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Munda Rebellion
jp Singh 2025-05-28 13:13:54
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मुंडा विद्रोह

मुंडा विद्रोह
मुंडा विद्रोह, जिसे मुंडा उलगुलान (Munda Ulgulan, अर्थात् "महान विद्रोह") के नाम से भी जाना जाता है, 1899-1900 में छोटानागपुर क्षेत्र (वर्तमान झारखंड) में मुंडा आदिवासियों द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और उनके शोषणकारी नीतियों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सशस्त्र विद्रोह था। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक प्रमुख आदिवासी आंदोलन माना जाता है।
मुख्य बिंदु: नेतृत्व: बिरसा मुंडा, जिन्हें "धरती आबा" (पृथ्वी के पिता) के रूप में जाना जाता है, ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया। वे एक करिश्माई नेता, धार्मिक सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। समय और स्थान: 1899-1900, छोटानागपुर पठार, विशेष रूप से रांची, खूँटी, और तमाड़ क्षेत्र (वर्तमान झारखंड)। पृष्ठभूमि: मुंडा आदिवासी छोटानागपुर के मूल निवासी थे और उनकी आजीविका खेती, जंगल और सामुदायिक भूमि पर निर्भर थी। ब्रिटिश शासन ने स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) और जमींदारी प्रथा लागू की, जिसके तहत आदिवासियों की सामुदायिक भूमि को जमींदारों और बाहरी लोगों ("दिकू") को दे दिया गया।
बेगारी (जबरन मजदूरी) और भारी करों ने मुंडाओं को अपनी जमीन और आजीविका से वंचित कर दिया। जंगल कानूनों ने आदिवासियों के जंगल संसाधनों पर पारंपरिक अधिकार छीन लिए। ईसाई मिशनरियों के प्रभाव ने कुछ मुंडाओं में सांस्कृतिक और धार्मिक असंतोष को बढ़ाया। कारण: आर्थिक शोषण: ब्रिटिश राजस्व नीतियों और जमींदारों द्वारा भूमि हड़पने से मुंडाओं की खेती और आजीविका नष्ट हो रही थी। दिकू (बाहरी व्यापारी और साहूकार) द्वारा कर्ज और ब्याज का शोषण। सांस्कृतिक और धार्मिक असंतोष: बिरसा मुंडा ने "बिरसाइट आंदोलन" शुरू किया, जिसमें उन्होंने मुंडाओं को अपनी परंपरागत धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को पुनर्जनन करने का आह्वान किया। उन्होंने "अबुआ दिशोम, अबुआ राज" (हमारा देश, हमारा शासन) का नारा दिया, जो स्वशासन और स्वतंत्रता का प्रतीक था।
जंगल पर अधिकारों का हनन: ब्रिटिश वन अधिनियमों ने आदिवासियों को जंगल में लकड़ी, फल और अन्य संसाधनों के उपयोग से वंचित कर दिया। जमींदारी प्रथा: जमींदारों और ठेकेदारों ने मुंडाओं की जमीन पर कब्जा कर लिया, जिससे सामाजिक और आर्थिक असमानता बढ़ी। घटनाक्रम: शुरुआत: बिरसा मुंडा ने 1895 में धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलन शुरू किया, जिसे बाद में सशस्त्र विद्रोह में बदल दिया। 1899 में विद्रोह पूर्ण रूप से शुरू हुआ। रणनीति: बिरसा ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई, जिसमें तीर-कमान और पारंपरिक हथियारों का उपयोग किया गया। विद्रोहियों ने जमींदारों, दिकुओं और ब्रिटिश अधिकारियों के ठिकानों पर हमले किए।
4 दिसंबर 1899 को खूँटी में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर विद्रोहियों ने पुलिस और मिशनरी ठिकानों को निशाना बनाया। प्रमुख हमले: तमाड़, खूँटी, और रांची के आसपास के क्षेत्रों में विद्रोहियों ने जमींदारों की संपत्ति और ब्रिटिश चौकियों पर हमले किए। बिरसा ने मुंडाओं को संगठित कर ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने और स्वशासन स्थापित करने का आह्वान किया।
परिणाम: दमन: ब्रिटिश सरकार ने भारी सैन्य बल भेजा, जिसमें सशस्त्र पुलिस और सेना शामिल थी। फरवरी 1900 में बिरसा मुंडा को जामकोपाई जंगल (चक्रधरपुर) से गिरफ्तार कर लिया गया। 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा की रांची जेल में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई (संभवतः हैजा या जहर से)। प्रभाव: विद्रोह को दबा दिया गया, लेकिन इसने आदिवासी एकता और ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध को प्रेरित किया। ब्रिटिश सरकार को मजबूरन छोटानागपुर क्षेत्र में कुछ सुधार करने पड़े, जैसे छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (1908), जिसने आदिवासियों की जमीन को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर रोक लगाई।
मृत्यु और गिरफ्तारी: सैकड़ों मुंडा विद्रोहियों को गिरफ्तार किया गया, और कई को फाँसी या जेल की सजा दी गई। लगभग 450 लोग मारे गए या घायल हुए। महत्व: आदिवासी जागृति: बिरसा मुंडा ने मुंडा समुदाय में सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक चेतना जगाई। उनके नेतृत्व ने आदिवासियों को उनके अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान: मुंडा विद्रोह को भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, क्योंकि यह औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संगठित प्रतिरोध था। सांस्कृतिक प्रभाव: बिरसा मुंडा आज भी झारखंड और भारत के अन्य हिस्सों में आदिवासी नायक के रूप में पूजे जाते हैं। उनकी जयंती (15 नवंबर) को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है।
विरासत: रांची हवाई अड्डा और कई संस्थानों का नाम बिरसा मुंडा के नाम पर रखा गया है। 2021 में, भारत सरकार ने उनकी 125वीं जयंती पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए।
बिरसा मुंडा का योगदान: धार्मिक सुधार: बिरसा ने मुंडा धर्म को पुनर्जनन किया और अंधविश्वासों, जैसे भूत-प्रेत और बलि प्रथा, को समाप्त करने की कोशिश की। राजनीतिक चेतना: उन्होंने मुंडाओं को ब्रिटिश शासन और दिकुओं के खिलाफ एकजुट किया और स्वशासन का सपना दिखाया।
गुरिल्ला युद्ध: उनकी रणनीति ने बाद के स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रभावित किया।
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