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Ali gohar (1760-1788)
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अली गौहर (1760-1788 और फिर 1788-1806)

अली गौहर (1760-1788 और फिर 1788-1806)
अली गौहर, जिन्हें शाह आलम द्वितीय के नाम से जाना जाता है, मुगल साम्राज्य के सोलहवें सम्राट थे। उनका शासनकाल (1760-1788 और फिर 1788-1806) मुगल साम्राज्य के पतन के अंतिम चरण का प्रतीक है, जब साम्राज्य पूरी तरह नाममात्र का हो चुका था और वास्तविक सत्ता क्षेत्रीय शक्तियों (मराठा, सिख, रोहिल्ला) और अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में थी। वह आलमगीर द्वितीय (1754-1759) के पुत्र थे और औरंगजेब के परपोते थे। अली गौहर एक विद्वान, कवि, और सांस्कृतिक रूप से परिष्कृत शासक थे, लेकिन उनकी राजनीतिक और सैन्य कमजोरी ने उन्हें अंग्रेजों और मराठों के नियंत्रण में रखा।
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म: अली गौहर का जन्म 25 जून 1728 को दिल्ली में हुआ था। वह आलमगीर द्वितीय और उनकी पत्नी ज़िनत महल के पुत्र थे। शिक्षा: मुगल शाही परंपराओं के अनुसार, अली गौहर को फारसी, अरबी, उर्दू, और इस्लामी धर्मशास्त्र की गहन शिक्षा दी गई। वह एक कुशल कवि थे और
पारिवारिक पृष्ठभूमि: अली गौहर का जन्म उस समय हुआ जब मुगल साम्राज्य औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद तेजी से कमजोर हो रहा था। नादिर शाह का आक्रमण (1739), अहमद शाह अब्दाली के बार-बार के आक्रमण, और क्षेत्रीय शक्तियों (मराठा, सिख, जाट) के उदय ने साम्राज्य को नाममात्र का बना दिया था। उनके पिता आलमगीर द्वितीय की हत्या (1759) ने मुगल दरबार को और अस्थिर किया।
प्रारंभिक जीवन: अली गौहर ने अपने प्रारंभिक जीवन में दिल्ली के शाही दरबार में समय बिताया। 1750 के दशक में, जब उनके पिता आलमगीर द्वितीय सम्राट थे, अली गौहर को प्रशासनिक और सैन्य जिम्मेदारियाँ दी गईं, लेकिन वह इमाद-उल-मुल्क जैसे दरबारियों के नियंत्रण में रहे। 1758 में, दिल्ली की अस्थिरता के कारण, वह बिहार और बंगाल की ओर चले गए, जहाँ उन्होंने स्वतंत्र रूप से सत्ता स्थापित करने की कोशिश की।
2. शासनकाल (1760-1788 और 1788-1806)
अली गौहर का शासनकाल दो चरणों में बँटा है: पहला 1760 से 1788 तक, और दूसरा 1788 से उनकी मृत्यु (1806) तक। उनका शासन पूरी तरह अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी, मराठों, और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के नियंत्रण में रहा।
सिंहासनारोहण पृष्ठभूमि: 29 नवंबर 1759 को आलमगीर द्वितीय की हत्या के बाद, उनके वज़ीर इमाद-उल-मुल्क ने शाहजहाँ तृतीय को संक्षिप्त रूप से सम्राट बनाया। उस समय अली गौहर बिहार में थे और उन्होंने स्वयं को शाह आलम द्वितीय के रूप में सम्राट घोषित किया। 24 दिसंबर 1760 को उन्होंने औपचारिक रूप से दिल्ली में सत्ता संभाली, लेकिन वास्तविक सत्ता उनके हाथ में नहीं थी। नाममात्र का शासन: शाह आलम द्वितीय का शासन शुरू से ही नाममात्र का था। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों पर मराठों, रोहिल्लाओं, और बाद में अंग्रेजों का नियंत्रण था।
प्रमुख घटनाएँ पानीपत का तीसरा युद्ध (1761): 14 जनवरी 1761 को मराठों (पेशवा बालाजी बाजीराव और सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में) और अहमद शाह अब्दाली के बीच पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ। मराठों की करारी हार ने उनकी उत्तर भारत में विस्तार की आकांक्षाओं को कमजोर किया। शाह आलम द्वितीय इस युद्ध में तटस्थ रहे, क्योंकि वह बिहार और बंगाल में थे। युद्ध ने मुगल सत्ता को और कमजोर किया, क्योंकि मराठों और अब्दाली दोनों ने दिल्ली पर नियंत्रण की कोशिश की।
बक्सर का युद्ध (1764): 1764 में शाह आलम द्वितीय ने अवध के नवाब शुजा-उद-दौला और बंगाल के नवाब मीर कासिम के साथ मिलकर अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ बक्सर का युद्ध लड़ा। अंग्रेजों (हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में) ने इस युद्ध में निर्णायक जीत हासिल की। इस हार के बाद शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों के साथ समझौता किया और इलाहाबाद में उनके संरक्षण में रहे।
इलाहाबाद की संधि (1765): बक्सर की हार के बाद, शाह आलम द्वितीय ने 12 अगस्त 1765 को अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ इलाहाबाद की संधि पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत: अंग्रेजों को बंगाल, बिहार, और उड़ीसा की दीवानी (कर वसूली का अधिकार) दे दी गई। शाह आलम द्वितीय को इलाहाबाद और कड़ा के जिले दिए गए, साथ ही 26 लाख रुपये की वार्षिक पेंशन। अवध का कुछ हिस्सा शुजा-उद-दौला को वापस किया गया। यह संधि मुगल सत्ता के औपचारिक अंत का प्रतीक थी, क्योंकि अंग्रेज अब वास्तविक शासक बन गए।
दिल्ली में वापसी (1771): 1771 में शाह आलम द्वितीय मराठों के समर्थन से दिल्ली लौटे और फिर से सम्राट के रूप में स्थापित हुए। हालाँकि, मराठों ने दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों को नियंत्रित किया। इस समय रोहिल्ला नेता नजीब-उद-दौला और मराठा नेता महादजी सिंधिया ने दिल्ली की सत्ता पर प्रभाव डाला। रोहिल्ला युद्ध (1774): शाह आलम द्वितीय ने मराठों और अवध के नवाब के साथ मिलकर रोहिल्लाओं (ज़बीता खान के नेतृत्व में) के खिलाफ युद्ध लड़ा। रोहिल्ला हार गए, और उनका क्षेत्र अवध और मराठों के बीच बँट गया।
अंग्रेजों का बढ़ता प्रभाव: 1788 में मराठा नेता महादजी सिंधिया ने शाह आलम द्वितीय को दिल्ली में फिर से स्थापित किया, लेकिन 1803 में दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध में अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद शाह आलम द्वितीय पूरी तरह अंग्रेजों के संरक्षण में आ गए। अंग्रेजों ने उन्हें लाल किले में सीमित रखा और एक छोटी पेंशन दी। मुगल सम्राट अब केवल एक प्रतीक बनकर रह गए।
गुलाम कादिर का अत्याचार (1788): 1788 में रोहिल्ला नेता गुलाम कादिर ने दिल्ली पर कब्ज़ा किया और शाह आलम द्वितीय को अपमानित किया। उसने शाह आलम की आँखें फोड़ दीं, जिससे वह अंधे हो गए। गुलाम कादिर ने शाही खजाने को लूटा और दरबार में अत्याचार किए। बाद में मराठों ने गुलाम कादिर को हराया और मार ड दिया। अंग्रेजों का पूर्ण नियंत्रण (1803): 1803 में अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया और शाह आलम द्वितीय को औपचारिक रूप से अपने संरक्षण में ले लिया। वह लाल किले में एक पेंशनभोगी सम्राट बनकर रह गए।
मृत्यु शाह आलम द्वितीय की मृत्यु 19 नवंबर 1806 को दिल्ली में हुई। उनकी मृत्यु के समय मुगल साम्राज्य पूरी तरह अंग्रेजों के नियंत्रण में था। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र अकबर शाह द्वितीय (1806-1837) सम्राट बने, लेकिन वह भी अंग्रेजों के अधीन रहे। 3. प्रशासन शाह आलम द्वितीय का प्रशासन पूरी तरह नाममात्र का था। वास्तविक सत्ता मराठों, रोहिल्लाओं, और अंग्रेजों के हाथों में थी।
केंद्रीय शासन
सम्राट की भूमिका: शाह आलम द्वितीय एक कठपुतली शासक थे, जिनके पास कोई वास्तविक सत्ता नहीं थी। वह कविता और साहित्य में रुचि रखते थे, लेकिन सैन्य और प्रशासनिक मामलों में असमर्थ थे। मंत्रिपरिषद: इमाद-उल-मुल्क, नजीब-उद-दौला, महादजी सिंधिया, और बाद में अंग्रेज अधिकारी (जैसे लॉर्ड वेलेज़ली) शासन को नियंत्रित करते थे। दरबारी गुटबाजी और षड्यंत्र आम थे। न्याय व्यवस्था: शरिया के आधार पर नाममात्र की न्याय व्यवस्था थी, लेकिन क्षेत्रीय शासकों और अंग्रेजों ने स्वतंत्र न्याय व्यवस्था लागू की।
प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन
सूबे: मुगल साम्राज्य के सूबे (दिल्ली, आगरा, बंगाल) पूरी तरह स्वायत्त हो चुके थे। अवध, बंगाल, और हैदराबाद के नवाब केंद्र को कोई कर नहीं भेजते थे। अंग्रेजों ने बंगाल की दीवानी (1765) पर नियंत्रण कर लिया था। मनसबदारी प्रणाली: मनसबदारी प्रणाली पूरी तरह समाप्त हो चुकी थी। जागीरें मराठों, रोहिल्लाओं, और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के नियंत्रण में थीं। ज़ब्त प्रणाली: कर संग्रह की व्यवस्था अस्त-व्यस्त थी। दिल्ली में भी कर वसूली असंभव थी। सैन्य संगठन शाह आलम द्वितीय की कोई स्वतंत्र सेना नहीं थी। वह मराठों, अवध के नवाब, या अंग्रेजों की सेनाओं पर निर्भर थे।
बक्सर के युद्ध (1764) में उनकी हार ने उनकी सैन्य कमजोरी को उजागर किया। नौसेना का कोई अस्तित्व नहीं था, और तटीय क्षेत्रों में अंग्रेज और फ्रांसीसी प्रभावी थे।
4. अर्थव्यवस्था
शाह आलम द्वितीय के शासनकाल में अर्थव्यवस्था पूरी तरह ढह चुकी थी। अंग्रेजों की दीवानी और क्षेत्रीय शक्तियों के नियंत्रण ने मुगल खजाने को खाली कर दिया था।
कृषि प्रमुख फसलें: गेहूँ, चावल, जौ, और नील प्रमुख फसलें थीं, लेकिन विद्रोहों और लूटपाट ने कृषि को प्रभावित किया। सिंचाई: कोई नई सिंचाई परियोजना शुरू नहीं हुई। मौजूदा नहरें उपेक्षित थीं। कर प्रणाली: कर संग्रह की व्यवस्था समाप्त हो चुकी थी। अंग्रेजों ने बंगाल, बिहार, और उड़ीसा की दीवानी पर नियंत्रण कर लिया था।
व्यापार आंतरिक व्यापार: दिल्ली और आगरा जैसे व्यापारिक केंद्र कमजोर हो गए। मराठा और सिख विद्रोहों ने व्यापार मार्गों को असुरक्षित किया। अंतरराष्ट्रीय व्यापार: बंगाल और सूरत के बंदरगाहों से व्यापार होता था, लेकिन अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी ने इन पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया था। यूरोपीय व्यापारी: अंग्रेजों ने 1757 में प्लासी के युद्ध और 1764 में बक्सर के युद्ध के बाद बंगाल पर आर्थिक और राजनीतिक नियंत्रण स्थापित किया। फ्रांसीसी प्रभाव कम हो गया।
मुद्रा सोने (मुहर), चांदी (रुपया), और तांबे (दाम) के सिक्के नाममात्र के लिए प्रचलित थे। अंग्रेजों और क्षेत्रीय शासकों ने स्वतंत्र सिक्के जारी किए। मुगल मुद्रा की साख पूरी तरह समाप्त हो चुकी थी। उद्योग कपड़ा उद्योग: बंगाल की मलमल विश्व प्रसिद्ध थी, लेकिन अंग्रेजों ने इस पर नियंत्रण कर लिया और स्थानीय उद्योग को कमजोर किया। हस्तशिल्प: आभूषण और कालीन जैसे हस्तशिल्प लगभग समाप्त हो चुके थे।
5. समाज और संस्कृति
शाह आलम द्वितीय का समाज अस्थिर और विभाजित था। उनकी सांस्कृतिक रुचि ने उर्दू साहित्य और कविता को बढ़ावा दिया, लेकिन साम्राज्य की कमजोरी ने सांस्कृतिक विकास को सीमित किया।
सामाजिक संरचना अभिजात वर्ग: मराठा, रोहिल्ला, और अंग्रेज अधिकारी समाज के शीर्ष पर थे। मुगल मनसबदार और जागीरदार पूरी तरह प्रभावहीन हो चुके थे। मध्यम और निम्न वर्ग: व्यापारी, कारीगर, और किसान समाज का बड़ा हिस्सा थे। अंग्रेजी कर प्रणाली और लूटपाट ने उनकी स्थिति को खराब किया। जाति व्यवस्था: हिंदू समाज में वर्ण और जाति व्यवस्था प्रचलित थी। शाह आलम द्वितीय ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया। धर्म धार्मिक नीति: शाह आलम द्वितीय सहिष्णु थे और उन्होंने जज़िया या कट्टर नीतियाँ लागू नहीं कीं। हिंदुओं, सिखों, और अन्य समुदायों के साथ तनाव बना रहा, लेकिन कोई विशेष धार्मिक संघर्ष नहीं हुआ। सूफी और भक्ति आंदोलन: सूफी संतों और भक्ति संतों का प्रभाव बना रहा। शाह आलम द्वितीय ने सूफी दरगाहों को सीमित संरक्षण दिया।
सिख शक्ति: सिखों ने पंजाब में अपनी सैन्य और राजनीतिक शक्ति बढ़ाई, और उन्होंने मुगल सत्ता को पूरी तरह नकार दिया। महिलाओं की स्थिति उच्च वर्ग: शाह आलम द्वितीय की पत्नियाँ और हरम की महिलाएँ दरबार में प्रभावशाली थीं, लेकिन उनकी कोई विशेष भूमिका दर्ज नहीं है। सामान्य वर्ग: पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, और सती प्रथा प्रचलित थीं। कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया गया। शिक्षा: उच्च वर्ग की महिलाएँ शिक्षित थीं और साहित्य में सक्रिय थीं। शिक्षा और संस्कृति शिक्षा: मस्जिदों और मदरसों में इस्लामी शिक्षा को सीमित प्रोत्साहन मिला। उर्दू और फारसी साहित्य का विकास हुआ।
साहित्य: शाह आलम द्वितीय स्वयं एक कवि थे और
6. व्यक्तित्व और योगदान
विशेषताएँ: शाह आलम द्वितीय एक विद्वान, कवि, और सांस्कृतिक रूप से परिष्कृत शासक थे। उनकी सैन्य और प्रशासनिक कमजोरी, साथ ही गुलाम कादिर द्वारा अंधा किए जाने ने उन्हें पूरी तरह असहाय बना दिया। सांस्कृतिक योगदान: उनके शासन में उर्दू साहित्य और कविता का महत्वपूर्ण विकास हुआ। उनकी स्वयं की कविताएँ और दरबारी कवियों का योगदान उल्लेखनीय है। प्रशासनिक योगदान: उनका कोई उल्लेखनीय प्रशासनिक योगदान नहीं था। इलाहाबाद की संधि (1765) ने उनकी सत्ता को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया। सैन्य योगदान: बक्सर का युद्ध (1764) उनकी सैन्य असफलता का प्रतीक था। उनकी कोई स्वतंत्र सैन्य शक्ति नहीं थी।
विरासत: शाह आलम द्वितीय का शासन मुगल साम्राज्य के अंतिम चरण का प्रतीक है। उनकी अंग्रेजों के अधीन स्थिति और गुलाम कादिर का अत्याचार मुगल सत्ता के पूर्ण पतन को दर्शाता है।
7. मृत्यु और उत्तराधिकार
मृत्यु: शाह आलम द्वितीय की मृत्यु 19 नवंबर 1806 को दिल्ली के लाल किले में हुई। उनकी मृत्यु के समय मुगल साम्राज्य केवल दिल्ली के लाल किले तक सीमित था और पूरी तरह अंग्रेजों के नियंत्रण में था। उत्तराधिकार: उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र अकबर शाह द्वितीय (1806-1837) सम्राट बने। अकबर शाह द्वितीय भी अंग्रेजों के अधीन रहे, और उनके बाद बहादुर शाह ज़फर (1837-1857) अंतिम मुगल सम्राट बने।
8. ऐतिहासिक संदर्भ और पतन का दौर
शाह आलम द्वितीय का शासन मुगल साम्राज्य के पूर्ण पतन का दौर था। औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद उत्तराधिकार युद्ध, नादिर शाह (1739) और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण, और क्षेत्रीय शक्तियों (मराठा, सिख, जाट) के उदय ने साम्राज्य को कमजोर कर दिया था।
पानीपत का तीसरा युद्ध (1761): इस युद्ध ने मराठा शक्ति को कमजोर किया और मुगल सत्ता को अप्रासंगिक बना दिया।
बक्सर का युद्ध और इलाहाबाद की संधि (1765): इन घटनाओं ने अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में प्रमुख शक्ति बना दिया और मुगल सत्ता को औपचारिक रूप से समाप्त किया।
अंग्रेजी वर्चस्व: 1803 में दिल्ली पर अंग्रेजों का कब्ज़ा और 1857 के विद्रोह (शाह आलम द्वितीय के बाद) ने मुगल साम्राज्य को पूरी तरह समाप्त कर दिया।
सिख और मराठा: सिखों ने पंजाब में स्वतंत्र सिख साम्राज्य (रणजीत सिंह के नेतृत्व में) स्थापित किया, जबकि मराठों का प्रभाव पानीपत की हार के बाद कम हुआ।
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