(Frederick John Napier Thesiger, 1st Viscount Chelmsford)
jp Singh
2025-05-27 17:17:49
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लॉर्ड चेम्सफोर्ड का शासन (1916-1921)
लॉर्ड चेम्सफोर्ड का शासन (1916-1921)
लॉर्ड चेम्सफोर्ड (फ्रेडरिक जॉन नेपियर थेसिगर, प्रथम विस्काउंट चेम्सफोर्ड) का भारत में वायसराय और गवर्नर-जनरल के रूप में शासन 1916 से 1921 तक रहा। उनका कार्यकाल प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के अंतिम वर्षों, युद्धोत्तर आर्थिक और सामाजिक उथल-पुथल, और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के तेजी से विकास का दौर था। चेम्सफोर्ड के शासनकाल में मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919) और रॉलेट एक्ट जैसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। नीचे उनके शासन का संक्षिप्त और व्यापक विवरण दिया गया है
1. पृष्ठभूमि
लॉर्ड चेम्सफोर्ड को 1916 में भारत का वायसराय नियुक्त किया गया, जब लॉर्ड हार्डिंग का कार्यकाल समाप्त हुआ। उनका शासनकाल प्रथम विश्व युद्ध के अंत और इसके बाद की चुनौतियों के समय था। भारत में राष्ट्रीय आंदोलन तेजी से बढ़ रहा था, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग जैसे संगठन स्वशासन की माँग कर रहे थे। साथ ही, क्रांतिकारी गतिविधियाँ और सामाजिक असंतोष भी बढ़ रहा था। चेम्सफोर्ड का दृष्टिकोण भारतीयों को सीमित सुधार देने और ब्रिटिश शासन को स्थिर करने का था, लेकिन उनकी नीतियों ने भारतीय जनता में असंतोष को और बढ़ाया।
2. प्रमुख नीतियाँ और घटनाएँ
मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919): चेम्सफोर्ड के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि 1919 का भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1919) थी, जिसे मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से जाना जाता है। यह सुधार भारत सचिव एडविन मॉन्टेग्यू और चेम्सफोर्ड के सहयोग से लागू किया गया। मुख्य प्रावधान: प्रांतीय स्तर पर द्वैध शासन (Dyarchy): प्रांतीय सरकारों में कुछ विषय (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि)
मताधिकार का दायरा बढ़ाया गया, लेकिन यह अभी भी बहुत सीमित था (केवल संपत्ति और शिक्षा के आधार पर कुछ लोग ही वोट दे सकते थे)। प्रभाव: इन सुधारों ने भारतीयों को सीमित स्वशासन प्रदान किया और संवैधानिक विकास की दिशा में एक कदम था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारवादी धड़े ने इसे आंशिक रूप से स्वीकार किया, लेकिन महात्मा गांधी और अन्य नेताओं ने इसे अपर्याप्त माना। यह सुधार बाद के 1935 के भारत सरकार अधिनियम का आधार बना।
रॉलेट एक्ट (1919): प्रथम विश्व युद्ध के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियों (जैसे गदर आंदोलन) को दबाने के लिए चेम्सफोर्ड की सरकार ने रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) लागू किया, जिसे औपचारिक रूप से 1919 का अराजकता और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम कहा गया। प्रावधान: इस अधिनियम ने ब्रिटिश सरकार को बिना मुकदमा चलाए लोगों को गिरफ्तार करने और हिरासत में रखने का अधिकार दिया। प्रेस और सभाओं पर भी सख्त नियंत्रण लगाया गया। प्रभाव: रॉलेट एक्ट का पूरे भारत में तीव्र विरोध हुआ, क्योंकि इसे
जलियाँवाला बाग हत्याकांड (1919): चेम्सफोर्ड के शासनकाल की सबसे दुखद और विवादास्पद घटना जलियाँवाला बाग हत्याकांड थी, जो 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर (पंजाब) में हुई। रॉलेट एक्ट के विरोध में एक शांतिपूर्ण सभा पर ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड डायर ने गोलीबारी का आदेश दिया, जिसमें सैकड़ों निहत्थे भारतीय (आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 379, लेकिन वास्तव में इससे अधिक) मारे गए और हजारों घायल हुए। प्रभाव: इस हत्याकांड ने पूरे भारत में आक्रोश पैदा किया और ब्रिटिश शासन के प्रति भारतीयों का विश्वास पूरी तरह टूट गया। इस घटना ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को और तेज किया, और महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन (1920) की नींव रखी। ब्रिटिश सरकार ने हत्याकांड की जाँच के लिए हंटर आयोग नियुक्त किया, लेकिन इसकी रिपोर्ट को भारतीयों ने पक्षपातपूर्ण माना।
प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव: चेम्सफोर्ड के शासनकाल में प्रथम विश्व युद्ध (1916-1918) के अंतिम वर्ष शामिल थे। भारत ने युद्ध में सैनिकों, धन, और संसाधनों के रूप में बड़ा योगदान दिया। युद्ध के बाद भारत में आर्थिक कठिनाइयाँ (महंगाई, करों में वृद्धि) और सामाजिक असंतोष बढ़ा, जिसने राष्ट्रीय आंदोलन को और बल दिया। युद्ध के दौरान भारतीय नेताओं (विशेष रूप से कांग्रेस और मुस्लिम लीग) ने ब्रिटिश समर्थन की उम्मीद में सहयोग किया, लेकिन युद्ध के बाद स्वशासन की उनकी माँगों को अनदेखा किया गया, जिससे असंतोष बढ़ा।
खिलाफत आंदोलन (1919-1924): प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्की में खिलाफत (इस्लामी खलीफा) के पद को खत्म करने की कोशिशों के खिलाफ भारत में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ, जिसका नेतृत्व मौलाना मोहम्मद अली और शौकत अली जैसे नेताओं ने किया। महात्मा गांधी ने इस आंदोलन का समर्थन किया, जिसने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया। यह चेम्सफोर्ड के शासनकाल में राष्ट्रीय आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। चेम्सफोर्ड की सरकार ने इस आंदोलन को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन यह और फैल गया। असहयोग आंदोलन की शुरुआत (1920): रॉलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकांड, और ब्रिटिश सरकार की उदासीनता के कारण महात्मा गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया।
इस आंदोलन में भारतीयों ने ब्रिटिश संस्थानों, स्कूलों, अदालतों, और वस्तुओं का बहिष्कार किया। यह चेम्सफोर्ड के शासनकाल के अंतिम वर्षों में एक बड़ी चुनौती थी। सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए सख्त कदम उठाए, लेकिन यह राष्ट्रीय आंदोलन को रोकने में असफल रही। प्रशासनिक और आर्थिक नीतियाँ: चेम्सफोर्ड ने रेलवे, सिंचाई, और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को बढ़ावा दिया। युद्ध के कारण आर्थिक दबावों को कम करने के लिए कुछ कर सुधार किए गए, लेकिन ये अपर्याप्त थे।
3. महत्व और प्रभाव
मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार: इन सुधारों ने भारतीयों को सीमित स्वशासन प्रदान किया और संवैधानिक विकास की दिशा में एक कदम था। हालांकि, ये सुधार भारतीय नेताओं की स्वराज की माँग को पूरा नहीं कर सके। जलियाँवाला बाग हत्याकांड: इस घटना ने ब्रिटिश शासन की क्रूरता को उजागर किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक जन आंदोलन में बदल दिया। राष्ट्रीय आंदोलन का विकास: चेम्सफोर्ड के शासनकाल में महात्मा गांधी का उदय हुआ, और असहयोग आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दी। खिलाफत आंदोलन ने हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत किया। क्रांतिकारी गतिविधियाँ: रॉलेट एक्ट और दमनकारी नीतियों ने क्रांतिकारी आंदोलनों को और प्रेरित किया, जो बाद में भगत सिंह जैसे नेताओं के नेतृत्व में और तेज हुआ।
4. कार्यकाल का अंत
लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने 1921 में अपना कार्यकाल पूरा किया, और उनके बाद लॉर्ड रीडिंग भारत के वायसराय बने। चेम्सफोर्ड ब्रिटेन लौट गए और बाद में ब्रिटिश प्रशासन में अन्य भूमिकाएँ निभाईं।5. विरासत: लॉर्ड चेम्सफोर्ड का शासनकाल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों ने संवैधानिक सुधारों की शुरुआत की, लेकिन रॉलेट एक्ट और जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने ब्रिटिश शासन के प्रति भारतीयों का विश्वास पूरी तरह खत्म कर दिया। उनके शासनकाल में महात्मा गांधी का नेतृत्व उभरा, और असहयोग आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम को जन-आंदोलन में बदल दिया। चेम्सफोर्ड की नीतियाँ ब्रिटिश शासन को स्थिर करने में असफल रहीं और राष्ट्रीय आंदोलन को और मजबूत किया।
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