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Lord Hardinge's rule (1910-1916)
jp Singh 2025-05-27 17:14:08
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लॉर्ड हार्डिंग का शासन (1910-1916)

लॉर्ड हार्डिंग का शासन (1910-1916)
लॉर्ड हार्डिंग (चार्ल्स हार्डिंग, प्रथम बैरन हार्डिंग ऑफ पेनशर्स्ट) का भारत में वायसराय और गवर्नर-जनरल के रूप में शासन 1910 से 1916 तक रहा। उनका कार्यकाल भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विकास, प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के प्रभाव, और ब्रिटिश शासन के लिए कई महत्वपूर्ण घटनाओं का दौर था। लॉर्ड हार्डिंग ने लॉर्ड कर्जन के बंगाल विभाजन को रद्द करने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए, लेकिन उनके शासनकाल में क्रांतिकारी गतिविधियों और साम्प्रदायिक तनावों में भी वृद्धि हुई। नीचे उनके शासन का संक्षिप्त और व्यापक विवरण दिया गया है:
1. पृष्ठभूमि
लॉर्ड हार्डिंग को 23 नवंबर 1910 में भारत का वायसराय नियुक्त किया गया। वह लॉर्ड मिंटो के बाद आए, जिनके शासनकाल में मॉर्ले-मिंटो सुधार (1909) लागू हुए थे। उनका कार्यकाल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारवादी और उग्रवादी धड़ों के बीच तनाव, क्रांतिकारी गतिविधियों के उदय, और प्रथम विश्व युद्ध के शुरू होने का समय था। हार्डिंग का दृष्टिकोण भारतीय भावनाओं के प्रति संवेदनशील था, और उन्होंने ब्रिटिश शासन को स्थिर करने के साथ-साथ भारतीयों की माँगों को आंशिक रूप से संबोधित करने की कोशिश की।
2. प्रमुख नीतियाँ और घटनाएँ
बंगाल विभाजन का निरस्तीकरण (1911): लॉर्ड हार्डिंग के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना लॉर्ड कर्जन द्वारा 1905 में किए गए बंगाल विभाजन को रद्द करना थी। यह निर्णय 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार के दौरान घोषित किया गया। बंगाल को फिर से एक प्रांत के रूप में एकीकृत किया गया, लेकिन बिहार, उड़ीसा, और असम को अलग प्रांत बनाया गया। इस निर्णय ने स्वदेशी आंदोलन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारवादी नेताओं को संतुष्ट किया, लेकिन मुस्लिम लीग और कुछ मुस्लिम नेताओं ने इसका विरोध किया, क्योंकि इससे पूर्वी बंगाल में मुस्लिम-बहुल क्षेत्र का विशेष दर्जा खत्म हो गया।
इस कदम को भारतीय जनता की भावनाओं के प्रति ब्रिटिश सरकार की संवेदनशीलता के रूप में देखा गया। राजधानी का स्थानांतरण (1911): लॉर्ड हार्डिंग ने भारत की राजधानी को कलकत्ता (कोलकाता) से दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया, जिसे 1911 के दिल्ली दरबार में घोषित किया गया। इस निर्णय के पीछे प्रशासनिक सुविधा, ऐतिहासिक महत्व, और भारत के मध्य में दिल्ली की भौगोलिक स्थिति थी। नई दिल्ली के निर्माण की नींव रखी गई, जिसे बाद में सर एडविन लुटियंस ने डिज़ाइन किया। यह कदम ब्रिटिश शासन की स्थायित्व और भव्यता का प्रतीक था, लेकिन भारतीयों ने इसे साम्राज्यवादी शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी देखा।
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) और भारत: लॉर्ड हार्डिंग का कार्यकाल प्रथम विश्व युद्ध के शुरुआती वर्षों (1914-1916) से मेल खाता है। भारत ने ब्रिटिश युद्ध प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय सैनिकों (विशेष रूप से पंजाब और अन्य क्षेत्रों से) को यूरोप, मध्य पूर्व, और अफ्रीका के युद्ध क्षेत्रों में भेजा गया। भारत ने सैन्य और आर्थिक संसाधनों में भी योगदान दिया। हार्डिंग ने भारतीय नेताओं से युद्ध में सहयोग की अपील की, और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारवादी नेताओं ने इसका समर्थन किया। हालांकि, युद्ध के कारण भारत में आर्थिक कठिनाइयों (जैसे महंगाई और करों में वृद्धि) ने असंतोष को बढ़ाया।
क्रांतिकारी गतिविधियों का उदय: हार्डिंग के शासनकाल में क्रांतिकारी आंदोलन तेज़ हुआ, विशेष रूप से पंजाब और बंगाल में। गदर आंदोलन (1915) जैसे संगठनों ने विदेशों (विशेष रूप से अमेरिका और कनाडा) से भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह की योजना बनाई। क्रांतिकारी गतिविधियों को दबाने के लिए हार्डिंग ने कठोर कदम उठाए, जैसे 1915 का रक्षा अधिनियम (Defence of India Act), जिसके तहत बिना मुकदमा चलाए लोगों को गिरफ्तार किया जा सकता था। कई क्रांतिकारी नेताओं को गिरफ्तार किया गया, और सख्त सेंसरशिप लागू की गई।
दिल्ली बम कांड (1912): 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली दरबार के दौरान लॉर्ड हार्डिंग पर एक बम हमला हुआ, जिसमें वह घायल हो गए, लेकिन बच गए। यह हमला क्रांतिकारी संगठनों (जैसे रास बिहारी बोस द्वारा प्रेरित) ने किया था। इस घटना ने ब्रिटिश शासन को क्रांतिकारी गतिविधियों की गंभीरता का एहसास कराया, और इसके बाद दमनकारी नीतियाँ और सख्त हो गईं।
राष्ट्रीय आंदोलन और होम रूल आंदोलन: हार्डिंग के शासनकाल के अंतिम वर्षों में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने नया रूप लिया। होम रूल आंदोलन की शुरुआत 1916 में एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में हुई, जिसमें स्वशासन (होम रूल) की माँग की गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच 1916 में लखनऊ समझौता हुआ, जिसमें दोनों ने संयुक्त रूप से स्वशासन की माँग उठाई। यह हार्डिंग के शासनकाल का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक विकास था। प्रशासनिक और आर्थिक नीतियाँ: हार्डिंग ने प्रशासन को और अधिक कुशल बनाने के लिए सुधार किए। उन्होंने रेलवे और सिंचाई परियोजनाओं को बढ़ावा दिया। प्रथम विश्व युद्ध के कारण भारत में आर्थिक दबाव बढ़ा, और हार्डिंग ने युद्ध प्रयासों के लिए संसाधन जुटाने पर ध्यान दिया।
3. महत्व और प्रभाव
बंगाल विभाजन का निरस्तीकरण: यह भारतीय जनता की भावनाओं को शांत करने और स्वदेशी आंदोलन के प्रभाव को कम करने का एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने ब्रिटिश शासन को कुछ समय के लिए स्थिरता प्रदान की। राजधानी का स्थानांतरण: दिल्ली को राजधानी बनाने का निर्णय ब्रिटिश शासन की रणनीति और भारत के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता था। नई दिल्ली का निर्माण बाद में ब्रिटिश भारत का प्रतीक बना। राष्ट्रीय आंदोलन का विकास: हार्डिंग के शासनकाल में राष्ट्रीय आंदोलन ने नई गति पकड़ी। होम रूल आंदोलन और लखनऊ समझौते ने भारतीयों में राजनीतिक चेतना को और बढ़ाया।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ: क्रांतिकारी आंदोलनों के उदय ने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सशस्त्र प्रतिरोध की भूमिका को उजागर किया। साम्प्रदायिकता: बंगाल विभाजन के निरस्तीकरण से मुस्लिम समुदाय में कुछ असंतोष पैदा हुआ, जिसने साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ाया।
4. कार्यकाल का अंत
लॉर्ड हार्डिंग ने 1916 में अपना कार्यकाल पूरा किया, और उनके बाद लॉर्ड चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय बने। हार्डिंग ब्रिटेन लौट गए और बाद में ब्रिटिश कूटनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।5. विरासत: लॉर्ड हार्डिंग का शासनकाल ब्रिटिश शासन और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी था। उनके द्वारा बंगाल विभाजन को रद्द करना और दिल्ली को राजधानी बनाना ऐतिहासिक निर्णय थे। उनके शासनकाल में राष्ट्रीय आंदोलन ने नई दिशा ली, और होम रूल आंदोलन और लखनऊ समझौते ने स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत किया। हालांकि, क्रांतिकारी गतिविधियों पर सख्ती और युद्ध के कारण आर्थिक कठिनाइयों ने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष को और बढ़ाया।
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