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Atal Bihari Vajpayee
jp Singh 2025-05-28 11:34:15
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अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी भारत के अगले प्रधानमंत्री बने। उनका पहला कार्यकाल 16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक केवल 13 दिनों का रहा, जो भारत के इतिहास में सबसे छोटा प्रधानमंत्री कार्यकाल है। हालांकि, यह उनका पहला कार्यकाल था, और बाद में वे 1998 से 2004 तक दो बार और प्रधानमंत्री रहे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा जन्म: अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता, कृष्ण बिहारी वाजपेयी, एक शिक्षक और कवि थे। शिक्षा: वाजपेयी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान लक्ष्मी बाई कॉलेज) से स्नातक (B.A.) और कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर (M.A.) की डिग्री प्राप्त की। वे अपनी वक्तृत्व कला और साहित्यिक रुचि के लिए जाने जाते थे। साहित्यिक रुचियाँ: वाजपेयी एक कुशल कवि और लेखक थे। उनकी कविताएँ, जैसे मेरी इक्यावन कविताएँ, और संसद में उनके भाषण उनकी साहित्यिक और बौद्धिक क्षमता को दर्शाते हैं।
स्वतंत्रता संग्राम और प्रारंभिक राजनीति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS): वाजपेयी 1939 में RSS से जुड़े और 1944 में पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। RSS की विचारधारा ने उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया। स्वतंत्रता संग्राम: उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रदर्शनों में शामिल हुए, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। जनसंघ की स्थापना: 1951 में, वाजपेयी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की राजनीतिक शाखा थी। जनसंघ ने हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को बढ़ावा दिया और कांग्रेस के समाजवादी दृष्टिकोण के खिलाफ एक वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति बनाई। राजनीतिक करियर वाजपेयी का राजनीतिक करियर लंबा और प्रभावशाली रहा। वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के संस्थापक नेताओं में से एक थे और भारतीय राजनीति में दक्षिणपंथी विचारधारा को मुख्यधारा में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्वतंत्रता संग्राम और प्रारंभिक राजनीति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS): वाजपेयी 1939 में RSS से जुड़े और 1944 में पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। RSS की विचारधारा ने उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया। स्वतंत्रता संग्राम: उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रदर्शनों में शामिल हुए, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। जनसंघ की स्थापना: 1951 में, वाजपेयी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की राजनीतिक शाखा थी। जनसंघ ने हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को बढ़ावा दिया और कांग्रेस के समाजवादी दृष्टिकोण के खिलाफ एक वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति बनाई। राजनीतिक करियर वाजपेयी का राजनीतिक करियर लंबा और प्रभावशाली रहा। वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के संस्थापक नेताओं में से एक थे और भारतीय राजनीति में दक्षिणपंथी विचारधारा को मुख्यधारा में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बीजेपी की स्थापना 1980 में स्थापना: जनता पार्टी के विघटन के बाद, वाजपेयी ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे बीजेपी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और पार्टी को हिंदुत्व, राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्वावलंबन की विचारधारा पर आधारित बनाया। विपक्ष में भूमिका: 1980 के दशक में, बीजेपी एक छोटी पार्टी थी, लेकिन वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन और हिंदुत्व के मुद्दों के जरिए पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया। 1984 में, बीजेपी को केवल 2 लोकसभा सीटें मिलीं, लेकिन 1989 तक यह संख्या बढ़कर 85 हो गई। प्रधानमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल (16 मई 1996 - 1 जून 1996) 1996 के आम चुनाव में, बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला। वाजपेयी को 16 मई 1996 को प्रधानमंत्री बनाया गया, लेकिन उनकी सरकार को अन्य दलों का समर्थन हासिल नहीं हुआ।
प्रमुख नीतियाँ और उपलब्धियाँ चूंकि वाजपेयी का पहला कार्यकाल केवल 13 दिनों का था, उनकी सरकार कोई बड़ी नीति लागू नहीं कर सकी। फिर भी, कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं
सरकार गठन का प्रयास: वाजपेयी ने गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश की, लेकिन क्षेत्रीय दलों, जैसे तमिल मनीला कांग्रेस, DMK, और अन्य, ने समर्थन देने से इनकार कर दिया। उन्होंने संसद में विश्वास मत हासिल करने की कोशिश की, लेकिन केवल बीजेपी और उसके कुछ सहयोगी दलों (जैसे शिवसेना) का समर्थन मिला। ऐतिहासिक महत्व: यह पहली बार था जब बीजेपी ने केंद्र में सरकार बनाई, जो भारत में दक्षिणपंथी राजनीति के उदय का प्रतीक था। वाजपेयी ने अपने छोटे कार्यकाल में एक उदार और समावेशी छवि पेश करने की कोशिश की, जो उनकी बाद की सरकारों की नींव बनी।
प्रतीकात्मक कदम: वाजपेयी ने अपने संक्षिप्त कार्यकाल में राष्ट्रीय एकता और विकास पर जोर दिया। उनके भाषणों में भारत को एक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने का संदेश था। चुनौतियाँ अल्पमत सरकार: बीजेपी के पास 161 सीटें थीं, जो बहुमत (272) से काफी कम थी। गठबंधन सहयोगियों की कमी ने सरकार को अस्थिर बना दिया। विश्वास मत में विफलता: 28 मई 1996 को, वाजपेयी ने लोकसभा में विश्वास मत प्रस्तुत किया, लेकिन पर्याप्त समर्थन न मिलने के कारण हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने 1 जून 1996 को इस्तीफा दे दिया। विपक्षी एकता: कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों ने एकजुट होकर संयुक्त मोर्चा (United Front) का समर्थन किया, जिसने वाजपेयी की सरकार को सत्ता में बने रहने से रोका।
पतन और परिणाम वाजपेयी की सरकार के पतन के बाद, संयुक्त मोर्चा (United Front) ने एच.डी. देवे गौड़ा के नेतृत्व में सरकार बनाई। वाजपेयी विपक्ष के नेता बने और 1998 में फिर से सत्ता में लौटे।
दूसरा कार्यकाल (1998-1999): 1998 में, बीजेपी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ मिलकर सरकार बनाई। इस दौरान: पोखरण-II परमाणु परीक्षण (1998): भारत ने पाँच परमाणु परीक्षण किए, जिसने भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया। कारगिल युद्ध (1999): भारत ने पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध में जीत हासिल की, जिसने वाजपेयी की राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों को मजबूत किया। सरकार 13 महीने बाद AIADMK के समर्थन वापसी के कारण गिर गई।
तीसरा कार्यकाल (1999-2004): 1999 में, NDA ने पूर्ण बहुमत हासिल किया, और वाजपेयी ने पूरे पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया। प्रमुख उपलब्धियाँ: आर्थिक सुधार: उदारीकरण को आगे बढ़ाया, विशेषकर बुनियादी ढांचे और IT क्षेत्र में। स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना: भारत के प्रमुख शहरों को जोड़ने वाली राजमार्ग परियोजना शुरू की। पाकिस्तान के साथ शांति प्रयास: लाहौर बस यात्रा (1999) और अगस्ता शिखर सम्मेलन (2001) के जरिए भारत-पाक संबंध सुधारने की कोशिश। सार्वजनिक कल्याण: सर्व शिक्षा अभियान और ग्रामीण विकास योजनाएँ शुरू कीं
बाद का जीवन राजनीति से संन्यास: 2004 के आम चुनाव में NDA की हार के बाद, वाजपेयी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। स्वास्थ्य कारणों से वे 2009 के बाद सार्वजनिक जीवन में कम सक्रिय रहे। निधन: 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के AIIMS में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के समय उनकी उम्र 93 वर्ष थी। व्यक्तिगत विशेषताएँ और विचारधारा वक्तृत्व कला: वाजपेयी अपने ओजस्वी भाषणों और काव्यात्मक शैली के लिए प्रसिद्ध थे। उनके भाषण जनता और बुद्धिजीवियों दोनों को प्रभावित करते थे। उदार हिंदुत्व: वाजपेयी ने हिंदुत्व को बढ़ावा दिया, लेकिन उनकी विचारधारा समावेशी थी। वे सभी धर्मों के प्रति सम्मान और राष्ट्रीय एकता पर जोर देते थे। सादगी और नैतिकता: अपनी सादगी और सिद्धांतनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत लाभ के लिए सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया।
विवाद: राम मंदिर आंदोलन और बाबरी मस्जिद विध्वंस (1992) ने उनकी उदार छवि पर सवाल उठाए, हालांकि वे व्यक्तिगत रूप से इस घटना में शामिल नहीं थे। विरासत अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत भारतीय राजनीति में गहरी छाप छोड़ती है
बीजेपी का उदय: वाजपेयी ने बीजेपी को एक क्षेत्रीय पार्टी से राष्ट्रीय स्तर की सत्तारूढ़ पार्टी बनाया। उनकी उदार और समावेशी छवि ने बीजेपी को व्यापक स्वीकार्यता दिलाई। परमाणु शक्ति: पोखरण-II ने भारत को वैश्विक मंच पर एक मजबूत स्थिति दी। आर्थिक और बुनियादी ढांचा विकास: स्वर्णिम चतुर्भुज और IT क्षेत्र में निवेश ने भारत के आर्थिक विकास को गति दी। शांति प्रयास: पाकिस्तान के साथ उनके शांति प्रयास, जैसे लाहौर बस यात्रा, उनकी दूरदर्शिता को दर्शाते हैं। पुरस्कार: 2015 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 25 दिसंबर को उनका जन्मदिन सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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