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Fakir Rebellion (1760–1800)
jp Singh 2025-05-28 13:08:05
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फकीर विद्रोह (1760-1800)

फकीर विद्रोह (1760-1800)
फकीर विद्रोह, जिसे सन्यासी-फकीर विद्रोह के रूप में भी जाना जाता है, 18वीं शताब्दी के अंत में (लगभग 1760-1800) बंगाल और बिहार में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ हुआ था। यह विद्रोह हिंदू सन्यासियों और मुस्लिम फकीरों (सूफी संतों) ने मिलकर किया था।
मुख्य बिंदु: नेतृत्व: मजनू शाह (मदारिपंथी फकीर), भवानी पाठक, और देवी चौधरानी प्रमुख नेता थे। कारण: ब्रिटिश राजस्व नीतियों, विशेषकर भारी करों और ज़मींदारों पर दबाव के कारण असंतोष। सन्यासियों और फकीरों पर लगाए गए तीर्थयात्रा कर और उनके परंपरागत दान पर प्रतिबंध। 1770 के बंगाल अकाल ने स्थिति को और बदतर किया, जिससे किसानों और धार्मिक समुदायों में गुस्सा भड़का। विस्तार: यह विद्रोह उत्तरी बंगाल, बिहार, और बोगरा-मैमनसिंह क्षेत्रों तक फैला। विद्रोहियों ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई और ब्रिटिश ठिकानों पर छापे मारे।
रोह लंबे समय तक चला, लेकिन 19वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश सेना ने इसे दबा दिया। मजनू शाह की मृत्यु के बाद चिराग अली शाह ने नेतृत्व संभाला। इस विद्रोह ने हिंदू-मुस्लिम एकता का उदाहरण पेश किया। सांस्कृतिक प्रभाव: बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का उपन्यास आनंदमठ (1882) इसी विद्रोह से प्रेरित था। महत्व: यह विद्रोह ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रारंभिक प्रतिरोध का प्रतीक था और इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक शुरुआती चरण माना जाता है।
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