Muhammad Shah (1702-1748)
jp Singh
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मुहम्मद शाह (1702-1748)
मुहम्मद शाह (1702-1748)
मुहम्मद शाह (1702-1748), जिन्हें मुहम्मद शाह रंगीला के नाम से भी जाना जाता है, मुगल साम्राज्य के तेरहवें सम्राट थे। उनका शासनकाल (1719-1748) लगभग 29 वर्षों तक चला, जो औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद मुगल साम्राज्य के पतन के दौर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। वह औरंगजेब के पौत्र और बहादुर शाह प्रथम के पुत्र रौशन अख्तर थे। मुहम्मद शाह का उपनाम
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म: मुहम्मद शाह का जन्म 7 अगस्त 1702 को ग़ज़नाबाद (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वह औरंगजेब के पुत्र बहादुर शाह प्रथम और उनकी पत्नी निज़ाम बाई के पुत्र थे। उनका मूल नाम रौशन अख्तर था। शिक्षा: मुहम्मद शाह को मुगल शाही परंपराओं के अनुसार फारसी, अरबी, और प्रशासनिक शिक्षा दी गई। वह कला, संगीत, और साहित्य में रुचि रखते थे, जिसके कारण उन्हें
पारिवारिक पृष्ठभूमि: मुहम्मद शाह का जन्म उस समय हुआ जब औरंगजेब का शासन चल रहा था। औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद उनके पिता बहादुर शाह प्रथम (1707-1712) सम्राट बने, लेकिन उत्तराधिकार युद्धों और सैय्यद बंधुओं (अब्दुल्ला खान और हुसैन अली खान) के प्रभाव ने साम्राज्य को अस्थिर कर दिया था। प्रारंभिक जीवन: औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल दरबार में अस्थिरता के कारण रौशन अख्तर का बचपन अशांत रहा। वह सैय्यद बंधुओं के संरक्षण में पले-बढ़े, जिन्होंने बाद में उन्हें सम्राट बनाया।
2. शासनकाल (1719-1748)
मुहम्मद शाह का शासनकाल लंबा था, लेकिन यह मुगल साम्राज्य के पतन का दौर था। उनके शासन में सैय्यद बंधुओं का प्रभाव, क्षेत्रीय शक्तियों का उदय, और विदेशी आक्रमण प्रमुख घटनाएँ थीं।
सिंहासनारोहण पृष्ठभूमि: 1719 में शाहजहाँ द्वितीय (रफी-उस-शान) की मृत्यु के बाद सैय्यद बंधुओं ने रौशन अख्तर को दिल्ली में सम्राट बनाया। सितंबर 1719 में उनकी ताजपोशी हुई, और उन्हें मुहम्मद शाह की उपाधि दी गई। उस समय वह केवल 17 वर्ष के थे। सैय्यद बंधुओं का प्रभाव: शुरू में सैय्यद बंधु (अब्दुल्ला खान और हुसैन अली खान) ने सत्ता को नियंत्रित किया। वे वज़ीर और मीर बख्शी के रूप में वास्तविक शासक थे, और मुहम्मद शाह एक कठपुतली सम्राट थे।
प्रमुख घटनाएँ सैय्यद बंधुओं का अंत (1720-1722): सैय्यद बंधुओं का प्रभाव मुगल दरबार में बढ़ता गया, जिससे अन्य अमीरों और तुर्की गुट में असंतोष बढ़ा। 1720 में हुसैन अली खान की हत्या कर दी गई, और 1722 में अब्दुल्ला खान को हसनपुर के युद्ध में हराकर कैद कर लिया गया। इस तरह मुहम्मद शाह ने सैय्यद बंधुओं के प्रभाव से मुक्ति पाई और स्वतंत्र रूप से शासन शुरू किया। निज़ाम-उल-मुल्क (आसफ जाह प्रथम), जो दक्कन का सूबेदार था, ने सैय्यद बंधुओं को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बाद में हैदराबाद में स्वतंत्र आसफ जाही वंश की स्थापना की।
क्षेत्रीय शक्तियों का उदय: मराठा: मराठा शक्ति (पेशवा बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में) तेजी से उभरी। 1737 में बाजीराव ने दिल्ली पर हमला किया और मुगल सत्ता की कमजोरी को उजागर किया। मराठों ने मालवा, गुजरात, और दक्कन में अपनी सत्ता मज़बूत की। सिख: सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह और बंदा बहादुर के नेतृत्व में पंजाब में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाई। मुहम्मद शाह के शासन में सिखों के खिलाफ कई अभियान चलाए गए, लेकिन वे असफल रहे। जाट: भरतपुर के जाटों ने (चूड़ामन और बादन सिंह के नेतृत्व में) दिल्ली के आसपास विद्रोह किए। अवध और बंगाल: अवध में सआदत अली खान और बंगाल में मुर्शिद कुली खान ने स्वायत्त शासन स्थापित किया, जिसने मुगल केंद्रीय सत्ता को और कमजोर किया।
नादिर शाह का आक्रमण (1739): फारस के शासक नादिर शाह ने 1739 में भारत पर आक्रमण किया। करनाल के युद्ध (फरवरी 1739) में मुहम्मद शाह की सेना को करारी हार मिली। नादिर शाह ने दिल्ली पर कब्ज़ा किया और भारी लूटपाट की। उसने कोहिनूर हीरा और तख्त-ए-ताऊस (मयूर सिंहासन) लूट लिया। दिल्ली में नरसंहार हुआ, जिसमें हजारों लोग मारे गए। इस आक्रमण ने मुगल साम्राज्य की कमजोरी को विश्व के सामने उजागर किया और आर्थिक रूप से साम्राज्य को भारी नुकसान पहुँचाया। अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण: 1748 में अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण किया, जो मुहम्मद शाह के शासन के अंतिम वर्ष में हुआ। यह बाद में मुगल सत्ता के लिए और खतरा बना।
मृत्यु मुहम्मद शाह की मृत्यु 15 अप्रैल 1748 को दिल्ली में हुई। उनकी मृत्यु के समय साम्राज्य अत्यंत कमजोर हो चुका था, और क्षेत्रीय शक्तियों ने मुगल सत्ता को नाममात्र तक सीमित कर दिया था। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र अहमद शाह (1748-1754) सम्राट बने।
3. प्रशासन
मुहम्मद शाह का प्रशासन कमजोर और अस्थिर था। सैय्यद बंधुओं के बाद भी केंद्रीय सत्ता प्रभावी नहीं हो सकी।
केंद्रीय शासन
सम्राट की भूमिका: मुहम्मद शाह एक विलासी और कला प्रेमी शासक थे, लेकिन सैन्य और प्रशासनिक मामलों में कमजोर थे। उनकी विलासिता और दरबारी षड्यंत्रों में रुचि ने शासन को प्रभावित किया। मंत्रिपरिषद: निज़ाम-उल-मुल्क, सआदुल्ला खान, और बाद में सफ़दरजंग जैसे अमीरों ने शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालाँकि, अमीरों के बीच गुटबाजी और सत्ता की होड़ ने प्रशासन को कमजोर किया। न्याय व्यवस्था: शरिया के आधार पर न्याय प्रदान किया जाता था, लेकिन स्थानीय पंचायतें और क्षेत्रीय शासक स्वतंत्र रूप से न्याय व्यवस्था संभालने लगे।
प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन सूबे: साम्राज्य के सूबे (जैसे दिल्ली, आगरा, बंगाल, दक्कन) नाममात्र के मुगल नियंत्रण में थे। सूबेदार (जैसे निज़ाम-उल-मुल्क और मुर्शिद कुली खान) स्वायत्त हो गए और केंद्र को कर भेजना बंद कर दिया। मनसबदारी प्रणाली: अकबर द्वारा शुरू की गई मनसबदारी प्रणाली कमजोर हो गई। जागीरों का दुरुपयोग बढ़ा, और मनसबदारों की निष्ठा केंद्र से हटकर क्षेत्रीय शक्तियों की ओर हो गई। ज़ब्त प्रणाली: कर संग्रह की व्यवस्था बिगड़ गई, क्योंकि क्षेत्रीय शासकों और विद्रोहियों ने कर वसूली को बाधित किया।
सैन्य संगठन मुहम्मद शाह की सेना कमजोर थी, और करनाल के युद्ध (1739) में नादिर शाह के खिलाफ इसकी अक्षमता स्पष्ट हो गई। मराठों और सिखों के गुरिल्ला युद्धों ने मुगल सेना को और कमजोर किया। नौसेना का उपयोग सीमित था, और तटीय क्षेत्रों में यूरोपीय शक्तियों का प्रभाव बढ़ रहा था। 4. अर्थव्यवस्था मुहम्मद शाह के शासनकाल में अर्थव्यवस्था शुरू में समृद्ध थी, लेकिन नादिर शाह के आक्रमण और क्षेत्रीय शक्तियों के उदय ने इसे कमजोर किया।
कृषि प्रमुख फसलें: गेहूँ, चावल, जौ, कपास, नील, और तंबाकू प्रमुख फसलें थीं। नकदी फसलों ने व्यापार को बढ़ावा दिया। सिंचाई: औरंगजेब के समय की नहरें और कुएँ उपयोग में थे, लेकिन नई परियोजनाएँ सीमित थीं। कर प्रणाली: ज़ब्त प्रणाली और जागीर प्रणाली से कर संग्रह होता था, लेकिन क्षेत्रीय शासकों ने केंद्र को कर भेजना बंद कर दिया। नादिर शाह की लूट ने खजाने को खाली कर दिया।
व्यापार आंतरिक व्यापार: दिल्ली, आगरा, लाहौर, और सूरत व्यापारिक केंद्र थे, लेकिन मराठा और सिख विद्रोहों ने व्यापार मार्गों को असुरक्षित किया। अंतरराष्ट्रीय व्यापार: सूरत, खंभात, और बंगाल के बंदरगाहों से फारस, मध्य एशिया, और यूरोप के साथ व्यापार होता था। बंगाल में अंग्रेज और डच व्यापारी प्रभावी हो रहे थे। यूरोपीय व्यापारी: अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, मद्रास, और सूरत में अपनी स्थिति मज़बूत की। 1717 में फर्रुखसियार द्वारा दी गई व्यापारिक रियायतों ने अंग्रेजों को और शक्ति दी।
मुद्रा मुहम्मद शाह के समय सोने (मुहर), चांदी (रुपया), और तांबे (दाम) के सिक्के प्रचलित थे। लेकिन खजाने की कमी ने सिक्कों की गुणवत्ता को प्रभावित किया। टकसालें दिल्ली, आगरा, और सूरत में थीं, लेकिन क्षेत्रीय शासकों ने स्वतंत्र रूप से सिक्के जारी करना शुरू कर दिया। उद्योग कपड़ा उद्योग: बंगाल और गुजरात में सूती और रेशमी वस्त्र (विशेष रूप से ढाका की मलमल) विश्व प्रसिद्ध थे। हस्तशिल्प: आभूषण, कालीन, और धातु कार्य में प्रगति थी, लेकिन सांस्कृतिक संरक्षण कमजोर हुआ।
5. समाज और संस्कृति
मुहम्मद शाह का समाज बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक था। उनकी कला और संगीत में रुचि ने सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा दिया, लेकिन सामाजिक तनाव बढ़ा।
सामाजिक संरचना अभिजात वर्ग: मनसबदार, जागीरदार, और क्षेत्रीय शासक (जैसे निज़ाम-उल-मुल्क और सआदत अली खान) समाज के शीर्ष पर थे। दरबारी गुटबाजी ने सत्ता को कमजोर किया। मध्यम और निम्न वर्ग: व्यापारी, कारीगर, और किसान समाज का बड़ा हिस्सा थे। भारी करों और लूटपाट ने किसानों पर दबाव डाला। जाति व्यवस्था: हिंदू समाज में वर्ण और जाति व्यवस्था प्रचलित थी। मुहम्मद शाह ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया।
धर्म धार्मिक नीति: मुहम्मद शाह ने औरंगजेब की कट्टर नीतियों को नरम किया। उन्होंने जज़िया लागू नहीं किया, जिससे हिंदुओं और अन्य समुदायों में कुछ राहत थी। हालाँकि, सिखों और मराठों के साथ तनाव बना रहा। सूफी और भक्ति आंदोलन: सूफी संतों और भक्ति संतों का प्रभाव बना रहा। मुहम्मद शाह ने सूफी दरगाहों को संरक्षण दिया। सिखों के साथ तनाव: सिखों ने पंजाब में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाई, और मुहम्मद शाह के अभियानों ने उन्हें दबाने में असफलता दिखाई।
महिलाओं की स्थिति उच्च वर्ग: मुहम्मद शाह की पत्नी उधम बाई (जानी बेगम) ने कला और संगीत में रुचि दिखाई। वह शाही हरम में प्रभावशाली थी। सामान्य वर्ग: पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, और सती प्रथा प्रचलित थीं। मुहम्मद शाह ने सती प्रथा पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं लगाया। शिक्षा: उच्च वर्ग की महिलाएँ शिक्षित थीं और साहित्य में सक्रिय थीं। शिक्षा और संस्कृति शिक्षा: मुहम्मद शाह ने मस्जिदों और मदरसों में इस्लामी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया। फारसी और उर्दू साहित्य को संरक्षण मिला।
साहित्य: मुहम्मद शाह के दरबार में उर्दू कविता का विकास हुआ। मिर्ज़ा रफी सौदा और मीर तकी मीर जैसे कवि इस युग में उभरे। फारसी साहित्य भी फला-फूला। वास्तुकला: मुहम्मद शाह के समय वास्तुकला में कोई बड़ा योगदान नहीं हुआ। नादिर शाह की लूट ने सांस्कृतिक संसाधनों को कमजोर किया। चित्रकला: मुगल लघुचित्र कला कमजोर हो रही थी, लेकिन कुछ दरबारी चित्र बनाए गए। संगीत: मुहम्मद शाह संगीत प्रेमी थे। उनके दरबार में सदारंग और अदारंग जैसे संगीतकारों ने ख्याल गायकी को विकसित किया। उनकी विलासिता और संगीत में रुचि ने उन्हें
6. व्यक्तित्व और योगदान
विशेषताएँ: मुहम्मद शाह एक कला प्रेमी, संगीत प्रेमी, और विलासी शासक थे। उनकी कमजोर नेतृत्व क्षमता और दरबारी षड्यंत्रों में रुचि ने साम्राज्य को और कमजोर किया। सांस्कृतिक योगदान: मुहम्मद शाह के शासन में उर्दू कविता और ख्याल गायकी का विकास हुआ। उनकी सांस्कृतिक रुचि ने दिल्ली को सांस्कृतिक केंद्र बनाए रखा। प्रशासनिक योगदान: सैय्यद बंधुओं को हटाने के बाद मुहम्मद शाह ने कुछ हद तक स्वतंत्र शासन किया, लेकिन वह साम्राज्य को स्थिर करने में असफल रहे। सैन्य योगदान: उनके शासन में कोई उल्लेखनीय सैन्य उपलब्धि नहीं थी। नादिर शाह का आक्रमण और मराठों का दिल्ली पर हमला उनकी सैन्य कमजोरी को दर्शाता है। विरासत: मुहम्मद शाह का शासन मुगल साम्राज्य के पतन का प्रमुख दौर था। उनकी विलासिता और कमजोर नेतृत्व ने क्षेत्रीय शक्तियों और विदेशी आक्रमणों के सामने मुगल सत्ता को असहाय बना दिया।
7. मृत्यु और उत्तराधिकार
मृत्यु: मुहम्मद शाह की मृत्यु 15 अप्रैल 1748 को दिल्ली में हुई। उनकी मृत्यु के समय मुगल साम्राज्य नाममात्र का हो चुका था, और क्षेत्रीय शक्तियों (मराठा, सिख, और अवध) ने अधिकांश क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया था। उत्तराधिकार: उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र अहमद शाह (1748-1754) सम्राट बने। अहमद शाह का शासन भी अस्थिर रहा, और अहमद शाह अब्दाली के बार-बार के आक्रमणों ने साम्राज्य को और कमजोर किया।
8. ऐतिहासिक संदर्भ और पतन का दौर
मुहम्मद शाह का शासन मुगल साम्राज्य के पतन का एक महत्वपूर्ण दौर था। औरंगजेब की कट्टर नीतियों और युद्धों ने साम्राज्य को पहले ही कमजोर कर दिया था, और मुहम्मद शाह की कमजोर नेतृत्व क्षमता ने इस प्रक्रिया को तेज किया।
नादिर शाह का आक्रमण (1739): यह मुगल साम्राज्य के लिए एक बड़ा झटका था। दिल्ली की लूट और कोहिनूर हीरे का नुकसान साम्राज्य की प्रतिष्ठा और अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी था।
क्षेत्रीय शक्तियों का उदय: मराठों (पेशवा बाजीराव), सिखों (खालसा पंथ), और अवध, बंगाल, और हैदराबाद के नवाबों ने स्वायत्त शासन स्थापित किया, जिसने मुगल सत्ता को नाममात्र तक सीमित कर दिया।
यूरोपीय प्रभाव: अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्रांसीसी व्यापारियों ने बंगाल और दक्षिण भारत में अपनी स्थिति मज़बूत की। 1757 में प्लासी का युद्ध (मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद) अंग्रेजों की बढ़ती शक्ति का प्रतीक था।
Conclusion
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