Lord Elgin II (Victor Alexander Bruce) October 1894
jp Singh
2025-05-27 17:04:48
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लॉर्ड एल्गिन द्वितीय (विक्टर अलेक्जेंडर ब्रूस) अक्टूबर 1894
लॉर्ड एल्गिन द्वितीय (विक्टर अलेक्जेंडर ब्रूस) अक्टूबर 1894
आपका प्रश्न लॉर्ड एल्गिन द्वितीय (विक्टर अलेक्जेंडर ब्रूस, 9वें अर्ल ऑफ एल्गिन) के भारत में वायसराय के रूप में शासन (1894-1899) के बारे में है। यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि आप जिस लॉर्ड एल्गिन की बात कर रहे हैं, वह जेम्स ब्रूस (8वें अर्ल ऑफ एल्गिन, 1862-1863) से अलग हैं, जिनका उल्लेख आपके पिछले प्रश्न में था। विक्टर अलेक्जेंडर ब्रूस, 9वें अर्ल ऑफ एल्गिन, ने 1894 से 1899 तक भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल के रूप में कार्य किया। नीचे उनके शासन का संक्षिप्त और व्यापक विवरण दिया गया है
1. पृष्ठभूमि
विक्टर अलेक्जेंडर ब्रूस, 9वें अर्ल ऑफ एल्गिन, को जनवरी 1894 में भारत का वायसराय नियुक्त किया गया था। वह अपने पिता, जेम्स ब्रूस (8वें अर्ल ऑफ एल्गिन, जो 1862-1863 में वायसराय थे) के बाद इस पद पर आसीन हुए। उनका कार्यकाल उस समय था जब भारत में ब्रिटिश शासन मजबूत हो चुका था, लेकिन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियाँ उभर रही थीं।
2. प्रमुख घटनाएँ और नीतियाँ
प्लेग महामारी (1896): 1896 में बंबई (अब मुंबई) में ब्यूबोनिक प्लेग का प्रकोप शुरू हुआ, जो भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी। लॉर्ड एल्गिन की सरकार ने इस महामारी से निपटने के लिए कई कदम उठाए, जैसे कि क्वारंटाइन नियम लागू करना, स्वच्छता अभियान चलाना और चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार करना। हालांकि, इन उपायों को लागू करने में ब्रिटिश अधिकारियों की सख्ती और स्थानीय परंपराओं के प्रति असंवेदनशीलता के कारण जनता में असंतोष बढ़ा। अकाल (1896-1897): उनके शासनकाल में भारत में भीषण अकाल पड़ा, विशेष रूप से मध्य और उत्तरी भारत में। लॉर्ड एल्गिन ने अकाल राहत के लिए कई उपाय किए, जैसे कि राहत शिविर स्थापित करना और खाद्य वितरण को व्यवस्थित करना। अकाल के प्रबंधन में उनकी नीतियाँ कुछ हद तक प्रभावी थीं, लेकिन कई क्षेत्रों में राहत कार्यों की कमी और देरी की आलोचना भी हुई।
उत्तर-पश्चिमी सीमा पर सैन्य अभियान: लॉर्ड एल्गिन के शासनकाल में उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत (वर्तमान खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान) में पठान कबीलों के विद्रोह (जैसे तिराह अभियान, 1897-1898) को दबाने के लिए बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान चलाए गए। इन अभियानों का उद्देश्य ब्रिटिश क्षेत्रों की रक्षा करना और रूसी प्रभाव को रोकना था, जो उस समय
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन: उनके कार्यकाल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (स्थापित 1885) धीरे-धीरे राजनीतिक मंच के रूप में उभर रही थी। हालांकि, लॉर्ड एल्गिन ने कांग्रेस की माँगों को गंभीरता से नहीं लिया और ब्रिटिश नीतियों को भारतीयों के लिए उदार बनाने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। उनकी नीतियों को भारतीय नेताओं ने रूढ़िगत और ब्रिटिश हितों को प्राथमिकता देने वाला माना।
3. महत्व
लॉर्ड एल्गिन का शासनकाल भारत में ब्रिटिश शासन के लिए एक स्थिर लेकिन चुनौतीपूर्ण दौर था। उनके कार्यकाल में प्राकृतिक आपदाओं (प्लेग और अकाल) और सीमा पर विद्रोहों ने ब्रिटिश प्रशासन की क्षमताओं की परीक्षा ली। उनकी नीतियाँ ब्रिटिश हितों को मजबूत करने पर केंद्रित थीं, लेकिन स्थानीय जनता के साथ संबंधों में कमी और संवेदनशीलता की कमी के कारण कुछ असंतोष भी पैदा हुआ। उनके शासनकाल में बुनियादी ढांचे और प्रशासनिक सुधारों ने बाद के वायसरायों के लिए एक आधार प्रदान किया।
4. कार्यकाल का अंत
लॉर्ड एल्गिन ने जनवरी 1899 में अपना कार्यकाल पूरा किया और उनके बाद लॉर्ड कर्जन भारत के वायसराय बने, जिन्होंने अधिक सक्रिय और विवादास्पद नीतियाँ लागू कीं। अपने कार्यकाल के बाद, लॉर्ड एल्गिन ब्रिटेन लौट गए और बाद में ब्रिटिश सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।
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