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Famines in British India
jp Singh 2025-05-28 13:45:40
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ब्रटिश भारत में अकाल

ब्रटिश भारत में अकाल
ब्रिटिश भारत में अकाल (Famines in British India) एक गंभीर और बार-बार होने वाली त्रासदी थी, जो औपनिवेशिक नीतियों, प्राकृतिक आपदाओं और सामाजिक-आर्थिक ढांचे की कमजोरियों का परिणाम थी। 1850 के आसपास और पूरे ब्रिटिश शासन (1757-1947) के दौरान कई बड़े अकाल पड़े, जिन्होंने लाखों लोगों की जान ली और भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला।
प्रमुख अकाल (1850 के आसपास और अन्य)
1770 का बंगाल अकाल (छियानवे का अकाल): हालांकि यह 1850 से पहले का है, यह ब्रिटिश भारत का पहला बड़ा अकाल था। कारण: सूखा, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की कर नीतियां, और अनाज की जमाखोरी। प्रभाव: बंगाल की लगभग एक-तिहाई आबादी (लगभग 1 करोड़ लोग) की मृत्यु। यह अकाल औपनिवेशिक शासन की शुरुआती नीतियों का परिणाम था। 1837-38 का दोआब और आगरा अकाल: उत्तर-पश्चिमी प्रांतों (आधुनिक उत्तर प्रदेश) में सूखे और फसल की विफलता के कारण। ब्रिटिश प्रशासन की राहत व्यवस्था अपर्याप्त थी, जिससे भारी जनहानि हुई।
षेत्र: दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, और राजपूताना। कारण: लगातार सूखा और नकदी फसलों पर जोर देने से खाद्यान्न की कमी। प्रभाव: लगभग 20 लाख लोगों की मृत्यु। ब्रिटिश राहत कार्य धीमे और अपर्याप्त थे। 1876-78 का महान अकाल (दक्षिण भारत): क्षेत्र: मद्रास प्रेसीडेंसी, मैसूर, और बॉम्बे प्रेसीडेंसी। कारण: मॉनसून की विफलता और निर्यात-केंद्रित कृषि नीतियां। प्रभाव: अनुमानित 55-80 लाख लोग मरे। इस अकाल को "महान अकाल" कहा गया।
ब्रिटिश नीतियां, जैसे अनाज निर्यात को जारी रखना, ने स्थिति को और बदतर बनाया। 1896-97 और 1899-1900 के अकाल: क्षेत्र: उत्तर-पश्चिमी प्रांत, मध्य प्रांत, और बॉम्बे प्रेसीडेंसी। कारण: सूखा, उच्च कर, और खाद्य भंडारण की कमी। प्रभाव: लाखों लोग मरे, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा गई।
अकाल के कारण औपनिवेशिक नीतियां: नकदी फसलों पर जोर: नील, कपास, और अफीम जैसी फसलों की खेती को बढ़ावा दिया गया, जिससे खाद्यान्न उत्पादन कम हुआ। भारी कर: जमींदारी और रैयतवाड़ी व्यवस्थाओं में उच्च भू-राजस्व ने किसानों को कर्ज में डुबोया। अनाज निर्यात: अकाल के दौरान भी ब्रिटिश प्रशासन ने अनाज निर्यात जारी रखा, जिससे स्थानीय खाद्य आपूर्ति कम हुई। रेलवे का दुरुपयोग: रेलवे का उपयोग अनाज को बंदरगाहों तक ले जाने के लिए किया गया, न कि राहत सामग्री वितरण के लिए।
प्राकृतिक कारण: मॉनसून की अनियमितता और लगातार सूखा। फसल रोग और कीटों का प्रभाव। सामाजिक-आर्थिक कारक: साहूकारों पर निर्भरता और कर्ज का बोझ। ग्रामीण क्षेत्रों में भंडारण और वितरण प्रणाली की कमी। सामाजिक असमानता, जिसने निम्न वर्गों को सबसे अधिक प्रभावित किया।
ब्रिटिश प्रतिक्रिया
ब्रिटिश प्रतिक्रिया अकाल कोड (Famine Codes): 1880 के दशक में अकाल कोड लागू किए गए, जो राहत कार्यों के लिए दिशानिर्देश थे। लेकिन ये अक्सर अपर्याप्त और देर से लागू हुए। राहत कार्य: कुछ क्षेत्रों में राहत शिविर और खाद्य वितरण शुरू किया गया, लेकिन यह सीमित और भेदभावपूर्ण था। उपेक्षा: कई मामलों में, ब्रिटिश प्रशासन ने अकाल को "प्राकृतिक आपदा" बताकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।
प्रभाव जनहानि: लाखों लोग मरे, और कई गांव उजड़ गए। आर्थिक पतन: ग्रामीण अर्थव्यवस्था कमजोर हुई, और किसान कर्ज में डूब गए। सामाजिक अशांति: अकाल ने असंतोष को जन्म दिया, जो बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देगा। खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: नकदी फसलों पर जोर ने दीर्घकालिक खाद्य असुरक्षा को बढ़ाया।
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