Recent Blogs

Revolt of the Ahoms
jp Singh 2025-05-28 12:34:40
searchkre.com@gmail.com / 8392828781

अहोम विद्रोह (1828-1833)

अहोम विद्रोह (1828-1833)
अहोम विद्रोह (1828-1833) भारत के असम क्षेत्र में अहोम समुदाय द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ किया गया एक महत्वपूर्ण विद्रोह था। यह विद्रोह मुख्य रूप से प्रथम एंग्लो-बर्मा युद्ध (1824-1826) के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा किए गए वादों से मुकरने और अहोम क्षेत्र को अपने साम्राज्य में मिलाने के प्रयासों के विरोध में हुआ।
प्रमुख बिंदु: पृष्ठभूमि: प्रथम बर्मा युद्ध: 1824-1826 के दौरान, ईस्ट इंडिया कंपनी ने बर्मा के खिलाफ युद्ध लड़ा। इस युद्ध में अहोम क्षेत्र के रास्ते ब्रिटिश सेना को सहायता प्रदान की गई थी। ब्रिटिशों ने अहोम राजा और सरदारों को आश्वासन दिया था कि युद्ध समाप्त होने के बाद वे असम छोड़ देंगे और अहोम की स्वायत्तता बरकरार रहेगी। वादाखिलाफी: युद्ध के बाद, ब्रिटिशों ने असम छोड़ने के बजाय अहोम क्षेत्र को अपने साम्राज्य में शामिल करने का प्रयास किया। इससे अहोम समुदाय में असंतोष बढ़ा। आर्थिक और सामाजिक दबाव: ब्रिटिश शासन ने कर वसूली और प्रशासनिक बदलाव लागू किए, जिससे अहोम समुदाय की पारंपरिक व्यवस्था और स्वायत्तता को खतरा हुआ।
नेतृत्व और प्रारंभ: विद्रोह का नेतृत्व गोमधर कोंवर ने किया, जिन्हें अहोम राजपरिवार के सदस्य के रूप में राजा घोषित किया गया। उनके साथ धनंजय बोरगोहैन और जयराम खारघरिया फूकन जैसे अहोम सरदारों ने समर्थन दिया। 1828 में, गोमधर कोंवर ने ब्रिटिश गढ़ रंगपुर पर हमले की योजना बनाई। इसके लिए उन्होंने सैनिकों की भर्ती की और हथियार इकट्ठा किए। विद्रोह का उद्देश्य था प्राचीन अहोम राजशाही को पुनर्स्थापित करना और ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना। विद्रोह का स्वरूप: अहोमों ने रंगपुर (जो उस समय ब्रिटिश प्रशासन का केंद्र था) पर चढ़ाई की योजना बनाई। यह विद्रोह सशस्त्र था, जिसमें पारंपरिक हथियारों और स्थानीय रणनीतियों का उपयोग किया गया।
1830 में एक दूसरा विद्रोह रूपचन्द्र कोंवर के नेतृत्व में शुरू हुआ, लेकिन यह भी ब्रिटिशों की सैन्य शक्ति के सामने विफल रहा। अहोम समुदाय ने ब्रिटिश करों का भुगतान बंद कर दिया और स्वशासन की मांग की। दमन और परिणाम: ब्रिटिशों ने अपनी बेहतर सैन्य शक्ति और रणनीति के दम पर 1828 के विद्रोह को दबा दिया। 1830 के विद्रोह को भी विफल कर दिया गया। अहोम नेताओं, जैसे पियाली बरफूकन और जीवनराम, को मृत्युदंड दिया गया, और कई लोगों को 14 वर्ष के लिए निर्वासित किया गया।
अंततः, 1833 में ब्रिटिशों ने शांति नीति अपनाई और उत्तरी असम को महाराजा पुरंदर सिंह नरेंद्र को सौंप दिया, जिससे विद्रोह शांत हुआ। इस विद्रोह के दमन के बाद अहोम साम्राज्य की स्वायत्तता पूरी तरह समाप्त हो गई, और असम ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन गया। महत्व: अहोम विद्रोह असम के लोगों की स्वायत्तता और स्वशासन की भावना को दर्शाता है। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ स्थानीय प्रतिरोध का एक महत्वपूर्ण उदाहरण था।
इसने बाद के असमिया राष्ट्रीय आंदोलनों और स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणा प्रदान की। अहोम समुदाय की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को मजबूत करने में इस विद्रोह की महत्वपूर्ण भूमिका रही। वर्तमान प्रासंगिकता: अहोम विद्रोह को आज असम के इतिहास में एक गौरवपूर्ण अध्याय के रूप में देखा जाता है। यह अहोम समुदाय की वीरता और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक है। गोमधर कोंवर और अन्य नेताओं को असम में सम्मान के साथ याद किया जाता है।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh searchkre.com@gmail.com 8392828781

Our Services

Scholarship Information

Add Blogging

Course Category

Add Blogs

Coaching Information

Add Blogging

Add Blogging

Add Blogging

Our Course

Add Blogging

Add Blogging

Hindi Preparation

English Preparation

SearchKre Course

SearchKre Services

SearchKre Course

SearchKre Scholarship

SearchKre Coaching

Loan Offer

JP GROUP

Head Office :- A/21 karol bag New Dellhi India 110011
Branch Office :- 1488, adrash nagar, hapur, Uttar Pradesh, India 245101
Contact With Our Seller & Buyer