All India Muslim League
jp Singh
2025-05-29 10:48:57
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मुस्लिम लीग की स्थापना
मुस्लिम लीग की स्थापना
अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (All India Muslim League) की स्थापना 30 दिसंबर 1906 को ढाका (तब पूर्वी बंगाल, अब बांग्लादेश) में हुई थी। यह संगठन भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक हितों की रक्षा और उनके लिए एक अलग मंच प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया था। नीचे मुस्लिम लीग की स्थापना के प्रमुख बिंदुओं का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
1. पृष्ठभूमि
ऐतिहासिक संदर्भ: 19वीं सदी के अंत में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (स्थापना: 1885) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कर रही थी, लेकिन कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों को लगता था कि कांग्रेस मुख्य रूप से हिंदू हितों का प्रतिनिधित्व करती है। ब्रिटिश सरकार की "फूट डालो और राज करो" नीति ने हिंदू-मुस्लिम विभाजन को बढ़ावा दिया। 1905 में बंगाल विभाजन ने मुस्लिम समुदाय में अलगाव की भावना को और मजबूत किया, क्योंकि पूर्वी बंगाल में मुस्लिम बहुसंख्यक थे और विभाजन से उन्हें लाभ हुआ। सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित अलीगढ़ आंदोलन ने मुस्लिम समुदाय में शिक्षा और आधुनिकता को बढ़ावा दिया, जिससे एक शिक्षित मुस्लिम मध्यम वर्ग उभरा। इस वर्ग ने अपने राजनीतिक हितों के लिए एक अलग संगठन की आवश्यकता महसूस की।
आगा खान और अलीगढ़ की भूमिका: 1906 में, आगा खान के नेतृत्व में एक मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल ने शिमला में वायसराय लॉर्ड मिंटो से मुलाकात की और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र (Separate Electorate) की मांग की। यह मांग 1909 के मॉर्ले-मिंटो सुधारों में स्वीकार की गई। अलीगढ़ के मोहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) के शिक्षित मुस्लिमों ने इस संगठन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2. स्थापना
स्थान और समय: मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर 1906 को ढाका में मोहम्मदन एजुकेशनल कॉन्फ्रेंस की वार्षिक बैठक के दौरान हुई। प्रमुख संस्थापक: नवाब सलीमुल्लाह खान (ढाका के नवाब): उन्होंने स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने प्रभाव का उपयोग किया। आगा खान III: मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली नेता, जिन्होंने संगठन को नेतृत्व और दिशा प्रदान की। नवाब मोहसिन-उल-मुल्क और नवाब विकार-उल-मुल्क: अलीगढ़ आंदोलन से जुड़े नेता, जिन्होंने संगठन की नींव रखी। अन्य प्रमुख नेता: हकीम अजमल खान, जफर अली खान, और मौलाना मुहम्मद अली जौहर। अध्यक्ष: पहले अस्थायी अध्यक्ष के रूप में नवाब विकार-उल-मुल्क को चुना गया। बाद में आगा खान को स्थायी अध्यक्ष बनाया गया।
उद्देश्य: मुस्लिम समुदाय के राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक हितों की रक्षा करना। ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा बनाए रखते हुए मुसलमानों के लिए विशेष अधिकार (जैसे अलग निर्वाचन क्षेत्र) सुनिश्चित करना। हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना, लेकिन मुस्लिम पहचान को बनाए रखते हुए।
3. प्रारंभिक गतिविधियां और उद्देश्य
राजनीतिक मंच: मुस्लिम लीग ने मुसलमानों को एक संगठित राजनीतिक मंच प्रदान किया, ताकि वे अपनी मांगों को ब्रिटिश सरकार के समक्ष रख सकें। ब्रिटिश समर्थन: शुरुआत में, मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश शासन के प्रति वफादारी दिखाई और कांग्रेस के उग्र राष्ट्रवाद का विरोध किया। यह रणनीति अलीगढ़ स्कूल ऑफ थॉट से प्रभावित थी। 1909 का मॉर्ले-मिंटो सुधार: मुस्लिम लीग की पहली बड़ी सफलता थी अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग का स्वीकार होना, जिसने मुसलमानों को विधान परिषदों में अलग प्रतिनिधित्व दिया।
4. प्रभाव और महत्व
मुस्लिम राजनीतिक चेतना: मुस्लिम लीग की स्थापना ने भारतीय मुसलमानों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ाई और उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रभावशाली शक्ति बनाया। हिंदू-मुस्लिम संबंध: शुरुआत में, लीग ने हिंदू-मुस्लिम एकता की वकालत की। 1916 के लखनऊ समझौते में कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने संयुक्त रूप से स्वराज्य की मांग की। पाकिस्तान की नींव: बाद में, विशेषकर 1930 के दशक में, मुस्लिम लीग ने मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) की मांग को अपनाया, जिसका चरम 1940 के लाहौर प्रस्ताव में देखा गया। विवाद: मुस्लिम लीग की स्थापना को कुछ लोग ब्रिटिश "फूट डालो और राज करो" नीति का परिणाम मानते हैं, जबकि अन्य इसे मुस्लिम समुदाय की वैध मांगों के प्रतिनिधित्व के रूप में देखते हैं।
5. बाद का विकास
मुहम्मद अली जिन्ना का उदय: 1913 में जिन्ना मुस्लिम लीग में शामिल हुए और इसे एक मजबूत संगठन बनाया। 1930 के दशक में, उन्होंने दो-राष्ट्र सिद्धांत को प्रचारित किया। पाकिस्तान की मांग: 1940 के लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने औपचारिक रूप से अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग उठाई, जो 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के साथ पूरी हुई। स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका: मुस्लिम लीग ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन इसकी अलगाववादी नीति ने हिंदू-मुस्लिम एकता को प्रभावित किया।
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