Morarji Desai
jp Singh
2025-05-28 11:19:14
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मोरारजी देसाई
मोरारजी देसाई
मोरारजी देसाई (29 फरवरी 1896 - 10 अप्रैल 1995) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता और चौथे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक देश का नेतृत्व किया। वे भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे और जनता पार्टी के नेतृत्व में उनकी सरकार ने आपातकाल (1975-1977) के बाद देश में लोकतांत्रिक मूल्यों की बहाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जन्म और परिवार: मोरारजी रणछोड़जी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को गुजरात के वलसाड जिले के भदेली गाँव में एक अनाविल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई एक स्कूल शिक्षक थे। मोरारजी का जन्म एक लीप वर्ष में हुआ, जिसके कारण उनका जन्मदिन हर चार साल में आता था, और यह उनकी व्यक्तित्व की अनूठी विशेषता थी। शिक्षा: उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुजरात में पूरी की और बाद में मुंबई के प्रसिद्ध विल्सन कॉलेज से स्नातक की डिग्री (1913) हासिल की। उनकी शैक्षणिक उपलब्धियाँ और अनुशासित जीवनशैली ने उन्हें शुरुआती उम्र में ही एक जिम्मेदार और मेहनती व्यक्ति के रूप में स्थापित किया। प्रारंभिक करियर: 1918 में, उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन में डिप्टी कलेक्टर के रूप में नौकरी शुरू की और गुजरात के विभिन्न हिस्सों में प्रशासनिक कार्य किए। हालांकि, राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें इस नौकरी को छोड़ने के लिए प्रेरित किया।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेश: 1930 में, मोरारजी देसाई ने ब्रिटिश नौकरी छोड़ दी और महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। वे नमक सत्याग्रह (1930) और असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण कई बार जेल गए। गांधीवादी सिद्धांतों का प्रभाव: देसाई गांधी के सत्य, अहिंसा और स्वदेशी के सिद्धांतों से गहरे प्रभावित थे। उन्होंने खादी को अपनाया और सादगी भरे जीवन को प्राथमिकता दी। नेतृत्व भूमिका: वे गुजरात में कांग्रेस के एक प्रभावशाली नेता बने और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। उनकी संगठनात्मक क्षमता और जनता से जुड़ने की कला ने उन्हें एक मजबूत आधार प्रदान किया। स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक करियर स्वतंत्रता के बाद, मोरारजी देसाई ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाया। उनका करियर राज्य और केंद्रीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण भूमिकाओं से भरा हुआ है
राज्य स्तर पर योगदान
बंबई राज्य के मुख्यमंत्री (1952-1956): मोरारजी देसाई बंबई राज्य (जो तब गुजरात और महाराष्ट्र को मिलाकर बना था) के मुख्यमंत्री बने। इस दौरान उन्होंने कई प्रशासनिक और सामाजिक सुधार किए: भूमि सुधार: उन्होंने जमींदारी प्रथा को समाप्त करने और भूमिहीन किसानों को जमीन देने के लिए नीतियाँ लागू कीं। शिक्षा और बुनियादी ढांचा: शिक्षा और ग्रामीण विकास पर ध्यान दिया, जिससे बंबई राज्य में आधारभूत सुविधाओं का विकास हुआ। शराबबंदी: देसाई शराबबंदी के कट्टर समर्थक थे और उन्होंने इसे लागू करने के लिए कठोर कदम उठाए, जो गांधीवादी सिद्धांतों से प्रेरित था। गुजरात में प्रभाव: उनकी नीतियों ने गुजरात में कांग्रेस की स्थिति को मजबूत किया और उन्हें एक कुशल प्रशासक के रूप में पहचान मिली। केंद्र में भूमिका केंद्रीय मंत्रिमंडल (1956-1969): 1956 में, जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में वाणिज्य और उद्योग मंत्री के रूप में शामिल किया। उनकी आर्थिक नीतियाँ उदारवादी थीं, जो निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करती थीं।
1967 में, इंदिरा गांधी के नेतृत्व में वे वित्त मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। इस दौरान उन्होंने भारत की आर्थिक नीतियों को मजबूत करने की दिशा में काम किया, लेकिन उनकी रूढ़िवादी नीतियाँ और इंदिरा गांधी के समाजवादी दृष्टिकोण के बीच मतभेद उभरे। कांग्रेस में विभाजन (1969): 1969 में, कांग्रेस पार्टी में विभाजन हुआ। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस (R) और देसाई के नेतृत्व वाली कांग्रेस (O) दो अलग-अलग धड़े बन गए। देसाई ने सिंडिकेट (कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का समूह) का नेतृत्व किया, लेकिन इंदिरा गांधी की लोकप्रियता के सामने उनकी स्थिति कमजोर हुई।
प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (1977-1979) 1977 का आम चुनाव भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ था। आपातकाल (1975-1977) के बाद जनता में इंदिरा गांधी और कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा था। जनता पार्टी, जो विभिन्न दलों (जैसे जनसंघ, समाजवादी, और कांग्रेस (O)) का गठबंधन थी, ने भारी जीत हासिल की। मोरारजी देसाई को इस गठबंधन का नेता चुना गया और वे 24 मार्च 1977 को भारत के चौथे प्रधानमंत्री बने।
प्रमुख नीतियाँ और उपलब्धियाँ लोकतंत्र की बहाली: आपातकाल के दौरान लागू कई कठोर कानूनों, जैसे प्रेस सेंसरशिप और नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, को हटाया गया। संविधान में 44वां संशोधन लाया गया, जिसने आपातकाल की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए प्रावधान किए। प्रेस की स्वतंत्रता को पुनः स्थापित किया गया, जिसे आपातकाल में दबा दिया गया था। आर्थिक नीतियाँ: देसाई की सरकार ने गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित आर्थिक नीतियों को बढ़ावा दिया, जिसमें ग्रामीण विकास, छोटे और कुटीर उद्योगों को प्राथमिकता दी गई। उन्होंने निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देने की कोशिश की, लेकिन उनकी नीतियाँ समाजवादी और उदारवादी विचारधाराओं के बीच संतुलन बनाने में कमजोर रहीं। शराबबंदी को लागू करने का प्रयास जारी रखा, लेकिन इसे लेकर जनता और नेताओं में मतभेद रहे।
विदेश नीति: देसाई ने गुट-निरपेक्ष नीति को मजबूत किया और भारत को वैश्विक मंच पर एक संतुलित भूमिका में रखा। उन्होंने पाकिस्तान और चीन के साथ संबंध सुधारने की कोशिश की। 1977 में पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक के साथ उनकी बातचीत ने दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने में मदद की। परमाणु नीति: देसाई परमाणु हथियारों के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने भारत के परमाणु कार्यक्रम को केवल शांतिपूर्ण उपयोग (जैसे ऊर्जा उत्पादन) तक सीमित करने की वकालत की। यह नीति कुछ हद तक विवादास्पद रही, क्योंकि कई लोग भारत की रक्षा क्षमता को मजबूत करना चाहते थे। सामाजिक सुधार: देसाई ने सामाजिक समानता और ग्रामीण विकास पर जोर दिया। उनकी सरकार ने पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने की कोशिश की।
चुनौतियाँ गठबंधन की अस्थिरता: जनता पार्टी विभिन्न विचारधाराओं वाले दलों का गठबंधन थी, जिसमें जनसंघ (जो बाद में बीजेपी बना), समाजवादी, और अन्य शामिल थे। इस गठबंधन में नेताओं के बीच वैचारिक और व्यक्तिगत मतभेद थे। आंतरिक कलह: चरण सिंह (गृह मंत्री) और जगजीवन राम जैसे नेताओं के साथ देसाई के मतभेद उभरे। चरण सिंह ने सरकार के खिलाफ बगावत कर दी, जिससे सरकार कमजोर हुई। आर्थिक समस्याएँ: मुद्रास्फीति और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निपटने में सरकार पूरी तरह सफल नहीं रही। गठबंधन की आंतरिक असहमति ने नीति निर्माण को प्रभावित किया। सार्वजनिक धारणा: देसाई की कुछ नीतियाँ, जैसे शराबबंदी और परमाणु हथियारों का विरोध, जनता और बुद्धिजीवियों के बीच विवादास्पद रहीं।
सरकार का पतन 1979 में, चरण सिंह के नेतृत्व में जनता पार्टी का एक गुट अलग हो गया। उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा और देसाई के नेतृत्व से असंतुष्टि के कारण बगावत की। इसके परिणामस्वरूप, देसाई की सरकार ने लोकसभा में बहुमत खो दिया, और 28 जुलाई 1979 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद चरण सिंह ने कांग्रेस के समर्थन से अल्पकालिक सरकार बनाई, लेकिन वह भी जल्दी गिर गई।
बाद का जीवन और विरासत सेवानिवृत्ति: 1979 के बाद, मोरारजी देसाई ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। वे मुंबई में रहने लगे और सामाजिक कार्यों, विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान दिया। पुरस्कार: 1991 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1988 में, पाकिस्तान ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया, जो भारत-पाक संबंधों में उनके योगदान का प्रतीक था। यह सम्मान एक भारतीय नेता के लिए दुर्लभ था और कुछ हद तक विवादास्पद भी रहा। निधन: 10 अप्रैल 1995 को मुंबई में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के समय उनकी उम्र 99 वर्ष थी।
व्यक्तिगत विशेषताएँ और विवाद सादगी और अनुशासन: देसाई अपने सादगी भरे जीवन और कठोर अनुशासन के लिए जाने जाते थे। वे नियमित रूप से योग, ध्यान और प्राकृतिक चिकित्सा का अभ्यास करते थे। उनकी दिनचर्या में सुबह जल्दी उठना और स्वस्थ जीवनशैली शामिल थी। स्वमूत्र चिकित्सा: देसाई ने स्वमूत्र चिकित्सा (यूरोथेरेपी) को अपनाने की वकालत की, जिसे वे अपने स्वास्थ्य का रहस्य बताते थे। इस प्रथा ने उन्हें व्यापक चर्चा और आलोचना का विषय बनाया। रूढ़िवादी विचार: उनकी शराबबंदी और परमाणु हथियारों के विरोध जैसे विचारों को कुछ लोग रूढ़िगत मानते थे, जबकि अन्य इसे उनके नैतिक सिद्धांतों का हिस्सा मानते थे। विरासत और मूल्यांकन मोरारजी देसाई को भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाता है। उनकी प्रमुख उपलब्धियाँ और योगदान निम्नलिखित हैं
लोकतंत्र का रक्षक: आपातकाल के बाद उनकी सरकार ने लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत किया और नागरिक स्वतंत्रता को पुनः स्थापित किया। गांधीवादी सिद्धांत: उनकी नीतियाँ और जीवनशैली गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित थीं, जो आत्मनिर्भरता और सादगी को बढ़ावा देती थीं। गैर-कांग्रेसी शासन: वे पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने भारत में वैकल्पिक राजनीति की नींव रखी। हालांकि, उनकी सरकार की अस्थिरता ने गठबंधन राजनीति की सीमाओं को उजागर किया।
विवाद और आलोचना: उनकी कुछ नीतियाँ और व्यक्तिगत विश्वास (जैसे स्वमूत्र चिकित्सा) ने उन्हें विवादों में डाला। साथ ही, गठबंधन की अस्थिरता ने उनकी सरकार की प्रभावशीलता को सीमित किया।
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jp Singh
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