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James Bruce, 8th Earl of Elgin
jp Singh 2025-05-27 16:26:39
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लॉर्ड कैनिंग (1856-1862)

लॉर्ड कैनिंग (1856-1862)
लॉर्ड कैनिंग (1856-1862) के बाद लॉर्ड एल्गिन प्रथम (James Bruce, 8th Earl of Elgin) भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल बने। उनका कार्यकाल 1862 से 1863 तक रहा। नीचे उनके शासनकाल और उसके बाद के वायसरायों का विस्तृत विवरण दिया गया है, जो लॉर्ड कैनिंग के बाद भारत के शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले थे।
1. लॉर्ड एल्गिन प्रथम (1862-1863)
कार्यकाल: मार्च 1862 से नवंबर 1863 तक। पृष्ठभूमि: जेम्स ब्रूस, जिन्हें लॉर्ड एल्गिन के नाम से जाना जाता है, एक अनुभवी ब्रिटिश प्रशासक थे। वे पहले कनाडा और चीन में गवर्नर के रूप में कार्य कर चुके थे। शासनकाल की विशेषताएं: लॉर्ड एल्गिन का कार्यकाल अपेक्षाकृत छोटा और शांत रहा, क्योंकि यह 1857 के विद्रोह के बाद स्थिरता का दौर था। उन्होंने लॉर्ड कैनिंग की नीतियों को जारी रखा, विशेष रूप से भारतीय रियासतों के साथ संबंधों को मजबूत करने और प्रशासनिक स्थिरता लाने पर ध्यान दिया। उनके शासनकाल में ब्रिटिश प्रशासन ने भारत में सैन्य और आर्थिक पुनर्गठन पर ध्यान केंद्रित किया। उल्लेखनीय घटना: 1863 में अंबाला में एक सैन्य अभियान के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। यह अभियान पंजाब और उत्तर-पश्चिमी सीमांत क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए था।
मृत्यु: लॉर्ड एल्गिन की मृत्यु 20 नवंबर 1863 को धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में हुई। उनकी अचानक मृत्यु के कारण उनका कार्यकाल छोटा रहा।
2. अंतरिम गवर्नर-जनरल (1863-1864)
लॉर्ड एल्गिन की मृत्यु के बाद, उनके उत्तराधिकारी के आने तक अंतरिम व्यवस्था के तहत कई अधिकारियों ने गवर्नर-जनरल का कार्यभार संभाला। इनमें सर रॉबर्ट नेपियर और सर विलियम डेनिसन प्रमुख थे। यह एक अल्पकालिक व्यवस्था थी, क्योंकि ब्रिटिश सरकार जल्द ही स्थायी वायसराय नियुक्त करना चाहती थी।
3. लॉर्ड जॉन लॉरेंस (1864-1869)
कार्यकाल: जनवरी 1864 से जनवरी 1869 तक। पृष्ठभूमि: लॉर्ड जॉन लॉरेंस एक अनुभवी प्रशासक थे, जो पहले पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर रह चुके थे। उन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान पंजाब को ब्रिटिश नियंत्रण में रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शासनकाल की विशेषताएं: प्रशासनिक सुधार: लॉरेंस ने भारत में प्रशासनिक और वित्तीय सुधारों पर जोर दिया। उन्होंने राजस्व व्यवस्था को मजबूत किया और स्थानीय प्रशासन को अधिक कुशल बनाया।
उत्तर-पश्चिमी सीमांत नीति: उन्होंने अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिमी सीमांत क्षेत्रों में ब्रिटिश प्रभाव को बनाए रखने के लिए
4. दिल्ली का संदर्भ
लॉर्ड कैनिंग के बाद दिल्ली में ब्रिटिश प्रशासन और मजबूत हुआ। लॉर्ड एल्गिन और लॉर्ड लॉरेंस के शासनकाल में दिल्ली को पंजाब प्रांत के अधीन एक जिला बनाए रखा गया। इस दौरान:
प्रशासनिक ढांचा: दिल्ली में डिप्टी कमिश्नर और अन्य ब्रिटिश अधिकारी स्थानीय प्रशासन संभालते थे। ब्रिटिशों ने शहर में पुलिस, राजस्व, और न्यायिक व्यवस्था को व्यवस्थित किया। सैन्य नियंत्रण: लाल किला और अन्य मुगलकालीन संरचनाएं ब्रिटिश सेना के नियंत्रण में रहीं। दिल्ली को एक महत्वपूर्ण सैन्य केंद्र बनाया गया। सांस्कृतिक परिवर्तन: मुगलकालीन सांस्कृतिक परंपराएं, जैसे उर्दू साहित्य और मुशायरे, कमजोर पड़ गईं। ब्रिटिशों ने पश्चिमी शिक्षा और अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा देना शुरू किया। आर्थिक विकास: दिल्ली में रेलवे और सड़क नेटवर्क का विकास हुआ, जिसने शहर को ब्रिटिश भारत के अन्य हिस्सों से जोड़ा।5. बाद के वायसराय और दिल्ली का महत्व लॉर्ड लॉरेंस के बाद भारत के प्रमुख वायसरायों में शामिल थे
लॉर्ड मेयो (1869-1872): उन्होंने शिक्षा और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान दिया। उनकी हत्या 1872 में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में हुई। लॉर्ड नॉर्थब्रूक (1872-1876): उन्होंने वित्तीय सुधारों पर ध्यान दिया।
लॉर्ड लिटन (1876-1880): उनके शासनकाल में 1877 का दिल्ली दरबार हुआ, जिसमें रानी विक्टोरिया को
दिल्ली का बढ़ता महत्व: 1911 में लॉर्ड हार्डिंग (1910-1916) के शासनकाल में दिल्ली को ब्रिटिश भारत की राजधानी घोषित किया गया। इसके बाद न्यू दिल्ली का निर्माण शुरू हुआ, जो 1931 में पूर्ण हुआ। दिल्ली दरबार (1877, 1903, 1911) ने दिल्ली के ऐतिहासिक और प्रशासनिक महत्व को और बढ़ाया।
6. ऐतिहासिक महत्व
लॉर्ड कैनिंग के बाद का दौर: लॉर्ड कैनिंग के बाद के वायसरायों ने भारत में ब्रिटिश शासन को और सुदृढ़ किया। लॉर्ड एल्गिन और लॉर्ड लॉरेंस ने 1857 के विद्रोह के बाद स्थिरता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुगल शासन का अंत: लॉर्ड कैनिंग के समय मुगल साम्राज्य का अंत हुआ, और उनके उत्तराधिकारियों ने भारत को पूरी तरह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन कर लिया। दिल्ली का परिवर्तन: दिल्ली, जो पहले मुगल साम्राज्य की राजधानी थी, अब ब्रिटिश प्रशासन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गई। 1911 में इसे राजधानी बनाए जाने से इसका महत्व और बढ़ गया। स्वतंत्रता संग्राम की नींव: इस दौर में ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ असंतोष बढ़ता गया, जो बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885) और स्वतंत्रता आंदोलनों के रूप में सामने आया।
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