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(Sir John Strachey, 1823-1907)
jp Singh 2025-05-27 16:45:24
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सर जॉन स्ट्रेची का शासनकाल (फरवरी 1872 - मई 1872)

सर जॉन स्ट्रेची का शासनकाल (फरवरी 1872 - मई 1872)
सर जॉन स्ट्रेची (Sir John Strachey, 1823-1907) भारत के कार्यवाहक (Acting) गवर्नर-जनरल और वायसराय के रूप में 1872 में लॉर्ड मेयो की हत्या के बाद अल्पकाल के लिए सेवा दी। उनका कार्यकाल 8 फरवरी 1872 से मई 1872 तक केवल कुछ महीनों का था, क्योंकि यह एक अंतरिम व्यवस्था थी, जब तक कि स्थायी वायसराय, लॉर्ड नॉर्थब्रूक (थॉमस जॉर्ज बारिंग), मई 1872 में पद ग्रहण नहीं कर लेते। सर जॉन स्ट्रेची एक अनुभवी ब्रिटिश प्रशासक थे, जो भारत में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य कर चुके थे।
1. पृष्ठभूमि और नियुक्ति
पृष्ठभूमि: सर जॉन स्ट्रेची एक कुशल ब्रिटिश सिविल सेवक थे, जिन्होंने भारत में लंबे समय तक सेवा दी थी। वे 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उत्तर-पश्चिमी प्रांतों (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में महत्वपूर्ण प्रशासनिक भूमिका निभा चुके थे। स्ट्रेची 1868 से भारत के गवर्नर-जनरल की परिषद (Viceroy’s Council) के सदस्य थे और वित्त विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। उनकी वित्तीय और प्रशासनिक विशेषज्ञता ने उन्हें अंतरिम गवर्नर-जनरल के लिए उपयुक्त बनाया।
नियुक्ति: लॉर्ड मेयो की 8 फरवरी 1872 को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में हत्या के बाद, भारत में ब्रिटिश प्रशासन को स्थिर रखने के लिए एक अंतरिम गवर्नर-जनरल की आवश्यकता थी। सर जॉन स्ट्रेची को उनकी अनुभवी पृष्ठभूमि के कारण इस जिम्मेदारी के लिए चुना गया। उनका कार्यकाल मई 1872 तक चला, जब लॉर्ड नॉर्थब्रूक ने वायसराय का पद ग्रहण किया।
उद्देश्य: स्ट्रेची का मुख्य उद्देश्य लॉर्ड मेयो की नीतियों को बनाए रखना और ब्रिटिश प्रशासन की निरंतरता सुनिश्चित करना था, ताकि नए वायसराय के आने तक कोई व्यवधान न हो।
2. शासनकाल की विशेषताएं
सर जॉन स्ट्रेची का कार्यकाल केवल तीन महीने का था, इसलिए उनके समय में कोई बड़े नीतिगत परिवर्तन या सुधार लागू नहीं हुए। उनका ध्यान प्रशासनिक स्थिरता और मौजूदा नीतियों को बनाए रखने पर था। उनके कार्यकाल की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
प्रशासनिक निरंतरता: स्ट्रेची ने लॉर्ड मेयो की नीतियों को जारी रखा, विशेष रूप से वित्तीय विकेंद्रीकरण और भारतीय रियासतों के साथ संबंधों को बनाए रखने पर ध्यान दिया। दिल्ली, जो पंजाब प्रांत के अधीन एक जिला थी, में ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर और अन्य अधिकारियों ने स्थानीय प्रशासन, राजस्व संग्रह, और कानून-व्यवस्था को संभाला। स्ट्रेची ने सुनिश्चित किया कि दिल्ली में प्रशासनिक व्यवस्था में कोई व्यवधान न हो। उन्होंने गवर्नर-जनरल की परिषद के साथ मिलकर भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने का प्रयास किया।
वित्तीय प्रबंधन: स्ट्रेची, जो पहले से ही वित्त विभाग के प्रभारी थे, ने भारत की वित्तीय स्थिति को स्थिर रखने पर ध्यान दिया। लॉर्ड मेयो की वित्तीय विकेंद्रीकरण नीति (1870) को लागू रखा गया, जिसके तहत प्रांतीय सरकारों को वित्तीय स्वायत्तता दी गई थी। दिल्ली में स्थानीय राजस्व संग्रह को और व्यवस्थित किया गया, हालांकि उनके संक्षिप्त कार्यकाल में कोई नई वित्तीय नीति शुरू नहीं की गई। सैन्य स्थिरता: दिल्ली में लाल किला ब्रिटिश सेना की छावनी के रूप में उपयोग होता रहा। स्ट्रेची ने सुनिश्चित किया कि 1857 के विद्रोह के बाद स्थापित सैन्य व्यवस्था में कोई बदलाव न हो।
उत्तर-पश्चिमी सीमांत क्षेत्र में लॉर्ड जॉन लॉरेंस और मेयो की नीतियों को बनाए रखा गया, जिसमें स्थानीय जनजातियों के साथ न्यूनतम हस्तक्षेप और ब्रिटिश प्रभाव को बनाए रखना शामिल था। दिल्ली में स्थिति: दिल्ली में स्ट्रेची के संक्षिप्त कार्यकाल में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुआ। शहर पंजाब प्रांत के अधीन रहा, और ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर स्थानीय प्रशासन के लिए जिम्मेदार थे। लाल किला और अन्य मुगलकालीन संरचनाएं ब्रिटिश सैन्य और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए उपयोग होती रहीं। दिल्ली की सांस्कृतिक पहचान, जैसे उर्दू साहित्य और मुगल दरबारी परंपराएं, कमजोर पड़ रही थीं। ब्रिटिश प्रशासन ने अंग्रेजी शिक्षा और पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा देना जारी रखा।
आर्थिक और बुनियादी ढांचा: स्ट्रेची के कार्यकाल में रेलवे, टेलीग्राफ, और सड़क नेटवर्क का विकास पहले की तरह जारी रहा। दिल्ली में चांदनी चौक जैसे बाजार व्यापारिक केंद्र बने रहे, लेकिन स्थानीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश नीतियों का प्रभाव बढ़ रहा था। उनके संक्षिप्त कार्यकाल में कोई नई आर्थिक या बुनियादी ढांचा नीति शुरू नहीं की गई। 3. मृत्यु और कार्यकाल का अंत कार्यकाल का अंत: सर जॉन स्ट्रेची का कार्यकाल मई 1872 में समाप्त हुआ, जब लॉर्ड नॉर्थब्रूक ने भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल का पद ग्रहण किया। इसके बाद स्ट्रेची भारत में अन्य प्रशासनिक भूमिकाओं में सक्रिय रहे और बाद में उत्तर-पश्चिमी प्रांतों के लेफ्टिनेंट गवर्नर (1874-1876) बने। मृत्यु: स्ट्रेची की मृत्यु 19 दिसंबर 1907 को इंग्लैंड में हुई।
न्य योगदान: स्ट्रेची ने अपने भाई रिचर्ड स्ट्रेची के साथ मिलकर
4. ऐतिहासिक महत्व
संक्षिप्त और अंतरिम भूमिका: सर जॉन स्ट्रेची का कार्यकाल भारत के इतिहास में एक छोटा सा अंतराल था। उनका मुख्य योगदान लॉर्ड मेयो की हत्या के बाद उत्पन्न प्रशासनिक रिक्तता को भरना और लॉर्ड नॉर्थब्रूक के लिए सुचारु हस्तांतरण सुनिश्चित करना था। दिल्ली का संदर्भ: दिल्ली में उनके कार्यकाल में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुआ। शहर पंजाब प्रांत के अधीन रहा, और ब्रिटिश प्रशासन ने 1857 के विद्रोह के बाद स्थापित व्यवस्था को बनाए रखा। वित्तीय विशेषज्ञता: स्ट्रेची की वित्तीय विशेषज्ञता ने भारत की आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने में मदद की, हालांकि उनके संक्षिप्त कार्यकाल में कोई नई नीति लागू नहीं हुई।
ब्रिटिश शासन की निरंतरता: उनके कार्यकाल ने लॉर्ड मेयो की नीतियों, जैसे वित्तीय विकेंद्रीकरण और रियासतों के साथ संबंधों, को बनाए रखा, जिसने ब्रिटिश शासन को स्थिर रखा।5. दिल्ली में प्रभाव प्रशासनिक ढांचा: दिल्ली में ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर और अन्य अधिकारियों ने स्थानीय प्रशासन संभाला। स्ट्रेची के संक्षिप्त कार्यकाल में कोई नई नीति लागू नहीं की गई। सैन्य नियंत्रण: लाल किला और अन्य रणनीतिक स्थल ब्रिटिश सेना के नियंत्रण में रहे। यह 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिशों की रणनीति का हिस्सा था। सांस्कृतिक परिवर्तन: दिल्ली की मुगलकालीन सांस्कृतिक पहचान, जैसे उर्दू साहित्य और दरबारी परंपराएं, कमजोर पड़ रही थीं। ब्रिटिश प्रशासन ने अंग्रेजी शिक्षा और पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा देना जारी रखा। आर्थिक स्थिति: दिल्ली में व्यापार और वाणिज्य चांदनी चौक जैसे बाजारों के माध्यम से जारी रहा। स्ट्रेची की वित्तीय विशेषज्ञता ने स्थानीय राजस्व संग्रह को स्थिर रखने में मदद की।
6. विरासत
सर जॉन स्ट्रेची का कार्यकाल भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण नहीं माना जाता, क्योंकि यह केवल कुछ महीनों का था। उनकी मुख्य उपलब्धि यह थी कि उन्होंने लॉर्ड मेयो की हत्या के बाद प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखी और लॉर्ड नॉर्थब्रूक के लिए सुचारु हस्तांतरण सुनिश्चित किया।
दिल्ली में उनके समय में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ, लेकिन शहर का प्रशासनिक और सैन्य महत्व बढ़ता रहा, जो बाद में 1911 में इसे ब्रिटिश भारत की राजधानी बनाने का आधार बना।
स्ट्रेची अपने बाद के कार्यों, जैसे उत्तर-पश्चिमी प्रांतों के लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में और उनकी पुस्तक के लिए, अधिक जाने जाते हैं।
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