Dr. Manmohan Singh from 22 May 2004 to 26 May 2014
jp Singh
2025-05-28 11:42:00
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डॉ. मनमोहन सिंह ने 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक
डॉ. मनमोहन सिंह ने 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक
डॉ. मनमोहन सिंह ने 22 मई 2004 को भारत के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की थी और वे 26 मई 2014 तक इस पद पर रहे।
पृष्ठभूमि और नियुक्ति
पृष्ठभूमि और नियुक्ति पृष्ठभूमि: डॉ. मनमोहन सिंह एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और नौकरशाह थे। वे भारत के आर्थिक सुधारों के प्रमुख सूत्रधारों में से एक थे, विशेष रूप से 1991 में वित्त मंत्री के रूप में, जब उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को उदारीकरण और वैश्वीकरण की दिशा में ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नियुक्ति: 2004 के आम चुनावों में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (UPA) ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को हराया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद न स्वीकारते हुए डॉ. मनमोहन सिंह को इस पद के लिए चुना, जो उस समय राज्यसभा सांसद थे। उनकी साफ-सुथरी छवि और आर्थिक विशेषज्ञता इस निर्णय के प्रमुख कारण थे।
2004 में कार्यकाल की शुरुआत शपथ ग्रहण: 22 मई 2004 को, डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। यह पहली बार था जब कोई सिख समुदाय का व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री बना। सरकार का गठन: UPA सरकार में कई गठबंधन सहयोगी शामिल थे, जैसे राष्ट्रीय जनता दल (RJD), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), और अन्य। वामपंथी दल (CPI(M), CPI) ने बाहर से समर्थन दिया। प्रारंभिक चुनौतियाँ: मनमोहन सिंह की सरकार को गठबंधन की राजनीति, आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने, और सामाजिक समावेशन जैसे मुद्दों पर ध्यान देना था। प्रमुख नीतियाँ और उपलब्धियाँ (2004 के संदर्भ में) 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, जो उनके पहले कार्यकाल (2004-2009) की नींव बने। कुछ प्रमुख बिंदु
आर्थिक नीतियाँ: 1991 के आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाते हुए, सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा देने और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान दिया। वैश्विक आर्थिक एकीकरण पर जोर दिया गया, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी। सामाजिक योजनाएँ: राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA): 2005 में लागू होने वाली इस योजना की नींव 2004 में रखी गई थी। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सुनिश्चित करना था। शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने की शुरुआत हुई।
विदेश नीति: भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता (Indo-US Nuclear Deal) की दिशा में शुरुआती बातचीत 2004 में शुरू हुई, जो बाद में 2008 में पूरी हुई। यह भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण था। पड़ोसी देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन के साथ संबंधों को बेहतर करने के प्रयास शुरू हुए। आंतरिक सुरक्षा: आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए नीतियों पर काम शुरू हुआ। चुनौतियाँ गठबंधन की राजनीति: UPA सरकार को विभिन्न क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल बिठाना पड़ा, जिससे नीतिगत फैसलों में देरी हुई।
विपक्ष का दबाव: अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाला NDA विपक्ष में मजबूत था और सरकार की नीतियों की आलोचना करता रहा। आर्थिक दबाव: वैश्विक आर्थिक मंदी (2008 की ओर बढ़ते हुए) के शुरुआती संकेत 2004 में दिखने लगे थे, जिससे सरकार को सतर्क रहना पड़ा। मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत शैली शांत और तकनीकी दृष्टिकोण: मनमोहन सिंह को उनकी शांत और गैर-विवादास्पद शैली के लिए जाना जाता था। वे कम बोलते थे और तकनीकी रूप से मजबूत निर्णय लेने पर ध्यान देते थे।
साफ छवि: उनकी ईमानदारी और सादगी ने उन्हें जनता और सहयोगियों के बीच सम्मान दिलाया। आलोचनाएँ: कुछ लोग उन्हें
1. आर्थिक नीतियाँ
आर्थिक सुधारों की निरंतरता: मनमोहन सिंह ने 1991 में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया। 2004 में सरकार ने FDI को बढ़ावा देने के लिए कई क्षेत्रों (जैसे बीमा, दूरसंचार, और खुदरा) में नियमों को उदार बनाना शुरू किया। बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया गया, जिसमें सड़क, रेल, और बिजली क्षेत्र शामिल थे। राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP) को और गति दी गई। वैश्विक आर्थिक एकीकरण: भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) और अन्य वैश्विक मंचों पर अपनी भागीदारी बढ़ाई। 2004 में भारत की अर्थव्यवस्था 7-8% की दर से बढ़ रही थी, जो वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित कर रही थी।
बजट 2004-05: वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने जुलाई 2004 में UPA का पहला बजट पेश किया। इसमें ग्रामीण विकास, शिक्षा, और स्वास्थ्य पर जोर दिया गया। कृषि क्षेत्र के लिए ऋण माफी और सब्सिडी की योजनाएँ शुरू की गईं। शिक्षा पर जीडीपी का 6% खर्च करने का लक्ष्य रखा गया, जो समावेशी विकास की दिशा में एक कदम था।
2. सामाजिक योजनाएँ
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (NREGA): 2004 में इसकी नींव रखी गई और 2005 में यह अधिनियम बनकर लागू हुआ। यह योजना ग्रामीण परिवारों को प्रति वर्ष 100 दिन का गारंटीशुदा रोजगार प्रदान करती थी, जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया। शिक्षा और स्वास्थ्य: सर्व शिक्षा अभियान (SSA) को और मजबूत किया गया, जिसका लक्ष्य प्राथमिक शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाना था। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) की शुरुआत की योजना 2004 में बननी शुरू हुई, जो 2005 में लागू हुआ। अल्पसंख्यक और कमजोर वर्गों के लिए नीतियाँ: UPA सरकार ने सामाजिक समावेशन पर जोर दिया। अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों, और जनजातियों के लिए विशेष योजनाएँ शुरू की गईं।
3. विदेश नीति
भारत-अमेरिका संबंध: 2004 में भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौते की शुरुआती बातचीत शुरू हुई। यह समझौता भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक सहयोग प्राप्त करने में मददगार साबित हुआ। पड़ोसी देशों के साथ संबंध: पाकिस्तान के साथ शांति प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए बातचीत शुरू हुई। 2004 में भारत-पाकिस्तान के बीच बस सेवा और अन्य आत्मविश्वास-निर्माण उपायों पर चर्चा हुई। चीन के साथ व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने के प्रयास किए गए। वैश्विक मंच: भारत ने G-20 और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति मजबूत की। मनमोहन सिंह ने वैश्विक आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर भारत का पक्ष रखा।
4. आंतरिक सुरक्षा और कानून
आतंकवाद: 2004 में भारत में कई आतंकी घटनाएँ हुईं, जैसे दिल्ली और अन्य शहरों में छोटे-मोटे विस्फोट। सरकार ने खुफिया तंत्र को मजबूत करने और आतंकवाद विरोधी नीतियों पर ध्यान दिया। नक्सलवाद: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास दोनों पर जोर दिया गया। यह एक दीर्घकालिक चुनौती थी, जिसके लिए 2004 में रणनीति बननी शुरू हुई। कानून और सुधार: सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 में लागू हुआ, लेकिन इसकी नींव 2004 में रखी गई थी। यह पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाने वाला एक ऐतिहासिक कदम था। 2004 की प्रमुख घटनाएँ 26 दिसंबर 2004: हिंद महासागर सुनामी: 2004 के अंत में हिंद महासागर में आई सुनामी ने भारत के दक्षिणी तटों, विशेष रूप से तमिलनाडु और अंडमान-निकोबार को भारी नुकसान पहुँचाया। मनमोहन सिंह की सरकार ने तत्काल राहत और पुनर्वास कार्य शुरू किए। इस आपदा ने सरकार की आपदा प्रबंधन क्षमता को परखा।
कश्मीर मुद्दा: जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापना और विकास पर जोर दिया गया। मनमोहन सिंह ने क्षेत्र के लोगों के साथ संवाद बढ़ाने की कोशिश की। चुनौतियाँ और आलोचनाएँ गठबंधन की जटिलताएँ: UPA के कई सहयोगी दलों के अलग-अलग एजेंडे थे। वामपंथी दलों ने आर्थिक सुधारों, विशेष रूप से FDI और निजीकरण, का विरोध किया, जिससे नीतिगत सुधारों में देरी हुई। विपक्ष की आलोचना: NDA ने UPA सरकार पर
मनमोहन सिंह का 2004 में प्रभाव आर्थिक स्थिरता: 2004 में भारत की अर्थव्यवस्था ने स्थिरता और वृद्धि दिखाई, जो मनमोहन सिंह की विशेषज्ञता का परिणाम थी। सामाजिक समावेशन: UPA का
विदेश नीति में योगदान मनमोहन सिंह की विदेश नीति को उनकी सरकार की सबसे मजबूत उपलब्धियों में से एक माना जाता है। उन्होंने भारत को वैश्विक मंच पर एक सम्मानजनक और रणनीतिक स्थिति दिलाई। कुछ प्रमुख बिंदु:
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता (2008): यह उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक था। इस समझौते ने भारत को परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर किए बिना परमाणु व्यापार और तकनीक तक पहुंच प्रदान की। इसने भारत को वैश्विक परमाणु समुदाय में एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्थापित किया और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा दिया। हालांकि, इस समझौते के लिए वामपंथी दलों ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिससे सरकार संकट में आ गई थी, लेकिन मनमोहन सिंह ने दृढ़ता दिखाई। पड़ोसी देशों के साथ संबंध: पाकिस्तान: मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के साथ शांति प्रक्रिया को बढ़ावा देने की कोशिश की, विशेष रूप से 2004-2008 के दौरान। हालांकि, 2008 के मुंबई हमलों (26/11) ने इन प्रयासों को झटका दिया।
चीन: उनके कार्यकाल में भारत-चीन संबंधों में आर्थिक सहयोग बढ़ा, लेकिन सीमा विवाद (विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश) पर तनाव बना रहा। दक्षिण एशिया: उन्होंने बांग्लादेश, श्रीलंका, और अफगानिस्तान के साथ संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान दिया। उदाहरण के लिए, भारत ने अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वैश्विक मंच: मनमोहन सिंह ने जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर भारत की स्थिति को मजबूत किया। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर भारत की स्थिति को स्पष्ट करते हुए विकासशील देशों की आवाज को मजबूती दी, खासकर कोपेनहेगन जलवायु सम्मेलन (2009) में।
कम चर्चित नीतिगत योगदान शिक्षा क्षेत्र में सुधार: सर्व शिक्षा अभियान (SSA): यह योजना शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने (86वां संविधान संशोधन, 2002) के बाद और प्रभावी हुई। मनमोहन सिंह की सरकार ने इसे लागू करने में महत्वपूर्ण निवेश किया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति की नींव: उनके कार्यकाल में उच्च शिक्षा में सुधार के लिए कई नए आईआईटी, आईआईएम, और एनआईटी स्थापित किए गए। स्वास्थ्य: राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM): 2005 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए था।
आधार परियोजना: यूपीए-2 के दौरान आधार कार्ड योजना की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य प्रत्येक भारतीय को एक अद्वितीय पहचान संख्या प्रदान करना था। यह बाद में डिजिटल भारत और वित्तीय समावेशन का आधार बना। खाद्य सुरक्षा: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013): इस कानून ने गरीब परिवारों को रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने की व्यवस्था की। आलोचनाएँ और चुनौतियाँ मनमोहन सिंह की सरकार को कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, खासकर उनके दूसरे कार्यकाल में
भ्रष्टाचार के आरोप: 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला: यह यूपीए-2 की सबसे बड़ी विवादास्पद घटनाओं में से एक थी, जिसमें टेलीकॉम लाइसेंस आवंटन में अनियमितताओं का आरोप लगा। कोयला घोटाला: कोयला खदानों के आवंटन में कथित भ्रष्टाचार ने उनकी सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया। इन घोटालों ने उनकी
नेतृत्व शैली: उनकी शांत और गैर-आक्रामक शैली को कुछ लोग कमजोरी के रूप में देखते थे। सोनिया गांधी के नेतृत्व में काम करने के कारण उन्हें
नम्रता का प्रतीक: उनके भाषणों में अक्सर भारत की सामूहिक प्रगति पर जोर होता था। उदाहरण के लिए, उन्होंने एक बार कहा था,
दीर्घकालिक प्रभाव आर्थिक सुधारों का जनक: 1991 के सुधारों ने भारत को वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की राह पर ला खड़ा किया। आज भारत की आईटी, स्टार्टअप, और सेवा क्षेत्र की सफलता में उनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सामाजिक नीतियाँ: नरेगा, आरटीआई, और आधार जैसी योजनाएँ आज भी भारत के शासन और विकास का आधार हैं। वैश्विक छवि: उनकी विदेश नीति ने भारत को एक उभरती हुई शक्ति के रूप में स्थापित किया, जिसे बाद की सरकारों ने और मजबूत किया।
समकालीन संदर्भ (2025 तक) 2025 तक, मनमोहन सिंह सक्रिय राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनकी नीतियों का प्रभाव आज भी दिखता है। उदाहरण के लिए, आधार अब डिजिटल भुगतान और सरकारी योजनाओं का आधार है। उनकी आत्मकथा और साक्षात्कारों में वे भारत की आर्थिक चुनौतियों और भविष्य की नीतियों पर विचार साझा करते रहते हैं। उनकी स्वास्थ्य स्थिति को लेकर समय-समय पर चर्चा होती है, लेकिन वे अब सार्वजनिक रूप से कम दिखाई देते हैं।
Conclusion
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