Lal Bahadur Shastri
jp Singh
2025-05-28 10:40:38
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लाल बहादुर शास्त्री
लाल बहादुर शास्त्री
लाल बहादुर शास्त्री स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 तक इस पद पर कार्य किया। वे एक सादगी पसंद, ईमानदार, और दृढ़ निश्चयी नेता थे, जिन्होंने भारत को 1965 के भारत-पाक युद्ध में विजय दिलाई और
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म और परिवार: लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगरिया (मुगलसराय), उत्तर प्रदेश (अब चंदौली जिला) में एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ। उनका मूल नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था, लेकिन उन्होंने
विवाह और व्यक्तिगत जीवन: 1928 में, शास्त्री जी का विवाह ललिता देवी से हुआ, जो एक साधारण और समर्पित गृहिणी थीं। उनके छह बच्चे थे, जिनमें अनिल शास्त्री और सुनील शास्त्री बाद में राजनीति में सक्रिय रहे। शास्त्री जी अपनी सादगी के लिए प्रसिद्ध थे। वे सादा जीवन जिया करते थे और कभी भी सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग नहीं किया।
2. स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
प्रारंभिक भागीदारी: शास्त्री जी 1920 के दशक में असहयोग आंदोलन (1920-22) से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए। वे महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के विचारों से प्रेरित थे। 1921 में, मात्र 17 वर्ष की आयु में, उन्होंने पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और पहली बार गिरफ्तार हुए। प्रमुख आंदोलन: सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34): शास्त्री जी ने नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया और कई बार जेल गए। उन्होंने इलाहाबाद और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के आंदोलनों को संगठित किया। भारत छोड़ो आंदोलन (1942): शास्त्री जी इस आंदोलन में सक्रिय थे और भूमिगत गतिविधियों में शामिल रहे। उनकी गिरफ्तारी हुई और वे 1942-45 तक जेल में रहे। सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी: शास्त्री जी लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी से जुड़े, जो सामाजिक सेवा और स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित थी। इस संगठन ने उनकी नेतृत्व क्षमता को निखारा।
नेतृत्व और संगठन: शास्त्री जी एक कुशल संगठनकर्ता थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के आधार को मजबूत किया और गांधीवादी सिद्धांतों को जन-जन तक पहुँचाया। उनकी सादगी और निष्ठा ने उन्हें कांग्रेस के भीतर सम्मान दिलाया।
3. स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक करियर
उत्तर प्रदेश में भूमिका: स्वतंत्रता के बाद, शास्त्री जी उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे। वे 1947 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए और पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में पुलिस और परिवहन मंत्री बने। परिवहन मंत्री के रूप में, उन्होंने महिलाओं के लिए बसों में कंडक्टर की नौकरी शुरू करने की पहल की, जो उस समय एक प्रगतिशील कदम था। केंद्रीय मंत्रिमंडल में: 1951 में, शास्त्री जी को जवाहरलाल नेहरू ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया। वे रेल मंत्री (1952-56), परिवहन और संचार मंत्री, और गृह मंत्री (1961-63) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे। रेल दुर्घटना और इस्तीफा: 1956 में तमिलनाडु में एक रेल दुर्घटना के बाद, शास्त्री जी ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। यह उनकी ईमानदारी और जवाबदेही का प्रतीक था।
4. प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (1964-1966)
लाल बहादुर शास्त्री 9 जून 1964 को जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने। उनका कार्यकाल केवल 19 महीने का था, लेकिन इस दौरान उन्होंने कई ऐतिहासिक कदम उठाए।
4.1 आर्थिक और खाद्य संकट का समाधान
पृष्ठभूमि: 1960 के दशक में भारत को गंभीर खाद्य संकट का सामना करना पड़ा। 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाक युद्ध ने अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला था। खाद्य आयात (विशेष रूप से अमेरिका से PL-480 के तहत गेहूँ) पर निर्भरता बढ़ रही थी।
खाद्य आत्मनिर्भरता: शास्त्री जी ने जनता से अपील की कि वे सप्ताह में एक दिन उपवास करें और खाद्य संकट में योगदान दें। उन्होंने स्वयं इस उपवास का पालन किया, जो उनकी सादगी और नेतृत्व का प्रतीक था। दीर्घकालिक प्रभाव: शास्त्री जी की नीतियों ने 1960 के दशक के अंत में हरित क्रांति को गति दी, जिसने भारत को खाद्य आयात पर निर्भरता से मुक्त किया।
4.2 1965 का भारत-पाक युद्ध
पृष्ठभूमि: 1965 में, पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर में घुसपैठियों को भेजा गया। इसका उद्देश्य कश्मीर में विद्रोह भड़काना था। जब घुसपैठ विफल हुई, पाकिस्तान ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया और कश्मीर के कुछ हिस्सों पर हमला किया। शास्त्री जी की भूमिका: शास्त्री जी ने दृढ़ नेतृत्व दिखाया और भारतीय सेना को जवाबी कार्रवाई का आदेश दिया। भारतीय सेना ने लाहौर और सियालकोट तक बढ़त हासिल की। युद्ध के दौरान, शास्त्री जी ने देश को एकजुट रखा और सैनिकों का मनोबल बढ़ाया। उनकी प्रसिद्ध टिप्पणी,
परिणाम: युद्ध 22 सितंबर 1965 को संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से समाप्त हुआ। भारत ने अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की और युद्ध में रणनीतिक बढ़त हासिल की। ताशकंद समझौता (1966): युद्ध के बाद, शास्त्री जी ताशकंद (सोवियत संघ) गए, जहाँ 10 जनवरी 1966 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ ताशकंद समझौता पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत दोनों देश युद्ध-पूर्व सीमाओं पर लौटे और शांति की प्रतिबद्धता जताई। प्रभाव: 1965 का युद्ध भारत की सैन्य ताकत और शास्त्री जी के निर्णायक नेतृत्व का प्रतीक था। ताशकंद समझौता विवादास्पद रहा, क्योंकि कुछ भारतीयों का मानना था कि भारत ने युद्ध में जीते क्षेत्रों को वापस नहीं करना चाहिए था।
4.3 विदेश नीति
गुटनिरपेक्षता: शास्त्री जी ने जवाहरलाल नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति को जारी रखा। उन्होंने शीत युद्ध में तटस्थता बनाए रखी और भारत को वैश्विक मंच पर एक स्वतंत्र आवाज बनाया। सोवियत संघ के साथ संबंध: शास्त्री जी ने सोवियत संघ के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए, जो ताशकंद समझौते में उनकी मध्यस्थता से स्पष्ट हुआ। अमेरिका के साथ तनाव: 1965 के युद्ध के दौरान, अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान दोनों को हथियारों की आपूर्ति रोक दी, जिसने शास्त्री जी को अमेरिकी नीतियों के प्रति सतर्क बनाया।
4.4 आंतरिक सुधार और प्रशासन
भ्रष्टाचार विरोधी नीतियाँ: शास्त्री जी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया। उन्होंने संजीव रेड्डी समिति की सिफारिशों को लागू करने की कोशिश की, जो प्रशासनिक सुधारों पर केंद्रित थी। हिंदी को बढ़ावा: शास्त्री जी ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रोत्साहन दिया। हालांकि, दक्षिण भारत में हिंदी के खिलाफ आंदोलनों के कारण उनकी सरकार ने हिंदी और अंग्रेजी दोनों को आधिकारिक भाषा के रूप में बनाए रखा। सादगी और नेतृत्व: शास्त्री जी ने सादा जीवन जिया। एक प्रसिद्ध घटना में, उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि वे सरकारी बिजली का उपयोग कम करें, क्योंकि देश में बिजली की कमी थी।
4.5 शास्त्री जी की रहस्यमयी मृत्यु
घटना: ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटों बाद, 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में शास्त्री जी की मृत्यु हो गई। आधिकारिक रूप से उनकी मृत्यु का कारण दिल का दौरा बताया गया। विवाद: उनकी मृत्यु को लेकर कई सवाल उठे। कुछ लोगों का मानना था कि उनकी मृत्यु संदिग्ध थी, और इसमें षड्यंत्र की संभावना थी। उनके शरीर पर कोई पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ, जिसने संदेह को और बढ़ाया। 1970 में, उनकी पत्नी ललिता देवी ने दावा किया कि उन्हें जहर दिया गया हो सकता है। इस मुद्दे पर कई जांच हुईं, लेकिन कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला। प्रभाव: शास्त्री जी की अचानक मृत्यु ने देश को गहरा आघात पहुँचाया। उनकी मृत्यु के बाद, इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनीं।
5. व्यक्तिगत विशेषताएँ और योगदान
सादगी: शास्त्री जी अपनी सादगी के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार, जब उनके बेटे को सरकारी कार का उपयोग करने की अनुमति दी गई, तो शास्त्री जी ने इसका विरोध किया और कहा कि सरकारी संसाधनों का निजी उपयोग गलत है। ईमानदारी: उनकी ईमानदारी का एक उदाहरण 1956 का रेल मंत्री के पद से इस्तीफा है, जब उन्होंने एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी ली। गांधीवादी सिद्धांत: शास्त्री जी गांधीवादी सिद्धांतों के प्रबल अनुयायी थे। उन्होंने अहिंसा, स्वदेशी, और सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया। लोकप्रियता: उनकी सादगी और जनता के प्रति समर्पण ने उन्हें
6. महत्व और प्रभाव
1965 का युद्ध: शास्त्री जी का नेतृत्व 1965 के युद्ध में भारत की विजय का प्रतीक था। इसने भारत की सैन्य ताकत और राष्ट्रीय एकता को प्रदर्शित किया। हरित क्रांति: उनकी कृषि नीतियों ने हरित क्रांति की नींव रखी, जिसने भारत को खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर ले गया। सादगी और नैतिकता: शास्त्री जी की सादगी और नैतिकता भारतीय राजनीति में एक मिसाल है। उनकी ईमानदारी और जवाबदेही आज भी नेताओं के लिए प्रेरणा है। राष्ट्रीय एकता: उनके संक्षिप्त कार्यकाल में, उन्होंने भारत को आर्थिक और सैन्य चुनौतियों के बीच एकजुट रखा।
7. विरासत
पुरस्कार: 1966 में, शास्त्री जी को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। स्मारक और संस्थान: उनके नाम पर कई स्मारक और संस्थान स्थापित किए गए, जैसे लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (मसूरी) और लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल (दिल्ली)। जय जवान, जय किसान: उनका नारा भारत की सैन्य और कृषि शक्ति का प्रतीक बना। यह आज भी राष्ट्रीय गौरव को प्रेरित करता है। सादगी की मिसाल: शास्त्री जी की सादगी और ईमानदारी भारतीय राजनीति में दुर्लभ है। उनकी कहानियाँ, जैसे सरकारी संसाधनों का सीमित उपयोग और उपवास की अपील, आज भी प्रेरणादायक हैं। जन्मदिन: शास्त्री जी का जन्मदिन 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के साथ साझा होता है, और इसे भारत में गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है।
8. आलोचनाएँ और विवाद
ताशकंद समझौता: कुछ आलोचकों का मानना था कि ताशकंद समझौते में भारत ने युद्ध में जीते क्षेत्रों को वापस करके गलती की। यह समझौता उनकी मृत्यु के कारण और विवादास्पद हो गया। संक्षिप्त कार्यकाल: शास्त्री जी का कार्यकाल बहुत छोटा था, जिसके कारण उनकी कई नीतियाँ पूरी तरह लागू नहीं हो सकीं। मृत्यु का रहस्य: उनकी मृत्यु को लेकर संदेह और षड्यंत्र सिद्धांत आज भी चर्चा का विषय हैं। कुछ लोगों का मानना है कि उनकी मृत्यु की पूरी जाँच नहीं हुई।
Conclusion
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