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Rafi-ud-Darajat (1699-1719)
jp Singh 2025-05-27 10:48:36
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रफी-उद-दरजात (1699-1719)

रफी-उद-दरजात (1699-1719)
रफी-उद-दरजात (1699-1719) मुगल साम्राज्य के ग्यारहवें शासक थे, जिनका शासनकाल अत्यंत संक्षिप्त और अस्थिर था। वह औरंगजेब के पोते और बहादुर शाह प्रथम के पौत्र थे। उनका शासनकाल 1719 में केवल कुछ महीनों (फरवरी से जून 1719) तक चला, और वह सैय्यद बंधुओं (अब्दुल्ला खान और हुसैन अली खान) के कठपुतली शासक थे। रफी-उद-दरजात का शासन मुगल साम्राज्य के पतन के दौर में आता है, जब साम्राज्य की केंद्रीय सत्ता कमजोर हो चुकी थी।
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म: रफी-उद-दरजात का जन्म 1699 में हुआ था। वह फर्रुखसियार (मुगल सम्राट, 1713-1719) के छोटे भाई थे और औरंगजेब के पुत्र अज़ीम-उस-शान के पुत्र थे। उनकी माता का नाम ऐतिहासिक स्रोतों में स्पष्ट रूप से उल्लेखित नहीं है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि: रफी-उद-दरजात का जन्म उस समय हुआ जब मुगल साम्राज्य पहले से ही आंतरिक कलह, उत्तराधिकार युद्धों, और क्षेत्रीय शक्तियों (जैसे मराठा, सिख, और जाट) के उदय के कारण कमजोर हो रहा था।
शिक्षा: रफी-उद-दरजात को शाही परंपराओं के अनुसार फारसी, अरबी, और प्रशासनिक शिक्षा दी गई होगी, लेकिन उनकी कम उम्र और संक्षिप्त शासन के कारण इसके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।
2. शासनकाल (1719)
रफी-उद-दरजात का शासनकाल मुगल इतिहास में सबसे कम अवधि का था और सैय्यद बंधुओं के नियंत्रण में रहा।
सिंहासनारोहण पृष्ठभूमि: 1719 में फर्रुखसियार को सैय्यद बंधुओं (अब्दुल्ला खान और हुसैन अली खान) ने अपदस्थ कर हत्या कर दी, क्योंकि फर्रुखसियार ने उनकी सत्ता को चुनौती देने की कोशिश की थी। सैय्यद बंधु, जो मुगल दरबार में 'वज़ीर' और 'मीर बख्शी' के रूप में शक्तिशाली थे, ने रफी-उद-दरजात को सम्राट बनाया। सिंहासनारोहण: फरवरी 1719 में रफी-उद-दरजात को दिल्ली में मुगल सम्राट के रूप में ताजपोशी की गई। वह केवल 20 वर्ष के थे और सत्ता पर सैय्यद बंधुओं का पूर्ण नियंत्रण था।
शासन की विशेषताएँ कठपुतली शासक: रफी-उद-दरजात का शासन नाममात्र का था। वास्तविक सत्ता सैय्यद बंधुओं के हाथ में थी, जो सभी प्रमुख निर्णय लेते थे। रफी-उद-दरजात के पास कोई स्वतंत्र शक्ति या प्रभाव नहीं था। प्रशासन: उनके शासनकाल में कोई उल्लेखनीय प्रशासनिक सुधार या नीति लागू नहीं हुई। सैय्यद बंधुओं ने जागीर प्रणाली और मनसबदारी को अपने नियंत्रण में रखा, और साम्राज्य की कमजोर स्थिति को संभालने की कोशिश की। क्षेत्रीय चुनौतियाँ: इस समय मराठों, सिखों, और जाटों के विद्रोह बढ़ रहे थे। सैय्यद बंधुओं ने इन विद्रोहों को दबाने की कोशिश की, लेकिन उनकी शक्ति सीमित थी।
स्वास्थ्य और मृत्यु खराब स्वास्थ्य: रफी-उद-दरजात शुरू से ही कमजोर स्वास्थ्य से ग्रस्त थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, वह तपेदिक (Tuberculosis) से पीड़ित थे। मृत्यु: जून 1719 में, केवल चार महीने के शासन के बाद, रफी-उद-दरजात की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु को प्राकृतिक माना जाता है, हालाँकि कुछ स्रोतों में सैय्यद बंधुओं पर उनकी हत्या का संदेह जताया गया है।
3. उत्तराधिकार
रफी-उद-दरजात की मृत्यु के बाद सैय्यद बंधुओं ने उनके भाई रफी-उस-शान को सम्राट बनाया, जिन्हें शाहजहाँ द्वितीय की उपाधि दी गई। उनका शासनकाल भी केवल कुछ महीनों (जून 1719 से सितंबर 1719) तक चला, क्योंकि वह भी बीमारी के कारण मर गए। इसके बाद सैय्यद बंधुओं ने मुहम्मद शाह (रंगीला) को 1719 में सम्राट बनाया, जिनका शासनकाल (1719-1748) लंबा रहा, लेकिन मुगल साम्राज्य की कमजोरी और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय जारी रहा।
4. प्रशासन और अर्थव्यवस्था
प्रशासन: रफी-उद-दरजात के शासन में कोई स्वतंत्र प्रशासनिक नीति नहीं थी। सैय्यद बंधु मनसबदारी और जागीर प्रणाली को नियंत्रित करते थे। औरंगजेब के समय से चली आ रही आर्थिक कमजोरी और विद्रोहों ने प्रशासन को और अस्थिर किया। अर्थव्यवस्था: साम्राज्य का खजाना औरंगजेब के लंबे युद्धों के कारण पहले से ही कमजोर था। रफी-उद-दरजात के संक्षिप्त शासन में कोई आर्थिक सुधार नहीं हुआ। व्यापार (विशेष रूप से सूरत और बंगाल में) और कपड़ा उद्योग चलता रहा, लेकिन क्षेत्रीय शक्तियों ने कर संग्रह को बाधित किया। यूरोपीय प्रभाव: इस समय अंग्रेज, डच, और पुर्तगाली व्यापारी भारत में अपनी स्थिति मज़बूत कर रहे थे, लेकिन रफी-उद-दरजात के शासन में इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।
5. समाज और संस्कृति
सामाजिक संरचना: रफी-उद-दरजात के समय समाज बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक था। मनसबदार और जागीरदार अभिजात वर्ग थे, जबकि व्यापारी, कारीगर, और किसान समाज का बड़ा हिस्सा थे। धार्मिक नीति: रफी-उद-दरजात की कोई स्वतंत्र धार्मिक नीति नहीं थी। सैय्यद बंधुओं ने औरंगजेब की कट्टर नीतियों को नरम करने की कोशिश की, लेकिन धार्मिक तनाव (विशेष रूप से सिखों और राजपूतों के साथ) बना रहा। सांस्कृतिक योगदान: उनके संक्षिप्त शासन में कोई उल्लेखनीय सांस्कृतिक योगदान नहीं हुआ। मुगल चित्रकला और वास्तुकला इस समय कमजोर हो रही थी।
6. व्यक्तित्व और योगदान
विशेषताएँ: रफी-उद-दरजात एक कमजोर और बीमार शासक थे, जिनके पास कोई वास्तविक सत्ता नहीं थी। उनकी कम उम्र और खराब स्वास्थ्य ने उन्हें सैय्यद बंधुओं के हाथों कठपुतली बनने के लिए मजबूर किया। योगदान: उनके शासनकाल में कोई उल्लेखनीय प्रशासनिक, सैन्य, या सांस्कृतिक योगदान नहीं हुआ। उनका शासन मुगल साम्राज्य के पतन के दौर का एक छोटा सा हिस्सा था। विरासत: रफी-उद-दरजात का शासन इतिहास में केवल एक संक्षिप्त और महत्वहीन अवधि के रूप में दर्ज है। उनकी मृत्यु ने सैय्यद बंधुओं की सत्ता को और मजबूत किया, लेकिन मुगल साम्राज्य की कमजोरी को रोकना असंभव हो गया।
7. मृत्यु और उत्तराधिकार
मृत्यु: रफी-उद-दरजात की मृत्यु जून 1719 में दिल्ली में हुई। उनकी मृत्यु की वजह तपेदिक या अन्य बीमारी मानी जाती है। कुछ स्रोतों में सैय्यद बंधुओं पर उनकी हत्या का संदेह जताया गया है, लेकिन इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। उत्तराधिकार: उनकी मृत्यु के बाद उनके भाई शाहजहाँ द्वितीय (रफी-उस-शान) को सम्राट बनाया गया, लेकिन उनका शासन भी केवल तीन महीने चला। इसके बाद मुहम्मद शाह (1719-1748) ने सत्ता संभाली।
8. ऐतिहासिक संदर्भ और पतन का दौर
रफी-उद-दरजात का शासन मुगल साम्राज्य के पतन के शुरुआती दौर का प्रतीक है। औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद साम्राज्य में उत्तराधिकार युद्ध, क्षेत्रीय शक्तियों का उदय (मराठा, सिख, जाट), और आर्थिक कमजोरी बढ़ गई थी। सैय्यद बंधुओं का प्रभाव इस समय चरम पर था, और वे मुगल सम्राटों को नियंत्रित करते थे। यह दौर 'किंगमेकर' की सत्ता का प्रतीक था। विदेशी शक्तियों, विशेष रूप से अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी, ने इस कमजोरी का फायदा उठाकर भारत में अपनी स्थिति मज़बूत की।
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