Drain of Wealth
jp Singh
2025-05-28 13:50:54
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भरतीय धन की निकासी
भरतीय धन की निकासी
भारतीय धन का निष्कासन (Drain of Wealth) ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था से धन के व्यवस्थित हस्तांतरण को संदर्भित करता है, जिसे ब्रिटेन और इसके औपनिवेशिक प्रशासन के लाभ के लिए निकाला गया। इस अवधारणा को सबसे पहले भारतीय राष्ट्रवादी अर्थशास्त्री दादाभाई नौरोजी ने 19वीं सदी में अपनी पुस्तक Poverty and Un-British Rule in India (1901) में व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया। 1850 के आसपास यह प्रक्रिया अपने चरम पर थी, और यह भारत की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था का एक केंद्रीय पहलू थी।
धन के निष्कासन की परिभाषा
अर्थ: भारत से संपत्ति और संसाधनों का एकतरफा हस्तांतरण ब्रिटेन को, बिना भारत को कोई समान आर्थिक लाभ दिए। प्रमुख प्रस्तावक: दादाभाई नौरोजी, रमेश चंद्र दत्त, और बाद में अन्य राष्ट्रवादी नेताओं ने इसकी आलोचना की। प्रभाव: इसने भारत की आर्थिक समृद्धि को कमजोर किया, गरीबी बढ़ाई, और अकालों को गंभीर बनाया। धन के निष्कासन के प्रमुख रूप (1850 के संदर्भ में) भू-राजस्व और कर: ब्रिटिश सरकार ने जमींदारी, रैयतवाड़ी, और महालवाड़ी व्यवस्थाओं के माध्यम से भारी भू-राजस्व वसूला। 1850 के दशक में, भारत से वसूले गए कर का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटिश प्रशासन, सेना, और बुनियादी ढांचे (जैसे रेलवे) पर खर्च किया गया, जो मुख्य रूप से ब्रिटिश हितों को लाभ पहुंचाता था।
उदाहरण: बंगाल में जमींदारी व्यवस्था के तहत किसानों से उच्च कर वसूले गए, जो जमींदारों के माध्यम से ब्रिटिश खजाने में गए। अनाज और कच्चे माल का निर्यात: भारत से कपास, नील, जूट, अफीम, और चाय जैसे कच्चे माल को सस्ते दामों पर निर्यात किया गया। तैयार माल (जैसे ब्रिटिश कपड़ा) को भारत में उच्च कीमतों पर आयात किया गया, जिससे व्यापार असंतुलन पैदा हुआ। 1850 के संदर्भ में: अमेरिकी गृहयुद्ध (1861-65) से पहले भारत से कपास का निर्यात बढ़ा, लेकिन इसका लाभ भारतीय किसानों को नहीं, बल्कि ब्रिटिश व्यापारियों को हुआ। प्रभाव: स्थानीय खाद्य भंडार कम हुए, जिसने 1860-61 और 1866 जैसे अकालों को और गंभीर बनाया।
ब्रिटिश अधिकारियों के वेतन और पेंशन: ब्रिटिश प्रशासकों, सैन्य अधिकारियों, और कर्मचारियों के वेतन और पेंशन भारत से वसूले गए राजस्व से भुगतान किए गए। इनमें से कई अधिकारी अपनी बचत और पेंशन ब्रिटेन भेजते थे, जिससे भारत से धन का बहिर्गमन हुआ। अनुमान: दादाभाई नौरोजी ने अनुमान लगाया कि 19वीं सदी में भारत से प्रतिवर्ष 30-40 मिलियन पाउंड का निष्कासन हो रहा था। औपनिवेशिक खर्च: भारत से एकत्रित राजस्व का उपयोग ब्रिटिश सैन्य अभियानों (जैसे अफगान युद्ध, 1839-42) और औपनिवेशिक प्रशासन के लिए किया गया। रेलवे और नहरों जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण का खर्च भी भारत से ही वसूला गया, लेकिन इनका लाभ मुख्य रूप से ब्रिटिश व्यापारियों और प्रशासन को हुआ।
फीम व्यापार: 1850 के दशक में, भारत (विशेष रूप से बंगाल) से अफीम का बड़े पैमाने पर उत्पादन और निर्यात किया गया, जिसे ब्रिटिश व्यापारी चीन को बेचते थे (अफीम युद्धों का दौर)। इस व्यापार से होने वाला लाभ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश व्यापारियों को गया, जबकि भारतीय किसानों को न्यूनतम कीमत मिली। धन के निष्कासन का अनुमान दादाभाई नौरोजी ने तर्क दिया कि भारत की राष्ट्रीय आय का एक बड़ा हिस्सा (लगभग एक-तिहाई) ब्रिटेन को हस्तांतरित किया जा रहा था।
850 के दशक में, भारत से निर्यात (कपास, नील, अफीम) की तुलना में आयात (ब्रिटिश कपड़ा, मशीनरी) का मूल्य कम था, जिससे व्यापार घाटा बढ़ा। रमेश चंद्र दत्त ने अपनी पुस्तक Economic History of India में अनुमान लगाया कि 19वीं सदी के मध्य में भारत से प्रतिवर्ष लाखों पाउंड का निष्कासन हो रहा था। सामाजिक और आर्थिक प्रभाव गरीबी और कर्ज: धन के निष्कासन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर किया, क्योंकि किसानों को उच्च कर और साहूकारों के कर्ज का सामना करना पड़ा। भूमिहीनता बढ़ी, और छोटे किसान अपनी जमीन साहूकारों और जमींदारों के पास खो बैठे।
अकालों की गंभीरता: धन के निष्कासन ने भारत की आर्थिक क्षमता को कम किया, जिससे अकाल (जैसे 1860-61, 1866, 1876-78) के दौरान राहत कार्यों के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं हुए। अनाज निर्यात ने स्थानीय खाद्य आपूर्ति को और कम किया। हस्तशिल्प का पतन: ब्रिटिश मशीन-निर्मित माल के आयात ने भारतीय हस्तशिल्प उद्योग (जैसे ढाका का मलमल) को नष्ट किया, जिससे लाखों कारीगर बेरोजगार हो गए। यह धन के निष्कासन का अप्रत्यक्ष रूप था, क्योंकि भारत की औद्योगिक क्षमता को दबाया गया। राष्ट्रीय चेतना का उदय: धन के निष्कासन की अवधारणा ने भारतीय बुद्धिजीवियों और राष्ट्रवादियों के बीच औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ जागरूकता बढ़ाई। दादाभाई नौरोजी और अन्य नेताओं ने इसे ब्रिटिश संसद और जनता के सामने उठाया, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन को बल दिया।
1850 के संदर्भ में विशेष बिंदु
1857 का विद्रोह: धन का निष्कासन और आर्थिक शोषण 1857 के विद्रोह के प्रमुख कारणों में से एक था। भारी कर, हस्तशिल्प का पतन, और ग्रामीण गरीबी ने असंतोष को बढ़ाया।
रेलवे का प्रभाव: 1853 में शुरू हुए रेलवे ने कच्चे माल के निर्यात को तेज किया, जिससे धन का निष्कासन और बढ़ा।
नकदी फसलों का दबाव: नील और कपास जैसे फसलों की खेती ने किसानों को वैश्विक बाजारों पर निर्भर बनाया, और कीमतों में उतार-चढ़ाव ने उनकी आय को अस्थिर किया।
रिटिश तर्क और जवाब ब्रिटिश प्रशासकों ने तर्क दिया कि भारत में रेलवे, नहरें, और प्रशासनिक सुधारों से आर्थिक विकास हुआ। हालांकि, राष्ट्रवादी अर्थशास्त्रियों ने इस तर्क को खारिज किया, क्योंकि इन सुधारों का लाभ मुख्य रूप से ब्रिटिश हितों को हुआ, न कि भारतीय जनता को।
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