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Sannyasi Revolt
jp Singh 2025-05-28 12:29:02
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सन्यासी विद्रोह

सन्यासी विद्रोह
सन्यासी विद्रोह 18वीं सदी के अंत में भारत में, खासकर बंगाल और बिहार में, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और उनकी आर्थिक नीतियों के खिलाफ एक ऐतिहासिक विद्रोह था। नीचे इसका संक्षिप्त विवरण है
अर्थ: सन्यासी: संस्कृत शब्द "संन्यास" से लिया गया, जिसका अर्थ है त्याग या वैराग्य। सन्यासी वह हिंदू संत या तपस्वी होता है जो सांसारिक जीवन का त्याग कर देता है। विद्रोह: हिंदी शब्द, जिसका अर्थ है "बगावत" या "विप्लव"। इस प्रकार, "सन्यासी विद्रोह" का अर्थ है सन्यासियों की बगावत।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: सन्यासी विद्रोह (लगभग 1760-1800) मुख्य रूप से 1770 के बंगाल अकाल के बाद शुरू हुआ। यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की दमनकारी नीतियों के खिलाफ था। इसके प्रमुख कारण थे
आर्थिक शोषण: ब्रिटिशों ने भारी कर और भूमि राजस्व नीतियां लागू कीं, जिससे पारंपरिक कृषि व्यवस्था बिगड़ गई और किसानों व सन्यासियों में असंतोष फैला। पारंपरिक अधिकारों का हनन: सन्यासी, जो पहले भूमि अनुदान और दान प्राप्त करते थे, ब्रिटिश राजस्व प्रणाली के तहत इन सुविधाओं से वंचित हो गए। सांस्कृतिक प्रतिरोध: यह विद्रोह औपनिवेशिक हस्तक्षेप के खिलाफ धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतिरोध का भी प्रतीक था।
रमुख विशेषताएं: प्रतिभागी: इसमें सन्यासी, फकीर (मुस्लिम संन्यासी), विस्थापित किसान और स्थानीय जमींदार शामिल थे। प्रमुख नेता थे मजनू शाह (फकीर नेता) और भवानी पाठक। क्षेत्र: मुख्य रूप से बंगाल, बिहार और आधुनिक झारखंड व असम के कुछ हिस्सों में। गतिविधियां: विद्रोहियों ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई, ब्रिटिश राजस्व कार्यालयों पर हमले किए, अनाज भंडार लूटे और औपनिवेशिक एजेंटों को निशाना बनाया। अवधि: यह एकल घटना नहीं थी, बल्कि 1770 के दशक में चरम पर पहुंचने वाली और 19वीं सदी की शुरुआत तक चलने वाली छिटपुट बगावतों की शृंखला थी।
महत्व: सन्यासी विद्रोह को भारत में प्रारंभिक औपनिवेशिक-विरोधी आंदोलनों में से एक माना जाता है, जो 1857 के सिपाही विद्रोह से पहले हुआ। इसने विभिन्न समूहों, विशेष रूप से धार्मिक सन्यासियों, की सामाजिक-आर्थिक शिकायतों को उजागर किया। इस विद्रोह ने बाद में साहित्यिक रचनाओं को प्रेरित किया, जैसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनंदमठ (1882), जिसमें सन्यासी विद्रोहियों को चित्रित किया गया और वंदे मातरम गीत को लोकप्रिय बनाया, जो बाद में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख गीत बना।
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