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Vishwanath Pratap Singh (V.P. Singh)
jp Singh 2025-05-28 11:27:39
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विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी.पी. सिंह)

विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी.पी. सिंह)
विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी.पी. सिंह) भारत के अगले प्रधानमंत्री बने। उनका कार्यकाल 2 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990 तक रहा। वी.पी. सिंह एक समाजवादी नेता, सुधारवादी और मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने वाले पहले प्रधानमंत्री के रूप में जाने जाते हैं। उनका कार्यकाल अल्पकालिक लेकिन सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत प्रभावशाली रहा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जन्म: विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म 25 जून 1931 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) में एक राजपूत परिवार में हुआ था। वे मंदौड़ रियासत के राजा भगवती प्रसाद सिंह के दत्तक पुत्र थे। शिक्षा: वी.पी. सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कला स्नातक (B.A.) और पुणे विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री (LL.B.) प्राप्त की। उनकी शिक्षा और बौद्धिक क्षमता ने उन्हें एक गंभीर और विचारशील नेता बनाया। प्रारंभिक जीवन: राजपरिवार से होने के बावजूद, वी.पी. सिंह ने सादगी और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई। उन्होंने अपनी पैतृक संपत्ति का बड़ा हिस्सा दान कर दिया, जो उनकी समाजवादी विचारधारा को दर्शाता है। राजनीतिक करियर वी.पी. सिंह का राजनीतिक सफर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से शुरू हुआ, लेकिन बाद में वे समाजवादी और गैर-कांग्रेसी राजनीति के प्रमुख चेहरों में से एक बन गए।
कांग्रेस में शुरुआत प्रारंभिक भूमिका: वी.पी. सिंह 1969 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए और जल्द ही कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण नेता बन गए। 1971 में वे पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। उत्तर प्रदेश में योगदान: 1974-1976: वे उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और बाद में विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने भूमि सुधार और गरीबों के कल्याण पर ध्यान दिया। मुख्यमंत्री (1980-1982): इंदिरा गांधी की दूसरी सरकार के दौरान, वी.पी. सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इस दौरान उन्होंने डकैतों और अपराध के खिलाफ सख्त कार्रवाई की, जिसने उनकी छवि को एक कठोर प्रशासक के रूप में स्थापित किया।
केंद्र में भूमिका: वाणिज्य मंत्री (1976-1977): इंदिरा गांधी की सरकार में वे वाणिज्य मंत्री रहे और भारत के निर्यात को बढ़ाने की दिशा में काम किया। वित्त और रक्षा मंत्री (1984-1987): राजीव गांधी की सरकार में वी.पी. सिंह ने पहले वित्त मंत्री (1984-1987) और फिर रक्षा मंत्री (1987) के रूप में काम किया। वित्त मंत्री के रूप में, उन्होंने कर सुधार और आर्थिक उदारीकरण की दिशा में कदम उठाए। हालांकि, बोफोर्स घोटाले की जाँच शुरू करने के बाद उनकी राजीव गांधी से अनबन हो गई। कांग्रेस से अलगाव और जनता दल कांग्रेस छोड़ना: 1987 में, बोफोर्स घोटाले की जाँच के मुद्दे पर वी.पी. सिंह ने राजीव गांधी की सरकार से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद, उन्हें कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया। जनमोर्चा और जनता दल: 1988 में, वी.पी. सिंह ने जनमोर्चा नामक एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई, जो बाद में जनता दल में विलय हो गई। जनता दल विभिन्न क्षेत्रीय और समाजवादी दलों का गठबंधन था, जिसमें भारतीय लोकदल, जनता पार्टी, और अन्य शामिल थे।
प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (2 दिसंबर 1989 - 10 नवंबर 1990) 1989 के आम चुनाव में, जनता दल के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा (National Front) ने कांग्रेस को हराया। वी.पी. सिंह को गठबंधन का नेता चुना गया, और वे 2 दिसंबर 1989 को भारत के सातवें प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार को भारतीय जनता पार्टी (BJP) और वामपंथी दलों का बाहरी समर्थन प्राप्त था। उनका कार्यकाल केवल 11 महीने का रहा, लेकिन यह सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से ऐतिहासिक था।
प्रमुख नीतियाँ और उपलब्धियाँ मंडल आयोग की सिफारिशों का कार्यान्वयन: वी.पी. सिंह की सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद उपलब्धि मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना था। 1980 में गठित मंडल आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में 27% आरक्षण की सिफारिश की थी। 7 अगस्त 1990 को, वी.पी. सिंह ने इस सिफारिश को लागू करने की घोषणा की। इस फैसले ने भारत में सामाजिक न्याय और आरक्षण की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया। प्रभाव: इस नीति ने OBC समुदायों को सशक्त बनाया और क्षेत्रीय दलों, जैसे समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल, को मजबूत किया। हालांकि, इसने उच्च वर्गों और शहरी मध्यम वर्ग में भारी विरोध को जन्म दिया, जिसके परिणामस्वरूप देशभर में प्रदर्शन और आत्मदाह की घटनाएँ हुईं।
आर्थिक नीतियाँ: वी.पी. सिंह की सरकार ने आर्थिक उदारीकरण को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उनके छोटे कार्यकाल और गठबंधन की अस्थिरता ने इसे सीमित कर दिया। उनकी सरकार ने ग्रामीण विकास और छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन देने पर ध्यान दिया, जो उनकी समाजवादी विचारधारा को दर्शाता था। सामाजिक न्याय: वी.पी. सिंह ने दलितों, आदिवासियों और अन्य वंचित वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ शुरू कीं। उनकी नीतियाँ सामाजिक समानता और समावेशी विकास पर केंद्रित थीं। पंजाब और कश्मीर में शांति प्रयास: वी.पी. सिंह ने पंजाब में आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिए बातचीत और शांति प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की, लेकिन ज्यादा सफलता नहीं मिली। कश्मीर में उभरते अलगाववाद को संबोधित करने के लिए भी प्रयास किए गए, लेकिन गठबंधन की अस्थिरता ने इन प्रयासों को कमजोर किया।
बोफोर्स घोटाले की जाँच: वी.पी. सिंह ने बोफोर्स घोटाले की जाँच को और गंभीरता से आगे बढ़ाया। उनकी सरकार ने इस मामले में पारदर्शिता लाने की कोशिश की, जिसने उनकी साफ-सुथरी छवि को मजबूत किया। चुनौतियाँ मंडल आयोग विवाद: मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला सामाजिक और राजनीतिक रूप से ध्रुवीकरण करने वाला था। उच्च वर्गों और शहरी मध्यम वर्ग में भारी विरोध हुआ, जिसने उनकी सरकार की लोकप्रियता को प्रभावित किया। देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों और आत्मदाह की घटनाओं ने सामाजिक तनाव को बढ़ा दिया। गठबंधन की अस्थिरता: वी.पी. सिंह की सरकार राष्ट्रीय मोर्चा गठबंधन पर निर्भर थी, जिसे बीजेपी और वामपंथी दलों का बाहरी समर्थन था। इन दलों की अलग-अलग विचारधाराएँ सरकार को अस्थिर बनाती थीं।
राम मंदिर आंदोलन: 1980 के दशक के अंत में, बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन तेज कर दिया। वी.पी. सिंह ने इस मुद्दे पर संतुलन बनाने की कोशिश की, लेकिन बीजेपी ने मंडल आयोग के विरोध में अपनी समर्थन वापसी की धमकी दी। 1990 में, लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा ने सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा दिया, और बीजेपी ने अंततः सरकार से समर्थन वापस ले लिया। आर्थिक संकट: 1990 तक, भारत एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, जिसमें विदेशी मुद्रा भंडार की कमी और उच्च राजकोषीय घाटा शामिल था। वी.पी. सिंह की सरकार इस संकट से प्रभावी ढंग से निपटने में असमर्थ रही। सरकार का पतन: मंडल आयोग और राम मंदिर आंदोलन के कारण बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद, चंद्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल का एक गुट अलग हो गया। 7 नवंबर 1990 को, वी.पी. सिंह ने लोकसभा में विश्वास मत खो दिया और 10 नवंबर 1990 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
बाद का जीवन राजनीति में भूमिका: इस्तीफे के बाद, वी.पी. सिंह ने सक्रिय राजनीति में सीमित भूमिका निभाई। उन्होंने जनता दल को मजबूत करने की कोशिश की, लेकिन पार्टी की आंतरिक कलह और क्षेत्रीय दलों के उदय ने उनकी स्थिति को कमजोर किया। सामाजिक कार्य: उन्होंने सामाजिक न्याय और गरीबों के कल्याण के लिए काम जारी रखा। वे अपनी समाजवादी विचारधारा और सादगी के लिए जाने जाते रहे। कला और लेखन: वी.पी. सिंह एक कुशल चित्रकार और लेखक भी थे। उन्होंने कई कविताएँ और लेख लिखे, जो उनकी बौद्धिक गहराई को दर्शाते हैं। निधन: 27 नवंबर 2008 को दिल्ली में कैंसर और गुर्दे की बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के समय उनकी उम्र 77 वर्ष थी। व्यक्तिगत विशेषताएँ और विचारधारा सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता: वी.पी. सिंह एक समाजवादी नेता थे, जिन्होंने सामाजिक न्याय और वंचित वर्गों के उत्थान को अपनी राजनीति का केंद्र बनाया। मंडल आयोग का कार्यान्वयन उनकी इस विचारधारा का सबसे बड़ा उदाहरण है।
सादगी और नैतिकता: अपनी राजसी पृष्ठभूमि के बावजूद, वे सादगी और नैतिकता के लिए जाने जाते थे। बोफोर्स घोटाले की जाँच में उनकी भूमिका ने उनकी ईमानदार छवि को मजबूत किया। विवाद: मंडल आयोग और राम मंदिर जैसे मुद्दों ने उनकी छवि को ध्रुवीकृत किया। कुछ लोग उन्हें सामाजिक न्याय का चैंपियन मानते हैं, जबकि अन्य उनकी नीतियों को सामाजिक तनाव का कारण मानते हैं। विरासत वी.पी. सिंह का कार्यकाल भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उनकी विरासत को निम्नलिखित बिंदुओं में देखा जा सकता है
मंडल आयोग और सामाजिक न्याय: मंडल आयोग की सिफारिशों ने OBC समुदायों को सशक्त बनाया और भारत में आरक्षण की राजनीति को नया आयाम दिया। इसने क्षेत्रीय दलों और सामाजिक न्याय की राजनीति को मजबूत किया।
बोफोर्स और भ्रष्टाचार विरोधी छवि: बोफोर्स घोटाले की जाँच ने भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाया। यह भारत में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों की नींव बना।
गठबंधन राजनीति: उनकी सरकार गठबंधन राजनीति का एक प्रारंभिक उदाहरण थी, जिसने बाद में भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों की परंपरा को मजबूत किया।
विवाद और प्रभाव: मंडल आयोग और राम मंदिर आंदोलन ने भारत में सामाजिक और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाया, जिसका प्रभाव आज भी देखा जाता है।
स्मृति: उनके सम्मान में कई संस्थानों और योजनाओं का नामकरण किया गया है, जैसे वी.पी. सिंह मेमोरियल। उनकी समाजवादी विचारधारा आज भी समाजवादी पार्टी और अन्य क्षेत्रीय दलों में जीवित है।
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