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HD Deve Gowda
jp Singh 2025-05-28 11:35:38
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एच.डी. देवे गौड़ा

एच.डी. देवे गौड़ा
एच.डी. देवे गौड़ा भारत के अगले प्रधानमंत्री बने। उनका कार्यकाल 1 जून 1996 से 21 अप्रैल 1997 तक रहा। देवे गौड़ा संयुक्त मोर्चा (United Front) गठबंधन के नेता थे और कर्नाटक से आने वाले पहले प्रधानमंत्री थे। वे एक सादगी पसंद और किसान-केंद्रित नेता के रूप में जाने जाते हैं। उनका कार्यकाल लगभग 11 महीने का था और गठबंधन की अस्थिरता के कारण छोटा रहा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जन्म: हरदानहल्ली डोड्डेगौड़ा देवे गौड़ा का जन्म 18 मई 1933 को कर्नाटक के हासन जिले के हरदानहल्ली गाँव में एक वोक्कालिगा (किसान समुदाय) परिवार में हुआ था। उनके पिता, डोड्डे गौड़ा, एक किसान थे। शिक्षा: देवे गौड़ा ने हासन के एल.बी. कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया। उनकी शिक्षा और ग्रामीण पृष्ठभूमि ने उनकी राजनीति को किसान-केंद्रित बनाया। प्रारंभिक जीवन: एक किसान परिवार से होने के कारण, देवे गौड़ा को ग्रामीण भारत की समस्याओं, विशेषकर किसानों और मजदूरों की स्थिति, की गहरी समझ थी। यह उनकी राजनीतिक विचारधारा का आधार बना। राजनीतिक करियर देवे गौड़ा का राजनीतिक सफर कर्नाटक में शुरू हुआ और वे समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे। उन्होंने जनता दल और बाद में संयुक्त मोर्चा के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स में शामिल हुए, लेकिन 1962 में वे कांग्रेस छोड़कर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गए। बाद में, वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और फिर जनता पार्टी से जुड़े। कर्नाटक विधानसभा: 1962 से 1989 तक, वे कई बार कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गए और विभिन्न मंत्रालयों में कार्य किया। वे कर्नाटक में जनता पार्टी के एक प्रभावशाली नेता बन गए। विपक्ष के नेता: 1983-1989 के बीच, वे कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस सरकार की नीतियों, विशेषकर भ्रष्टाचार और किसानों के मुद्दों पर, कड़ा विरोध किया। मुख्यमंत्री के रूप में (1994-1996): 1994 में, देवे गौड़ा कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने। उनके कार्यकाल में उन्होंने किसानों, ग्रामीण विकास और सिंचाई परियोजनाओं पर ध्यान दिया। उनकी सादगी और जनता से जुड़ाव ने उन्हें लोकप्रिय बनाया।
राष्ट्रीय राजनीति जनता दल: 1988 में, देवे गौड़ा जनता दल में शामिल हुए, जो वी.पी. सिंह के नेतृत्व में गठित एक समाजवादी और क्षेत्रीय दलों का गठबंधन था। वे जल्द ही जनता दल के राष्ट्रीय स्तर के नेता बन गए। लोकसभा में प्रवेश: 1991 में, वे हासन से लोकसभा के लिए चुने गए और राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हुए। प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (1 जून 1996 - 21 अप्रैल 1997) 1996 के आम चुनाव में, कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकी। बीजेपी, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में, सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन उनकी सरकार 13 दिन में गिर गई। इसके बाद, संयुक्त मोर्चा (United Front), जो 13 क्षेत्रीय और समाजवादी दलों का गठबंधन था, ने कांग्रेस और वामपंथी दलों के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई। देवे गौड़ा को संयुक्त मोर्चा का नेता चुना गया, और वे 1 जून 1996 को भारत के 11वें प्रधानमंत्री बने।
प्रमुख नीतियाँ और उपलब्धियाँ किसान-केंद्रित नीतियाँ: कृषि विकास: देवे गौड़ा ने किसानों के लिए कई योजनाएँ शुरू कीं, जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को बढ़ाना और ग्रामीण बुनियादी ढांचे में निवेश। उनकी नीतियाँ ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने पर केंद्रित थीं। सिंचाई और ग्रामीण विकास: उन्होंने सिंचाई परियोजनाओं और ग्रामीण विद्युतीकरण पर जोर दिया, जो उनकी कर्नाटक के अनुभव से प्रेरित था। आर्थिक नीतियाँ: देवे गौड़ा ने पी.वी. नरसिम्हा राव द्वारा शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण को जारी रखा, लेकिन उनकी सरकार ने समाजवादी नीतियों को भी संतुलित करने की कोशिश की। 1997 का बजट: उनके वित्त मंत्री, पी. चिदंबरम, ने “ड्रीम बजट” पेश किया, जिसमें आयकर दरों को कम किया गया और मध्यम वर्ग को राहत दी गई। इसने भारत की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया। सामाजिक न्याय: देवे गौड़ा ने मंडल आयोग की सिफारिशों (OBC के लिए 27% आरक्षण) को समर्थन दिया और सामाजिक समावेश पर जोर दिया।
उनकी सरकार ने दलितों, आदिवासियों और अन्य वंचित वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ शुरू कीं। विदेश नीति: देवे गौड़ा ने भारत की गुट-निरपेक्ष नीति को बनाए रखा और पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने की कोशिश की। पाकिस्तान के साथ संबंध: उन्होंने भारत-पाकिस्तान संबंधों को बेहतर करने के लिए बातचीत की शुरुआत की, लेकिन कोई बड़ा परिणाम नहीं मिला। SAARC: दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) को मजबूत करने पर ध्यान दिया। सादगी और जनता से जुड़ाव: देवे गौड़ा अपनी सादगी और जनता के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते थे। वे अक्सर खुद को “किसान का बेटा” कहते थे और ग्रामीण भारत की समस्याओं को प्राथमिकता देते थे।
चुनौतियाँ गठबंधन की अस्थिरता: संयुक्त मोर्चा 13 दलों का गठबंधन था, जिसमें विभिन्न विचारधाराएँ थीं। इस कारण सरकार में आंतरिक मतभेद और अस्थिरता बनी रही। कांग्रेस का बाहरी समर्थन सशर्त था, और कांग्रेस ने सरकार पर दबाव बनाए रखा। कांग्रेस के साथ तनाव: अप्रैल 1997 में, कांग्रेस ने विभिन्न मुद्दों, जैसे भ्रष्टाचार के आरोप और नीतिगत मतभेद, के कारण समर्थन वापस ले लिया। इससे देवे गौड़ा की सरकार अल्पमत में आ गई। आर्थिक दबाव: हालांकि 1991 के आर्थिक सुधारों ने भारत को संकट से उबारा था, लेकिन अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए और सुधारों की जरूरत थी। गठबंधन की अस्थिरता ने इन सुधारों को सीमित किया।
क्षेत्रीय छवि: देवे गौड़ा को कर्नाटक-केंद्रित नेता के रूप में देखा जाता था, जिसने उनकी राष्ट्रीय अपील को सीमित किया। उनकी हिंदी और अंग्रेजी में सीमित दक्षता ने भी उनकी छवि को प्रभावित किया। विश्वास मत में विफलता: अप्रैल 1997 में, कांग्रेस के समर्थन वापसी के बाद, देवे गौड़ा लोकसभा में विश्वास मत हासिल नहीं कर सके। 21 अप्रैल 1997 को, उन्होंने इस्तीफा दे दिया। बाद का जीवन राजनीति में भूमिका: इस्तीफे के बाद, देवे गौड़ा ने जनता दल (सेक्युलर) को मजबूत करने पर ध्यान दिया। वे कर्नाटक में एक प्रभावशाली नेता बने रहे और 2004-2006 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे। लोकसभा और कर्नाटक: वे कई बार हासन से लोकसभा सांसद चुने गए और कर्नाटक की राजनीति में सक्रिय रहे। उनकी पार्टी, जनता दल (सेक्युलर), कर्नाटक में एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति रही। पारिवारिक विरासत: उनके बेटे, एच.डी. कुमारस्वामी, ने उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया और कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे।
र्तमान स्थिति (2025 तक): देवे गौड़ा 2025 तक जीवित हैं और 91 वर्ष की आयु में भी जनता दल (सेक्युलर) के संरक्षक के रूप में सक्रिय हैं। व्यक्तिगत विशेषताएँ और विचारधारा सादगी और किसान-केंद्रित: देवे गौड़ा अपनी सादगी और ग्रामीण भारत के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं। वे अक्सर खुद को “किसान का बेटा” कहकर गर्व महसूस करते थे। समाजवादी विचारधारा: उनकी नीतियाँ समाजवादी थीं, जो किसानों, मजदूरों और वंचित वर्गों के उत्थान पर केंद्रित थीं। वक्तृत्व: हालांकि उनकी हिंदी और अंग्रेजी में सीमित दक्षता थी, वे कन्नड़ में प्रभावशाली वक्ता थे और जनता से सीधा संवाद स्थापित करते थे। विवाद: उनकी क्षेत्रीय छवि और गठबंधन की अस्थिरता ने उनकी राष्ट्रीय स्वीकार्यता को सीमित किया। कुछ लोग उनकी सरकार को कमजोर और अनिर्णायक मानते थे। विरासत एच.डी. देवे गौड़ा का कार्यकाल छोटा था, लेकिन उनकी नीतियों और सादगी ने भारतीय राजनीति में एक छाप छोड़ी
किसान-केंद्रित राजनीति: उन्होंने किसानों और ग्रामीण भारत की समस्याओं को राष्ट्रीय मंच पर लाया। उनकी नीतियाँ बाद में अन्य क्षेत्रीय दलों के लिए प्रेरणा बनीं। गठबंधन राजनीति: उनकी सरकार गठबंधन राजनीति का एक उदाहरण थी, जिसने भारत में क्षेत्रीय दलों की भूमिका को मजबूत किया। कर्नाटक में प्रभाव: कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) उनकी सबसे बड़ी विरासत है, जो आज भी एक प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी है। स्मृति: उनकी सादगी और किसान हितों के प्रति समर्पण ने उन्हें कर्नाटक और दक्षिण भारत में एक सम्मानित नेता बनाया।
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