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Rampa rebellion
jp Singh 2025-05-28 13:11:17
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रंपा विद्रोह (1879)

रंपा विद्रोह (1879)
रंपा विद्रोह (Rampa Rebellion) भारत के इतिहास में दो महत्वपूर्ण आदिवासी विद्रोहों को संदर्भित करता है, जो आंध्र प्रदेश के गोदावरी क्षेत्र (वर्तमान में अल्लूरी सीताराम राजू जिला) में हुए। ये विद्रोह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ थे। पहला विद्रोह 1879 में और दूसरा 1922-24 में हुआ। मैं दोनों का संक्षेप में वर्णन करता हूँ:
1. रंपा विद्रोह (1879
पृष्ठभूमि: यह विद्रोह विशाखापट्टनम के रंपा क्षेत्र (विजागपटम हिल ट्रैक्ट्स) में हुआ, जहाँ कोया और कोंडा रेड्डी जैसे आदिवासी समुदाय रहते थे। ये समुदाय अपनी स्वतंत्र जीवनशैली के लिए जाने जाते थे और स्थानीय जमींदारों को नियमित कर (टैक्स) देते थे। नेतृत्व: तम्मन्ना डोरा, एक कोया मुट्टादार (गाँव का मुखिया), ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया। कारण: ब्रिटिश प्रशासन द्वारा लगाए गए भारी कर और जमींदारों की शोषणकारी नीतियाँ। 1879 में ताड़ी (पाम वाइन) पर अतिरिक्त कर और ताड़ी निकालने पर प्रतिबंध, जो आदिवासियों की संस्कृति का हिस्सा था। ब्रिटिश द्वारा नियुक्त जमींदार, जो एक अवैध उत्तराधिकारी था, की अत्याचारी नीतियाँ।
घटनाक्रम: मार्च 1879 में विद्रोह शुरू हुआ, जब आदिवासियों ने चोडावरम तालुक में पुलिस स्टेशनों पर हमले किए। विद्रोह गोलकोंडा पहाड़ियों और भद्राचलम तालुक तक फैल गया। तम्मन्ना डोरा ने चोडावरम पुलिस स्टेशन पर कब्जा किया और पुलिसकर्मियों को बंधक बनाया। परिणाम: ब्रिटिश सरकार ने भारी सैन्य बल भेजा, जिसमें मद्रास पैदल सेना, घुड़सवार सेना और हैदराबाद सेना शामिल थी। विद्रोह को दबा दिया गया, और कई विद्रोहियों को अंडमान जेल भेजा गया। तम्मन्ना डोरा की मृत्यु पुलिस मुठभेड़ में हुई, लेकिन वह स्थानीय किंवदंती बन गया। महत्व: यह विद्रोह आदिवासियों की स्वायत्तता और संस्कृति को बचाने की लड़ाई का प्रतीक था।
2. रंपा विद्रोह (1922-24)
पृष्ठभूमि: इसे मन्यम विद्रोह (Manyam Rebellion) भी कहा जाता है। यह गोदावरी एजेंसी के रंपा क्षेत्र में हुआ, जहाँ लगभग 28,000 आदिवासी (मुख्य रूप से कोया और कोंडा रेड्डी) रहते थे। नेतृत्व: अल्लूरी सीताराम राजू, जिन्हें "मन्यम वीरुडु" (जंगल का वीर) कहा जाता है, ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया। कारण: 1882 का मद्रास वन अधिनियम: इसने आदिवासियों की पारंपरिक पोडु खेती (शिफ्टिंग कल्टिवेशन) और जंगल में स्वतंत्र आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे उनकी आजीविका खतरे में पड़ गई।
ब्रिटिश द्वारा जंगल का व्यावसायिक उपयोग (रेलवे और जहाज निर्माण के लिए लकड़ी) और आदिवासियों को सड़क निर्माण में जबरन मजदूरी के लिए मजबूर करना। जमींदारों और व्यापारियों के पक्ष में ब्रिटिश कानूनी व्यवस्था, जिसने आदिवासियों और मुट्टादारों (कर संग्राहक) को हाशिए पर धकेल दिया। घटनाक्रम: अगस्त 1922 में शुरू हुआ यह विद्रोह मई 1924 तक चला। अल्लूरी सीताराम राजू ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई, जिसमें तीर-कमान, भाले और स्थानीय इलाके की जानकारी का उपयोग किया गया। उन्होंने चिंतापल्ली, कृष्णादेवीपेटा, और राजवोम्मंगी जैसे पुलिस स्टेशनों पर हमले किए, हथियार और गोला-बारूद लूटे। राजू ने गैर-सहयोग आंदोलन और स्वराज के विचारों को आदिवासियों में फैलाया।
परिणाम: ब्रिटिश ने मलाबार स्पेशल पुलिस और गुरखा सैनिकों को तैनात किया, और राजू के सिर पर 10,000 रुपये का इनाम रखा। 7 मई 1924 को राजू को पकड़ लिया गया, एक पेड़ से बाँधकर गोली मार दी गई। विद्रोह को दबा दिया गया, लेकिन इसने आदिवासियों की शक्ति और ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ उनके गुस्से को प्रदर्शित किया। महत्व: अल्लूरी सीताराम राजू आज भी आंध्र प्रदेश में एक लोक नायक हैं, और उनकी जयंती (4 जुलाई) को राज्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। 2022 में विद्रोह की शताब्दी पर दो विशेष डाक टिकट जारी किए गए।
इस विद्रोह ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी योगदान को उजागर किया और फिल्म RRR के लिए प्रेरणा बनी। तुलना: 1879 का विद्रोह: स्थानीय मुट्टादारों और आदिवासियों का ब्रिटिश समर्थित जमींदारों और ताड़ी कर के खिलाफ विद्रोह। यह अधिक स्थानीय और छोटे पैमाने पर था। 1922-24 का विद्रोह: अधिक संगठित, राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित, और गुरिल्ला युद्ध पर केंद्रित। यह 1882 के वन अधिनियम के खिलाफ था और इसका प्रभाव व्यापक था।
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