Recent Blogs

Lord Willingdon
jp Singh 2025-05-28 09:53:18
searchkre.com@gmail.com / 8392828781

लॉर्ड विलिंगडन का शासन (1931-1936)

लॉर्ड विलिंगडन का शासन (1931-1936)
लॉर्ड विलिंगडन (फ्रीमैन फ्रीमैन-थॉमस, प्रथम मार्क्वेस ऑफ विलिंगडन) का भारत में वायसराय और गवर्नर-जनरल के रूप में शासन 1931 से 1936 तक रहा। उनका कार्यकाल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण और तनावपूर्ण दौर में था, जिसमें सविनय अवज्ञा आंदोलन का दूसरा चरण, गोलमेज सम्मेलन, और 1935 का भारत सरकार अधिनियम जैसी प्रमुख घटनाएँ शामिल थीं। लॉर्ड विलिंगडन एक रूढ़िगत और दृढ़ प्रशासक थे, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को दबाने के लिए सख्त नीतियाँ अपनाईं, जिसके कारण उनकी नीतियाँ भारतीय नेताओं और जनता के बीच अलोकप्रिय रहीं।
1. पृष्ठभूमि
लॉर्ड विलिंगडन को 18 अप्रैल 1931 में भारत का वायसराय नियुक्त किया गया। वह लॉर्ड इरविन के बाद आए, जिनके शासनकाल में नमक सत्याग्रह, गांधी-इरविन समझौता, और प्रथम गोलमेज सम्मेलन जैसी घटनाएँ घटी थीं। विलिंगडन का दृष्टिकोण अपने पूर्ववर्ती लॉर्ड इरविन की तुलना में अधिक सख्त और साम्राज्यवादी था। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को दबाने और ब्रिटिश शासन को मजबूत करने पर जोर दिया। उनके शासनकाल में वैश्विक आर्थिक मंदी (Great Depression) का प्रभाव भारत पर भी पड़ा, जिसने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर्थिक कठिनाइयों को बढ़ाया। साथ ही, राष्ट्रीय आंदोलन तेजी से बढ़ रहा था, और क्रांतिकारी गतिविधियाँ भी चरम पर थीं।
2. प्रमुख नीतियाँ और घटनाएँ
2.1 सविनय अवज्ञा आंदोलन का दूसरा चरण (1932-1934)
पृष्ठभूमि: लॉर्ड इरविन के शासनकाल में गांधी-इरविन समझौता (1931) के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन को अस्थायी रूप से स्थगित किया गया था। हालांकि, दूसरे गोलमेज सम्मेलन (1931) में कोई ठोस प्रगति न होने के कारण महात्मा गांधी ने जनवरी 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन को पुनः शुरू किया। विलिंगडन की प्रतिक्रिया: लॉर्ड विलिंगडन ने इस आंदोलन को दबाने के लिए अत्यंत सख्त नीतियाँ अपनाईं। उन्होंने आपातकालीन अध्यादेश जारी किए, जिनके तहत: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को गैर-कानूनी संगठन घोषित किया गया। हजारों कार्यकर्ताओं, जिनमें गांधी, जवाहरलाल नेहरू, और सरदार पटेल जैसे नेता शामिल थे, को गिरफ्तार किया गया। प्रेस पर सख्त सेंसरशिप लागू की गई, और सभाओं पर प्रतिबंध लगाया गया। विलिंगडन ने पुलिस और सैन्य बलों का व्यापक उपयोग किया, जिसके परिणामस्वरूप कई प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और गोलीबारी हुई।
प्रभाव: सविनय अवज्ञा आंदोलन का दूसरा चरण 1934 तक चला, लेकिन ब्रिटिश सरकार की सख्ती और नेताओं की गिरफ्तारी के कारण यह धीमा पड़ गया। गांधी ने 1934 में व्यक्तिगत रूप से आंदोलन को समाप्त किया, लेकिन इसने भारतीय जनता में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष को और गहरा किया।
2.2 गोलमेज सम्मेलन (1931-1932)
दूसरा गोलमेज सम्मेलन (1931): गांधी-इरविन समझौते के बाद, महात्मा गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन (7 सितंबर-1 दिसंबर 1931) में शामिल हुए। सम्मेलन का उद्देश्य भारत के लिए संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करना था। गांधी ने पूर्ण स्वराज की माँग रखी, लेकिन अन्य प्रतिनिधियों (मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, और रियासतों) के बीच साम्प्रदायिक और क्षेत्रीय मुद्दों पर मतभेद के कारण कोई सहमति नहीं बनी। सम्मेलन विफल रहा, और गांधी निराश होकर भारत लौट आए। इसके बाद ही उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन को फिर से शुरू किया।
तीसरा गोलमेज सम्मेलन (1932): तीसरा सम्मेलन नवंबर-दिसंबर 1932 में हुआ, लेकिन कांग्रेस ने इसका बहिष्कार किया। यह सम्मेलन भी बिना किसी ठोस नतीजे के समाप्त हुआ। लॉर्ड विलिंगडन की भूमिका: विलिंगडन ने इन सम्मेलनों को ब्रिटिश सरकार के लिए भारतीयों की माँगों को संबोधित करने का अवसर माना, लेकिन उनकी सख्त नीतियों ने भारतीय नेताओं के साथ संवाद को मुश्किल बना दिया। प्रभाव: गोलमेज सम्मेलनों ने भारत के लिए एक संघीय संविधान की रूपरेखा तैयार की, जो बाद में 1935 के भारत सरकार अधिनियम का आधार बनी।
2.3 साम्प्रदायिक अवार्ड और पूना पैक्ट (1932)
साम्प्रदायिक अवार्ड (1932): गोलमेज सम्मेलनों में साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व पर सहमति न बनने के कारण, ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त 1932 को साम्प्रदायिक अवार्ड की घोषणा की। इस अवार्ड में मुस्लिम, सिख, ईसाई, और दलितों (तब
लॉर्ड विलिंगडन की भूमिका: विलिंगडन ने इस संकट के दौरान तटस्थ रुख अपनाया और गांधी-आंबेडकर के बीच समझौते को सुगम बनाया। प्रभाव: पूना पैक्ट ने दलितों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया और हिंदू समाज के भीतर एकता को बनाए रखने में मदद की। यह गांधी और आंबेडकर के बीच एक ऐतिहासिक समझौता था।
2.4 1935 का भारत सरकार अधिनियम: गोलमेज सम्मेलनों और साइमन कमीशन की सिफारिशों के आधार पर, ब्रिटिश संसद ने 1935 का भारत सरकार अधिनियम पारित किया, जो लॉर्ड विलिंगडन के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक उपलब्धि थी। प्रमुख प्रावधान: संघीय ढाँचा: भारत को एक संघ के रूप में स्थापित करने की योजना, जिसमें ब्रिटिश प्रांत और रियासतें शामिल होंगी। प्रांतीय स्वायत्तता: प्रांतों को अधिक स्वायत्तता दी गई, और प्रांतीय सरकारें निर्वाचित विधानसभाओं के प्रति जवाबदेह बनाई गईं। द्वैध शासन का अंत: केंद्रीय स्तर पर कुछ सुधार किए गए, लेकिन वास्तविक शक्ति गवर्नर-जनरल और ब्रिटिश सरकार के पास रही। विस्तारित मताधिकार: मतदाताओं की संख्या बढ़ाई गई, लेकिन यह अभी भी सीमित थी (लगभग 10% आबादी)।
प्रभाव: यह अधिनियम भारत में संवैधानिक विकास का सबसे बड़ा कदम था और स्वतंत्र भारत के संविधान का आधार बना। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने इसे अपर्याप्त माना, क्योंकि यह पूर्ण स्वराज की माँग को पूरा नहीं करता था। 1937 में इस अधिनियम के तहत प्रांतीय चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने कई प्रांतों में जीत हासिल की।
2.5 क्रांतिकारी गतिविधियाँ
विलिंगडन के शासनकाल में क्रांतिकारी आंदोलनों ने गति पकड़ी। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) और अन्य संगठनों ने सशस्त्र कार्रवाइयाँ जारी रखीं। उल्लेखनीय घटनाएँ: चटगाँव शस्त्रागार डकैती (1930): सूर्य सेन और उनके साथियों ने चटगाँव में ब्रिटिश शस्त्रागार पर हमला किया। हालांकि यह घटना इरविन के शासनकाल में हुई, लेकिन इसके परिणाम विलिंगडन के समय तक चले। विलिंगडन ने क्रांतिकारियों पर सख्त कार्रवाई की, जिसमें गिरफ्तारियाँ, फाँसी, और निर्वासन शामिल थे। प्रभाव: क्रांतिकारी गतिविधियों ने युवाओं में राष्ट्रीय चेतना को और प्रेरित किया, लेकिन ब्रिटिश सरकार की सख्ती ने इन आंदोलनों को दबाने में कुछ हद तक सफलता पाई।
2.6 साम्प्रदायिक तनाव: विलिंगडन के शासनकाल में हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ा। साम्प्रदायिक अवार्ड और गोलमेज सम्मेलनों में पृथक निर्वाचन की माँग ने साम्प्रदायिकता को और गहरा किया। मुस्लिम लीग और मुहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष अधिकारों की माँग को और मजबूत किया। विलिंगडन ने साम्प्रदायिक दंगों को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन उनकी नीतियाँ इस समस्या को पूरी तरह हल नहीं कर सकीं।
2.7 प्रशासनिक और आर्थिक नीतियाँ: आर्थिक स्थिति: वैश्विक आर्थिक मंदी (1929-1930) ने भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज और गरीबी बढ़ी, जिसने असंतोष को और बढ़ाया। प्रशासनिक सुधार: विलिंगडन ने रेलवे, सिंचाई, और नई दिल्ली के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया। नई दिल्ली को 1931 में औपचारिक रूप से भारत की राजधानी के रूप में उद्घाटित किया गया। शिक्षा और सामाजिक सुधार: विलिंगडन ने शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया, लेकिन सामाजिक सुधारों (जैसे अस्पृश्यता और बाल विवाह) में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से बचा गया।
3. महत्व और प्रभाव
सविनय अवज्ञा आंदोलन: इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और मजबूत किया, लेकिन विलिंगडन की सख्त नीतियों ने इसे अस्थायी रूप से दबा दिया। फिर भी, इसने जनता में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष को गहरा किया। 1935 का भारत सरकार अधिनियम: यह अधिनियम भारत में संवैधानिक विकास का एक ऐतिहासिक कदम था। इसने प्रांतीय स्वायत्तता और निर्वाचित सरकारों की नींव रखी, जो स्वतंत्र भारत के संविधान का आधार बनी। पूना पैक्ट: यह गांधी और आंबेडकर के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता था, जिसने दलितों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया और सामाजिक एकता को बढ़ावा दिया। साम्प्रदायिकता: साम्प्रदायिक अवार्ड और पृथक निर्वाचन की नीतियों ने हिंदू-मुस्लिम तनाव को बढ़ाया, जो बाद में भारत के विभाजन का कारण बना। क्रांतिकारी आंदोलन: विलिंगडन की सख्त नीतियों ने क्रांतिकारी गतिविधियों को दबाने में कुछ हद तक सफलता पाई, लेकिन इन आंदोलनों ने युवाओं में राष्ट्रीय चेतना को प्रेरित किया।
4. कार्यकाल का अंत
लॉर्ड विलिंगडन ने 18 अप्रैल 1936 में अपना कार्यकाल पूरा किया, और उनके बाद लॉर्ड लिनलिथगो भारत के वायसराय बने। विलिंगडन ब्रिटेन लौट गए और बाद में ब्रिटिश प्रशासन में अन्य भूमिकाएँ निभाईं। 5. विरासत: लॉर्ड विलिंगडन का शासनकाल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक चुनौतीपूर्ण दौर था। उनकी सख्त नीतियों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियों को दबाने की कोशिश की, लेकिन ये प्रयास राष्ट्रीय आंदोलन को पूरी तरह रोक नहीं सके। 1935 का भारत सरकार अधिनियम उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिसने भारत में संवैधानिक विकास की नींव रखी। उनकी रूढ़िगत और दमनकारी नीतियों ने भारतीय जनता और नेताओं में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष को और बढ़ाया, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को और तेज किया। पूना पैक्ट ने दलितों के लिए राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों को सुनिश्चित किया, जो भारत के सामाजिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम था।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh searchkre.com@gmail.com 8392828781

Our Services

Scholarship Information

Add Blogging

Course Category

Add Blogs

Coaching Information

Add Blogging

Add Blogging

Add Blogging

Our Course

Add Blogging

Add Blogging

Hindi Preparation

English Preparation

SearchKre Course

SearchKre Services

SearchKre Course

SearchKre Scholarship

SearchKre Coaching

Loan Offer

JP GROUP

Head Office :- A/21 karol bag New Dellhi India 110011
Branch Office :- 1488, adrash nagar, hapur, Uttar Pradesh, India 245101
Contact With Our Seller & Buyer