Sadleir Commission
jp Singh
2025-05-29 10:12:24
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सैडलर आयोग
सैडलर आयोग
सैडलर आयोग (Sadleir Commission), जिसे आधिकारिक तौर पर Calcutta University Commission 1917-1919 के नाम से जाना जाता है, भारत में उच्च शिक्षा, विशेष रूप से विश्वविद्यालय शिक्षा, की स्थिति की समीक्षा और सुधार के लिए गठित एक महत्वपूर्ण आयोग था। इसे माइकल सैडलर (Sir Michael Sadleir) की अध्यक्षता में 1917 में स्थापित किया गया था। यद्यपि यह 20वीं सदी का आयोग है, यह आपके पिछले प्रश्नों (18वीं और 19वीं सदी में शिक्षा, आंग्ल-प्राच्य विवाद, वुड्स डिस्पैच, हंटर आयोग) के संदर्भ में प्रासंगिक है, क्योंकि यह 19वीं सदी में शुरू हुई शिक्षा नीतियों का विस्तार और सुधार करता है।
सैडलर आयोग (1917-1919) का अवलोकन
1. पृष्ठभूमि समय: 1917-1919 संदर्भ: 19वीं सदी में वुड्स डिस्पैच (1854) और हंटर आयोग (1882) ने भारत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को बढ़ावा दिया, लेकिन उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता थी। 1857 में स्थापित कलकत्ता, बॉम्बे, और मद्रास विश्वविद्यालय मुख्य रूप से परीक्षा आयोजित करने वाले निकाय बन गए थे, न कि शिक्षण और अनुसंधान के केंद्र। राष्ट्रीय आंदोलन (जैसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1885) के उदय और शिक्षित भारतीयों की मांगों ने विश्वविद्यालय शिक्षा में सुधार की आवश्यकता को बल दिया। उद्देश्य: कलकत्ता विश्वविद्यालय और अन्य विश्वविद्यालयों की स्थिति की जांच करना। उच्च शिक्षा को अधिक प्रभावी, शिक्षण-केंद्रित, और भारतीय समाज की जरूरतों के अनुरूप बनाना। माध्यमिक और विश्वविद्यालय शिक्षा के बीच समन्वय स्थापित करना।
2. गठन अध्यक्ष: सर माइकल सैडलर, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के उपकुलपति। सदस्य: 13 सदस्यों का आयोग, जिसमें भारतीय और ब्रिटिश विद्वान शामिल थे, जैसे आशुतोष मुखर्जी, जेड.एफ. भुट्टो, और रामस्वामी अय्यर। कार्यक्षेत्र: कलकत्ता विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली की समीक्षा। विश्वविद्यालयों और माध्यमिक शिक्षा के बीच संबंधों का विश्लेषण। उच्च शिक्षा में शिक्षण, अनुसंधान, और प्रशासन के सुधार के लिए सुझाव देना।
. मुख्य सिफारिशें सैडलर आयोग ने उच्च शिक्षा और संबंधित क्षेत्रों में निम्नलिखित सिफारिशें दीं: विश्वविद्यालयों का पुनर्गठन: विश्वविद्यालयों को केवल परीक्षा आयोजित करने वाले निकायों के बजाय शिक्षण और अनुसंधान केंद्र बनाया जाए। एकात्मक विश्वविद्यालयों (Unitary Universities) की स्थापना, जहां शिक्षण और आवासीय सुविधाएँ एक ही परिसर में हों। उदाहरण: ढाका विश्वविद्यालय (1921) की स्थापना इस सिफारिश का परिणाम थी। माध्यमिक और विश्वविद्यालय शिक्षा का समन्वय: माध्यमिक शिक्षा को विश्वविद्यालय शिक्षा से जोड़ने के लिए इंटरमीडिएट स्तर (11वीं और 12वीं कक्षा) की स्थापना। माध्यमिक शिक्षा के लिए अलग बोर्ड (Secondary School Boards) स्थापित करने की सिफारिश।
पाठ्यक्रम में सुधार: पाठ्यक्रम को अधिक व्यापक और व्यावहारिक बनाने का सुझाव, जिसमें विज्ञान, साहित्य, और मानविकी शामिल हों। व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना। शिक्षक प्रशिक्षण और गुणवत्ता: विश्वविद्यालय शिक्षकों की योग्यता और प्रशिक्षण में सुधार। शिक्षकों के लिए बेहतर वेतन और सुविधाएँ प्रदान करने की सिफारिश। महिला शिक्षा: महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा के अवसर बढ़ाने और विशेष कॉलेज स्थापित करने का सुझाव। महिला छात्रावासों और सुविधाओं पर जोर।
छात्र कल्याण: विश्वविद्यालयों में छात्रावास, खेल सुविधाएँ, और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने की सिफारिश। छात्रों के लिए नैतिक और बौद्धिक विकास पर ध्यान। प्रशासनिक सुधार: विश्वविद्यालयों में स्वायत्तता बढ़ाने और सरकारी हस्तक्षेप कम करने का सुझाव। सीनेट और सिंडिकेट जैसे निकायों को मजबूत करना। क्षेत्रीय विश्वविद्यालय: प्रत्येक क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्थापित करने की सिफारिश, ताकि शिक्षा का विस्तार हो। परिणाम: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (1916), मैसूर विश्वविद्यालय (1916), और आंध्र विश्वविद्यालय (1926) जैसे संस्थान स्थापित हुए।
4. प्रभाव सकारात्मक प्रभाव: विश्वविद्यालयों का विकास: सैडलर आयोग की सिफारिशों के बाद ढाका विश्वविद्यालय (1921) और अन्य क्षेत्रीय विश्वविद्यालय स्थापित हुए। माध्यमिक शिक्षा का सुधार: इंटरमीडिएट स्तर और माध्यमिक शिक्षा बोर्डों की स्थापना से स्कूल और विश्वविद्यालय शिक्षा के बीच बेहतर समन्वय हुआ। महिला शिक्षा: महिला कॉलेजों और छात्रावासों की संख्या में वृद्धि हुई, जिसने महिला शिक्षा को प्रोत्साहन दिया। राष्ट्रीय आंदोलन: शिक्षित मध्यम वर्ग का विस्तार हुआ, जो स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हुआ। नकारात्मक प्रभाव: सीमित कार्यान्वयन: आर्थिक बाधाओं और प्रशासनिक जटिलताओं के कारण कई सिफारिशें पूरी तरह लागू नहीं हुईं। ग्रामीण क्षेत्रों में कमी: उच्च शिक्षा का लाभ मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों तक सीमित रहा। अंग्रेजी का प्रभुत्व: अंग्रेजी उच्च शिक्षा में प्रमुख बनी रही, जिसने क्षेत्रीय भाषाओं को सीमित किया।
5. समाचार पत्रों की भूमिका आपके पिछले प्रश्न (19वीं सदी के समाचार पत्र) से जोड़ते हुए, सैडलर आयोग की सिफारिशों को लागू करने और शिक्षा जागरूकता फैलाने में समाचार पत्रों की भूमिका थी: केसरी (1881, बाल गंगाधर तिलक): शिक्षा सुधार और स्वदेशी शिक्षा को बढ़ावा दिया। हिंदू (1878, चेन्नई): उच्च शिक्षा और राष्ट्रीय जागरूकता पर चर्चा। अमृत बाजार पत्रिका (1868, कोलकाता): शिक्षा नीति और सामाजिक सुधारों पर जनमत तैयार किया। इन पत्रों ने सैडलर आयोग की सिफारिशों को जनता तक पहुंचाया और शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया।
6. चुनौतियाँ आर्थिक बाधाएँ: विश्वविद्यालयों और स्कूलों के लिए पर्याप्त धन की कमी। सामाजिक रूढ़ियाँ: महिला और निम्न वर्गों की शिक्षा को सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। प्रशासनिक जटिलताएँ: विश्वविद्यालयों में स्वायत्तता और सुधार लागू करने में देरी। क्षेत्रीय असमानता: शिक्षा का विकास शहरी क्षेत्रों तक सीमित रहा, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रगति धीमी थी।
7. महत्व सैडलर आयोग ने भारत में विश्वविद्यालय शिक्षा को शिक्षण और अनुसंधान केंद्रित बनाने की नींव रखी। इसने माध्यमिक और उच्च शिक्षा के बीच समन्वय स्थापित किया, जिसने शिक्षा प्रणाली को अधिक व्यवस्थित किया। आयोग की सिफारिशों ने 20वीं सदी में राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक शिक्षित वर्ग तैयार करने में योगदान दिया।
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