Lord Reading
jp Singh
2025-05-28 09:42:03
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लॉर्ड रीडिंग का शासन (1921-1926)
लॉर्ड रीडिंग का शासन (1921-1926)
लॉर्ड रीडिंग (रूफस डैनियल आइजैक्स, प्रथम मार्क्वेस ऑफ रीडिंग) का भारत में वायसराय और गवर्नर-जनरल के रूप में शासन 1921 से 1926 तक रहा। उनका कार्यकाल भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के तेजी से विकास, महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन, और ब्रिटिश शासन के सामने बढ़ती चुनौतियों का दौर था। लॉर्ड रीडिंग एक अनुभवी कूटनीतिज्ञ और न्यायविद थे, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को स्थिर करने और भारतीयों की माँगों को आंशिक रूप से संबोधित करने की कोशिश की। उनके शासनकाल में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं, जैसे असहयोग आंदोलन का चरम और समापन, स्वराज पार्टी की स्थापना, और क्रांतिकारी गतिविधियों का उदय।
1. पृष्ठभूमि
लॉर्ड रीडिंग को 2 अप्रैल 1921 में भारत का वायसराय नियुक्त किया गया। वह लॉर्ड चेम्सफोर्ड के बाद आए, जिनके शासनकाल में जलियाँवाला बाग हत्याकांड (1919) और असहयोग आंदोलन (1920) जैसी घटनाओं ने ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया था। रीडिंग एक प्रख्यात वकील और ब्रिटेन के पूर्व लॉर्ड चीफ जस्टिस थे। वह पहले गैर-ईसाई (यहूदी मूल के) व्यक्ति थे जो भारत के वायसराय बने, और उनका दृष्टिकोण संतुलित और कूटनीतिक था। उनके शासनकाल में भारत में राष्ट्रीय आंदोलन तेज हो रहा था, और महात्मा गांधी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, और अन्य संगठन स्वराज (स्वशासन) की माँग कर रहे थे। साथ ही, क्रांतिकारी गतिविधियाँ और साम्प्रदायिक तनाव भी बढ़ रहे थे।
2. प्रमुख नीतियाँ और घटनाएँ
2.1 असहयोग आंदोलन (1920-1922):
लॉर्ड रीडिंग का कार्यकाल शुरू होने के समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था। यह आंदोलन रॉलेट एक्ट (1919) और जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में शुरू हुआ था, और इसमें भारतीयों ने ब्रिटिश संस्थानों, स्कूलों, अदालतों, और वस्तुओं का बहिष्कार किया।
चौरी-चौरा कांड (1922): 5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में एक प्रदर्शन के दौरान भीड़ ने पुलिस चौकी पर हमला किया और 22 पुलिसकर्मियों को जला दिया। इस हिंसक घटना से स्तब्ध होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को निलंबित कर दिया। लॉर्ड रीडिंग ने इस अवसर का लाभ उठाया और आंदोलन को दबाने के लिए कठोर कदम उठाए। मार्च 1922 में महात्मा गांधी को गिरफ्तार किया गया और उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। उन्हें 6 साल की सजा सुनाई गई, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से 1924 में रिहा कर दिया गया। प्रभाव: असहयोग आंदोलन के निलंबन ने राष्ट्रीय आंदोलन में अस्थायी ठहराव पैदा किया, लेकिन इसने भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना को और गहरा किया। रीडिंग की सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए सख्ती और कूटनीति दोनों का उपयोग किया।
2.2 स्वराज पार्टी की स्थापना (1923)
असहयोग आंदोलन के निलंबन के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में मतभेद उभरे। चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरू जैसे नेताओं ने स्वराज पार्टी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य विधान परिषदों में प्रवेश करके
2.3 क्रांतिकारी गतिविधियों का उदय
2.3 क्रांतिकारी गतिविधियों का उदय: रीडिंग के शासनकाल में क्रांतिकारी आंदोलनों में वृद्धि हुई। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) जैसे संगठनों ने सशस्त्र संघर्ष को बढ़ावा दिया। काकोरी ट्रेन डकैती (1925): 9 अगस्त 1925 को, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, और अन्य क्रांतिकारियों ने काकोरी (लखनऊ के पास) में एक ट्रेन डकैत की, जिसका उद्देश्य क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना था। ब्रिटिश सरकार ने इस घटना के बाद क्रांतिकारियों पर सख्त कार्रवाई की। कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया, और बिस्मिल, अशफाकउल्ला, और अन्य को फाँसी दी गई। रीडिंग की सरकार ने क्रांतिकारी गतिविधियों को दबाने के लिए पुलिस और खुफिया तंत्र को मजबूत किया और सख्त कानून लागू किए।
2.4 खिलाफत आंदोलन का अंत और साम्प्रदायिक तनाव:
खिलाफत आंदोलन (1919-1924), जो तुर्की में खलीफा के पद की रक्षा के लिए शुरू हुआ था, 1924 में तुर्की द्वारा खिलाफत को समाप्त करने के साथ खत्म हो गया। इसने भारत में हिंदू-मुस्लिम एकता को कमजोर किया। रीडिंग के शासनकाल में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ा। हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच दंगे हुए, विशेष रूप से बंगाल और पंजाब में। रीडिंग ने साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने की कोशिश की, लेकिन उनकी नीतियाँ इस समस्या को पूरी तरह हल नहीं कर सकीं।
2.5 प्रशासनिक और आर्थिक सुधार
रीडिंग ने प्रशासनिक सुधारों को जारी रखा, जैसे रेलवे और सिंचाई परियोजनाओं का विस्तार। नई दिल्ली के निर्माण कार्य को भी गति दी गई, जो लॉर्ड हार्डिंग के समय शुरू हुआ था। आर्थिक नीतियाँ: प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत में आर्थिक कठिनाइयाँ (महंगाई, करों में वृद्धि) बनी रहीं। रीडिंग ने इन समस्याओं को कम करने के लिए कुछ उपाय किए, जैसे कर प्रणाली में सुधार और बुनियादी ढांचा विकास। नई दिल्ली का उद्घाटन: रीडिंग के शासनकाल में नई दिल्ली के निर्माण कार्य ने गति पकड़ी, और यह ब्रिटिश भारत की नई राजधानी के रूप में विकसित हो रही थी।
2.6 प्रिंस ऑफ वेल्स का दौरा (1921-1922)
1921-1922 में प्रिंस ऑफ वेल्स (बाद में किंग एडवर्ड VIII) ने भारत का दौरा किया। इस दौरे का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के प्रति भारतीयों की वफादारी को मजबूत करना था। हालांकि, असहयोग आंदोलन के कारण इस दौरे का व्यापक विरोध हुआ। कई शहरों में हड़तालें और प्रदर्शन हुए, जिसने ब्रिटिश शासन के सामने राष्ट्रीय आंदोलन की ताकत को प्रदर्शित किया। रीडिंग ने इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सख्ती और संवाद दोनों का उपयोग किया।
2.7 शिक्षा और सामाजिक सुधार
2.7 शिक्षा और सामाजिक सुधार: रीडिंग ने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ प्रगति की, जैसे विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों को बढ़ावा देना। उन्होंने सामाजिक सुधारों, जैसे बाल विवाह और अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलनों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया, लेकिन ब्रिटिश नीति के अनुसार प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से बचा गया।
3. महत्व और प्रभाव
असहयोग आंदोलन और गांधी का उदय: रीडिंग के शासनकाल में महात्मा गांधी राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता के रूप में उभरे। असहयोग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक जन आंदोलन में बदल दिया। स्वराज पार्टी: स्वराज पार्टी की स्थापना ने भारतीयों को विधायी परिषदों में राजनीतिक भागीदारी का एक नया मंच प्रदान किया, जिसने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी। क्रांतिकारी आंदोलन: काकोरी डकैती और अन्य क्रांतिकारी गतिविधियों ने सशस्त्र संघर्ष की भूमिका को उजागर किया, जो बाद में भगत सिंह जैसे नेताओं के नेतृत्व में और तेज हुआ। साम्प्रदायिकता: खिलाफत आंदोलन के अंत और साम्प्रदायिक दंगों ने हिंदू-मुस्लिम एकता को कमजोर किया, जो बाद में स्वतंत्रता संग्राम की एक बड़ी चुनौती बनी। संवैधानिक विकास: रीडिंग के शासनकाल में मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों (1919) को लागू किया गया, जिसने भारतीयों को सीमित स्वशासन का अनुभव कराया। यह बाद के संवैधानिक सुधारों का आधार बना।
4. कार्यकाल का अंत
लॉर्ड रीडिंग ने 1926 में अपना कार्यकाल पूरा किया, और उनके बाद लॉर्ड इरविन भारत के वायसराय बने। रीडिंग ब्रिटेन लौट गए और बाद में ब्रिटिश राजनीति और कूटनीति में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। 5. विरासत: लॉर्ड रीडिंग का शासनकाल भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण दौर था। असहयोग आंदोलन ने ब्रिटिश शासन को अभूतपूर्व चुनौती दी, और स्वराज पार्टी ने संवैधानिक तरीकों से स्वशासन की माँग को आगे बढ़ाया। उनकी कूटनीतिक और संतुलित नीतियों ने ब्रिटिश शासन को कुछ समय के लिए स्थिर रखा, लेकिन क्रांतिकारी गतिविधियों और साम्प्रदायिक तनावों को नियंत्रित करने में वह पूरी तरह सफल नहीं हुए। रीडिंग के शासनकाल ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी और अन्य नेताओं की भूमिका को मजबूत किया, और यह दौर स्वतंत्रता की ओर बढ़ते भारत का साक्षी बना।
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