Opposition to caste system and untouchability movement
jp Singh
2025-05-28 17:57:30
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जाति प्रथा का विरोध एवं अछूतोद्धार आंदोलन
जाति प्रथा का विरोध एवं अछूतोद्धार आंदोलन
जाति प्रथा का विरोध और अछूतोद्धार आंदोलन भारत में सामाजिक सुधार के महत्वपूर्ण आंदोलन थे, जिनका उद्देश्य हिंदू समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता (छुआछूत) को समाप्त करना था। ये आंदोलन 19वीं और 20वीं सदी में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों (जैसे ब्रह्म समाज, आर्य समाज) और स्वतंत्रता संग्राम के साथ उभरे। इनका लक्ष्य दलितों और अन्य वंचित जातियों को सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक समानता प्रदान करना था।
पृष्ठभूमि जाति प्रथा: हिंदू समाज में वर्ण और जाति व्यवस्था ने सामाजिक असमानता को जन्म दिया, जिसमें दलितों (अछूतों) को सामाजिक, धार्मिक, और आर्थिक रूप से हाशिए पर रखा गया। उन्हें मंदिरों, जल स्रोतों, और सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश वर्जित था। औपनिवेशिक प्रभाव: 19वीं सदी में पश्चिमी शिक्षा, ईसाई मिशनरियों, और ब्रिटिश प्रशासन ने जाति व्यवस्था पर सवाल उठाए। सुधारकों ने इसे सामाजिक अन्याय और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा माना। सामाजिक सुधार आंदोलन: ब्रह्म समाज, आर्य समाज, और प्रार्थना समाज जैसे आंदोलनों ने जाति प्रथा और अस्पृश्यता के खिलाफ आवाज उठाई, जिसने अछूतोद्धार आंदोलन की नींव रखी। स्वतंत्रता संग्राम: राष्ट्रीय आंदोलन ने जातिगत भेदभाव को समाप्त करने को राष्ट्रीय एकता का हिस्सा बनाया, विशेषकर महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के प्रयासों से।
जाति प्रथा का विरोध
प्रमुख आंदोलन और सुधारक
ब्रह्म समाज (1828) :- नेता: राजा राममोहन राय। योगदान: जाति व्यवस्था और छुआछूत का विरोध, सामाजिक समानता और एकेश्वरवाद पर जोर। प्रभाव: इसने उच्च जातियों में जागरूकता बढ़ाई, लेकिन इसका प्रभाव मुख्य रूप से शहरी मध्यम वर्ग तक सीमित रहा।
आर्य समाज (1875): नेता: स्वामी दयानंद सरस्वती। योगदान: वेदों की ओर वापसी और जन्म-आधारित जाति व्यवस्था का विरोध। शुद्धि आंदोलन के माध्यम से दलितों को हिंदू धर्म में सम्मानजनक स्थान देने की कोशिश। प्रभाव: उत्तर भारत में जातिगत भेदभाव को कम करने में योगदान, लेकिन कुछ आलोचकों ने शुद्धि आंदोलन को हिंदू धर्म के प्रचार के रूप में देखा।
प्रार्थना समाज (1867): नेता: महादेव गोविंद रानाडे, आत्माराम पांडुरंग। योगदान: जातिगत भेदभाव और छुआछूत का विरोध, दलितों और निम्न जातियों के लिए शिक्षा और सामाजिक सुधार। प्रभाव: महाराष्ट्र में सामाजिक समानता को बढ़ावा, विशेषकर निम्न जातियों के लिए।
सत्यशोधक समाज (1873): नेता: ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले। योगदान: जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी वर्चस्व का खुला विरोध। दलितों और निम्न जातियों के लिए स्कूलों की स्थापना। पुस्तक गुलामगिरी (1873) में ज्योतिबा ने जाति प्रथा को गुलामी का प्रतीक बताया। प्रभाव: महाराष्ट्र में गैर-ब्राह्मण आंदोलन और दलित जागरूकता की नींव रखी। दक्षिण भारत में सुधार: नेता: पेरियार ई.वी. रामासामी। योगदान: आत्म-सम्मान आंदोलन (1925) और द्रविड़ आंदोलन के माध्यम से ब्राह्मणवादी वर्चस्व और जाति प्रथा का विरोध। पेरियार ने तर्कवाद और सामाजिक समानता पर जोर दिया। प्रभाव: तमिलनाडु में गैर-ब्राह्मण और दलित सशक्तीकरण को बढ़ावा। अछूतोद्धार आंदोलन प्रमुख आंदोलन और सुधारक महात्मा गांधी और हरिजन आंदोलन: पृष्ठभूमि: गांधी ने अस्पृश्यता को हिंदू धर्म और राष्ट्रीय एकता के लिए सबसे बड़ा कलंक माना।
हरिजन आंदोलन (1932): गांधी ने दलितों को 'हरिजन' (ईश्वर के लोग) नाम दिया और उनके उत्थान के लिए अभियान शुरू किया। हरिजन सेवक संघ (1932): दलितों के लिए शिक्षा, मंदिर प्रवेश, और सामाजिक समानता के लिए गठित। मंदिर प्रवेश आंदोलन: वैकम सत्याग्रह (1924-25, केरल) और अन्य आंदोलनों में दलितों को मंदिरों में प्रवेश का अधिकार दिलाने की कोशिश। प्रभाव: गांधी के प्रयासों ने राष्ट्रीय स्तर पर अस्पृश्यता के खिलाफ जागरूकता बढ़ाई और उच्च जातियों में सुधार की भावना पैदा की।
आलोचना: डॉ. अम्बेडकर ने गांधी के 'हरिजन' शब्द और सुधारवादी दृष्टिकोण को संरक्षकवादी (paternalistic) माना, क्योंकि यह दलितों को हिंदू धर्म के ढाँचे में रखने पर केंद्रित था। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर और दलित आंदोलन: पृष्ठभूमि: अम्बेडकर स्वयं एक दलित थे और उन्होंने अस्पृश्यता और जाति प्रथा के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन चलाया।
प्रमुख गतिविधियाँ: महाड़ सत्याग्रह (1927): महाराष्ट्र में दलितों को सार्वजनिक जलाशय (चवदार तालाब) में पानी लेने का अधिकार दिलाने के लिए। कालाराम मंदिर सत्याग्रह (1930): नासिक में दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए। अखिल भारतीय अनुसूचित जाति महासंघ (1942): दलितों के लिए सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों की वकालत। धर्म परिवर्तन (1956): अम्बेडकर ने हिंदू धर्म की असमानताओं के विरोध में 1956 में नागपुर में लाखों दलितों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया। लेखन: Annihilation of Caste (1936) में अम्बेडकर ने जाति प्रथा को हिंदू धर्म का मूल दोष बताया और इसके उन्मूलन की वकालत की।
प्रभाव: अम्बेडकर ने दलितों को आत्म-सम्मान, शिक्षा, और राजनीतिक सशक्तीकरण का मार्ग दिखाया। उनकी अगुवाई में संविधान में दलितों के लिए आरक्षण और सुरक्षा के प्रावधान शामिल हुए। दक्षिण भारत में आंदोलन: वैकम सत्याग्रह (1924-25): केरल में पेरियार और अन्य सुधारकों ने दलितों को मंदिरों के आसपास की सड़कों पर चलने का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन चलाया। नारायण गुरु: श्री नारायण गुरु ने केरल में एषवा समुदाय के उत्थान के लिए मंदिर स्थापित किए और 'एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर' का नारा दिया। स्वतंत्रता संग्राम के साथ एकीकरण: राष्ट्रीय नेताओं, जैसे जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस, ने भी जाति प्रथा और अस्पृश्यता के खिलाफ आवाज उठाई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दलितों के उत्थान को अपने एजेंडे में शामिल किया।
कानूनी और संवैधानिक सुधार जाति अक्षमता निवारण अधिनियम, 1850: धर्म परिवर्तन के कारण दलितों से संपत्ति और उत्तराधिकार के अधिकार छीनने पर रोक। अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955: छुआछूत को अपराध घोषित किया गया, जिसमें मंदिरों, जल स्रोतों, और सार्वजनिक स्थानों में भेदभाव शामिल था। भारतीय संविधान (1950): अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता को गैरकानूनी घोषित किया गया। अनुच्छेद 15: जाति, धर्म, या लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक। अनुच्छेद 46: अनुसूचित जातियों (SCs) और जनजातियों (STs) के लिए शैक्षिक और आर्थिक उत्थान के प्रावधान। आरक्षण: शिक्षा और सरकारी नौकरियों में दलितों के लिए आरक्षण।
नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1976: 1955 के अधिनियम को और मजबूत किया, जिसमें दलितों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव को दंडनीय बनाया गया। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए सख्त प्रावधान। प्रमुख प्रभाव सामाजिक जागरूकता: इन आंदोलनों ने जाति प्रथा और अस्पृश्यता को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया और उच्च जातियों में सुधार की भावना पैदा की। दलित सशक्तीकरण: अम्बेडकर और अन्य नेताओं ने दलितों को शिक्षा, आत्म-सम्मान, और राजनीतिक भागीदारी का मार्ग दिखाया। कानूनी सुधार: संविधान और अन्य अधिनियमों ने दलितों को सामाजिक और आर्थिक अधिकार प्रदान किए। राष्ट्रीय एकता: इन आंदोलनों ने स्वतंत्रता संग्राम में सभी वर्गों को एकजुट करने में मदद की।
चुनौतियाँ रूढ़िवादी प्रतिरोध: उच्च जातियों ने सुधारों का विरोध किया, विशेषकर मंदिर प्रवेश और जल स्रोतों के उपयोग को लेकर। गांधी-अम्बेडकर मतभेद: गांधी का हिंदू धर्म के भीतर सुधार का दृष्टिकोण और अम्बेडकर का जाति उन्मूलन और धर्म परिवर्तन का रुख परस्पर विरोधी रहा। कार्यान्वयन की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो सका, और अस्पृश्यता आज भी कुछ रूपों में मौजूद है। आर्थिक असमानता: दलितों की आर्थिक स्थिति में सुधार सीमित रहा, जिसने सामाजिक समानता को प्रभावित किया।
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