Bhadur shah jafar II part 2
jp Singh
2025-05-27 14:33:03
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बहादुर शाह जफर द्वितीय Part 2
बहादुर शाह जफर द्वितीय के निर्वासन के बाद, जो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दमन के परिणामस्वरूप रंगून (वर्तमान यांगून, म्यांमार) भेजे गए थे, मुगल साम्राज्य का औपचारिक अंत हो गया। इसके बाद दिल्ली पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और फिर ब्रिटिश क्राउन का शासन स्थापित हुआ। नीचे इस काल का विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें दिल्ली पर शासन, प्रशासनिक व्यवस्था, सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन, और ऐतिहासिक महत्व शामिल हैं।
1. 1857 के विद्रोह का दमन और दिल्ली पर ब्रिटिश नियंत्रण
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में दिल्ली विद्रोह का केंद्र थी, जहां बहादुर शाह जफर को विद्रोहियों ने
दिल्ली पर पुनः कब्जा (सितंबर 1857)
सितंबर 1857 में ब्रिटिश सेना, जिसका नेतृत्व जनरल आर्कडेल विल्सन और मेजर विलियम हॉडसन जैसे अधिकारियों ने किया, ने दिल्ली पर पुनः कब्जा कर लिया। विद्रोह के दमन के दौरान ब्रिटिशों ने दिल्ली में बड़े पैमाने पर नरसंहार किया। हजारों लोग मारे गए, और शहर में व्यापक लूटपाट हुई। कई ऐतिहासिक इमारतें और संपत्तियां नष्ट की गईं या जब्त कर ली गईं। बहादुर शाह जफर को 20 सितंबर 1857 को हुमायूं के मकबरे से गिरफ्तार किया गया। उनके दो पुत्रों, मिर्जा मुगल और मिर्जा खिज्र सुल्तान, और पौत्र मिर्जा अबू बकर को मेजर हॉडसन ने गोली मार दी, जिसे इतिहास में
हादुर शाह जफर पर 1858 में मुकदमा चलाया गया, जिसमें उन पर राजद्रोह और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व करने का आरोप लगाया गया। उन्हें आजीवन निर्वासन की सजा दी गई, और अक्टूबर 1858 में उन्हें रंगून भेज दिया गया।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का अल्पकालिक शासन (1857-1858): दिल्ली पर कब्जे के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने शहर में सैन्य प्रशासन स्थापित किया। इस दौरान दिल्ली में कठोर सैन्य कानून लागू किया गया, और विद्रोहियों को दंडित करने के लिए तलाशी अभियान चलाए गए। लाल किला, जो मुगल सम्राटों का प्रतीक था, ब्रिटिश सेना के नियंत्रण में आ गया। इसे सैन्य छावनी के रूप में इस्तेमाल किया गया, और मुगल शाही परिवार के अधिकांश सदस्यों को कैद या निर्वासित कर दिया गया।
2. ब्रिटिश क्राउन का शासन (1858 और उसके बाद)
1857 के विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार को यह एहसास कराया कि ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन भारत में प्रभावी नहीं रहा। इसके परिणामस्वरूप, ब्रिटिश संसद ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1858 पारित किया, जिसके तहत भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरित कर दिया गया।
ब्रिटिश राज की स्थापना
1 नवंबर 1858 को, ब्रिटिश सरकार ने औपचारिक रूप से भारत पर प्रत्यक्ष शासन शुरू किया। रानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया, और भारत में गवर्नर-जनरल को अब
दिल्ली को शुरू में पंजाब प्रांत के अधीन रखा गया, और इसे एक जिला प्रशासन के रूप में संगठित किया गया। ब्रिटिश कमिश्नर और डिप्टी कमिश्नर जैसे अधिकारी दिल्ली के प्रशासन को संभालने लगे। 1911 तक कलकत्ता ब्रिटिश भारत की राजधानी रही, लेकिन दिल्ली का महत्व बढ़ता गया। दिल्ली में प्रशासनिक व्यवस्था: ब्रिटिशों ने दिल्ली में एक व्यवस्थित प्रशासन स्थापित किया, जिसमें राजस्व संग्रह, पुलिस व्यवस्था, और न्यायिक प्रणाली शामिल थी। दिल्ली में ब्रिटिश रेजिडेंट की भूमिका समाप्त हो गई, और शहर को डिवीजनल कमिश्नर के अधीन रखा गया। स्थानीय स्तर पर डिप्टी कमिश्नर और अन्य अधिकारी नियुक्त किए गए।
रिटिशों ने दिल्ली की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को कम करने की कोशिश की। लाल किले और अन्य मुगल इमारतों का उपयोग सैन्य और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए किया गया। सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन: 1857 के बाद दिल्ली में व्यापक सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुए। ब्रिटिशों ने शहर में नए बुनियादी ढांचे, जैसे रेलवे और टेलीग्राफ लाइनें, विकसित कीं। दिल्ली की पुरानी कुलीन वर्ग, विशेष रूप से मुगल दरबार से जुड़े लोग, अपनी संपत्ति और प्रभाव खो बैठे। कई परिवार निर्धनता में चले गए।
ब्रिटिशों ने हिंदू-मुस्लिम एकता को कमजोर करने के लिए
न्यू दिल्ली का निर्माण: 1911 में दिल्ली को राजधानी बनाने के बाद, ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने न्यू दिल्ली की योजना बनाई। यह एक नया प्रशासनिक शहर था, जिसमें संसद भवन, वायसराय हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन), और अन्य सरकारी इमारतें शामिल थीं। 1931 में न्यू दिल्ली का निर्माण पूर्ण हुआ, और यह ब्रिटिश भारत का प्रशासनिक केंद्र बन गया। पुरानी दिल्ली (शाहजहानाबाद) को स्थानीय आबादी का केंद्र बनाए रखा गया।
4. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रभाव
मुगल साम्राज्य का अंत: बहादुर शाह जफर के निर्वासन के साथ ही 300 साल पुराना मुगल साम्राज्य पूरी तरह समाप्त हो गया। उनके बाद कोई मुगल सम्राट नहीं रहा, और ब्रिटिशों ने मुगल वंश को पूरी तरह से खत्म कर दिया। दिल्ली, जो कभी मुगल साम्राज्य की शान थी, अब ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का हिस्सा बन गई। सांस्कृतिक परिवर्तन: 1857 के बाद दिल्ली की सांस्कृतिक पहचान को गहरा आघात लगा। मुगल दरबार, जो उर्दू साहित्य, कविता, और कला का केंद्र था, समाप्त हो गया। मिर्जा गालिब जैसे शायरों ने इस दौर की उदासी को अपनी रचनाओं में व्यक्त किया।
ब्रिटिशों ने पश्चिमी शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देना शुरू किया, जिसके कारण दिल्ली में अंग्रेजी स्कूल और कॉलेज स्थापित हुए। राष्ट्रीय आंदोलन की नींव: 1857 का विद्रोह, हालांकि असफल रहा, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव साबित हुआ। दिल्ली इस आंदोलन का प्रतीक बनी, और बाद में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह राष्ट्रीय आंदोलनों का केंद्र रही। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद दिल्ली स्वतंत्र भारत की राजधानी बनी, और यह आज भी भारत का राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र है।
5. ब्रिटिश शासन की विशेषताएं (1858-1947)
प्रशासनिक ढांचा: दिल्ली को पहले पंजाब प्रांत के अधीन रखा गया, और बाद में 1912 में इसे एक अलग केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया। ब्रिटिशों ने दिल्ली में आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था लागू की, जिसमें नगरपालिका, पुलिस, और राजस्व विभाग शामिल थे। रेलवे, सड़कें, और संचार व्यवस्था का विकास हुआ, जिसने दिल्ली को ब्रिटिश भारत के अन्य हिस्सों से जोड़ा। सैन्य महत्व: दिल्ली को ब्रिटिश सेना का एक प्रमुख केंद्र बनाया गया। लाल किले और अन्य स्थानों पर सैन्य छावनियां स्थापित की गईं।
1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिशों ने दिल्ली में अपनी सैन्य उपस्थिति को और मजबूत किया ताकि भविष्य में कोई विद्रोह न हो। आर्थिक विकास: ब्रिटिश शासन के दौरान दिल्ली में व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिला। चांदनी चौक और अन्य बाजार ब्रिटिश भारत के व्यापारिक केंद्र बने रहे। हालांकि, स्थानीय कारीगरों और व्यापारियों को ब्रिटिश नीतियों के कारण नुकसान उठाना पड़ा, क्योंकि ब्रिटिश सामान को प्राथमिकता दी गई।
6. प्रमुख व्यक्तित्व और घटनाएं
वायसराय और गवर्नर-जनरल: 1858 के बाद भारत में ब्रिटिश वायसराय नियुक्त किए गए, जिनमें लॉर्ड कैनिंग (1858-1862), लॉर्ड एल्गिन, लॉर्ड मेयो, और बाद में लॉर्ड कर्जन जैसे नाम शामिल हैं। ये वायसराय दिल्ली सहित पूरे भारत के प्रशासन को नियंत्रित करते थे। दिल्ली में स्थानीय स्तर पर डिप्टी कमिश्नर और अन्य अधिकारी शासन संभालते थे। 1911 का दिल्ली दरबार: 1911 में सम्राट जॉर्ज पंचम और रानी मैरी ने दिल्ली दरबार में भाग लिया। इस दौरान दिल्ली को ब्रिटिश भारत की राजधानी घोषित किया गया, जो ब्रिटिश शासन की एक महत्वपूर्ण घटना थी।
न्यू दिल्ली का निर्माण इस घोषणा का परिणाम था, जिसने दिल्ली को एक आधुनिक प्रशासनिक शहर के रूप में स्थापित किया।
7. ऐतिहासिक महत्व
मुगल युग का अंत और ब्रिटिश राज की शुरुआत: बहादुर शाह जफर के बाद दिल्ली में मुगल शासन का कोई निशान नहीं बचा। यह भारतीय इतिहास में एक युग का अंत था। ब्रिटिश राज ने भारत में अपनी सत्ता को मजबूत किया और दिल्ली को एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सैन्य केंद्र बनाया।
स्वतंत्रता संग्राम की नींव: 1857 का विद्रोह और बहादुर शाह जफर की भूमिका ने भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना को जागृत किया। यह बाद के स्वतंत्रता आंदोलनों, जैसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885 में स्थापित) और गांधीवादी आंदोलनों, की नींव बनी। दिल्ली 20वीं सदी में स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बनी, जहां कई राष्ट्रीय सम्मेलन और प्रदर्शन हुए।
सांस्कृतिक परिवर्तन: ब्रिटिश शासन ने दिल्ली की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना को बदल दिया। मुगलकालीन परंपराएं, जैसे उर्दू साहित्य और मुशायरे, कमजोर पड़ गए, जबकि पश्चिमी शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा मिला। फिर भी, दिल्ली की ऐतिहासिक विरासत, जैसे जामा मस्जिद, लाल किला, और हुमायूं का मकबरा, आज भी शहर की पहचान हैं।
Conclusion
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