Rebellion of Ramos
jp Singh
2025-05-28 12:45:04
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रामोसी विद्रोह (1822-1829 और 1879)
रामोसी विद्रोह (1822-1829 और 1879)
रामोसी विद्रोह (1822-1829 और 1879) भारत के महाराष्ट्र में, विशेष रूप से सतारा और पुणे के आसपास पश्चिमी घाटों में, रामोसी (या रामोशी) समुदाय द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और उनकी नीतियों के खिलाफ किया गया एक महत्वपूर्ण विद्रोह था। यह विद्रोह दो चरणों में हुआ और मुख्य रूप से ब्रिटिशों की शोषणकारी भूमि कर नीतियों, आर्थिक कठिनाइयों और मराठा शासन के पतन के बाद रोजगार के अवसरों की हानि के कारण भड़का। रामोसी समुदाय, जो मराठा सेना और पुलिस में निचले स्तर पर सेवा करता था, ने ब्रिटिश प्रशासन को अनुचित माना और अपनी स्वायत्तता के लिए संघर्ष किया।
प्रमुख बिंदु: पृष्ठभूमि: मराठा साम्राज्य का पतन: 1818 में तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध के बाद ब्रिटिशों ने मराठा क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। इससे रामोसी, जो मराठा प्रशासन में पहरेदारी, गढ़ों की सुरक्षा और कर वसूली जैसे कार्य करते थे, बेरोजगार हो गए। आर्थिक शोषण: ब्रिटिशों ने भारी भूमि कर लागू किए, जो रामोसी समुदाय के लिए असहनीय थे। 1876-77 के दक्कन अकाल ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया। वन नीतियाँ: ब्रिटिशों की वाणिज्यिक वन नीति और वनों पर प्रतिबंध ने रामोसियों की पारंपरिक आजीविका को प्रभावित किया, जो वनों पर निर्भर थी। सांस्कृतिक और सामाजिक असंतोष: रामोसियों ने ब्रिटिश शासन को अपनी संस्कृति और स्वायत्तता पर हमला माना।
विद्रोह के चरण: प्रथम चरण (1822-1829): नेतृत्व: इस चरण का नेतृत्व चित्तूर सिंह ने किया। बाद में उमाजी नाइक (1825-1829) और उनके सहयोगी बापू त्र्यंबकजी सावंत ने विद्रोह को आगे बढ़ाया। घटनाएँ: 1822 में, चित्तूर सिंह के नेतृत्व में रामोसियों ने सतारा क्षेत्र में ब्रिटिश चौकियों, राजस्व कार्यालयों और पुलिस थानों पर हमले किए। 1825-26 में, पुणे में अकाल और आर्थिक तंगी के कारण उमाजी नाइक ने विद्रोह को पुनर्जनन दिया। रणनीति: रामोसियों ने गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपनाई, जिसमें जंगलों में छिपकर छापामार हमले किए गए। परिणाम: ब्रिटिशों ने सैन्य बल का उपयोग कर विद्रोह को दबाया। उमाजी नाइक को 1832 में फाँसी दे दी गई, लेकिन विद्रोह की भावना बनी रही।
सरा चरण (1879): नेतृत्व: वासुदेव बलवंत फड़के, जिन्हें भारत के सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम का जनक माना जाता है, ने इस चरण का नेतृत्व किया। रामोसी किसान सेना: फड़के ने शिक्षित वर्गों से समर्थन न मिलने पर रामोसी, कोली, भील और धनगर समुदायों को संगठित कर रामोसी किसान सेना बनाई। उनका उद्देश्य सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना और स्वतंत्र हिंदू राज स्थापित करना था। घटनाएँ: फड़के ने पुणे के शिरूर और खेड़ तालुका में सरकारी खजानों पर हमले किए। उनके सहयोगी दौलतराव नाइक ने कोंकण क्षेत्र में डकैतियाँ कीं और लगभग 1.5 लाख रुपये लूटे। रणनीति: फड़के ने संचार लाइनों को बाधित किया और डकैतियों के जरिए धन जुटाने की कोशिश की। परिणाम: मई 1879 में दौलतराव नाइक को ब्रिटिश सैनिकों ने मार गिराया। फड़के को 20 जुलाई 1879 को कालडगी जिले में एक मंदिर में पकड़ लिया गया। उन्हें पुणे में मुकदमा चलाकर अदन जेल भेजा गया, जहाँ 1883 में भूख हड़ताल के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
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