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Indra Gandhi
jp Singh 2025-05-28 10:49:08
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इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी
जिन्होंने 24 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1977 तक और फिर 14 जनवरी 1980 से 31 अक्टूबर 1984 तक दो कार्यकालों में भारत की प्रधानमंत्री के रूप में सेवा की। वह भारत की पहली और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री थीं और स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक केंद्रीय व्यक्तित्व थीं। इंदिरा गांधी जवाहरलाल नेहरू की बेटी थीं और उनकी नीतियों, नेतृत्व शैली, और दृढ़ निर्णयों ने भारत को आर्थिक, सामाजिक, और भू-राजनीतिक रूप से आकार दिया। उनका कार्यकाल उपलब्धियों और विवादों से भरा रहा, जिसमें 1971 का भारत-पाक युद्ध, हरित क्रांति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, आपातकाल (1975-77), और ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी प्रमुख घटनाएँ शामिल हैं।
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म और परिवार: इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में एक प्रमुख कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ। उनके पिता जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्रता संग्राम के नेता और भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, और उनकी माँ कमला नेहरू एक स्वतंत्रता सेनानी थीं। इंदिरा नेहरू परिवार की इकलौती संतान थीं और अपने पिता के बहुत करीब थीं। जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें विश्व इतिहास, दर्शन, और राजनीति के बारे में पत्रों के माध्यम से शिक्षित किया, जो बाद में उनकी पुस्तक
विवाह और व्यक्तिगत जीवन: 1942 में, इंदिरा ने फिरोज गांधी, एक पारसी पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी, से विवाह किया। यह विवाह उस समय विवादास्पद था, क्योंकि यह अंतर-धार्मिक था और जवाहरलाल नेहरू की सहमति के बिना हुआ। उनके दो बेटे थे: राजीव गांधी (बाद में भारत के प्रधानमंत्री) और संजय गांधी (जो उनकी माँ के राजनीतिक सलाहकार थे)। फिरोज गांधी की 1960 में हृदय रोग से मृत्यु हो गई, जिसके बाद इंदिरा ने अपने बच्चों को अकेले पाला।
2. स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
प्रारंभिक भागीदारी: इंदिरा गांधी बचपन से ही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी थीं। 1930 में, केवल 12 वर्ष की आयु में, उन्होंने इलाहाबाद में बच्चों के लिए वानर सेना संगठन बनाया, जो स्वतंत्रता आंदोलन में सहायता करता था। वे अपने पिता और माँ के साथ कई रैलियों और बैठकों में शामिल होती थीं और स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों में सक्रिय थीं। प्रमुख आंदोलन: सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34): इंदिरा ने इस आंदोलन में छोटी भूमिकाएँ निभाईं, जैसे संदेश पहुँचाना और प्रदर्शनों में भाग लेना। भारत छोड़ो आंदोलन (1942): इंदिरा ने इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और 1942 में गिरफ्तार हुईं। उन्हें नैनी जेल में रखा गया, जहाँ उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया। राजनीतिक प्रशिक्षण: जवाहरलाल नेहरू के साथ निकटता ने इंदिरा को राजनीति और कूटनीति में प्रारंभिक प्रशिक्षण दिया। उन्होंने अपने पिता के साथ विदेश यात्राएँ कीं और वैश्विक नेताओं से मुलाकात की, जिसने उनकी राजनीतिक समझ को विकसित
3. स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक करियर
प्रारंभिक भूमिकाएँ: स्वतंत्रता के बाद, इंदिरा ने अपने पिता जवाहरलाल नेहरू के अनौपचारिक सलाहकार और निजी सचिव के रूप में काम किया। वे उनके साथ विदेश यात्राओं पर जाती थीं और कूटनीतिक बैठकों में सहायता करती थीं। 1955 में, वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति की सदस्य बनीं और 1959 में कांग्रेस अध्यक्ष चुनी गईं। इस भूमिका में, उन्होंने पार्टी को संगठित करने और आंतरिक मतभेदों को सुलझाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लोकसभा में प्रवेश: 1964 में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद, इंदिरा को लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया। इस दौरान, उन्होंने रेडियो और मीडिया के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दिया।
प्रधानमंत्री बनना: लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु (11 जनवरी 1966) के बाद, कांग्रेस में नेतृत्व के लिए प्रतिस्पर्धा शुरू हुई। मोरारजी देसाई और इंदिरा गांधी प्रमुख दावेदार थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं (जिन्हें सिंडिकेट के नाम से जाना जाता था) ने इंदिरा को चुना, क्योंकि उन्हें जवाहरलाल नेहरू की विरासत का प्रतीक और एक कमजोर उम्मीदवार माना गया, जिसे वे नियंत्रित कर सकते थे। हालांकि, इंदिरा ने जल्द ही अपनी स्वतंत्रता और नेतृत्व क्षमता साबित की।
4. प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (1966-1977 और 1980-1984)
इंदिरा गांधी का कार्यकाल दो चरणों में विभाजित है: पहला कार्यकाल (1966-1977) और दूसरा कार्यकाल (1980-1984)। उनका नेतृत्व उपलब्धियों, सुधारों, और विवादों का मिश्रण था।
4.1 पहला कार्यकाल (1966-1977)
4.1.1 आर्थिक नीतियाँ और समाजवादी सुधार: बैंकों का राष्ट्रीयकरण (1969): इंदिरा ने 14 प्रमुख निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, ताकि ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएँ पहुँच सकें। इस कदम ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया और उनकी समाजवादी छवि को बढ़ाया। 1980 में, उनके दूसरे कार्यकाल में, छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार: इंदिरा ने जमींदारी प्रथा को समाप्त करने और भूमि सुधारों को लागू करने के लिए नीतियाँ बनाईंौ, जिसका उद्देश्य भूमिहीन किसानों को जमीन देना और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना था।
हरित क्रांति: इंदिरा ने लाल बहादुर शास्त्री द्वारा शुरू की गई हरित क्रांति को गति दी। सी. सुब्रमण्यम और वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में उच्च उपज वाली फसलों, उर्वरकों, और सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार हुआ। परिणामस्वरूप, 1960 के दशक के अंत तक भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया।
4.1.2 1971 का भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश का निर्माण: पृष्ठभूमि: 1971 में, पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना ने मुक्ति वाहिनी और बंगाली नागरिकों के खिलाफ क्रूर दमन शुरू किया। इसके परिणामस्वरूप लाखों शरणार्थी भारत में आए, जिसने भारत पर आर्थिक और सामाजिक दबाव डाला। इंदिरा की भूमिका: इंदिरा ने शरणार्थियों को सहायता प्रदान की और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन माँगा। उन्होंने सोवियत संघ के साथ 1971 में मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसने भारत को सैन्य और कूटनीतिक समर्थन दिया। दिसंबर 1971 में, जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया, इंदिरा ने भारतीय सेना को जवाबी कार्रवाई का आदेश दिया। भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में तेजी से बढ़त हासिल की और 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया।
परिणाम: इस युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। यह इंदिरा के नेतृत्व की सबसे बड़ी उपलब्धि थी और उनकी वैश्विक छवि को मजबूत किया। शीमला समझौता (1972): युद्ध के बाद, इंदिरा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शीमला समझौता किया, जिसमें दोनों देशों ने शांति और द्विपक्षीय समाधान की प्रतिबद्धता जताई। प्रभाव: 1971 का युद्ध भारत की सैन्य और कूटनीतिक शक्ति का प्रतीक था। इसने इंदिरा को
4.1.3 आपातकाल (1975-1977): पृष्ठभूमि: 1970 के दशक में, भारत में आर्थिक संकट, महंगाई, और बेरोजगारी बढ़ रही थी। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में विपक्षी आंदोलन और नवनिर्माण आंदोलन ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन तेज किए। 1975 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा के 1971 के चुनाव को अवैध घोषित किया, जिसके कारण उनकी सांसदी रद्द हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर आंशिक रोक लगाई, लेकिन विपक्ष ने उनके इस्तीफे की माँग की। आपातकाल की घोषणा: 25 जून 1975 को, इंदिरा ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की, जिसमें संवैधानिक अधिकार (जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) निलंबित कर दिए गए। विपक्षी नेताओं, जैसे जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, और अटल बिहारी वाजपेयी, को गिरफ्तार किया गया। प्रेस पर सेंसरशिप लागू की गई, और सरकार ने कठोर नीतियाँ लागू कीं, जैसे नसबंदी अभियान (संजय गांधी के नेतृत्व में) और झुग्गी-झोपड़ी हटाने का कार्यक्रम।
कुछ क्षेत्रों में, जैसे रेलवे और प्रशासन, कार्यकुशलता बढ़ी, लेकिन नागरिक स्वतंत्रताओं पर हमला और जबरन नसबंदी ने जनता में असंतोष पैदा किया। आपातकाल का अंत: जनवरी 1977 में, इंदिरा ने आपातकाल हटाया और आम चुनावों की घोषणा की। 1977 के चुनावों में, जनता पार्टी (विपक्षी गठबंधन) ने कांग्रेस को हराया, और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
4.2 दूसरा कार्यकाल (1980-1984)
4.2.1 सत्ता में वापसी: 1977 के चुनावों में हार के बाद, इंदिरा ने अपनी गलतियों से सीखा और जनता के बीच वापसी की। 1980 के आम चुनावों में, कांग्रेस ने भारी जीत हासिल की, और इंदिरा फिर से प्रधानमंत्री बनीं। उनकी वापसी का कारण जनता पार्टी सरकार की अस्थिरता और इंदिरा की
4.2.2 पंजाब संकट और ऑपरेशन ब्लू स्टार: पृष्ठभूमि: 1980 के दशक में, पंजाब में खालिस्तान आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया। जरनैल सिंह भिंडरावाले के नेतृत्व में सिख उग्रवादियों ने अलगाववादी माँगें उठाईं और हिंसा को बढ़ावा दिया। भिंडरावाले और उनके समर्थकों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को अपने आधार के रूप में इस्तेमाल किया। ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984): जून 1984 में, इंदिरा ने स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को हटाने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार का आदेश दिया। भारतीय सेना ने मंदिर परिसर में प्रवेश किया, जिसके परिणामस्वरूप भारी हिंसा हुई और कई लोग मारे गए। इस ऑपरेशन ने सिख समुदाय में गहरा असंतोष पैदा किया, क्योंकि स्वर्ण मंदिर सिखों का पवित्र स्थल है। प्रभाव: ऑपरेशन ब्लू स्टार इंदिरा के सबसे विवादास्पद निर्णयों में से एक था। इसने सिख समुदाय के एक हिस्से को अलग-थलग कर दिया और उनके खिलाफ हिंसा को भड़काया।
4.2.3 अन्य नीतियाँ और उपलब्धियाँ: आर्थिक सुधार: अपने दूसरे कार्यकाल में, इंदिरा ने समाजवादी नीतियों को कुछ हद तक उदार बनाया। उन्होंने निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया और विदेशी निवेश को आकर्षित करने की कोशिश की। विदेश नीति: इंदिरा ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) को मजबूत किया। 1983 में, भारत ने NAM शिखर सम्मेलन की मेजबानी की। उन्होंने सोवियत संघ के साथ संबंधों को और मजबूत किया, लेकिन अमेरिका के साथ भी कूटनीतिक संतुलन बनाए रखा। परमाणु कार्यक्रम: 1974 में, उनके पहले कार्यकाल में, भारत ने पोखरण-I (कोडनेम: स्माइलिंग बुद्धा) के तहत पहला परमाणु परीक्षण किया। यह भारत की वैज्ञानिक और सामरिक शक्ति का प्रतीक था। उनके दूसरे कार्यकाल में, परमाणु कार्यक्रम को और विकसित किया गया।
4.2.4 हत्या: घटना: 31 अक्टूबर 1984 को, इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों, सतवंत सिंह और बेअंत सिंह, ने नई दिल्ली में उनके आधिकारिक निवास पर गोली मारकर हत्या कर दी। यह हत्या ऑपरेशन ब्लू स्टार के प्रतिशोध में की गई थी। प्रभाव: इंदिरा की हत्या के बाद, दिल्ली और अन्य शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे, जिसमें हजारों सिख मारे गए। इन दंगों ने कांग्रेस सरकार की छवि को धूमिल किया। इंदिरा की मृत्यु के बाद, उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने।
5. व्यक्तिगत विशेषताएँ और योगदान
नेतृत्व शैली: इंदिरा गांधी एक दृढ़ और करिश्माई नेता थीं। उनकी
6. महत्व और प्रभाव
1971 का युद्ध और बांग्लादेश: 1971 का युद्ध इंदिरा की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। इसने भारत को दक्षिण एशिया में एक प्रमुख शक्ति बनाया और बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाई। हरित क्रांति: इंदिरा की नीतियों ने भारत को खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर ले गया, जिसने लाखों लोगों की भुखमरी को रोका। बैंकों का राष्ट्रीयकरण: इस कदम ने ग्रामीण भारत में बैंकिंग को पहुँचाया और आर्थिक समावेशन को बढ़ावा दिया। आपातकाल: आपातकाल ने भारत के लोकतंत्र पर गहरा प्रभाव डाला और इसे इंदिरा की सबसे बड़ी आलोचना के रूप में देखा जाता है। हालांकि, इसने विपक्ष को एकजुट करने और लोकतंत्र की मजबूती को भी प्रदर्शित किया। पंजाब और सिख उग्रवाद: ऑपरेशन ब्लू स्टार और इसके परिणामस्वरूप उनकी हत्या ने पंजाब में लंबे समय तक अस्थिरता पैदा की।
7. आलोचनाएँ और विवाद8. विरासत:
आपातकाल (1975-77): आपातकाल को भारत के लोकतंत्र पर हमला माना जाता है। प्रेस सेंसरशिप, नागरिक स्वतंत्रताओं का निलंबन, और जबरन नसबंदी ने उनकी छवि को नुकसान पहुँचाया। ऑपरेशन ब्लू स्टार: इस ऑपरेशन ने सिख समुदाय को आहत किया और सिख उग्रवाद को बढ़ावा दिया। इसकी योजना और निष्पादन पर सवाल उठे। केंद्रीकृत नेतृत्व: इंदिरा पर कांग्रेस पार्टी और सरकार में केंद्रीकरण का आरोप लगा। उन्होंने अपने बेटे संजय गांधी को प्रमुख भूमिका दी, जिसे कई लोग अनुचित मानते थे। सिख विरोधी दंगे: उनकी हत्या के बाद हुए दंगों में कांग्रेस नेताओं की कथित संलिप्तता ने उनकी पार्टी की छवि को धूमिल किया।
8. विरासत
पुरस्कार: 1971 में, इंदिरा गांधी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्हें बांग्लादेश ने स्वाधीनता सम्मान से सम्मानित किया, जो उनकी 1971 के युद्ध में भूमिका को दर्शाता है। स्मारक और संस्थान: उनके नाम पर कई संस्थान और स्मारक स्थापित किए गए, जैसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) और इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट। महिला नेतृत्व: इंदिरा भारत और विश्व में महिला नेतृत्व का प्रतीक बनीं। उनकी
9. व्यक्तिगत जीवन के कुछ अनछुए पहलू
संजय गांधी की भूमिका: इंदिरा अपने छोटे बेटे संजय के बहुत करीब थीं। संजय ने आपातकाल के दौरान नसबंदी और झुग्गी हटाने जैसे विवादास्पद कार्यक्रमों का नेतृत्व किया। उनकी मृत्यु (1980 में विमान दुर्घटना) ने इंदिरा को गहरा आघात पहुँचाया। राजीव गांधी: उनकी हत्या के बाद, उनके बड़े बेटे राजीव गांधी ने उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया और 1984-89 तक प्रधानमंत्री रहे। स्वास्थ्य और व्यक्तिगत संघर्ष: इंदिरा ने अपने जीवन में कई व्यक्तिगत चुनौतियों का सामना किया, जैसे माँ की असमय मृत्यु, पति की मृत्यु, और बेटे संजय की मृत्यु। इनके बावजूद, उन्होंने दृढ़ता से नेतृत्व किया।
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