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Moplah Rebellion
jp Singh 2025-05-28 13:24:38
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मोपला विद्रोह अगस्त 1921 से फरवरी 1922 तक

मोपला विद्रोह अगस्त 1921 से फरवरी 1922 तक
मोपला विद्रोह (Moplah Rebellion), जिसे मालाबार विद्रोह (Malabar Rebellion) के नाम से भी जाना जाता है, 1921 में दक्षिण भारत के मालाबार क्षेत्र (वर्तमान केरल) में हुआ एक महत्वपूर्ण जन-आंदोलन था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और स्थानीय जमींदारों के खिलाफ मोपला (मुस्लिम किसानों) समुदाय द्वारा शुरू किया गया था, जो बाद में सांप्रदायिक रंग लेने के कारण विवादास्पद बन गया। यह आंदोलन खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन से भी जुड़ा था।
मुख्य बिंदु: स्थान: मालाबार क्षेत्र, विशेष रूप से एर्नाड और वलुवनद तालुक (वर्तमान मलप्पुरम और कोझिकोड जिले, केरल)। समय: अगस्त 1921 से फरवरी 1922 तक। पृष्ठभूमि: मोपला (मप्पिला) समुदाय मुख्य रूप से मालाबार के मुस्लिम किसान और किरायेदार थे, जो ज्यादातर हिंदू जमींदारों (जेनमी) के अधीन खेती करते थे। ब्रिटिश शासन ने जमींदारी प्रथा को और मजबूत किया, जिसके तहत जेनमी (जमींदार) किसानों से भारी लगान वसूलते थे और उन्हें बेदखल करने का अधिकार रखते थे। प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के बाद आर्थिक संकट, बढ़ती कीमतें, और खाद्य कमी ने किसानों की स्थिति को और खराब कर दिया।
खिलाफत आंदोलन (1919-24) ने मोपला समुदाय को प्रभावित किया, जो तुर्की के खलीफा की स्थिति को बचाने के लिए शुरू हुआ था। इसने धार्मिक उत्साह को बढ़ाया। असहयोग आंदोलन (1920-22) के तहत महात्मा गांधी और कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक विरोध को प्रोत्साहित किया, जिसने मोपला किसानों को प्रेरित किया।
कारण: आर्थिक शोषण: जमींदारों द्वारा भारी लगान और अवैध कर (जैसे नजराना) वसूलना। किसानों को उनकी जमीन से बेदखल करने की धमकी और जबरन बेगारी। साहूकारों द्वारा कर्ज का शोषण, जिसने किसानों को कर्ज के जाल में फँसाया। सामाजिक और धार्मिक असंतोष: मोपला समुदाय में जमींदारों (ज्यादातर हिंदू) के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा था, क्योंकि वे ब्रिटिश प्रशासन के समर्थन से शक्तिशाली हो गए थे। खिलाफत आंदोलन ने मोपला समुदाय में धार्मिक जोश भरा, जिसे कुछ नेताओं ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ इस्तेमाल किया।
राजनीतिक प्रेरणा: खिलाफत और असहयोग आंदोलनों ने मोपला किसानों को संगठित होने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया। स्थानीय नेताओं, जैसे अली मुस्लियार, वरियामकुन्नथ कुंजाहमद हाजी, और सीत कोया तंगाल, ने आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। पिछले विद्रोहों का प्रभाव: मालाबार में 19वीं सदी में मोपला समुदाय द्वारा कई छोटे-मोटे विद्रोह (1836-1919) हुए थे, जो जमींदारों और ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ थे। ये विद्रोह 1921 के बड़े विद्रोह का आधार बने।
घटनाक्रम: शुरुआत: अगस्त 1921 में, ब्रिटिश अधिकारियों ने खिलाफत आंदोलन के नेताओं को गिरफ्तार करने की कोशिश की, जिसके जवाब में मोपला किसानों ने विद्रोह शुरू कर दिया। 20 अगस्त 1921 को, तिरुरंगडी में पुलिस और विद्रोहियों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसने विद्रोह को भड़का दिया। प्रसार: विद्रोह एर्नाड, वलुवनद, और पोन्नानी तालुकों में फैल गया। विद्रोहियों ने पुलिस स्टेशनों, सरकारी कार्यालयों, और जमींदारों की हवेलियों पर हमले किए। विद्रोहियों ने रेलवे लाइनों और संचार व्यवस्था को नुकसान पहुँचाया और कुछ क्षेत्रों में अस्थायी रूप से नियंत्रण स्थापित किया।
वरियामकुन्नथ कुंजाहमद हाजी ने "खिलाफत राज" की घोषणा की और एक समानांतर प्रशासन चलाने की कोशिश की। सांप्रदायिक रंग: शुरुआत में यह आंदोलन जमींदारों और ब्रिटिश शासन के खिलाफ था, लेकिन कुछ मामलों में यह सांप्रदायिक हो गया। मोपला विद्रोहियों ने कुछ हिंदू जमींदारों और उनके समर्थकों पर हमले किए, जिससे हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ा। कुछ हिंदुओं को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने की घटनाएँ भी दर्ज की गईं, जिसने आंदोलन को विवादास्पद बना दिया।
हिंसा और दमन: विद्रोहियों ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मालाबार स्पेशल पुलिस और सैन्य बलों को तैनात कर विद्रोह को दबाने की कोशिश की। वागन ट्रेजेडी (10 नवंबर 1921): विद्रोहियों को ले जा रही एक ट्रेन में 66 मोपला कैदियों की दम घुटने से मृत्यु हो गई, जिसने ब्रिटिश क्रूरता को उजागर किया। फरवरी 1922 तक विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया गया। अली मुस्लियार को फाँसी दी गई, और कुंजाहमद हाजी को गोली मार दी गई।
परिणाम: हानि: हजारों लोग मारे गए (आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 2,339 विद्रोही मारे गए, लेकिन वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है)। लगभग 10,000 लोग गिरफ्तार किए गए, और कई को अंडमान जेल भेजा गया। सांप्रदायिक प्रभाव: विद्रोह के सांप्रदायिक रंग ने हिंदू-मुस्लिम एकता को नुकसान पहुँचाया, जिसका असर खिलाफत और असहयोग आंदोलनों पर भी पड़ा। कांग्रेस के कुछ नेताओं, जैसे गांधी, ने हिंसा की निंदा की, जिससे खिलाफत आंदोलन से समर्थन कम हुआ।
कानूनी सुधार: ब्रिटिश सरकार ने मालाबार में जमींदारी प्रथा की जाँच की और मालाबार टेनेंसी एक्ट (1930) पारित किया, जिसने किरायेदारों को कुछ राहत दी। विद्रोह ने जमींदारों की शक्ति को कम करने में मदद की। राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम: मोपला विद्रोह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन-आक्रोश को दर्शाया और स्वतंत्रता संग्राम में किसानों की भूमिका को उजागर किया। हालांकि, सांप्रदायिक हिंसा के कारण इसकी छवि विवादास्पद रही।
महत्व: किसान प्रतिरोध: मोपला विद्रोह ने किसानों और किरायेदारों के शोषण के खिलाफ संगठित प्रतिरोध को दर्शाया। खिलाफत और असहयोग आंदोलन से संबंध: यह राष्ट्रीय आंदोलनों का हिस्सा था, लेकिन इसकी हिंसक प्रकृति ने गांधीवादी अहिंसक सिद्धांतों से दूरी बनाई। विवाद: कुछ इतिहासकार इसे किसान विद्रोह मानते हैं, जबकि अन्य इसे सांप्रदायिक हिंसा के रूप में देखते हैं। इसकी व्याख्या आज भी बहस का विषय है। तुलना (पाइक, फकीर, रंपा, मुंडा, नील, पाबना, दक्कन, और अवध किसान सभा से): पाइक विद्रोह (1817): सैन्य विद्रोह, ब्रिटिश प्रशासन और स्थानीय शक्ति हस्तक्षेप के खिलाफ, जबकि मोपला विद्रोह जमींदारों और ब्रिटिश दोनों के खिलाफ था। फकीर विद्रोह (1760-1800): धार्मिक समुदायों द्वारा गुरिल्ला युद्ध, जबकि मोपला विद्रोह में धार्मिक और आर्थिक दोनों तत्व थे।
पा विद्रोह (1879, 1922-24): आदिवासी विद्रोह, जंगल अधिकारों के लिए, जबकि मोपला विद्रोह किसानों और किरायेदारों का था। मुंडा विद्रोह (1899-1900): आदिवासी और धार्मिक पुनर्जनन पर आधारित, जबकि मोपला विद्रोह में खिलाफत आंदोलन का प्रभाव था। नील आंदोलन (1859-60): नील बागान मालिकों के खिलाफ, शांतिपूर्ण और आर्थिक, जबकि मोपला विद्रोह हिंसक और सांप्रदायिक रंग वाला था। पाबना विद्रोह (1873-76): शांतिपूर्ण और कानूनी, जमींदारों के खिलाफ, जबकि मोपला विद्रोह हिंसक और ब्रिटिश विरोधी था।
दक्कन दंगे (1875): साहूकारों के खिलाफ हिंसक, लेकिन मोपला विद्रोह में धार्मिक और राष्ट्रीय तत्व अधिक थे। अवध किसान सभा (1918-22): जमींदारों के खिलाफ, शांतिपूर्ण और गांधीवादी प्रभाव में, जबकि मोपला विद्रोह हिंसक और खिलाफत आंदोलन से प्रेरित था।
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