Development of education in India in the 18th century
jp Singh
2025-05-29 09:40:33
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18वी सदी में भारत में शिक्षा का विकास
18वी सदी में भारत में शिक्षा का विकास
18वीं सदी में भारत में शिक्षा का विकास मुख्य रूप से पारंपरिक और धार्मिक ढांचे पर आधारित था, क्योंकि यह अवधि मुगल साम्राज्य के पतन और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के उदय की थी। इस समय भारत में शिक्षा प्रणाली गुरुकुल, पाठशाला, और मदरसों के माध्यम से संचालित होती थी, जो सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक शिक्षा पर केंद्रित थी। 18वीं सदी के अंत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभाव के साथ पश्चिमी शिक्षा की शुरुआत हुई, लेकिन इसका दायरा सीमित था।
18वीं सदी में भारत में शिक्षा का विकास
1. पारंपरिक शिक्षा प्रणाली गुरुकुल और पाठशाला: हिंदू समुदायों में गुरुकुल और पाठशालाएँ शिक्षा के प्रमुख केंद्र थे। इनमें वेद, उपनिषद, पुराण, संस्कृत साहित्य, व्याकरण, और ज्योतिष जैसे विषय पढ़ाए जाते थे। शिक्षा का माध्यम संस्कृत या क्षेत्रीय भाषाएँ (जैसे बंगाली, तमिल, मराठी) थीं। ये संस्थान मुख्य रूप से ब्राह्मण और अन्य उच्च वर्गों के लिए थे। मदरसे: मुस्लिम समुदायों में मदरसे कुरान, हदीस, इस्लामी कानून (फिकह), और फारसी साहित्य की शिक्षा देते थे। फारसी मुगल प्रशासन की आधिकारिक भाषा थी, इसलिए यह शिक्षा प्रशासनिक नौकरियों के लिए महत्वपूर्ण थी। क्षेत्रीय विविधता: दक्षिण भारत में तमिल और संस्कृत आधारित शिक्षा प्रचलित थी। बंगाल में बंगाली और संस्कृत पाठशालाएँ थीं। महाराष्ट्र में मराठी और संस्कृत आधारित शिक्षा दी जाती थी।
सामान्य विशेषताएँ: शिक्षा मौखिक और लिखित दोनों रूपों में थी, लेकिन मुख्य रूप से गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित। साक्षरता दर बहुत कम थी (लगभग 5-7%), और शिक्षा मुख्य रूप से पुरुषों तक सीमित थी। महिला शिक्षा लगभग नगण्य थी, सिवाय कुछ उच्च वर्गीय परिवारों में घरेलू शिक्षा के।
2. मुगल शासन का प्रभाव मुगल शिक्षा प्रणाली: 18वीं सदी की शुरुआत में मुगल साम्राज्य कमजोर हो रहा था, लेकिन मदरसे और मक्तब अभी भी शिक्षा के केंद्र थे। औरंगजेब (1658-1707) के शासनकाल में इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा दिया गया, लेकिन उनके बाद शिक्षा प्रणाली कमजोर हुई। फारसी भाषा का उपयोग प्रशासन और साहित्य में प्रचलित था, जिसे दरबारी और विद्वान वर्ग सीखते थे। क्षेत्रीय शासकों का योगदान: मराठा, सिख, और दक्षिण भारतीय शासकों (जैसे मैसूर और तंजावुर) ने स्थानीय भाषाओं और संस्कृत शिक्षा को प्रोत्साहित किया। उदाहरण: तंजावुर के मराठा शासकों ने संस्कृत और तमिल विद्वानों को संरक्षण दिया।
3. ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रभाव की शुरुआत ईस्ट इंडिया कंपनी: 18वीं सदी के मध्य में (विशेष रूप से 1757 के प्लासी युद्ध के बाद), ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपने पैर जमाए। कंपनी ने शुरू में भारतीय शिक्षा प्रणाली में हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन अपने प्रशासनिक जरूरतों के लिए अंग्रेजी और फारसी जानने वाले कर्मचारियों की आवश्यकता थी। प्रारंभिक मिशनरी गतिविधियाँ: ईसाई मिशनरियों ने 18वीं सदी के अंत में शिक्षा को बढ़ावा देना शुरू किया। डेनिश मिशनरियों ने तमिलनाडु में (ट्रांकेबार, 1706) स्कूल स्थापित किए। इन स्कूलों में बाइबिल के साथ-साथ बुनियादी गणित, लेखन, और अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी। फोर्ट विलियम कॉलेज, कोलकाता (1800): 18वीं सदी के अंत में (1800 में, लेकिन 19वीं सदी की शुरुआत में प्रभावी), लॉर्ड वेलेजली ने फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की।
उद्देश्य: ब्रिटिश अधिकारियों को भारतीय भाषाएँ (संस्कृत, फारसी, हिंदी, बंगाली) और भारतीय संस्कृति सिखाना। इसने भारतीय विद्वानों को भी संस्कृत और क्षेत्रीय भाषाओं में अनुसंधान के लिए प्रोत्साहित किया।
4. सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ सामाजिक रूढ़ियाँ: शिक्षा मुख्य रूप से उच्च वर्गों (ब्राह्मण, कायस्थ, और मुस्लिम अभिजन) तक सीमित थी। निम्न जातियों और महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता था। कुछ अपवादों में, जैसे बंगाल में वैष्णव आंदोलन और दक्षिण में भक्ति आंदोलन, ने कुछ हद तक सामान्य जनता को धार्मिक शिक्षा प्रदान की। साहित्य और विद्वता: 18वीं सदी में बनारस, तंजावुर, और लाहौर जैसे शहर विद्या के केंद्र थे। संस्कृत विद्वान, जैसे बनारस में पंडित, और फारसी विद्वान, जैसे दिल्ली में, सक्रिय थे।
5. समाचार पत्रों की भूमिका 18वीं सदी में समाचार पत्रों का विकास सीमित था, क्योंकि छपाई तकनीक अभी भारत में व्यापक नहीं थी। हालांकि, 18वीं सदी के अंत में (1780 के दशक) कुछ प्रारंभिक समाचार पत्र प्रकाशित हुए, जो शिक्षा के प्रसार में सहायक थे: हिक्की बंगाल गजट (1780): जेम्स ऑगस्टस हिक्की द्वारा शुरू किया गया, यह भारत का पहला समाचार पत्र था, जो अंग्रेजी में था और मुख्य रूप से यूरोपीय समुदाय के लिए था। यह शिक्षा पर सीधे प्रभाव नहीं डालता था, लेकिन सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता बढ़ाता था। इंडिया गजट (1785): कोलकाता से प्रकाशित, यह भी अंग्रेजी में था और ब्रिटिश प्रशासन पर केंद्रित था। भारतीयों द्वारा समाचार पत्र 19वीं सदी की शुरुआत में ही शुरू हुए (जैसे संवाद कौमुदी, 1821), इसलिए 18वीं सदी में समाचार पत्रों का शिक्षा पर प्रभाव सीमित था।
6. चुनौतियाँ साक्षरता दर: 18वीं सदी में साक्षरता दर बहुत कम (5-7%) थी, और ग्रामीण क्षेत्रों में यह और भी कम थी। आर्थिक बाधाएँ: शिक्षा के लिए कोई केंद्रीकृत सरकारी धन नहीं था। गुरुकुल और मदरसे निजी संरक्षण पर निर्भर थे। सामाजिक रूढ़ियाँ: महिला और निम्न जातियों की शिक्षा को सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ता था। राजनीतिक अस्थिरता: मुगल साम्राज्य के पतन और क्षेत्रीय शक्तियों (मराठा, सिख) के उदय के कारण शिक्षा प्रणाली पर ध्यान कम था।
7. प्रभाव और महत्व पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण: गुरुकुल और मदरसों ने संस्कृत, फारसी, और क्षेत्रीय साहित्य को संरक्षित किया। पश्चिमी शिक्षा की नींव: 18वीं सदी के अंत में मिशनरी स्कूलों और फोर्ट विलियम कॉलेज ने पश्चिमी शिक्षा की शुरुआत की, जो 19वीं सदी में विस्तारित हुई। सामाजिक जागरूकता: धार्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा ने सामाजिक एकता को बनाए रखा, लेकिन राष्ट्रीय चेतना का विकास 19वीं सदी में हुआ।
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