Revolt of Polygar
jp Singh
2025-05-28 13:04:33
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पॉलीगारों का विद्रोह (1799-1805)
पॉलीगारों का विद्रोह (1799-1805)
पॉलीगारों का विद्रोह (1799-1805), जिसे पलायमकार युद्ध या पॉलीगर युद्ध के नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु के तिरुनेलवेली और मदुरै क्षेत्रों में पॉलीगारों (पलायमकारों) द्वारा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ किया गया एक सशस्त्र विद्रोह था। पॉलीगार विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद दक्षिण भारत में स्थानीय सामंत या जागीरदार थे, जो अपने क्षेत्रों (पलायम) में स्वायत्त शासक के रूप में कार्य करते थे। यह विद्रोह ब्रिटिशों की शोषणकारी भू-राजस्व नीतियों और उनकी सहायक संधि के खिलाफ था। इसे दो चरणों में वर्गीकृत किया जाता है: प्रथम पॉलीगर युद्ध (1799) और द्वितीय पॉलीгер युद्ध (1800-1805)।
प्रमुख बिंदु: पृष्ठभूमि: पॉलीगार प्रणाली: पॉलीगार विजयनगर साम्राज्य के अधीन स्थानीय शासक थे, जो कर वसूलते थे और अपने क्षेत्रों में सैन्य और प्रशासनिक नियंत्रण रखते थे। विजयनगर के पतन (1565) के बाद, ये पॉलीगार स्वायत्त हो गए थे, लेकिन ब्रिटिशों ने उनके अधिकारों को कम करने की कोशिश की। ब्रिटिश हस्तक्षेप: 18वीं सदी के अंत में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने तमिलनाडु में अपनी स्थिति मजबूत की। उन्होंने पॉलीगारों को सहायक संधि के तहत अधीन करने और उनकी स्वायत्तता समाप्त करने की नीति अपनाई। इसके अलावा, भारी कर (पेशकश) और जमींदारी व्यवस्था की शुरुआत ने पॉलीगारों में असंतोष पैदा किया। आर्थिक शोषण: ब्रिटिशों ने पॉलीगारों से अत्यधिक कर वसूलना शुरू किया और उनकी जमीनों को जमींदारों को सौंप दिया, जिससे उनकी शक्ति और आय के स्रोत खत्म हो गए। सांस्कृतिक असंतोष: पॉलीगार अपनी स्वायत्तता और पारंपरिक जीवनशैली की रक्षा करना चाहते थे, जिसे ब्रिटिश नीतियाँ नष्ट कर रही थीं।
प्रथम पॉलीगर युद्ध (1799): नेतृत्व: इस युद्ध का नेतृत्व कट्टाबोमैन नायक ने किया, जो पंचलंकुरिची पलायम के पॉलीगार थे। घटनाएँ: 1799 में, ब्रिटिश रेजिडेंट ने कट्टाबोमैन को बकाया कर के लिए तलब किया। मुलाकात के दौरान, ब्रिटिश कमांडर की हत्या हो गई, जिसके बाद कट्टाबोमैन पर इनाम रखा गया। इसने अन्य पॉलीगारों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया। परिणाम: ब्रिटिशों ने सैन्य अभियान चलाकर कट्टाबोमैन को पकड़ लिया। उन्हें 1799 में सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई, और उनके भाई ओमायदाराई को जेल में डाल दिया गया। पंचलंकुरिची के किले को नष्ट कर दिया गया। द्वितीय पॉलीगर युद्ध (1800-1805): नेतृत्व: इस चरण में मारुधु पांडियार (शिवगंगई के पॉलीगार भाई) और धीरन चिन्नमलै जैसे नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
घटनाएँ: 1800 में, पॉलीगारों ने एक गठबंधन बनाया और ब्रिटिश चौकियों पर हमले किए। मारुधु बंधुओं ने तिरुनेलवेली और मदुरै में विद्रोह को संगठित किया। 1801 में, उन्होंने एक स्वतंत्रता घोषणा-पत्र जारी किया, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुटता का आह्वान करता था। रणनीति: पॉलीगारों ने गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपनाई, जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों का उपयोग करते हुए ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियों पर छापामार हमले किए। परिणाम: ब्रिटिशों ने लंबे और भीषण जंगल अभियानों के बाद 1805 तक विद्रोह को दबा दिया। मारुधु बंधुओं को फाँसी दी गई, और धीरन चिन्नमलै को भी मार दिया गया। कर्नाटक संधि (31 जुलाई 1801) के तहत, ब्रिटिशों ने तमिलनाडु पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया और पॉलीगार प्रणाली को समाप्त कर जमींदारी व्यवस्था लागू की।
दमन और परिणाम: ब्रिटिशों ने विद्रोह को क्रूरता से दबाया। कई पॉलीगार नेताओं को फाँसी दी गई, और उनके किलों को नष्ट कर दिया गया। पॉलीगार प्रणाली, जो ढाई सदी से चली आ रही थी, समाप्त हो गई, और तमिलनाडु के बड़े हिस्से ब्रिटिश नियंत्रण में आ गए। विद्रोह के बाद, कट्टाबोमैन, मारुधु बंधु, और धीरन चिन्नमलै जैसे नेताओं के आसपास लोककथाएँ और पौराणिक कहानियाँ विकसित हुईं, जो तमिलनाडु में स्वतंत्रता की भावना को प्रेरित करती रहीं।
महत्व: पॉलीगारों का विद्रोह दक्षिण भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ शुरुआती संगठित प्रतिरोधों में से एक था। यह 1806 के वेल्लोर विद्रोह और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का अग्रदूत माना जाता है। इसने स्थानीय शासकों और समुदायों में ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ असंतोष को उजागर किया। कट्टाबोमैन और मारुधु बंधु आज भी तमिलनाडु में राष्ट्रीय नायकों के रूप में सम्मानित हैं। तुलना (पिछले पूछे गए विद्रोहों के साथ): आपने पहले कोल, कच्छ, बघेरा, रामोसी, गड़करी, वेलुथम्पी, और सूरत नमक विद्रोह के बारे में पूछा था। यहाँ पॉलीगारों के विद्रोह की संक्षिप्त तुलना
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