communist party of india
jp Singh
2025-05-28 17:19:07
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भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी
भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) भारत में वामपंथी आंदोलन का एक प्रमुख संगठन है, जो मार्क्सवादी विचारधारा पर आधारित है। यह देश के सबसे पुराने राजनीतिक दलों में से एक है, जिसने श्रमिकों, किसानों और वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है।
गठन: स्थापना: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 26 दिसंबर 1925 को कानपुर में हुई थी। इसका प्रारंभिक गठन 1920 में ताशकंद (वर्तमान उज्बेकिस्तान) में मनबेंद्र नाथ रॉय (एम.एन. रॉय) और अन्य प्रवासी क्रांतिकारियों द्वारा किया गया था। प्रारंभिक नेतृत्व: एम.एन. रॉय, शहीद-ए-आजम भगत सिंह (जो बाद में अलग रास्ता चुने), और सचिंद्रनाथ सान्याल जैसे नेताओं ने इसके शुरुआती चरण में योगदान दिया। उद्देश्य: साम्राज्यवाद, पूँजीवाद, और सामंती शोषण के खिलाफ संघर्ष, सामाजिक समानता, और समाजवादी व्यवस्था की स्थापना। इतिहास और विकास: औपनिवेशिक काल (1925-1947): CPI ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, लेकिन इसका जोर वर्ग-संघर्ष और श्रमिक-किसान आंदोलनों पर था।
मेरठ षड्यंत्र केस (1929): ब्रिटिश सरकार ने CPI के 33 नेताओं पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया, जिसने पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में लाया। किसान और श्रमिक आंदोलन: CPI ने अखिल भारतीय किसान सभा (1936) और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) को मजबूत किया। तेभागा (1946-47) और तेलंगाना आंदोलन (1946-51) में इसकी अहम भूमिका रही। वैचारिक मतभेद: CPI ने शुरू में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के साथ सहयोग किया, लेकिन बाद में कांग्रेस की मध्यमवर्गीय नीतियों की आलोचना की। स्वतंत्रता के बाद (1947-1964): स्वतंत्रता के बाद, CPI ने जमींदारी उन्मूलन, भूमि सुधार, और श्रमिक अधिकारों पर ध्यान केंद्रित किया।
तेलंगाना आंदोलन (1946-51): CPI ने निजाम शासन और जमींदारों के खिलाफ सशस्त्र किसान विद्रोह का नेतृत्व किया, जो भारत में सबसे बड़े किसान आंदोलनों में से एक था। चुनावी राजनीति: CPI ने संसदीय लोकतंत्र में हिस्सा लिया और 1957 में केरल में दुनिया की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार बनाई, जिसका नेतृत्व ई.एम.एस. नंबूदरीपाद ने किया। विभाजन (1964): वैचारिक और रणनीतिक मतभेदों के कारण, CPI 1964 में विभाजित हो गई। एक धड़ा, जो अधिक क्रांतिकारी रुख अपनाता था, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPI(M)) के रूप में अलग हुआ। CPI ने सोवियत संघ के साथ निकटता बनाए रखी, जबकि CPI(M) ने अधिक स्वतंत्र और चीन-प्रेरित रुख अपनाया।
1964 के बाद: CPI ने केरल, पश्चिम बंगाल, और त्रिपुरा में अपनी उपस्थिति बनाए रखी, लेकिन इसका प्रभाव CPI(M) की तुलना में कम रहा। सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (CITU): CPI ने 1970 में CITU की स्थापना की, जो श्रमिकों के अधिकारों के लिए सक्रिय है। गठबंधन राजनीति: CPI ने कांग्रेस और अन्य गैर-भाजपा दलों के साथ गठबंधन किए, विशेषकर 1970-80 के दशक में और 2004-08 में यूपीए सरकार में समर्थन दिया। वर्तमान स्थिति: राजनीतिक प्रभाव: CPI का प्रभाव मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, और कुछ हद तक आंध्र प्रदेश और बिहार में है। यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीमित सीटें जीतता है।
आंदोलन: CPI किसान सभाओं (AIKS) और ट्रेड यूनियनों (CITU) के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), श्रमिक अधिकारों, और नए श्रम व कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनों में सक्रिय है। 2020-21 के किसान आंदोलन में इसकी भूमिका उल्लेखनीय थी। संगठनात्मक ढाँचा: CPI की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राज्य इकाइयाँ सक्रिय हैं। वर्तमान में डी. राजा इसके महासचिव हैं। योगदान: भूमि सुधार: CPI ने जमींदारी उन्मूलन और बटाईदारों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। शिक्षा और स्वास्थ्य: केरल में CPI की सरकारों ने सामाजिक कल्याण पर जोर दिया, जिसने राज्य को शिक्षा और स्वास्थ्य में अग्रणी बनाया।
वर्ग-संघर्ष: CPI ने श्रमिकों और किसानों को संगठित कर पूँजीवादी शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। चुनौतियाँ: प्रभाव में कमी: CPI(M) और अन्य दलों की तुलना में CPI का प्रभाव कम हुआ है, विशेषकर पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में। वैश्वीकरण: 1991 के आर्थिक सुधारों ने वामपंथी आंदोलनों को कमजोर किया। आंतरिक मतभेद: वैचारिक और रणनीतिक मतभेदों ने पार्टी को प्रभावित किया।
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jp Singh
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