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Formation of Kisan Sabhas
jp Singh 2025-05-28 17:11:45
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किसान सभाओ का गठन

किसान सभाओ का गठन
भारत में किसान सभाओं का गठन किसानों के अधिकारों, उनकी आर्थिक-सामाजिक समस्याओं और शोषण के खिलाफ संगठित संघर्ष के लिए किया गया। ये सभाएँ मुख्य रूप से 20वीं सदी में औपनिवेशिक शासन और जमींदारी प्रथा के खिलाफ शुरू हुईं। नीचे किसान सभाओं के गठन का संक्षिप्त विवरण दिया गया है
प्रारंभिक चरण और गठन
पृष्ठभूमि: औपनिवेशिक भारत में किसान जमींदारों, साहूकारों और ब्रिटिश शासन की कर नीतियों के कारण भारी शोषण का शिकार थे। लगान की ऊँची दरें, कर्ज का बोझ, और भूमि से बेदखली आम समस्याएँ थीं। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में किसानों ने स्थानीय स्तर पर विद्रोह शुरू किए, जैसे नील विद्रोह (1859-60) और पबना विद्रोह (1873)। ये विद्रोह असंगठित थे, लेकिन इन्होंने किसान संगठनों के लिए आधार तैयार किया। प्रारंभिक किसान सभाएँ: 1910-20 के दशक: प्रारंभिक किसान सभाएँ स्थानीय स्तर पर गठित हुईं। उदाहरण के लिए, बिहार में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने 1920 के दशक में किसान आंदोलनों को संगठित करना शुरू किया। 1928: बिहार प्रांतीय किसान सभा: स्वामी सहजानंद सरस्वती ने बिहार में पहली संगठित किसान सभा की स्थापना की। इसका उद्देश्य जमींदारी प्रथा, बेगारी, और अन्यायपूर्ण लगान के खिलाफ लड़ना था।
राष्ट्रीय स्तर पर गठन - अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS): 1936: अखिल भारतीय किसान सभा (All India Kisan Sabha) की स्थापना लखनऊ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के अधिवेशन के दौरान हुई। यह भारत में किसानों का पहला राष्ट्रीय संगठन था। नेतृत्व: स्वामी सहजानंद सरस्वती इसके पहले अध्यक्ष बने। अन्य प्रमुख नेता जैसे एन.जी. रंगा, ई.एम.एस. नंबूदरीपाद, और इंदुलाल याज्ञिक ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उद्देश्य: जमींदारी उन्मूलन, लगान में कमी, कर्ज माफी, और किसानों के लिए भूमि सुधार जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रमुख विकास और गतिविधियाँ: 1930-40 का दशक: किसान सभाएँ स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ीं। इन्होंने 'लगान बंदी' आंदोलन, तेलंगाना आंदोलन (1946-51), और तेभागा आंदोलन (1946-47) जैसे बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया। तेभागा आंदोलन (बंगाल): बटाईदारों (शेयरक्रॉपर) ने फसल का दो-तिहाई हिस्सा माँगा, जिसे किसान सभा ने संगठित किया।
स्वतंत्रता के बाद: 1950 के दशक में जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधारों के लिए दबाव डाला गया। अखिल भारतीय किसान सभा ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) के साथ मिलकर कई आंदोलन चलाए। वर्तमान में: अखिल भारतीय किसान सभा और अन्य क्षेत्रीय सभाएँ न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), कर्ज माफी, और कॉरपोरेट खेती के खिलाफ आंदोलनों में सक्रिय हैं। 2020-21 के किसान आंदोलन में इनका योगदान उल्लेखनीय रहा। महत्वपूर्ण किसान सभाएँ और संगठन: अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS): CPI से संबद्ध। भारतीय किसान यूनियन (BKU): 1970-80 के दशक में उत्तर भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सक्रिय। महेंद्र सिंह टिकैत इसका प्रमुख चेहरा रहे। किसान मजदूर सभा: कुछ क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर गठित। सम्युक्त किसान मोर्चा (SKM): 2020 के किसान आंदोलन में कई संगठनों का गठबंधन, जो नए कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ा।
चुनौतियाँ: किसान सभाओं को राजनीतिक दलों के प्रभाव, क्षेत्रीय असमानताओं, और आधुनिक कृषि नीतियों (जैसे कॉरपोरेट खेती) की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। छोटे और सीमांत किसानों को संगठित करना और उनकी आवाज को राष्ट्रीय स्तर पर उठाना मुश्किल रहा है।
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