद निर्णयों के लिए।
डेटा एनालिटिक्स: गति (10-15 किमी/घंटा), धक्का बल (500-1000 न्यूटन)।
उपकरण: मावाशी (कमरबंद), 5-10 मीटर लंबा, सूती।
प्रकाश: रात के प्रदर्शन के लिए LED लाइट्स (शौकिया आयोजन)।
सतह: मिट्टी-रेत दोह्यो, घर्षण के लिए।
शब्दावली
रिकिशी: सूमो पहलवान।
दोह्यो: गोलाकार रिंग।
मावाशी: रिकिशी का कमरबंद।
ग्योजी: रेफरी।
योकोज़ुना: उच्चतम रैंक।
बाशो: टूर्नामेंट।
किमारिते: जीत की तकनीक (82 प्रकार)।
उपकरण :
मावाशी: सूती, 9-14 किग्रा रिकिशी के लिए।
जूते: नंगे पैर।
वर्दी: केवल मावाशी, कोई अन्य कपड़ा नहीं।
सुरक्षा: कोई पैडिंग नहीं, मावाशी मजबूत पकड़ देता है।
दोह्यो सामग्री: मिट्टी, रेत, नमक।
प्रशिक्षण और फिटनेस :
शारीरिक फिटनेस:
ताकत: स्क्वाट, डेडलिफ्ट, 300-500 किग्रा तक। गति: छोटे स्प्रिंट (10-20 मीटर)।, सहनशक्ति: 5 घंटे दैनिक प्रशिक्षण (बटसुकारी-गीको)।, चपलता: साइड-टू-साइड ड्रिल्स।
तकनीकी प्रशिक्षण:
धक्का और थ्रो तकनीक। मावाशी पकड़ और लिफ्ट। पोषण: 7,000-8,000 कैलोरी/दिन, चंको (मांस, मछली, सब्जी, चावल का सूप)। मानसिक प्रशिक्षण: अनुशासन, ध्यान, दबाव प्रबंधन। स्वास्थ्य: कम विसरल फैट, उच्च मांसपेशी द्रव्यमान, हृदय रोग का कम जोखिम।
खिलाड़ियों की भूमिका :
रिकिशी: मुकाबला करने वाला पहलवान।, ग्योजी: रेफरी, अनुष्ठान और निर्णय।, योबिदाशी: घोषणाकर्ता, रिकिशी को बुलाता है।, ओयाकाता: कोच, हेया (प्रशिक्षण केंद्र) का मास्टर।
प्रमुख टूर्नामेंट :
पेशेवर: 6 वार्षिक बाशो (टोक्यो, ओसाका, नागोया, फुकुओका)।
शौकिया: विश्व सूमो चैंपियनशिप, एशियाई सूमो चैंपियनशिप।
भारत: खेलो इंडिया, राष्ट्रीय सूमो चैंपियनशिप (मुंबई, हरियाणा)।
2025: भारत में विश्व सूमो कप, दिल्ली।
आंकड़े और रिकॉर्ड :
योकोज़ुना: हाकुहो शो (45 बाशो जीत, रिकॉर्ड)।
भारत: हेतल दवे (2009, विश्व चैंपियनशिप, 5वां स्थान)।
सबसे भारी रिकिशी: ओरियोयामा, 292 किग्रा।
सबसे छोटा रिकिशी: एनहो, 99 किग्रा, 193 किग्रा के खिलाफ जीत।
रोचक तथ्य :
सूमो रिकिशी नाश्ता नहीं करते, खाली पेट 5 घंटे प्रशिक्षण।
भारत की पहली महिला सूमो पहलवान हेतल दवे शाकाहारी हैं।
सूमो में 82 किमारिते (जीत की तकनीक) हैं। रिकिशी का औसत वजन 150-300 किग्रा, सामान्य व्यक्ति से 2-3 गुना। मंगोलियाई पहलवान (हाकुहो, हारुमाफुजी) ने हाल के दशकों में वर्चस्व जमाया।
लोकप्रियता :
सूमो जापान में अत्यधिक लोकप्रिय है, विशेष रूप से टोक्यो और ओसाका में। यह मंगोलिया, रूस, और पूर्वी यूरोप में भी बढ़ रहा है। भारत में यह हरियाणा, मुंबई, और दिल्ली में लोकप्रिय है, लेकिन मान्यता की कमी के कारण सीमित है। 2025 विश्व कप ने भारत में इसकी लोकप्रियता बढ़ाई।
सामाजिक प्रभाव :
जापान: सूमो संस्कृति और शिंतो परंपरा का प्रतीक।
भारत: ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं को शारीरिक ताकत और अनुशासन सिखाता है।
आर्थिक प्रभाव: बाशो और विश्व कप से पर्यटन और प्रायोजन।
सांस्कृतिक प्रभाव :
जापान: शिंतो अनुष्ठान, हेया (प्रशिक्षण केंद्र) में पारंपरिक जीवन।
भारत: हेतल दवे की कहानी प्रेरणा देती है, विशेष रूप से महिलाओं के लिए।
मीडिया: "सूमो डो, सूमो डोन्ट" (1992), "द सूमो रेसलर" (2012)।
प्रौद्योगिकी: वीडियो रिव्यू, डेटा एनालिटिक्स।
वैश्विक विस्तार: भारत, मंगोलिया, और यूरोप में शौकिया सूमो।
महिला सूमो: भारत में बढ़ती भागीदारी।
चुनौतियां: जापान में सट्टेबाजी विवाद, भारत में मान्यता की कमी।
भारत का योगदान :
ऐतिहासिक: 2008 में भारतीय सूमो फेडरेशन की स्थापना।
आधुनिक: हेतल दवे (2009, विश्व चैंपियनशिप), 2025 विश्व कप में पदक।
विकास: खेलो इंडिया और SAI द्वारा प्रशिक्षण केंद्र।
खिलाड़ी: हेतल दवे, मुकेश कुमार (हरियाणा)।
महिलाओं का खेल में योगदान
ऐतिहासिक: 1990 के दशक में महिला सूमो शुरू, जापान और विश्व स्तर पर।
आधुनिक सफलता:
हेतल दवे: भारत की पहली महिला सूमो पहलवान, 2009 में 5वां स्थान।
2025 विश्व कप: भारतीय महिला टीम ने स्वर्ण जीता।
प्रभाव: ग्रामीण क्षेत्रों (हरियाणा, महाराष्ट्र) में लड़कियों को प्रेरणा।
चुनौतियां: मान्यता और प्रायोजन की कमी, लेकिन SAI और खेलो इंडिया से सुधार।
विकास: मुंबई और हरियाणा में महिला सूमो अकादमियां।
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