Hunter Education Commission
jp Singh
2025-05-29 10:10:52
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हंटर शिक्षा आयोग
हंटर शिक्षा आयोग
हंटर शिक्षा आयोग (Hunter Education Commission), जिसे आधिकारिक तौर पर Indian Education Commission 1882 के नाम से जाना जाता है, भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान शिक्षा प्रणाली की समीक्षा और सुधार के लिए गठित पहला व्यापक आयोग था। इसे विलियम विल्सन हंटर की अध्यक्षता में 1882 में गठित किया गया था, और इसका उद्देश्य 1854 के वुड्स डिस्पैच के बाद शिक्षा की प्रगति का मूल्यांकन करना और नई नीतियाँ सुझाना था। यह आपके पिछले प्रश्नों (18वीं और 19वीं सदी में शिक्षा का विकास, आंग्ल-प्राच्य विवाद, वुड्स डिस्पैच) के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह शिक्षा नीति को और अधिक व्यवस्थित करने का प्रयास था।
हंटर शिक्षा आयोग (1882) का अवलोकन
1. पृष्ठभूमि समय: 1882 संदर्भ: 1854 के वुड्स डिस्पैच ने भारत में शिक्षा के लिए एक ढांचा प्रदान किया था, जिसमें प्राथमिक, माध्यमिक, और उच्च शिक्षा पर जोर दिया गया था। हालांकि, 1880 तक शिक्षा का प्रसार धीमा था, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और महिलाओं के बीच। साक्षरता दर केवल 10-12% थी। ब्रिटिश सरकार पर दबाव था कि वह शिक्षा नीति की समीक्षा करे और प्राथमिक शिक्षा को प्राथमिकता दे, क्योंकि उच्च शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जा रहा था। उद्देश्य: वुड्स डिस्पैच की नीतियों की प्रगति का मूल्यांकन करना। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को बढ़ावा देना। निजी और मिशनरी संस्थानों की भूमिका को मजबूत करना। महिला और निम्न वर्गों की शिक्षा पर ध्यान देना।
2. गठन अध्यक्ष: सर विलियम विल्सन हंटर (एक ब्रिटिश प्रशासक और विद्वान)। सदस्य: आयोग में 20 सदस्य थे, जिनमें भारतीय और ब्रिटिश दोनों शामिल थे, जैसे अनुबाई मजूमदार और सैयद अहमद खान। कार्यक्षेत्र: प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति की जांच। सरकारी और निजी संस्थानों की भूमिका का मूल्यांकन। शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेजी के उपयोग का विश्लेषण। शिक्षक प्रशिक्षण और पाठ्यक्रम की समीक्षा।
3. मुख्य सिफारिशें हंटर आयोग ने शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर निम्नलिखित सिफारिशें दीं: प्राथमिक शिक्षा पर जोर: प्राथमिक शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए, क्योंकि यह जनसामान्य तक शिक्षा पहुंचाने का आधार है। क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाया जाए, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता बढ़े। स्थानीय निकायों (जैसे पंचायतों) को प्राथमिक स्कूलों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी जाए। माध्यमिक शिक्षा का विस्तार: माध्यमिक स्कूलों की संख्या बढ़ाने और उनके पाठ्यक्रम में व्यावहारिक विषय (जैसे कृषि, गणित) शामिल करने की सिफारिश। अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं दोनों को माध्यमिक शिक्षा में शामिल करने का सुझाव।
अनुदान प्रणाली (Grants-in-Aid): निजी और मिशनरी स्कूलों को सरकारी अनुदान प्रदान करने की नीति को मजबूत करना। अनुदान के लिए मानक निर्धारित किए गए, जैसे शिक्षक योग्यता और पाठ्यक्रम की गुणवत्ता। इससे गैर-सरकारी संस्थानों को प्रोत्साहन मिला। महिला शिक्षा: महिला शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष स्कूल और शिक्षक प्रशिक्षण की सिफारिश। सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने के लिए जागरूकता अभियान चलाने का सुझाव। शिक्षक प्रशिक्षण: शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण स्कूलों (नॉर्मल स्कूल) की स्थापना। शिक्षकों की योग्यता और वेतन में सुधार पर जोर। वोकेशनल और तकनीकी शिक्षा: व्यावसायिक शिक्षा (जैसे हस्तशिल्प, कृषि, और तकनीकी कौशल) को बढ़ावा देना।
यह भारतीयों को रोजगार के लिए तैयार करने के लिए था। शिक्षा का प्रशासन: प्रत्येक प्रांत में शिक्षा विभाग को और सशक्त बनाने की सिफारिश। स्कूलों का नियमित निरीक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण पर जोर। स्वदेशी शिक्षा: भारतीय संस्कृति और भाषाओं को शिक्षा में शामिल करने का सुझाव, ताकि पारंपरिक ज्ञान संरक्षित रहे।
4. प्रभाव सकारात्मक प्रभाव: प्राथमिक शिक्षा का विस्तार: ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्कूलों की संख्या में वृद्धि हुई। 1882-1900 के बीच प्राथमिक स्कूलों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई। निजी संस्थानों की भूमिका: अनुदान प्रणाली ने मिशनरी और निजी स्कूलों को प्रोत्साहित किया, जिससे शिक्षा का दायरा बढ़ा। महिला शिक्षा: बेथ्यून स्कूल जैसे संस्थानों को प्रोत्साहन मिला, और महिला शिक्षा में धीमी लेकिन सकारात्मक प्रगति हुई। शिक्षित वर्ग का उदय: शिक्षा के प्रसार ने एक शिक्षित मध्यम वर्ग को जन्म दिया, जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (जैसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1885) में सक्रिय हुआ। नकारात्मक प्रभाव: सीमित प्रगति: ग्रामीण क्षेत्रों और निम्न वर्गों में साक्षरता दर में वृद्धि धीमी रही। 1900 तक साक्षरता दर केवल 12-15% थी।
अंग्रेजी पर जोर: उच्च शिक्षा में अंग्रेजी का प्रभुत्व बना रहा, जिसने कुलीन वर्ग को लाभ पहुंचाया, लेकिन सामान्य जनता तक पहुंच सीमित रही। सामाजिक रूढ़ियाँ: महिला और निम्न जातियों की शिक्षा को सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ा।
5. समाचार पत्रों की भूमिका आपके पिछले प्रश्न (19वीं सदी के समाचार पत्र) से जोड़ते हुए, हंटर आयोग की सिफारिशों को लागू करने में समाचार पत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई: केसरी (1881, बाल गंगाधर तिलक): शिक्षा नीति और स्वदेशी शिक्षा को बढ़ावा देने में सक्रिय। अमृत बाजार पत्रिका (1868, कोलकाता): शिक्षा और सामाजिक सुधारों पर जन जागरूकता फैलाई। हिंदू (1878, चेन्नई): शिक्षा नीति और राष्ट्रीय जागरूकता पर चर्चा।
कविवचन सुधा (1867, भारतेंदु हरिश्चंद्र): हिंदी भाषा और शिक्षा के प्रचार में योगदान। इन पत्रों ने हंटर आयोग की सिफारिशों को जनता तक पहुंचाया और शिक्षा के महत्व पर जागरूकता बढ़ाई।
6. चुनौतियाँ आर्थिक बाधाएँ: सरकारी धन सीमित था, जिसके कारण प्राथमिक शिक्षा का विस्तार धीमा रहा। सामाजिक रूढ़ियाँ: महिला और निम्न जातियों की शिक्षा को सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। प्रशासनिक कठिनाइयाँ: शिक्षा विभागों और स्थानीय निकायों में समन्वय की कमी थी। अंग्रेजी का प्रभुत्व: उच्च शिक्षा में अंग्रेजी का वर्चस्व बना रहा, जिसने ग्रामीण जनता से दूरी बढ़ाई।
7. महत्व हंटर आयोग ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को प्राथमिकता देकर शिक्षा के दायरे को व्यापक बनाने का प्रयास किया। इसने वुड्स डिस्पैच (1854) की नीतियों को लागू करने में मदद की और शिक्षा को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में कदम उठाए। आयोग की सिफारिशों ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक शिक्षित वर्ग तैयार किया, जो स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
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