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Rise and Growth of Indian National Movement
jp Singh 2025-05-29 10:18:09
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भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उदय एवं विकास

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उदय एवं विकास
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उदय और विकास एक ऐतिहासिक प्रक्रिया थी, जो 19वीं सदी के मध्य से शुरू होकर 1947 में भारत की स्वतंत्रता तक चली। यह आंदोलन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीयों के सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक असंतोष का परिणाम था। इसका विकास विभिन्न चरणों, संगठनों, नेताओं, और रणनीतियों के माध्यम से हुआ।
उदय के कारण
ब्रिटिश शासन की नीतियां: आर्थिक शोषण: ब्रिटिश नीतियों (जैसे भू-राजस्व व्यवस्था, व्यापार नीतियां) ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नष्ट किया, जिससे किसानों, कारीगरों और व्यापारियों में असंतोष बढ़ा। सामाजिक भेदभाव: भारतीयों को प्रशासनिक और सैन्य सेवाओं में उच्च पदों से वंचित रखा गया। पश्चिमी शिक्षा: अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीय मध्यम वर्ग में राजनीतिक चेतना को जागृत किया, जिससे वे स्वशासन की मांग करने लगे। सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन: ब्रह्म समाज, आर्य समाज, और रामकृष्ण मिशन जैसे आंदोलनों ने भारतीय समाज में जागरूकता और आत्मविश्वास बढ़ाया। ये आंदोलन रूढ़ियों के खिलाफ थे और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते थे। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम: 1857 का विद्रोह पहला संगठित प्रयास था, जिसमें सैनिकों, किसानों और स्थानीय शासकों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट होकर विद्रोह किया। हालांकि यह असफल रहा, इसने राष्ट्रीय चेतना को जागृत किया।
विकास के चरण
1. उदारवादी चरण (1885-1905): भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885): ए. ओ. ह्यूम द्वारा स्थापित, कांग्रेस ने उदारवादी नीतियों के साथ स्वशासन की मांग शुरू की। प्रमुख नेता: दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले। रणनीति: प्रार्थना पत्र, प्रस्ताव, और संवैधानिक तरीकों से ब्रिटिश सरकार पर दबाव। उपलब्धियां: भारतीयों की समस्याओं (जैसे गरीबी, नौकरशाही में भेदभाव) को उजागर किया; दादाभाई नौरोजी ने "धन निष्कासन सिद्धांत" प्रस्तुत किया।
2. उग्रवादी चरण (1905-1919): बंगाल विभाजन और स्वदेशी आंदोलन (1905): लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन ने राष्ट्रीय भावनाओं को भड़काया। स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें भारतीय वस्तुओं को बढ़ावा और ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार किया गया। प्रमुख नेता: बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय (लाल-बाल-पाल)। नारा: तिलक का "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा।" मुस्लिम लीग की स्थापना (1906): मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा के लिए स्थापित, जिसने बाद में अलगाववादी नीतियों को बढ़ावा दिया। मुख्य घटनाएं: सूरत विभाजन (1907): कांग्रेस में उदारवादी और उग्रवादी गुटों में विभाजन। मोर्ले-मिंटो सुधार (1909): भारतीयों को सीमित प्रतिनिधित्व, लेकिन सांप्रदायिक निर्वाचन की शुरुआत।
3. गांधीवादी चरण (1915-1947): महात्मा गांधी का आगमन: गांधीजी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और राष्ट्रीय आंदोलन को जन-आंदोलन में बदल दिया। उनकी रणनीतियां: सत्याग्रह, अहिंसा, और असहयोग। प्रमुख आंदोलन: चंपारण सत्याग्रह (1917): बिहार में नील किसानों के खिलाफ सत्याग्रह। खेड़ा सत्याग्रह (1918): गुजरात में किसानों के लिए कर माफी की मांग। असहयोग आंदोलन (1920-22): खिलाफत आंदोलन के साथ गठबंधन; विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, स्वदेशी को बढ़ावा। नमक सत्याग्रह/दांडी मार्च (1930): नमक कानून तोड़ने के लिए गांधीजी का ऐतिहासिक मार्च। सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34): करों और कानूनों का उल्लंघन। भारत छोड़ो आंदोलन (1942): "करो या मरो" का नारा; स्वतंत्रता की मांग को तेज किया।
अन्य योगदान: जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल जैसे नेताओं ने आंदोलन को मजबूती दी। सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज (1942) बनाकर सशस्त्र संघर्ष का प्रयास किया। महिलाओं (जैसे सरोजिनी नायडू, अरुणा आसफ अली) और छात्रों की सक्रिय भागीदारी बढ़ी।
4. अंतिम चरण और स्वतंत्रता (1945-1947): द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव: युद्ध ने ब्रिटिश शक्ति को कमजोर किया, जिससे स्वतंत्रता की मांग तेज हुई। क्रिप्स मिशन (1942) और वेवेल योजना (1945) असफल रहे। कैबिनेट मिशन (1946): संविधान सभा के गठन और अंतरिम सरकार की स्थापना का प्रस्ताव। मुस्लिम लीग की "प्रत्यक्ष कार्रवाई" (Direct Action Day) से सांप्रदायिक हिंसा बढ़ी। स्वतंत्रता (15 अगस्त 1947): माउंटबेटन योजना के तहत भारत का विभाजन हुआ, और भारत व पाकिस्तान दो स्वतंत्र देश बने। जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। महत्वपूर्ण विशेषताएं और परिणाम: जन-आंदोलन: गांधीजी ने राष्ट्रीय आंदोलन को किसानों, मजदूरों और आम जनता तक पहुंचाया। विविधता: हिंदू, मुस्लिम, सिख, और अन्य समुदायों ने आंदोलन में भाग लिया, हालांकि सांप्रदायिकता एक चुनौती रही।
स्वतंत्रता: आंदोलन ने न केवल स्वतंत्रता प्राप्त की, बल्कि भारतीय समाज में सामाजिक सुधार और एकता की भावना को भी बढ़ाया।
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