Reasons for the rise of extremism
jp Singh
2025-05-29 10:36:31
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उग्रवाद के उदय के कारण
उग्रवाद के उदय के कारण
उग्रवाद का उदय भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के एक महत्वपूर्ण चरण (लगभग 1905-1919) के रूप में हुआ, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा और गति प्रदान की। यह उदारवादी नीतियों की सीमाओं और ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के प्रति बढ़ते असंतोष का परिणाम था। उग्रवाद ने स्वराज (पूर्ण स्वशासन) की मांग को जोरदार तरीके से उठाया और जन-आंदोलनों को प्रेरित किया। नीचे उग्रवाद के उदय के प्रमुख कारणों का संक्षिप्त और व्यवस्थित विवरण दिया गया है
उग्रवाद के उदय के कारण
उदारवादी नीतियों की असफलता: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारवादी नेता (1885-1905) प्रार्थना पत्र, प्रस्ताव और संवैधानिक तरीकों पर निर्भर थे, लेकिन इनके परिणाम सीमित थे। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय मांगों, जैसे सिविल सेवा में भागीदारी और आर्थिक सुधार, को गंभीरता से नहीं लिया। उदारवादियों की ब्रिटिश निष्ठा और धीमी प्रगति से युवा और शिक्षित भारतीयों में निराशा बढ़ी, जिसने उग्रवादी विचारधारा को जन्म दिया। बंगाल विभाजन (1905): लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन (16 अक्टूबर 1905) ब्रिटिश सरकार की "फूट डालो और राज करो" नीति का हिस्सा था। इसे भारतीयों, विशेष रूप से बंगालियों, ने राष्ट्रीय एकता के खिलाफ हमले के रूप में देखा। इसने स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को जन्म दिया, जिसने उग्रवादी नेताओं को जनता को संगठित करने का अवसर प्रदान किया। बंगाल में उग्रवादी और क्रांतिकारी गतिविधियों (जैसे अनुशीलन समिति, युगांतर समूह) का उदय हुआ।
ब्रिटिश दमनकारी नीतियां: ब्रिटिश सरकार ने राष्ट्रवादी आंदोलनों को दबाने के लिए कठोर कदम उठाए, जैसे प्रेस पर प्रतिबंध (वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878) और सभाओं पर रोक। नेताओं की गिरफ्तारी और निर्वासन (जैसे, बाल गंगाधर तिलक) ने जनता में आक्रोश बढ़ाया। इल्बर्ट बिल विवाद (1883) ने ब्रिटिश नस्लीय भेदभाव को उजागर किया, जिसने उग्रवादी भावनाओं को और भड़काया। आर्थिक शोषण: ब्रिटिश नीतियों, जैसे भारी कर, भू-राजस्व व्यवस्था, और भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों का विनाश, ने आर्थिक संकट को बढ़ाया। दादाभाई नौरोजी के "धन निष्कासन सिद्धांत" ने भारत की संपत्ति के शोषण को उजागर किया, जिसने जनता में असंतोष को और गहरा किया। स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से उग्रवादियों ने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। पश्चिमी शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: पश्चिमी शिक्षा ने भारतीय युवाओं में स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र जैसे विचारों को प्रेरित किया।
अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन, जैसे अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम (1776), फ्रांसीसी क्रांति (1789), और आयरिश स्वतंत्रता आंदोलन, ने भारतीय युवाओं को प्रेरित किया। जापान की 1905 में रूस पर विजय ने यह विश्वास जगाया कि एशियाई देश पश्चिमी शक्तियों को चुनौती दे सकते हैं। सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन: आर्य समाज (स्वामी दयानंद सरस्वती) और रामकृष्ण मिशन (स्वामी विवेकानंद) जैसे आंदोलनों ने भारतीय संस्कृति और धर्म में गर्व की भावना को जागृत किया। स्वामी विवेकानंद के विचारों ने युवाओं में आत्मविश्वास और राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाया। इन आंदोलनों ने उग्रवादी नेताओं को धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर जनता को संगठित करने में मदद की। प्रेस और साहित्य की भूमिका: समाचार पत्रों, जैसे केसरी (बाल गंगाधर तिलक), अमृत बाजार पत्रिका, और युगांतर, ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना की और राष्ट्रीय चेतना को प्रेरित किया। बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनंदमठ और गीत "वंदे मातरम" ने उग्रवादी भावनाओं को प्रेरित किया।
तिलक और बिपिन चंद्र पाल जैसे नेताओं ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से स्वराज की मांग को जोरदार तरीके से उठाया। नेतृत्व और प्रेरणा: बाल गंगाधर तिलक: "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है" का नारा देकर उन्होंने जनता में उग्रवादी भावनाओं को प्रेरित किया। गणेश उत्सव और शिवाजी जयंती जैसे सार्वजनिक उत्सवों ने जनता को संगठित किया। लाला लाजपत राय: पंजाब में राष्ट्रवादी गतिविधियों को बढ़ावा दिया। बिपिन चंद्र पाल: बंगाल में स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। इन नेताओं ने उदारवादी नीतियों से हटकर प्रत्यक्ष कार्रवाई और स्वराज की मांग को अपनाया। युवा और क्रांतिकारी भावना: शिक्षित युवा, जो उदारवादी तरीकों से निराश थे, उग्रवादी और क्रांतिकारी विचारधारा की ओर आकर्षित हुए। बंगाल में अनुशीलन समिति और युगांतर जैसे क्रांतिकारी संगठनों का उदय हुआ, जिन्होंने सशस्त्र संघर्ष को प्रेरित किया। भगत सिंह, खुदीराम बोस जैसे युवा क्रांतिकारियों ने उग्रवाद को और प्रबल किया।
प्रमुख परिणाम: स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन: बंगाल विभाजन के विरोध में शुरू हुआ यह आंदोलन उग्रवाद का प्रतीक बना। कांग्रेस में विभाजन: 1907 के सूरत अधिवेशन में उदारवादी और उग्रवादी गुटों में विभाजन हुआ, जिसने उग्रवादियों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अवसर दिया। क्रांतिकारी आंदोलन: उग्रवाद ने क्रांतिकारी गतिविधियों को प्रेरित किया, जैसे अलीपुर बम कांड (1908) और काकोरी कांड (1925)। राष्ट्रीय चेतना का प्रसार: उग्रवाद ने राष्ट्रीय आंदोलन को जन-आंदोलन में बदल दिया और ग्रामीण जनता तक पहुंचाया।
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jp Singh
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