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Wahhabi revolt (1820–1870)
jp Singh 2025-05-28 13:06:05
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वहाबी विद्रोह (1820-1870)

वहाबी विद्रोह (1820-1870)
ऐसा प्रतीत होता है कि आपने "बहावी विद्रोह" का उल्लेख किया है, जो संभवतः वहाबी विद्रोह (Wahabi Revolt) का गलत उच्चारण या टाइपो हो सकता है। वहाबी विद्रोह (1820-1870) भारत में एक महत्वपूर्ण इस्लामी पुनरुत्थानवादी और ब्रिटिश-विरोधी आंदोलन था, जिसका नेतृत्व सैयद अहमद बरेलवी ने किया था। यह आंदोलन मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम भारत, विशेष रूप से पटना (बिहार) और उत्तर-पश्चिम सीमांत क्षेत्र में सक्रिय था। यदि आप किसी अन्य विद्रोह की बात कर रहे हैं, तो कृपया अधिक विवरण प्रदान करें। मैं यहाँ वहाबी विद्रोह के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहा हूँ, क्योंकि यह आपके प्रश्न से सबसे अधिक मेल खाता है।
वहाबी विद्रोह (1820-1870) प्रमुख बिंदु: पृष्ठभूमि: उद्देश्य: वहाबी आंदोलन की शुरुआत सैयद अहमद बरेलवी ने 1820 में एक इस्लामी पुनरुत्थानवादी आंदोलन के रूप में की थी। इसका लक्ष्य इस्लाम को उसकी मूल शुद्धता में पुनर्स्थापित करना था, जैसा कि पैगंबर मुहम्मद के समय में था, और गैर-इस्लामी प्रथाओं (बिदअत) का विरोध करना था।
ब्रिटिश विरोध: समय के साथ, यह आंदोलन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक सशस्त्र प्रतिरोध में बदल गया, क्योंकि सैयद अहमद ने ब्रिटिश शासन को इस्लामी शासन के लिए खतरा माना। आंदोलन का लक्ष्य भारत में मुस्लिम शासन को पुनर्स्थापित करना था। क्षेत्र: यह आंदोलन मुख्य रूप से पटना (बिहार) में केंद्रित था, लेकिन इसका प्रभाव उत्तर-पश्चिम सीमांत क्षेत्र (वर्तमान खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान), बंगाल, और मध्य भारत में फैला। आर्थिक और सामाजिक कारण: ब्रिटिशों की भू-राजस्व नीतियाँ, कर वृद्धि, और किसानों पर अत्याचार ने निम्न वर्गों, विशेषकर मुस्लिम किसानों, को इस आंदोलन से जोड़ा। समय के साथ, कई हिंदू किसान भी इस आंदोलन में शामिल हो गए, जिसने इसे एक व्यापक जन-आंदोलन का रूप दिया।
नेतृत्व और प्रारंभ: सैयद अहमद बरेलवी: आंदोलन के संस्थापक, जिन्होंने 1826 में उत्तर-पश्चिम सीमांत क्षेत्र में सिख शासक रणजीत सिंह और ब्रिटिशों के खिलाफ जिहाद की घोषणा की। अन्य नेता: सैयद अहमद की मृत्यु (1831) के बाद, विलायत अली, इनायत अली, अब्दुल्ला, और अन्य ने आंदोलन का नेतृत्व किया। प्रारंभ: 1826 में, सैयद अहमद ने अपने अनुयायियों को संगठित कर उत्तर-पश्चिम सीमांत में एक आधार स्थापित किया। उन्होंने स्थानीय पठानों और अन्य जनजातियों को अपने साथ जोड़ा। विद्रोह का स्वरूप: सशस्त्र जिहाद: वहाबी आंदोलन ने सिखों और ब्रिटिशों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष शुरू किया। सैयद अहमद ने 1826 में सिखों के खिलाफ युद्ध छेड़ा और 1831 में बालाकोट की लड़ाई में सिख सेना द्वारा मारा गया।
गुरिल्ला रणनीति: विद्रोहियों ने उत्तर-पश्चिम सीमांत के पहाड़ी क्षेत्रों में गुरिल्ला युद्ध लड़ा, जिससे ब्रिटिशों के लिए इसे दबाना मुश्किल हो गया। 1857 का योगदान: 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में वहाबियों ने प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया, लेकिन उन्होंने लोगों को ब्रिटिशों के खिलाफ भड़काने और वातावरण तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किसान आंदोलन में परिवर्तन: बाद में, यह आंदोलन मुख्य रूप से किसानों और निम्न वर्गों के शोषण के खिलाफ एक सामाजिक-आर्थिक आंदोलन बन गया।
ब्रिटिशों ने वहाबी आंदोलन को कुचलने के लिए बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान चलाए। 1860 के दशक में, ब्रिटिशों ने इसे "गद्दार" और "विद्रोही" करार दिया और व्यापक दमन नीति अपनाई। 1870 तक, आंदोलन को पूरी तरह दबा दिया गया, और इसके कई नेता गिरफ्तार या मार दिए गए। ब्रिटिशों ने पटना और अन्य क्षेत्रों में वहाबी केंद्रों पर छापे मारे और उनके संगठन को नष्ट कर दिया। महत्व: वहाबी विद्रोह को 1857 के विद्रोह से पहले का सबसे संगठित और लंबे समय तक चलने वाला आंदोलन माना जाता है। इसने धार्मिक पुनरुत्थान के साथ-साथ ब्रिटिश-विरोधी भावना को बढ़ावा दिया और बाद के स्वतंत्रता आंदोलनों के लिए प्रेरणा प्रदान की।
शिकायतों को जोड़ने में अद्वितीय था, क्योंकि इसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय शामिल थे। तुलना (पिछले पूछे गए विद्रोहों के साथ): आपने पहले कोल, कच्छ, बघेरा, रामोसी, गड़करी, वेलुथम्पी, सूरत नमक, और पॉलीगार विद्रोहों के बारे में पूछा था। यहाँ वहाबी विद्रोह की तुलना
समानताएँ: सभी विद्रोह ब्रिटिश शासन की शोषणकारी नीतियों (कर, भूमि हड़पना, हस्तक्षेप) के खिलाफ थे। वहाबी, पॉलीगार, और वेलुथम्पी विद्रोह संगठित और सशस्त्र थे, जिनमें स्थानीय नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका थी। सूरत नमक विद्रोह की तरह, वहाबी विद्रोह भी आर्थिक शिकायतों से प्रेरित था, लेकिन इसका धार्मिक आधार इसे विशिष्ट बनाता है।
अंतर: वहाबी विद्रोह का धार्मिक और इस्लामी पुनरुत्थानवादी आधार था, जबकि कोल, बघेरा, और रामोसी जैसे विद्रोह मुख्य रूप से आदिवासी और आर्थिक थे। यह विद्रोह लंबे समय (1820-1870) तक चला, जबकि सूरत नमक विद्रोह (1844) और गड़करी विद्रोह (1844) छोटी अवधि के थे। वहाबी आंदोलन ने उत्तर-पश्चिम और पूर्वी भारत को प्रभावित किया, जबकि पॉलीगार और वेलुथम्पी विद्रोह दक्षिण भारत में केंद्रित थे।
वर्तमान प्रासंगिकता: वहाबी विद्रोह को भारत में ब्रिटिश-विरोधी आंदोलनों और इस्लामी सुधार आंदोलनों के इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है। सैयद अहमद बरेलवी को उत्तर भारत में एक धार्मिक और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है। इस आंदोलन ने 19वीं सदी के धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों को प्रभावित किया।
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