Baghera Rebellion
jp Singh
2025-05-28 12:43:56
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बघेरा विद्रोह (1818-1820)
बघेरा विद्रोह (1818-1820)
बघेरा विद्रोह (1818-1820), जिसे वाघेरा विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है, भारत के गुजरात में ओखा मंडल (काठियावाड़ क्षेत्र, विशेष रूप से वर्तमान द्वारका और बेट द्वारका के आसपास) में वाघेरा समुदाय द्वारा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और उनके सहयोगी बड़ौदा के गायकवाड़ों के खिलाफ किया गया एक महत्वपूर्ण विद्रोह था। यह विद्रोह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और स्थानीय शासकों के शोषण के खिलाफ एक प्रतिरोध था।
प्रमुख बिंदु: पृष्ठभूमि: ब्रिटिश हस्तक्षेप: 1816 में, ब्रिटिशों ने बड़ौदा के गायकवाड़ शासकों के साथ एक संधि की, जिसके तहत कच्छ और काठियावाड़ के कुछ हिस्सों पर उनका प्रभाव बढ़ा। वाघेरा समुदाय, जो ओखा मंडल में रहता था, ने ब्रिटिश शासन और गायकवाड़ों की कर नीतियों का विरोध किया। आर्थिक शोषण: गायकवाड़ों ने, ब्रिटिश समर्थन से, वाघेरों से अत्यधिक कर वसूलने का प्रयास किया। इससे वाघेरा सरदारों में असंतोष बढ़ा। सांस्कृतिक और स्वायत्तता का खतरा: वाघेरा, एक स्वतंत्र और युद्धप्रिय समुदाय, अपनी स्वायत्तता और पारंपरिक जीवनशैली पर ब्रिटिश और गायकवाड़ों के हस्तक्षेप से नाराज थे।
सामाजिक तनाव: वाघेरों के साथ-साथ कोली और भील जैसे अन्य स्थानीय समुदाय भी ब्रिटिश और गायकवाड़ शासन से प्रभावित थे। नेतृत्व और प्रारंभ: विद्रोह का नेतृत्व वाघेरा सरदारों ने किया, जिनमें कोई एकल प्रमुख नेता स्पष्ट रूप से उल्लेखित नहीं है, लेकिन सामूहिक रूप से ओखा मंडल के सरदारों ने इसे संगठित किया। 1818 में, वाघेरों ने ब्रिटिश और गायकवाड़ प्रशासन के खिलाफ हथियार उठाए। उन्होंने ओखा मंडल और आसपास के क्षेत्रों में गुरिल्ला हमले शुरू किए। 1818-1819 के दौरान, वाघेरों ने ब्रिटिश क्षेत्रों पर आक्रमण किए और गायकवाड़ों की कर वसूली को बाधित किया। विद्रोह का स्वरूप: यह विद्रोह मुख्य रूप से गुरिल्ला युद्ध की शैली में लड़ा गया, जिसमें वाघेरों ने तीर-कमान, भाले और स्थानीय हथियारों का उपयोग किया। विद्रोहियों ने ब्रिटिश और गायकवाड़ चौकियों, कर संग्रह केंद्रों और हवेलियों पर हमले किए।
विद्रोह का उद्देश्य था अपनी स्वायत्तता बहाल करना और अत्यधिक करों से मुक्ति पाना। 1819 में, वाघेरों ने बेट द्वारका और आसपास के क्षेत्रों में ब्रिटिश और गायकवाड़ बलों पर कई सफल हमले किए। दमन और परिणाम: ब्रिटिश सरकार ने अपनी सैन्य शक्ति का उपयोग कर विद्रोह को दबाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया। 1820 में, ब्रिटिशों और गायकवाड़ों ने संयुक्त रूप से वाघेरों को पराजित किया। नवंबर 1820 में एक शांति संधि के साथ विद्रोह समाप्त हुआ। विद्रोह के दमन के बाद, ब्रिटिशों ने कुछ रियायतें दीं, जैसे करों में कमी और स्थानीय सरदारों के साथ समझौते, ताकि भविष्य में ऐसे विद्रोह न हों। वाघेरा समुदाय की स्वायत्तता सीमित हो गई, और कच्छ क्षेत्र ब्रिटिश प्रभाव के तहत आ गया।
महत्व: बघेरा (वाघेरा) विद्रोह 19वीं सदी के प्रारंभिक औपनिवेशिक विरोधों में से एक था, जो ब्रिटिश शासन और उनके सहयोगी स्थानीय शासकों के खिलाफ स्थानीय समुदायों की नाराजगी को दर्शाता है। इसने बाद के विद्रोहों, जैसे 1857 के स्वतंत्रता संग्राम और सौराष्ट्र में वाघेर विद्रोह (1857-1859), को प्रेरित किया। यह विद्रोह गुजरात के काठियावाड़ और कच्छ क्षेत्रों में स्थानीय अस्मिता और स्वायत्तता के लिए संघर्ष का प्रतीक है।
टिप्पणी: नाम में भ्रम: स्रोतों में "बघेरा विद्रोह" को "वाघेरा विद्रोह" के रूप में भी उल्लेखित किया गया है। यह संभवतः एक ही विद्रोह को संदर्भित करता है, क्योंकि दोनों ओखा मंडल और बड़ौदा से जुड़े हैं। बंगाल से संबंध नहीं: कुछ स्रोत स्पष्ट करते हैं कि बघेरा विद्रोह बंगाल से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह गुजरात (बड़ौदा और काठियावाड़) में हुआ था। 1857 का वाघेर विद्रोह: सौराष्ट्र में 1857-1859 का एक अलग वाघेर विद्रोह भी हुआ, जो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा था। यह 1818-1820 के बघेरा विद्रोह से भिन्न है, लेकिन दोनों में वाघेरा समुदाय की भूमिका थी।
वर्तमान प्रासंगिकता: बघेरा (वाघेरा) विद्रोह को गुजरात के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में देखा जाता है, जो वाघेरा समुदाय की वीरता और स्वतंत्रता की भावना को दर्शाता है। यह विद्रोह कच्छ और सौराष्ट्र के लोक साहित्य और इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, विशेष रूप से द्वारका जैसे क्षेत्रों में।
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