Dyarchy
jp Singh
2025-05-29 10:13:55
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द्वैध शासन व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षा
द्वैध शासन व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षा
द्वैध शासन व्यवस्था (Dyarchy) भारत में 1919 के भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1919) के तहत लागू की गई थी, जिसने प्रांतीय सरकारों में कुछ विषयों को भारतीय मंत्रियों के नियंत्रण में स्थानांतरित किया, जबकि अन्य ब्रिटिश अधिकारियों के पास रहे। यह व्यवस्था 1919 से 1935 तक प्रभावी रही। शिक्षा इस व्यवस्था के तहत स्थानांतरित विषय (Transferred Subject) थी, जिसका अर्थ था कि यह प्रांतीय मंत्रियों के अधीन थी।
द्वैध शासन व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा (1919-1935)
1. पृष्ठभूमि द्वैध शासन का परिचय: 1919 के भारत सरकार अधिनियम ने प्रांतीय सरकारों में द्वैध शासन की शुरुआत की, जिसमें विषयों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया: स्थानांतरित विषय (Transferred Subjects): शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि आदि, जो भारतीय मंत्रियों के अधीन थे। आरक्षित विषय (Reserved Subjects): वित्त, पुलिस, और न्याय, जो ब्रिटिश गवर्नरों के नियंत्रण में थे। यह व्यवस्था भारतीयों को सीमित शासन अनुभव प्रदान करने और राष्ट्रीय आंदोलन के दबाव को कम करने का प्रयास थी। शिक्षा का संदर्भ: सैडलर आयोग (1917-1919) ने उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालय सुधारों पर सिफारिशें दी थीं, जो द्वैध शासन के दौरान लागू होने लगीं। शिक्षा का दायरा बढ़ाने और प्राथमिक, माध्यमिक, और उच्च शिक्षा को मजबूत करने की आवश्यकता थी। राष्ट्रीय आंदोलन (जैसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और स्वराज्यवादी आंदोलन) ने स्वदेशी और राष्ट्रीय शिक्षा की मांग को तेज किया।
2. शिक्षा नीति और विकास द्वैध शासन के तहत शिक्षा प्रांतीय मंत्रियों के नियंत्रण में थी, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग नीतियाँ लागू हुईं। प्रमुख बिंदु: प्राथमिक शिक्षा: प्रांतीय सरकारों ने प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों की संख्या बढ़ाई। क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाया गया, जैसा कि हंटर आयोग (1882) और वुड्स डिस्पैच (1854) में सुझाया गया था। कम्पल्सरी एजुकेशन: कुछ प्रांतों (जैसे बॉम्बे और बंगाल) में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य करने के प्रारंभिक प्रयास हुए, जैसे गोपाल कृष्ण गोखले की पहल (1911 में प्रस्तावित, लेकिन द्वैध शासन में लागू)। माध्यमिक शिक्षा: सैडलर आयोग की सिफारिशों के आधार पर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Secondary School Boards) स्थापित किए गए।
इंटरमीडिएट स्तर (11वीं और 12वीं) को मजबूत किया गया, जो स्कूल और विश्वविद्यालय शिक्षा के बीच की कड़ी थी। उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालय: सैडलर आयोग की सिफारिशों के आधार पर कई नए विश्वविद्यालय स्थापित हुए, जैसे: ढाका विश्वविद्यालय (1921): एकात्मक विश्वविद्यालय के रूप में। आंध्र विश्वविद्यालय (1926): क्षेत्रीय शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (1920): मुस्लिम शिक्षा को प्रोत्साहन। विश्वविद्यालयों को शिक्षण और अनुसंधान केंद्र बनाने पर जोर दिया गया। महिला शिक्षा: महिला शिक्षा को प्रोत्साहन मिला, और प्रांतीय सरकारों ने महिला कॉलेज और छात्रावास स्थापित किए। उदाहरण: लेडी इरविन कॉलेज, दिल्ली (1932 में स्थापित, लेकिन द्वैध शासन के दौरान योजना शुरू)।
वोकेशनल और तकनीकी शिक्षा: व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा (जैसे इंजीनियरिंग, चिकित्सा, और कृषि) को बढ़ावा देने के लिए संस्थान स्थापित किए गए। उदाहरण: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में तकनीकी विभाग। अनुदान प्रणाली: निजी और मिशनरी स्कूलों को अनुदान (Grants-in-Aid) प्रदान करने की नीति को मजबूत किया गया। प्रांतीय मंत्रियों ने स्थानीय जरूरतों के आधार पर अनुदान वितरण को नियंत्रित किया।
. प्रांतीय स्तर पर विविधता बॉम्बे प्रेसीडेंसी: प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य करने के प्रारंभिक प्रयास। मराठी और गुजराती में शिक्षा को बढ़ावा। बंगाल: महिला शिक्षा और विश्वविद्यालय शिक्षा पर जोर। ढाका विश्वविद्यालय की स्थापना। मद्रास: तमिल और तेलुगु में प्राथमिक शिक्षा का विस्तार। आंध्र विश्वविद्यालय की स्थापना। पंजाब: पंजाबी और उर्दू शिक्षा को प्रोत्साहन। लाहौर में तकनीकी शिक्षा पर ध्यान। संयुक्त प्रांत (यूपी): हिंदी और उर्दू में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा का विकास। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का विस्तार।
4. भारतीय नेताओं और सुधारकों की भूमिका गोपाल कृष्ण गोखले: प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य करने की वकालत। उनके प्रयासों ने द्वैध शासन के दौरान प्रांतीय नीतियों को प्रभावित किया। आशुतोष मुखर्जी: कलकत्ता विश्वविद्यालय में सुधार और शिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने में योगदान। मदन मोहन मालवीय: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (1916) की स्थापना, जो स्वदेशी और भारतीय संस्कृति पर आधारित शिक्षा प्रदान करता था। सैयद अहमद खान: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की नींव (1875 में कॉलेज, 1920 में विश्वविद्यालय), जो मुस्लिम समुदाय के लिए आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देता था। राष्ट्रीय शिक्षा आंदोलन: राष्ट्रीय नेता, जैसे बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय, ने स्वदेशी शिक्षा को प्रोत्साहित किया।
5. समाचार पत्रों की भूमिका आपके पिछले प्रश्न (19वीं सदी के समाचार पत्र) से जोड़ते हुए, द्वैध शासन के दौरान समाचार पत्रों ने शिक्षा और राष्ट्रीय जागरूकता को बढ़ावा दिया: केसरी (1881, बाल गंगाधर तिलक): स्वदेशी शिक्षा और राष्ट्रीयता पर जोर। हिंदू (1878, चेन्नई): शिक्षा नीति और प्रांतीय सुधारों पर चर्चा। अमृत बाजार पत्रिका (1868, कोलकाता): शिक्षा और सामाजिक सुधारों पर जनमत तैयार किया। यंग इंडिया (1919, महात्मा गांधी): राष्ट्रीय शिक्षा और स्वदेशी विचारधारा को प्रोत्साहन। इन पत्रों ने प्रांतीय शिक्षा नीतियों और राष्ट्रीय शिक्षा की मांग को जनता तक पहुंचाया।
6. प्रमुख प्रभाव सकारात्मक प्रभाव: शिक्षा का विस्तार: प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों की संख्या में वृद्धि। 1920 तक प्राथमिक स्कूलों की संख्या लगभग 1.5 लाख हो गई। विश्वविद्यालयों का विकास: ढाका, आंध्र, और अलीगढ़ जैसे विश्वविद्यालय स्थापित हुए। महिला शिक्षा: महिला कॉलेज और छात्रावासों की संख्या में वृद्धि। राष्ट्रीय चेतना: शिक्षित मध्यम वर्ग का विकास, जो स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हुआ। नकारात्मक प्रभाव: प्रांतीय असमानता: विभिन्न प्रांतों में शिक्षा नीतियों का कार्यान्वयन असमान रहा।
आर्थिक बाधाएँ: सीमित सरकारी धन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में प्रगति धीमी रही। अंग्रेजी का प्रभुत्व: उच्च शिक्षा में अंग्रेजी का वर्चस्व बना रहा, जिसने क्षेत्रीय भाषाओं को सीमित किया। सामाजिक रूढ़ियाँ: महिला और निम्न वर्गों की शिक्षा को सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
7. चुनौतियाँ आर्थिक सीमाएँ: प्रांतीय सरकारों के पास शिक्षा के लिए पर्याप्त धन नहीं था। प्रशासनिक जटिलताएँ: द्वैध शासन में ब्रिटिश गवर्नरों और भारतीय मंत्रियों के बीच समन्वय की कमी थी। सामाजिक बाधाएँ: महिला और निम्न वर्गों की शिक्षा को सामाजिक रूढ़ियों का सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय मांगों का दबाव: राष्ट्रीय नेता स्वदेशी शिक्षा की मांग कर रहे थे, जो ब्रिटिश नीतियों से टकराती थी।
8. महत्व द्वैध शासन ने भारतीय मंत्रियों को शिक्षा नीति में भागीदारी का अवसर दिया, जिसने भारतीयों को शासन अनुभव प्रदान किया। इसने प्राथमिक और उच्च शिक्षा के विस्तार को गति दी और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक शिक्षित वर्ग तैयार किया। सैडलर आयोग की सिफारिशों को लागू करने में प्रांतीय सरकारों की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
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