Helpful in the rise of Indian nationalism
jp Singh
2025-05-29 10:19:41
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भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में सहायक
भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में सहायक
भारतीय राष्ट्रवाद का उदय 19वीं सदी के मध्य से शुरू हुआ और यह एक जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में सहायक प्रमुख कारकों को नीचे संक्षेप में वर्णित किया गया है
1. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की नीतियां
आर्थिक शोषण: ब्रिटिश नीतियों जैसे भू-राजस्व व्यवस्था (जमींदारी, रैयतवाड़ी), भारी कर, और भारतीय उद्योगों (जैसे हस्तशिल्प और कपड़ा) का विनाश ने आर्थिक असंतोष को जन्म दिया। दादाभाई नौरोजी का "धन निष्कासन सिद्धांत" (Drain of Wealth) इस शोषण को उजागर करता था, जिसने भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना को प्रेरित किया। प्रशासनिक भेदभाव: भारतीयों को उच्च प्रशासनिक और सैन्य पदों से वंचित रखा गया, जिससे मध्यम वर्ग में असंतोष बढ़ा। इल्बर्ट बिल विवाद (1883) ने नस्लीय भेदभाव को और उजागर किया।
2. पश्चिमी शिक्षा और विचार: अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीय मध्यम वर्ग में आधुनिक विचारों (स्वतंत्रता, समानता, और लोकतंत्र) को जन्म दिया। जॉन स्टुअर्ट मिल, रूसो, और थॉमस पेन जैसे पश्चिमी विचारकों ने भारतीय बुद्धिजीवियों को प्रभावित किया। इस शिक्षा ने राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा दिया और भारतीयों को संगठित होने के लिए प्रेरित किया।
3. सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन: ब्रह्म समाज (1828): राजा राममोहन राय ने सामाजिक बुराइयों (जैसे सती प्रथा, बाल विवाह) के खिलाफ सुधार शुरू किए और भारतीय संस्कृति में गर्व की भावना को पुनर्जनन किया। आर्य समाज (1875): स्वामी दयानंद सरस्वती ने "वेदों की ओर लौटो" का नारा दिया, जिसने हिंदू समाज में आत्मविश्वास और राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाया। रामकृष्ण मिशन और थियोसोफिकल सोसाइटी: इन आंदोलनों ने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को पुनर्जनन किया, जिससे राष्ट्रीय एकता को बल मिला। ये आंदोलन सामाजिक सुधारों के साथ-साथ राष्ट्रीय चेतना को भी प्रेरित करते थे।
4. 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम: 1857 का विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला संगठित और व्यापक विद्रोह था। इसमें सैनिकों, किसानों, और स्थानीय शासकों (जैसे रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब, तांत्या टोपे) ने भाग लिया। हालांकि यह असफल रहा, इसने भारतीयों में एकता और स्वतंत्रता की भावना को जागृत किया।
5. राजनीतिक संगठनों का उदय: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885): ए. ओ. ह्यूम द्वारा स्थापित, यह पहला राष्ट्रीय मंच था, जिसने भारतीयों की मांगों को संगठित रूप से उठाया। अन्य संगठन जैसे बंगाल लैंडहोल्डर्स सोसाइटी (1838), बOMBAY Association (1852), और मद्रास महाजन सभा (1884) ने क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक जागरूकता बढ़ाई। इन संगठनों ने भारतीयों को एक मंच पर लाकर राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया।
6. प्रेस और साहित्य की भूमिका: समाचार पत्र: अमृत बाजार पत्रिका, हिंदू पैट्रियट, केसरी (तिलक), और इंडियन मिरर जैसे समाचार पत्रों ने जनता में राष्ट्रीय चेतना को प्रचारित किया। साहित्य: बंकिम चंद्र चटर्जी का उपन्यास "आनंदमठ" और गीत "वंदे मातरम" ने राष्ट्रीय भावनाओं को प्रेरित किया। भारतेंदु हरिश्चंद्र और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे साहित्यकारों ने हिंदी और बंगाली साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीयता को बढ़ावा दिया।
7. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गौरव: भारतीय इतिहास और संस्कृति की पुनर्खोज ने राष्ट्रीय गौरव को जागृत किया। विद्वानों जैसे मैक्स मूलर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्राचीन भारतीय सभ्यता की महानता को उजागर किया। यह भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करने के लिए प्रेरित करता था।
8. बाहरी घटनाओं का प्रभाव: विश्व स्तर पर स्वतंत्रता आंदोलनों (जैसे अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम, फ्रांसीसी क्रांति) ने भारतीयों को प्रेरित किया। जापान की 1905 में रूस पर विजय ने यह विश्वास जगाया कि एशियाई देश पश्चिमी शक्तियों को चुनौती दे सकते हैं।
9. बंगाल विभाजन (1905): लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन (1905) एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने राष्ट्रीय भावनाओं को भड़काया। इससे स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन शुरू हुआ, जिसने राष्ट्रीय आंदोलन को व्यापक जन-आंदोलन में बदल दिया।
10. नेताओं की भूमिका: राजा राममोहन राय, दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, और बाद में महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने राष्ट्रीय चेतना को संगठित और प्रेरित किया। तिलक का नारा "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है" और गांधीजी की सत्याग्रह-अहिंसा की रणनीति ने जनता को एकजुट किया।
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