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Political objective and modus operandi of extremism
jp Singh 2025-05-29 10:37:55
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उग्रवाद भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक महत्वपूर्ण चरण (लगभग 1905-1919) था, जो उदारवादी नीतियों की सीमाओं और ब्रिटिश दमनकारी नीतियों के प्रति असंतोष से उभरा। उग्रवादी नेताओं ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को अधिक सक्रिय और जन-केंद्रित बनाने के लिए स्वराज (पूर्ण स्वशासन) की मांग को जोरदार तरीके से उठाया। नीचे उग्रवाद के राजनीतिक उद्देश्य और कार्य पद्धति का संक्षिप्त और व्यवस्थित विवरण दिया गया है:

उग्रवाद भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक महत्वपूर्ण चरण (लगभग 1905-1919) था, जो उदारवादी नीतियों की सीमाओं और ब्रिटिश दमनकारी नीतियों के प्रति असंतोष से उभरा। उग्रवादी नेताओं ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को अधिक सक्रिय और जन-केंद्रित बनाने के लिए स्वराज (पूर्ण स्वशासन) की मांग को जोरदार तरीके से उठाया। नीचे उग्रवाद के राजनीतिक उद्देश्य और कार्य पद्धति का संक्षिप्त और व्यवस्थित विवरण दिया गया है
उग्रवाद के राजनीतिक उद्देश्य: स्वराज (पूर्ण स्वशासन): उग्रवादी नेताओं ने पूर्ण स्वशासन या स्वराज को अपना प्रमुख उद्देश्य बनाया, जो ब्रिटिश शासन के भीतर सीमित सुधारों से कहीं अधिक था। बाल गंगाधर तिलक का नारा "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा" इस उद्देश्य का प्रतीक बना। उदारवादियों की तुलना में, उग्रवादी पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की ओर अग्रसर थे, हालांकि इसे स्पष्ट रूप से 1920 के दशक में परिभाषित किया गया। राष्ट्रीय एकता और जागरूकता: हिंदू, मुस्लिम, और अन्य समुदायों को एकजुट करके राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना। भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना और आत्मसम्मान को जागृत करना। आर्थिक स्वावलंबन: ब्रिटिश आर्थिक शोषण (धन निष्कासन) का विरोध और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देकर आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल करना।
भारतीय हस्तशिल्प और उद्योगों को पुनर्जनन करना। सांस्कृतिक गौरव: भारतीय संस्कृति, इतिहास, और परंपराओं में गर्व की भावना को पुनर्जनन करना। ब्रिटिश सांस्कृतिक प्रभुत्व के खिलाफ भारतीय पहचान को मजबूत करना। ब्रिटिश शासन का विरोध: ब्रिटिश नीतियों, जैसे भारी कर, भू-राजस्व व्यवस्था, और प्रशासनिक भेदभाव, का सक्रिय विरोध। ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालकर भारतीयों के लिए अधिक अधिकार और प्रतिनिधित्व की मांग। उग्रवाद की कार्य पद्धति: उग्रवादी नेताओं ने उदारवादियों के संवैधानिक और प्रार्थना पत्र आधारित तरीकों से हटकर अधिक सक्रिय और प्रत्यक्ष कार्रवाई की रणनीतियां अपनाईं। उनकी कार्य पद्धति में निम्नलिखित शामिल थे
स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन: स्वदेशी: भारतीय निर्मित वस्तुओं (जैसे कपड़ा, नमक) को अपनाने और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर। उदाहरण: बंगाल में स्वदेशी स्कूल, कॉलेज, और हस्तशिल्प उद्योग स्थापित किए गए। बहिष्कार: ब्रिटिश माल (विशेष रूप से कपड़े), स्कूल, कॉलेज, और सरकारी नौकरियों का बहिष्कार। उदाहरण: बंगाल विभाजन (1905) के विरोध में स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन शुरू हुआ। महत्व: इसने जनता को आंदोलन में शामिल किया और आर्थिक स्वावलंबन को बढ़ावा दिया। जन सभाएं और प्रचार: उग्रवादी नेताओं ने सार्वजनिक सभाओं, भाषणों, और समाचार पत्रों के माध्यम से जनता को संगठित किया। समाचार पत्र: बाल गंगाधर तिलक का केसरी (मराठी) और मराठा (अंग्रेजी)।
बिपिन चंद्र पाल का वंदे मातरम और न्यू इंडिया। लाला लाजपत राय का पंजाबी। इन समाचार पत्रों ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना की और स्वराज की मांग को प्रचारित किया। सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों का उपयोग: उग्रवादी नेताओं ने धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों को जनता को संगठित करने के लिए मंच के रूप में उपयोग किया। उदाहरण: तिलक ने महाराष्ट्र में गणेश उत्सव और शिवाजी जयंती को लोकप्रिय बनाया, जिसने जनता में राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत किया। रवींद्रनाथ टैगोर ने बंगाल में रक्षाबंधन उत्सव (1905) का आयोजन कर हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया। क्रांतिकारी गतिविधियों का समर्थन: उग्रवादी नेताओं ने प्रत्यक्ष रूप से सशस्त्र संघर्ष को प्रोत्साहित नहीं किया, लेकिन उनकी उग्रवादी विचारधारा ने क्रांतिकारी संगठनों को प्रेरित किया।
उदाहरण: बंगाल में अनुशीलन समिति और युगांतर समूह ने बम हमले और हथियारबंद कार्रवाइयां शुरू कीं (जैसे, अलीपुर बम कांड, 1908)। खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी जैसे क्रांतिकारियों ने उग्रवादी विचारधारा से प्रेरणा ली। प्रत्यक्ष कार्रवाई और विरोध: उग्रवादियों ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों का प्रत्यक्ष विरोध किया, जैसे बंगाल विभाजन के खिलाफ प्रदर्शन और हड़तालें। उन्होंने जनता को ब्रिटिश संस्थानों (स्कूल, कॉलेज, अदालत) के बहिष्कार के लिए प्रेरित किया। राष्ट्रीय शिक्षा का प्रचार: उग्रवादियों ने ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के विकल्प के रूप में राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावा दिया। उदाहरण: बंगाल में नेशनल कॉलेज (1906) की स्थापना, जिसमें अरबिंदो घोष जैसे नेता शामिल थे।
अंतरराष्ट्रीय समर्थन: उग्रवादी नेताओं ने भारतीय आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने का प्रयास किया। उदाहरण: तिलक और बिपिन चंद्र पाल ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारतीय मुद्दों से अवगत कराया। प्रमुख नेता: बाल गंगाधर तिलक: "लोकमान्य" तिलक ने स्वराज और स्वदेशी को लोकप्रिय बनाया। उनके सांस्कृतिक आयोजनों और समाचार पत्रों ने जनता को प्रेरित किया। लाला लाजपत राय: पंजाब में राष्ट्रवादी गतिविधियों का नेतृत्व किया और सामाजिक सुधारों को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा। बिपिन चंद्र पाल: बंगाल में स्वदेशी आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया और उग्रवादी विचारधारा को प्रचारित किया। अरबिंदो घोष: शुरू में उग्रवादी नेता के रूप में सक्रिय, बाद में क्रांतिकारी गतिविधियों और आध्यात्मिकता की ओर मुड़े।
प्रमुख परिणाम: जन-आंदोलन का विकास: उग्रवाद ने राष्ट्रीय आंदोलन को शहरी मध्यम वर्ग से बाहर निकालकर ग्रामीण जनता तक पहुंचाया। सूरत विभाजन (1907): उग्रवादी और उदारवादी गुटों के बीच मतभेद के कारण कांग्रेस का विभाजन, जिसने उग्रवादियों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अवसर दिया। क्रांतिकारी आंदोलन को प्रेरणा: उग्रवादी विचारधारा ने क्रांतिकारी संगठनों, जैसे अनुशीलन समिति और गदर आंदोलन, को प्रेरित किया। ब्रिटिश नीतियों पर दबाव: स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को 1909 के मोर्ले-मिंटो सुधार लागू करने के लिए मजबूर किया। सीमाएं: सीमित जन-भागीदारी: उग्रवादी आंदोलन मुख्य रूप से बंगाल, पंजाब, और महाराष्ट्र तक सीमित रहा, और पूरे देश में व्यापक नहीं हो सका।
सांप्रदायिक तनाव: बंगाल विभाजन के बाद हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ा, जिसने एकता को प्रभावित किया। ब्रिटिश दमन: ब्रिटिश सरकार ने उग्रवादी नेताओं (जैसे तिलक) को जेल और निर्वासन में डाला, जिसने आंदोलन को कमजोर किया।
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